Ankaha Ahsaas - 24 in Hindi Love Stories by Bhupendra Kuldeep books and stories PDF | अनकहा अहसास - अध्याय - 24

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अनकहा अहसास - अध्याय - 24

अध्याय - 24

तभी चपरासी दिखा।
मैडम आप लोगो को भी कांफ्रेंस रूम में बुला रहे हैं। सब लोग आ गए हैं वहाँ।
ठीक है हम आते हैं तुम चलो।
चपरासी चला गया।
जब ये लोग वहाँ पहुंचे तो कांफ्रेंस रूम पूरे स्टाफ से भर गया था। रमा देखना चाह रही थी कि आखिर कौन है जो मुझसे मेरे अनुज को छिनना चाहती है। मैं भी तो देखूँ।
अनुज तो रमा के आने को ही वेट कर रहा था। जब रमा हाँल के अंदर गई तो भीड़ के बीच से ही उस लड़की को देखा। उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।
ओह ! ये तो आभा है मेरी क्लासमेट।
अनुज ने रमा को देख लिया था और नहीं चाहता था कि आभा उसे देखे।
आभा मेरी ओर देखो। अनुज बोला।
हाँ अनुज बताओ। आभा बोली।
देखिए सभी लोग शांत हो जाईए। मैं आप सब को कुछ बताना चाहता हूँ।
सब लोग शांत हो गए।
ये आभा है मेरी मंगेतर, और आज मैं आप सब के सामने इनके साथ सगाई करके अपनी खुशी बांटना चाहता हूँ। यह कहकर अनुज सबके सामने घुटने पर आ गया और रिंग निकालकर आभा को पूछा क्या तुम मुझसे शादी करोगी ?
बिलकुल अनुज। आभा चहकते हुए बोली सब लोगों ने जोरदार ताली बजाई।
मैं आप सब के लिए लड्डू लाया हूँ खाईये और एंजाय करिए।
सभी ने फिर से ताली बजाई और लड्डू लेकर बाहर जाने लगे।
अरे वो रमा है क्या ? आभा ने उसे जाते हुए देख लिया था।
अनुज अब मुकर नहीं सकता था।
हाँ वो रमा ही है। अनुज बोला
तो तुमने मुझे बताया क्यों नहीं, मैं मिलकर आती हूँ उससे।
रमा माला के साथ अपने विभाग में आकर बैठ गई।
आभा पीछे से आई और रमा के कंधे पर हाथ रखी। रमा पीछे पलटी।
ओह !! आभा। वो खड़ी हो गई।
आभा उससे लिपट गई।
कैसी है मेरी जान ? आभा बोली
मैं तो ठीक हूँ आभा। तू बता ? तू कैसी है।
मैं भी अच्छी हूँ। मैं तुमसे मिलना चाह रही थी, पर मुझे मालूम नहीं था कि तुम यहाँ काम करती हो।
क्यों भला ?
तुझे थैंक्स कहना था यार।
किसलिए ? रमा बोली
तुमने अनुज को शादी के लिए मना किया इसीलिए तो वो मुझे मिला।
माला ये सब सुनकर हैरान हो रही थी।
अच्छा वैंसे। पर तुझे क्या इस बात से कोई परेशानी नहीं है कि वो मुझसे प्यार करता था।
नहीं क्योंकि उसका कहना है कि अब वो जीवन में आगे बढ़ चुका है, और मैं भी इस बात से सहमत हूँ।
पर तुझे अजीब नहीं लगा कि यही लड़का अनुज पहले तुमसे शादी के लिए तैयार नहीं था और अब अचानक कैसे तैयार हो गया।
देख मेरे घर वाले तो लड़का खोज ही रहे थे फिर तीन दिन पहले अनुज ने आकर अपनी माँ की बात को फिर से रखा तो मेरे घर वाले तैयार हो गए।
पर तू तो उससे प्यार नहीं करती। रमा पूछी।
तो क्या हुआ, हो जाएगा प्यार। शादी के बाद, उसमें क्या है। इंम्पोर्टेंट तो ये है कि ऐसा स्मार्ट, हैंडसम और पैसेवाला लड़का मुझे कहाँ मिलेगा। तू ही बता ? आभा बोली।
तू पागल हो गई है आभा। जब तुम दोनों एक दूसरे से प्यार ही नहीं करते तो शादी क्यों कर रहे हो।
प्यार तो शादी के बाद भी हो जाएगा मैडम। अनुज अचानक पीछे से आते हुए बोला। क्यों ठीक कहा ना आभा। हम अच्छे दोस्त हैं और दोस्ती को प्यार में बदलने में कितना टाईम लगेगा।
रमा चुप हो गई।
लड्डू नहीं खाओगी रमा मैडम। हमारी सगाई के प्लीज लो ना। कहकर रमा के मुँह में उसने जबदस्ती लड्डू डाल दिया।
चला आभा मेरे चेम्बर में चलते हैं। कहकर उसने आभा के कंधे में हाथ रखा और पलटकर चलने लगा। जब वो थोड़ी दूर चले गये तो रमा ने अनुज को आवाज दी।
एक मिनट सर। आपसे कॉलेज के विषय में थोड़ी बात करनी है। कहकर वो दो-तीन कदम आगे बढ़ गई।
हाँ जी मैडम बोलिए। अनुज अब नजदीक हो गया था।
ये तुम क्या कर रहे हो ? मुझसे बदला ले रहो हो।
और ये सब यहाँ करने की क्या जरूरत थी मुझे दिखाने के लिए कि तुम खुश रह सकते हो।
तुम तीन जिंदगी बर्बाद कर रहे हो अनुज। मेरी तुम्हारी और आभा की। मुझे मालूम है कि तुम उससे प्यार नहीं करते तो शादी क्यूँ कर रहे हो। मैं तो तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूँ मुझसे करो ना शादी।
नहीं तुम धोखेबाज हो। मुझे तुम्हारी एक भी बात पर भरोसा नहीं, और मैं तो तुम्हारे सामने ही शादी करूँगा तुम देखती रहना। जैसे तुमने मुझे तड़पाया है ना वैसे ही तुम भी तड़पना, और तुमको क्या तड़पाना। तुम्हें तो किसी भी वक्त किसी से भी प्यार हो जाता है। अनुज बोला
फिर से वही बात, मैं तुमको कैसे समझाऊँ कि मैं शेखर से प्यार नहीं करती। रमा गुस्से में फुसफुसाई।
पर वो तो तुमसे करता है ना और तुमने स्वीकार भी कर लिया था। हाँ कि ना ? अनुज बोला
अरे यार मैं तुमको समझा समझाकर थक गई कि वो सब एक नाटक था फिर भी तुम समझ नहीं रहे हो। रमा सिर हिलाते बोली।
पर ये नाटक नहीं है रमा। मैं सचमुच आभा से शादी करूँगा, तुम देखते रहना।
अरे तुम शेखर को पूछ लो ? शेखर को क्यों नहीं पूछते हो तुम?
ठीक है वो आ जाए फिर तुम्हारे सामने ही पूछ लूँगा। कहकर वो पलटा और आभा को लेकर चला गया।

क्रमशः

मेरी अन्य तीन किताबे उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे - भूपेंद्र कुलदीप।