Jaggery sweetness in tamarind sauce - 6 in Hindi Moral Stories by Shivani Jaipur books and stories PDF | इमली की चटनी में गुड़ की मिठास - 6

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इमली की चटनी में गुड़ की मिठास - 6

भाग-6

शालिनी ने एक नज़र घड़ी पर डाली फिर कमरे का मुआयना किया।

सामने अर्ध गोलाकार दीवार पर बणी-ठणी की बड़ी सी पेंटिंग लगी थी और उसके नीचे ही सिरहाने की ओर से हल्की सी गोलाई लिए हुए क्वीन साइज़ बैड था। पलंग के दाईं ओर एक झरोखेनुमा खिड़की थी जहां एक कलात्मक स्टडी टेबल और उतनी ही कलात्मक कुर्सी रखी गई थी।

इसके बाद एक बालकनी थी। पलंग के बाईं ओर भी एक झरोखेनुमा खिड़की थी जिसके नीचे सोफा सैट और टी-टेबल रखी थी जिस पर सुंदर कोस्टर और छोटा-सा फूलदान रखा था। फूलदान ताज़े रजनीगंधा के फूलों से सजा हुआ महक बिखेर रहा था! एकदम झक्क सफेद चादर-तकिए और पेंटिंग के चटख रंगों से मेल खाती बेहद सुंदर दौहड़ बेहद करीने से पायतने की ओर रखी हुई थी। देखते ही मन हुआ कि धड़ाम से पलंग पर पड़ जाए और सो जाए। पर कुछ तो भूख लगी थी और कुछ चन्द्रेश से बात करने का मोह भी था कि शालिनी ने फटाफट नहाकर तैयार होना मुनासिब समझा।

तैयार हो कर समय देखा गया! अभी तो नौ बजने में दस मिनट बाकी थे। वो खिड़की के पास खड़ी हो गई। दूर एक बहुत बड़ा स्वीमिंगपूल था और उसके चारों ओर खूबसूरत बगीचा! जिसमें निश्चित दूरी पर बड़ी सी छतरी के नीचे खूबसूरत मेज़ कुर्सी रखे हुए थे। बगीचे से होकर स्वीमिंगपूल तक पहुंचने के लिए कई सारे रास्ते थे जिनमें से एक रास्ता उसकी खिड़की के ठीक नीचे से भी गुज़र रहा था। बाहर का खूबसूरत नजारा देखते हुए उसे अचानक ही चन्द्रेश का ख्याल आ गया! ऑफिस में उसने कई बार महसूस किया था कि चन्द्रेश उसकी इज़्ज़त तो करता ही था पर महिला होने के नाते विशेष ध्यान भी रखता था। हालांकि शालिनी कई बार उससे ऐसा न करने का आग्रह कर चुकी थी पर वो हंसकर टाल देता था। कभी कभी कहता आपकी जगह कोई भी होती वो ऐसे ही व्यवहार करता। सुनकर शालिनी भी मुस्करा देती। ऑफिस में जब भी कोई कामकाज संबंधित मुश्किल होती चन्द्रेश उसकी मदद को हमेशा मौजूद रहता था।काम के बीच-बीच में भी अपनी आदतानुसार वो कोई न कोई हंसी की फुलझड़ी छोड़ता ही रहता था। अपने पद का सही इस्तेमाल उसने चन्द्रेश से ही सीखा! कई बार शालिनी सोचती थी कि चन्द्रेश की पत्नी कितनी खुशनसीब होगी! घर में हर वक्त हंसी-मजाक और ठहाके गूंजते होंगे! और बच्चे तो शायद इसके कंधे से उतरते ही न होंगे! पर चन्द्रेश कभी भी घर-परिवार की बात करता ही नहीं था!

कभी कभी उसकी बातों से लगता था कि वो अकेला रहता है पर पूछना ठीक नहीं लगा। किसी की निजी जिंदगी में ऐसी भी तांक-झांक क्या करना! रहता होगा अकेले! मुझे क्या? कंधे झटका कर शालिनी खुद को समझाती और काम में लग जाती! एक दिन ऑफिस में एक पार्टी के दौरान किसी ने हंसी-मजाक करते हुए चन्द्रेश के लिए 'द मोस्ट एलिजिबल बैचलर' कहा था तो शालिनी को घोर आश्चर्य हुआ! बैचलर? अब तक? ज़रूर कोई प्यार मुहब्बत का किस्सा रहा होगा! ओह्! क्या इस दुनिया में प्यार सचमुच ऐसे भी मौजूद होता है? शालिनी सोचती रही। न जाने क्यों उस रात शालिनी को नींद ही नहीं आई थी। ना चाहते हुए भी बार-बार चन्द्रेश के बारे में सोच रही थी! क्यों नहीं की होगी अब तक शादी? उम्र तो तीस-पैंतीस के आसपास होगी ही! देखने में भी ठीक ठाक ही है और स्वभाव तो ऐसा कि हर लड़की अपने भावी पति में चाहती है जैसा! फिर क्या कारण हो सकता है? शायद जैसा दिखाई देता है,असल जिंदगी में वैसा न हो? देखे नहीं हैं कितने ही ऐसे लोग? दूर कहां जाऊं? रवि का भी तो यही हाल था। सुंदर, शालीन, उच्च शिक्षित और इतने बड़े पद पर आसीन रवि, अपनी शादीशुदा जिंदगी में इतना जंगली हो सकता है, ये कभी कोई सोच भी नहीं सकता था! पर ये बहुत ही कड़वा सच था जिसे सिर्फ और सिर्फ वो ही जानती थी। ऐसा ही कुछ दो रूपों वाला हो सकता है चन्द्रेश भी तो! या फिर हो सकता है कि आज़ाद परिंदे सा जीवन ही उसे भाता हो! कोई लड़की पत्नी बन कर आएगी तो अपने लिए समय तो मांगेगी ही! आज़ादी में खलल तो पड़ती ही! शायद इसीलिए शादी की हिम्मत ही नहीं की होगी! हुंह! कायर हुआ फिर तो!यही सब सोचते हुए वो सो नहीं पाई थी उस रात।

शालिनी एक ठंडी सांस छोड़ते खुद को उसके ख्यालों से दूर करने की निरर्थक सी कोशिश कर ही रही थी कि ठीक नौ बजे उसका फोन आ गया "कहां रह गईं आप? मैं तो पहुंच गया!"

"बस आ ही रही हूं लॉक करके।"

डायनिंग हॉल भी बेहद खूबसूरती से सजाया गया था। ऑर्केस्ट्रा पर धीमा-धीमा सूफ़ी संगीत बज रहा था जो माहौल को गरिमामय बना रहा था।

"हां तो आज क्या खाएंगे अपन?" चन्द्रेश का 'अपन' कहना शालिनी को बहुत भला सा लगा! हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर सज गई "मेन्यू देखते हैं,जो दोनों को कॉमनली पसंद आएगा वही खा लेंगे।"

"अरे क्यों? क्या एक दूसरे की पसंद का नहीं खा सकते? भई खाना ही तो आएगा ना और टेस्टी भी होगा ही!" चन्द्रेश ने शालिनी की बात सिरे से खारिज कर दी! "अपनी-अपनी पसंद का मंगाते हैं फिर मिलजुल कर खाते हैं। चलो आप इसे देखो और ऑर्डर करो फिर मैं भी करता हूं।" चन्द्रेश ने मेन्यू कार्ड उसकी ओर सरका दिया।

चन्द्रेश ने माहौल को अपनी बातों से इतना अनौपचारिक बना दिया था कि अचानक शालिनी को लगने लगा कि वो ऑफिस के काम से नहीं बल्कि किसी दोस्त के साथ घूमने आई हो! उसने मटर-मशरूम,दाल मखानी और नान मंगवाई। चन्द्रेश ने मलाई-कोफ्ता, छोले और तंदूरी रोटी मंगवाई! दोनों ने सब कुछ मिल कर खाया। शालिनी के लिए ये बिल्कुल अलग तरह का अनुभव था। अपने पीहर में तो उसने न जाने कितनी ही बार ऐसे सबके साथ बाहर खाना खाया था पर ससुराल में रहकर तो वो ये सब भूल ही गई थी जैसे! आज बरसों बाद वही हंसी-खुशी जीवन में लौट आना चाहती हो जैसे!

शालिनी को लगा ये पांच दिन पंख लगा कर उड़ जाने वाले थे। पहले तीन दिनों के साथ ने दोनों को इतना करीब ला दिया कि शालिनी ने उससे पूछ ही लिया "अब तक शादी क्यों नहीं की?"

खूब हँसा चन्द्रेश तब और बोला "की थी ना! पर उसको मेरा ऐसे हर वक्त हँसना-बोलना पसन्द नहीं था तो चली गयी छोड़कर!" इतनी सहजता से वो ये बात कह गया पर फिर भी उसका पल भर को उभर आया दर्द शालिनी से छुप न सका!न जाने क्यों उस दिन से चन्द्रेश कुछ बदल-सा गया। हँसता-हँसाता तो अब भी वैसे ही था पर शालिनी से नज़र मिलते ही रुक-सा जाता था पल भर को!फिर हँस पड़ता था। शालिनी के जीवन का सूनापन चन्द्रेश के ऐसे ठहाकों से कम होता जा रहा था पर चन्द्रेश शालिनी की भावनाओं से शायद अनभिज्ञ था। वो तो था ही ऐसा! जहाँ बैठता रौनक लगा देता था। था। अगले दो दिन वो चन्द्रेश की तरफ अपने खिंचाव को गलत समझते हुए चन्द्रेश से बचने की भरसक कोशिश करने लगी।पर वो कहते हैं ना कि पानी ढलान पर ही बहता है और सूखे में समा जाता है,गड्ढे में ठहर जाता है। ऐसे ही प्रेम का भी हाल है। रीते मन कब प्रेम से भरने लगते हैं पता ही नहीं चलता है! पांच दिनों का ये साथ कब प्रेम में बदलने लगा न शालिनी समझ नहीं पा रही थी! ना ही चन्द्रेश कुछ कहता था! रोज़ डिनर के बाद स्वीमिंगपूल तक वॉक होती और उस समय खूब अनौपचारिक बातचीत भी होती।

रात को अपनी खिड़की से शालिनी स्वीमिंगपूल की ओर ताकते हुए उन पलों को फिर से जीती।

क्रमशः