Repentance Part-6 in Hindi Fiction Stories by Ruchi Dixit books and stories PDF | पश्चाताप भाग -6

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पश्चाताप भाग -6

पूर्णिमा को आशीर्वाद देते हुए वे दम्पति वहाँ से चले गये |
बेटी के भविष्य की चिन्ता पूर्णिमा को पहले से ज्यादा मेहनत करने के लिए प्रेरित कर रहा था | बेटी की चिन्ता मे उसे अपना भी ध्यान न रहा | एक दिन उसे पता चलता है कि वह दुबारा माँ बनने वाली है, यह सुनकर उसपर पहाड़ टूट पड़ा हो मानो, अपनी परिस्थिति और बेटी के भविष्य को देखते हुए वह गर्भपात का फैसला कर लेती है | यहाँ भी उसका दुर्भाग्य बाजी मार ले जाता है | डॉक्टर यह कहते हुए मना कर देती है कि समय अधिक हो चुका है, इससे आपकी जान को भी खतरा है ,और यह पूर्णतया गैरकानूनी भी अत:आपका गर्भपात नही हो सकता | अब रात -दिन उसे अपनी बेटी और आने वाले के भविष्य की चिन्ता सताने लगी | दिनबदिन वह कमजोर होती जा रही थी | आठ महीने गुजर चुके थे पूर्णिमा अब बाहरी काम करने की स्थिति मे न थी अतः उसने अपनी दुकान जो कि घर के एक बाहरी कमरे मे खोल रख्खी थी ,उसे बन्द कर घर मे ही रहने लगी थी | एक दिन अचानक पूर्णिमा का छोटा भाई जो संभवतः बहन की शादी के लिए पूर्णिमा को बुलाने ही आया था ,पूर्णिमा को ऐसी हालत मे देख बहुत दुःखी हो पूर्णिमा से पूछा दी यह सब कैसे और आपकी हालत ऐसी क्यों है?और जीजा जी कहाँ हैं ?भाई के इन प्रश्नो ने पूर्णिमा के हरे जख्मो पर हाथ रख दिया हो जैसे आँखें भी मानो यही मौका ढूंढ रही थी , कि फूट पड़ी | पूर्णिमा को संभालते हुए "दी बताओ न क्या ?कैसे ? तुम्हारी हालत ऐसी क्यों हो गई? आँसुओं ने दर्द को थोड़ा दबा सा दिया पूर्णिमा ने अपनी सारी आपबीती भाई को बता पुनः दहाड़े मार कर रोने लगी | अब आप यहाँ नही रहोगा! चलो अभी यहाँ से चलते हैं ! मेरा तो यहाँ दम घुटने लगा! आपने कैसे यहाँ इतने दिन गुजारे ?चलो दी चलते हैं अब कभी मत आना यहाँ | नही मुकुल! मै इस घर को छोड़कर नही जा सकती | क्यों नही दी? क्यो नही जा सकती? पूर्णिमा "ये मेरा कर्मफल है इसे मुझे भुगतना ही पड़ेगा! | मुकुल कर्मफल! कैसा कर्मफल ? क्या बिगाड़ था आपने किसी का? अपना बचपन ,अपनी खुशी सबकुछ आपने हमलोगो पर तो न्योछावर कर दिया था | कहते ईश्वर सतकर्मो का अच्छा सिला देता है| यही सिला मिला आपको?
नही मानता मै किसी कर्म या कर्मफल को |बस बहुत हो गया, आपने बहुत सहन कर लिया ,अब और नही | आपका छोटा भाई अभी जिन्दा है, आप पर कभी कोई आँच न आने दूँगा |
नही मेरे भाई तू अपनी जगह पर सही है पर ,बाबा की तो सोच ! उन्हें तकलीफ न पहुँचे इसीलिए तो मैने अभी तक उन्हें कुछ नही बताया | मै कुछ नही जानता दी !अब आपको मेरे साथ चलना होगा !! अब यहाँ मै आपको कभी नहीं आने दूँगा | भाई के आग्रह और तर्कपूर्ण बातो के समक्ष आखीर मे पूर्णिमा को भाई की बात मानना ही पड़ी | पूर्णिमा के घर पहुँचने पर सब बहुत खुश थे किन्तु अन्दर ही अन्दर उसकी हालत से दुःखी भी , उसकी छोटी बहन मीनू जिसका दो महीने बाद विवाह होने वाला था और भाई मुकुल सारा दिन पूर्णिमा को हँसाने का प्रयास करते , पर पूर्णिमा में अब पहले जैसी बात न रही, पहले पूर्णिमा छोटी से छोटी बात पर खिलखिलाकर कर हँस दिया करती थी, प्यार भरी नोकझोंक के बीच छीन कर खाना ,भाई -बहन की समस्या को चुटकी मे सुलझा देना | आज मुकुल और मीनू की बहुत कोशिशो के बाद भी पूर्णिमा के चेहरे को हल्की सी मुस्कराहट ही छू पाती थी | नौवा महीना खत्म होते ही पूर्णिमा ने एक बेटे को जन्म दिया |घर का माहौल बदल पूर्णिमा को खुशी का अहसास दिलाने के लिए मुकुल और मीनू ने बेटे के नामकरण की बड़े धूम धाम से तैयारी की | पूरे मोहल्ले को निमंत्रण भेजा गया | सभी ने समारोह मे अपनी उपस्थिति दर्ज कराई | तभी मुहल्ले की कुछ स्त्रीयाँ जो, सामाजिक रिवाज अनुसार पूर्णिमा के बेटे को देखने एकत्रित हुई महिलाओं की काना- फूँसी और आपस मे कहीं कुछ बाते पूर्णिमा को फिर से अपनी , पुरानी यादों मे खींच कर ले गई जहाँ, समारोह की चकाचौंध से बाहर उसका मन तो फटे हाल उदास ही खड़ा था | क्रमशः .