Apne-Apne Karagruh - 10 in Hindi Moral Stories by Sudha Adesh books and stories PDF | अपने-अपने कारागृह - 10

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अपने-अपने कारागृह - 10

अपने-अपने कारागृह -9

दूसरे दिन की उनकी लखनऊ की फ्लाइट थी । एयरपोर्ट पर फूल मालाएं लिए लगभग पूरा ऑफिस ही उपस्थित था । अजय के प्रति सब का आदर देखकर उषा मन ही मन गदगद थी । वहीं शुचिता, रीना, सीमा ,ममता उसे फूल मालाएं पहनाते हुए उससे भूल न जाने तथा कभी-कभी आने का आग्रह कर रही थीं । वह जानती थी यह सब फॉर्मेलिटी है वरना कब कौन दोबारा आ पाता है !!

पता नहीं अब किसी से मिलना हो पाएगा या नहीं ...बार-बार रुपाली की बातें मन को मथ रहीं थीं । उषा को दुख तो उसे इस बात का था कि 35 वर्ष की यह जिंदगी महज एक स्वप्न बन कर रह जाएगी । किसी को अगर यहां के किस्से सुनाएगी भी तो इस जीवन से अनभिज्ञ लोग उसकी बातों को उसकी कपोल कल्पना ही समझेंगे । आज के पश्चात सब समाप्त हो जाएगा । शायद दिल के स्तर पर कायम हुई मित्रता ही बाकी रह पाए । बाकी सब तो पानी का बुलबुला मात्र ही रह जाएगा पर प्रत्यक्ष में उसने कहा, ' मैं तो आऊंगी ही पर आप लोग भी जब अवसर मिले लखनऊ आइएगा। बहुत ही अच्छा शहर है ।'

'मेरा लखनऊ घूमा हुआ नहीं है ,अवश्य आऊंगी मेम, मिलना भी होगा और घूमना भी ।' सीमा ने कहा ।

' एक बात और मेरे द्वारा प्रारंभ किए गए प्रौढ़ शिक्षा अभियान को जंग मत लगने देना ।' उसने उनकी ओर देखते हुए कहा ।

' आप निश्चिंत रहें मेम, मैं जब तक मैं हूँ तब तक आप का अभियान न रुकेगा न जंग खाएगा।' ममता ने कहा था ।

' थैंक यू ममता ।'

' मेम थैंक यू कह कर मुझे लज्जित ना करें । मैं आपकी वही ममता हूँ जिसे आप कभी भी कॉल करके बुला लिया करती थीं । '

ममता सेक्रेटरी थी महिला क्लब की । उसको उस पर पूरा भरोसा था ।

' उषा चलो समय हो रहा है ।' अजय ने कहा ।

' अच्छा बाय ...।' कहते हुए उसने एक बार फिर चारों ओर देखा मानो इस दृश्य को आँखों में भर लेना चाहती हो फिर वह अजय के साथ चल दी । कल तक जहाँ वह इस समय की कल्पना मात्र से विचलित थी ,आज उसके लिए पूरे मन से तैयार थी । बोर्डिंग पास लेने और सिक्योरिटी चेक में लगभग आधा घंटा बीत गया । अभी फ्लाइट में आधे घंटे की देर थी वे वेटिंग एरिया में गए बैठ गए ।

एकाएक उषा को याद आई 25 वर्ष पूर्व की उसकी पहली विमान यात्रा...अजय ने अंडमान निकोबार जाने का कार्यक्रम बनाया था । उन्हें कोलकाता से पोर्ट ब्लेयर के लिए फ्लाइट पकड़नी थी । कोलकाता वे ट्रेन से गए थे पदम और रिया के साथ वह भी विमान यात्रा के बारे में सोच -सोच कर बहुत एक्साइटेड थी । आकाश में विमान को उसने उड़ते तो देखा था पर बैठने का अवसर नहीं मिला था । उसकी पहली विमान यात्रा होने के कारण उसे जरा भी अहसास नहीं था कि हवाई जहाज कैसे उड़ान भरता है ।

उस समय आज की तरह विजुअल मीडिया या टी.वी. का बहुत ज्यादा प्रचार प्रसार नहीं था सिर्फ एक चैनल था दूरदर्शन .. जिसके राष्ट्रीय प्रसारण पर कुछ ही घंटे के कार्यक्रम आया करते थे । कुछ सीरियल हम लोग ,बुनियाद ,दादी नातियों वाली और एक कॉमेडी सीरियल यह जो है ज़िंदगी जिसमें फारुख शेख और स्वरूप संपत ने बेहतरीन एक्टिंग की थी, ही हम सबके पसंदीदा सीरियल थे । देश विदेश के समग्र समाचारों को समेटे 15 मिनट का समाचार बुलेटिन आता था तथा रविवार को एक मूवी जिसका हम सभी को बेसब्री से इंतजार रहता था ।

जब उनका पहला श्वेत श्याम टी.वी. आया था तब रविवार को वह मूवी देखने अपने इष्ट मित्रों को बुला लिया करती थी । बीच के 15 मिनट के ब्रेक में चाय नाश्ता सर्व होता था । एक अलग ही मजा था जबकि आज पूरे दिन सीरियल आते रहते हैं, न्यूज़ और मूवी भी आती रहती हैं पर उस समय दो-तीन घंटे टी.वी. देखकर जो सुकून मिलता था वह आज पूरे दिन चलने वाले सीरियल को देख कर भी नहीं मिलता है ।

आज ' एयरलाइंस ' जैसे सीरियल के द्वारा हवाई जहाज से संबंधित बहुत सी जानकारियां आम जनता को मिल जाती हैं । उसे आज भी याद है उस यात्रा से एक दिन पूर्व उसने एक अजीब स्वप्न देखा था वह विमान में बैठी है और विमान सड़कों पर बस की तरह चलता जा रहा है कभी इधर कभी उधर ।

बोर्डिंग का अनाउंसमेंट सुनते ही उसने अपने विचारों पर ब्रेक लगाई और बोर्डिंग के लिए लगी लाइन में लग गए । बोर्डिंग पास के चेक होने के पश्चात वे गेट से बाहर निकले तथा एयरलाइंस की बस के द्वारा हवाई जहाज तक पहुंचकर अपनी सीट पर जाकर बैठ गए । पहले विमान में बैठते हैं टॉफी, कॉटन बड्स इत्यादि दी जाती थी पर अब कुछ भी नहीं दिया जाता । यात्रियों के बैठते ही परिचारिका ने हवाई जहाज के उड़ान भरने की सूचना देते हुए सीट बेल्ट बांधने के लिए कहा । प्लेन के टेकऑफ करते ही वह एक बार फिर से अपनी पहली विमान यात्रा की यादों में खो गई …

जैसे ही दमदम एयरपोर्ट पर उन्होंने विमान में प्रवेश किया परिचारिका ने उनका मुस्कुराहट के साथ स्वागत किया था । उनके विमान के अंदर प्रवेश करते ही दूसरी एयर होस्टेस उन्हें अपनी सीट तक ले गई । उनके बैठने के थोड़ी देर पश्चात एक परिचारिका एक ट्रे में कॉटन बड्स और टॉफी लेकर आई । संकोच की वजह से उसने तो सिर्फ दो ही टॉफी उठाई थी पर 8 वर्षीय पदम एवं 6 वर्षीय रिया ने पूरी मुट्ठी भर ली । उसने आंखें तरेरी तो परिचारिका ने मुस्कुरा कर कहा , ' लेने दीजिए मेम, बच्चे हैं और हाँ कुछ आवश्यकता हो तो इस बटन को दबा दीजिएगा ।' सीट के ऊपर लगे स्विच की ओर इशारा करते हुए उसने कहा था ।

उस परिचारिका ने बच्चों की सीट बेल्ट बांधने में भी सहायता की थी । आज यह सदाशयता शायद ही देखने को मिले । विमान ने धीरे-धीरे रेंगना प्रारंभ किया ही था कि तब अचानक उसे रात का स्वप्न याद आया । उसके स्वप्न मैं भी तो विमान ऐसे ही चल रहा था । जब वह अपने इस स्वप्न के बारे में सोचती है तो समझ ही नहीं पाती है कि उसने स्वप्न में उस सच्चाई को कैसे देख लिया जिसके बारे में उसे जरा भी आभास नहीं था ।

उसने अपने मन की बात बताने के लिए अजय की ओर देखा तो उन्होंने उसके चेहरे पर टंगे प्रश्न को देख कर कहा , ' विमान हैंगर से रनवे पर जा रहा है वहाँ से टेकऑफ करेगा ।'

' ओ.के .' कहते हुए उसने अजय को रात का स्वप्न बताया तो उन्होंने सहजता से कहा... 'देखने सुनने में अवश्य बात लोगों को अजीब लगे पर यह भी सच है कि कभी-कभी हमारा अवचेतन मन उस सच्चाई को देख लेता है जिसे हम जानना चाहते हैं और यही हमारे स्वप्न में आकर जीवन की उसका अघटित घटना से हमारा परिचय करवा देता है जो भविष्य में होने वाली है ।'

रनवे पर आते ही विमान ने स्पीड पकड़ ली । नियत स्पीड पर पहुंचते ही पृथ्वी से 45 डिग्री का कोण बनाते हुए विमान ऊपर उठने लगा । अपनी वांछित ऊंचाई पर पहुंचने के पास पश्चात वह स्टेबल हो गया । तभी एक और अनाउंसमेंट हुआ कि अब अगर आप चाहे तो सीट बेल्ट खोल सकते हैं ।

विंडो से नीचे देखा तो बादलों की चादर बिछी हुई थी । वह बहुत ही सुंदर दृश्य था जो बादल सदा हमारे ऊपर रहते हैं आज वह उन्हें नीचे देख रही थी । सबसे बड़ी बात बादलों के ऊपर वही नीलाकाश । थोड़ी देर पश्चात नीला पानी दिखने लगा । अजय ने बताया कि हम समुद्र के ऊपर से गुजर रहे हैं । दरअसल अंडमान निकोबार एक टापू है उस पर पहुंचने के लिए अरेबियन समुद्र के ऊपर से गुजरना पड़ता है । पता नहीं क्यों उस समय मन में एक डर समाने लगा कहीं विमान गिर जाए तो वह मन के डर से उभरने का प्रयत्न कर ही रही थी कि रिया ने कहा , ' मम्मा ठंड लग रही है ।'

उषा ने कॉलिंग बेल बजाई परिचारिका ने कारण पूछा तब उसने कहा, ' एक ब्लैंकेट चाहिए । बच्चे को ठंड लग रही है ।'

' यस मेम ।'

तुरंत ही परिचारिका ने उसे ब्लैंकेट लाकर दे दिया । रिया ब्लैंकेट ओढ़ कर उसकी गोद में लेट गई थी । इसी बीच पदम को भूख लगाई । अजय ने उसके लिए जूस मंगा लिया । थोड़ी ही देर में लंच सर्व हो गया ।

खा पीकर थोड़े रिलैक्स हुए थे कि परिचारिका ने एक बार फिर गंतव्य स्थान के आने की सूचना देते हुए सीट बेल्ट बांधने का निर्देश दिया । विमान अब पोर्ट ब्लेयर चारों ओर चक्कर लगा रहा था नीचे दीप नजर आ रहा था जो चारों ओर से समुद्र से घिरा था उसकी नजर में प्रश्न देख कर अजय ने कहा , ' लगता है विमान को उतरने का क्लीयरेंस नहीं मिल रहा है ।'

कहकर अजय विंडो से बाहर देखने लगे । एकाएक उसे महसूस हुआ कि विमान नीचे उतर रहा है अंततः रनवे पर आते ही एक हल्की आवाज के साथ हमारे विमान ने धरती छू ही ली ।

सुधा आदेश

क्रमशः