अध्याय - 22
रमा बाहर बेंच पर बैठी ही थी।
अचानक उसके बाहर आने से रमा ने सिर उठाकर देखा।
ओ हेलो अनुज। हाऊ आर यू ?
मैं ठीक हूँ। बस तुम्हारा धन्यवाद करना चाहता हूँ कि तुमने मेरी माँ की जान बचाई।
ओह !!! धन्यवाद की कोई बात नहीं अनुज। वो तो मेरा फर्ज़ था आखिर वो मेरी होने वाली सासु माँ जो हैं। रमा खुश होते हुए बोली।
क्या कहा तुमने ? अनुज ने आँख गहरी करते हुए कहा।
तुमने ठीक सुना। मैनें उन्हें सासु माँ कहा बीकाश आई लव यू। क्योंकि मैं तुमसे प्यार करती हूँ। यह कहकर वो आगे बढ़ी और अनुज से लिपट गई। ये उसके लिए बरसों की परीक्षा थी। परंतु अनुज के भाव में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। एक पल के लिए तो वो चुप था फिर अचानक उसने रमा को झटक कर अलग कर दिया। रमा एकदम हतप्रभ थी।
क्या हुआ अनुज ? रमा ने पूछा
यू चीट !! धोखेबाज !!! दिखावा करना बंद करो।
तुम ये सब दिखावा कर कैसे लेती हो। दो साल तक तो बोलती रही कि मुझसे प्यार नहीं करती फिर अचानक आज कैसे प्यार हो गया। रमा आश्चर्यचकित थी, उसने इस प्रतिक्रिया की कल्पना भी नहीं की थी।
मैं मजबूर थी अनुज इसीलिए तुमसे अलग रही पर मन ही मन तुमसे बहुत प्यार करती रही। रमा उदास होते हुए बोली।
अच्छा क्या मजबूरी थी बताओ भला मुझे ?
वो मैं तुमको नहीं बता सकती अनुज।
और मन ही मन अगर मुझसे प्यार कर रही थी तो दूसरे से क्यों इजहार किया ?
दूसरे से ? किस दूसरे से मैनें इजहार किया।
चुप करो रमा। झूठ की भी हद होती है। क्या तुमने दूसरे से इजहार नहीं किया।
तुम क्या बकवास कर रहो हो अनुज ?
मैं बकवास कर रहा हूँ। ज्यादा भोली बनने की कोशिश मत करो रमा। मुझे सब मालूम है जो कांफ्रेंस रूम में हुआ।
कांफ्रेंस रूम में क्या हुआ ?
क्यों ? तुम्हारी और शेखर के बीच बातचीत नहीं हुई ?
ओह !! तो तुम उसको सनुकर बोल रहे हो ?
हाँ जी मैं उसी के विषय में बोल रहा हूँ क्यों तुमने शेखर से इजहार नहीं किया। झूठी !! धोखेबाज !! एक साथ दो लोगों के जीवन के साथ खेल रही हो ? अनुज चिल्ला रहा था।
वो सब कुछ ड्रामा था। वो सबकुछ झूठ-मूठ का था। तुम समझ क्यों नहीं रहे हो अनुज।
अच्छा। वो सब झूठ था तो तुमने शेखर के शादी के प्रस्ताव को स्वीकार कैसे किया ?
मैनें स्वीकार नहीं किया अनुज। वो तो बस मेरे साथ प्रैक्टिस कर रहा था।
किस बात की प्रैक्टिस रमा ? तुमसे शादी की प्रैक्टिस ?
अनुज !!! रमा जोर से चिल्लाई। वो एकदम तमतमा गई। छी !! तुम तो किसी के भी प्यार के लायक नहीं हो ना मेरे ना अपनी माँ के !!!
रमा !!! अनुज चिल्लाते हुए रमा को मारने के लिए अपना हाथ उठा लिया।
रमा एकदम डर गई।
अनुज को अगले पल ही लगा कि उसने बहुत बड़ी भूल कर दी। जिस लड़की वो जान से ज्यादा चाहता है उसके ऊपर उसने हाथ कैसे उठा दिया। वो अपना हाथ दीवार पर पटकने लगा।
रमा चुपचाप बैंच पर बैठ गयी। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। उसने क्या सोचा था और क्या हो गया।
अनुज थोडा शांत हुआ। वो वहीं बगल में बैठ गया, देखो रमा। मैंने हमेशा तुमसे सच्ची मोहब्बत की है। तुम्हारे सिवा मैंने कभी भी किसी की कल्पना नहीं की। जबकि मैं चाहता तो किसी से भी शादी कर सकता था। मैंने दो साल तुम्हारे बिना कैसे जिया है ये सिर्फ मैं जानता हूँ। सिर्फ तुम्हारे लिए मैने अपने बिजनेस को, परिवार को, धन दौलत को, सब चीज को खतरे में डाल दिया ताकि तुम्हारा प्यार पा संकू। मेरे इस पागलपन की वजह से मेरा परिवार तकलीफ सहता रहा, और तुमने क्या किया। तुमने मुझे हमेशा धोखा दिया। तब भी और आज भी। आई एम सॉरी, कि मेरा तुम पर हाथ उठ गया। रमा अब भी चुप थी। परंतु तुमको मेरे साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था रमा। तुुमने मुझे बार-बार धोखा दिया, अब मैं अपने परिवार को और तकलीफ नहीं दे सकता। अब मैं उनके हिसाब से जीयूंगा और सब उनके लिए करूँगा। तुमसे मेरा कोई रिश्ता नहीं, तुम तो मेरे प्यार के क्या नफरत के भी काबिल नहीं हो, तुमने मेरी माँ का नाम घसीटा ना ? अब देखना मैं उन्हीं के हिसाब से जीयूंगा और तुमको दिखा दूँगा कि तुम्हारे बिना भी मैं खुशहाल और अच्छी जिंदगी जी सकता हूँ। अब मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं हैं रमा। और हाँ मेरी माँ को बचाने में तुम्हारा जितना भी खर्च हुआ हो, प्लीज मेरे से ले लेना। यह कहकर वो उठा गेट खोला और पटक कर गेट बंद करके अंदर चला गया।
रमा वहाँ बैठकर रोने लगी। उसने अब अंदर जाना ऊचित नहीं समझा। वो चुपचाप उठी। अस्पताल से बाहर निकली और ऑटो पकड़कर घर की ओर निकल गई।
वो घर पहुँचकर शावर के नीचे आँख बंद करके खड़ी हो गयी और विचारों के मंथन में खो गई। ये सब क्या हो गया। जब मैं इंकार करती रही तो अनुज मेरे पीछे पागल था और अब जब मैं तैयार हो गयी हूँ तो अचानक ये परिस्थितियाँ कैसे बदल गयी। मुझसे ऐसी क्या गलती हो गयी। मेरी और शेखर की बातों का अनुज ने ये क्या मतलब निकाल डाला। उसके यह दिल का मैल मुझे हटाना पड़ेगा पर मुझे तो ये भी नहीं मालूम वो कब मानेगा। अभी शेखर भी यहाँ नहीं है कि मुझे सही साबित करने में मद्द कर सके। क्या करूँ मैं, जिससे अनुज मान जाए, वो मेरी बात पर तो यकीन करेगा नहीं और उसकी माँ, जब तक वो खुद अपनी मर्जी से अनुज को नहीं बताती तब तक तो मेरे बोलने का भी फायदा नहीं। मैं बोलूँगी अगर कि तुम्हारी माँ ने मुझे मना किया था तो वो और बुरा मान जाएगा। मैं और झूठी बन जाऊँगी, पर मुझे तो उसे हासिल करना है, बरसों बाद तो मैं मुक्त हुई हूँ। अब अपने प्यार को कैसे खो दूँ। हे ईश्वर आप ही कोई रास्ता निकालो कि किसी तरह मेरा अनुज मुझे मिल जाए। यह सोचते हुए वो अपनी आँखें खोली और देखा कि अब तक वो बाथरूम में है। उसने शावर बंद किया और बाहर आ गई।
क्रमशः
मेरी अन्य तीन किताबे उड़ान, नमकीन चाय और मीता भी मातृभारती पर उपलब्ध है। कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे - भूपेंद्र कुलदीप।