antardwand - 3 in Hindi Women Focused by Sunita Agarwal books and stories PDF | अंतर्द्वन्द - 3

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अंतर्द्वन्द - 3

अंतर्द्वन्द - 3
आखिर रूठे हुए निखिल को,नेहा मना ही लेती है।लेकिन वो पहले की तरह सामान्य नहीं हो पाती।कुछ ही दिन बाद करवाचौथ का त्यौहार आता है,वह बहुत खुश थी क्योंकि यह उसका पहला करवाचौथ था।करवाचौथ से एक दिन पहले उसका भाई त्योहार का सारा सामान दे जाता है ।करवा चौथ वाले दिन उसने निर्जल व्रत रखा था ,वह बहुत उत्साहित थी ।पूजा के समय, मायके से आया सारा सामान खोला गया, तो सासुजी को पता नहीं क्या कमी नजर आई ? कि उनका मूड खराब हो गया और अगले दिन उसी बात को लेकर नेहा को खूब सुनाया ।अब तो कोई त्यौहार आने वाला होता तो नेहा को खुशी की वजाय टेंशन होने लगती कि पता नहीं, मायके से आये त्यौहार के सामान में, क्या कमी निकालकर सासूमाँ क्लेश करेंगीं।इधर अब निखिल भी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से माँ का ही साथ देने लगा था।उसे वो बातें याद आतीं, जब वह अपनी मम्मी के साथ नानी के घर जाती थी,वहाँ मामियों को दिन भर काम करते देखती तो सोचती कि इनकी भी कोई जिंदगी है,दिन भर कोल्हू के बैल की तरह जुटी रहतीं हैं।क्योंकि उसके घर में तो घर के काम काज के लिये नौकर था।आज अपनी हालत देखती तो सोचती "उनकी हालत मुझसे कहीं बेहतर थी।वो मेरी तरह मानसिक प्रताड़ना तो नहीं सहती थीं ।में तो सारा दिन एक टाँगपर नाचती हूँ ,फिर भी बदले में क्या मिलता है, सिवा अपमान और पताड़ना के"।और निखिल जब अच्छे मूड में होता तो अच्छा व्यवहार करता और जब नाराज हो जाता तो उसे मनाना कठिन होता।फिर पता भी नहीं चलता कि हँसते हँसते वह कब, किस बात पर रूठ जाए ।वो कोई कठपुतली तो नहीं, जिसकी अपनी कोई सोच,विचार,और भावनाएँ न हों ;जैसे कोई नचाये वो नाचे।उसे अपने मायके की याद आती ,लेकिन उसे भेजा नहीं जाता ।उसका भाई लेने आता, लेकिन खाली हाथ लौट जाता।उसकी इच्छा-अनिच्छा का कोई मोल नहीं था।ऐसा लगता था कि जैसे वह उस घर की बहु न होकर ,उस घर की गुलाम थी,जिसे सोचने-समझने और कहने- सुनने का कोई हक नहीं था।उसे तो सिर्फ सुनना था और आदेश का पालन करना था।वह जरा भी मुँह खोलती तो उसी वक्त उसकी जगह दिखा दी जाती। उसे समझ नहीं आता कि उसकी शादी हुई है या उसे खरीदा गया है कि जैसे चाहे वैसे रखो।जिस घर में वो जन्मी ,पली बढ़ी उस घर में जाने के लिये उसे और उसके माँ बाप को निखिल और उसके माँ बाप की मिन्नतें करनी पड़तीं ।उसे मायके एक दिन के लिये भी अपनी मर्जी से जाने का अधिकार नहीं लेकिन मायके वाले बेटी को जिंदगी भर देते रहें,यह उनसे उम्मीद की जाती है।जब वह पराये हो ही गए हैं, तो कुछ भेजें न भेजें क्या फर्क पड़ता है।अपनी ऐसी हालत को देखकर नेहा को लगता; जैसे बेटी के रूप में जन्म लेकर जैसे उसने कोई
बहुत बड़ा अपराध किया हो और उसके माता-पिता ने बेटी पैदा करके।जब नेहा का भाई 'जतिन' दो बार खाली हाथ लौट गया तो नेहा के माता- पिता बेटी मोह में नेहा की ससुराल चले आये तब निखिल और उसके माता-पिता ने उन्हें खूब खरी खोटी सुनाई। दोनों ने हाथ जोड़ कर माफी माँगी और नेहा को अपने साथ कुछ दिन के लिये भेजने की प्रार्थना की।इस पर निखिल नेहा को अगले महीने होली पर भेजने के लिये तैयार हो गया।क्योंकि परंपरा के अनुसार, शादी के बाद लड़की की पहली होली, मायके में ही होनी चाहिये।अगले महीने होली से चार दिन पहले, नेहा का भाई 'जतिन' उसे लेने आ गया ।नेहा उसके साथ मायके आ जाती है ।वह मायके आकर,अपने बहिन भाइयों से मिलकर काफी अच्छा महसूस करती है,क्योंकि इतने महीने से वह काफी तनाव में जी रही थी। होली से दो दिन पहले जतिन का फ़ोन आता है ;"कल आ जाओ 'मम्मी' की तबियत खराब है"।सुनकर नेहा उदास हो जाती है,लेकिन जाना तो था ही।होली का सामान लेकर उसके पापा उसे ससुराल छोड़ कर आते हैं।उनके जाते ही सासूमाँ पड़ोस में गुजिया बनबाने चली जाती हैं। नेहा को बहुत दुख हुआ कि "इन्होंने मुझे तो यह कहकर बुलवा लिया कि तबियत खराब है और पहली होली भी मायके में नहीं मनाने दी"।जब तबियत खराब थी तो गुजिया बनबाने कैसे चली गईं। इसी तरफ कुछ माह का वक्त गुजरा और नेहा गर्भवती हो गई।