Aapki Aaradhana - 19 in Hindi Moral Stories by Pushpendra Kumar Patel books and stories PDF | आपकी आराधना - 19

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आपकी आराधना - 19

अमित ने आराधना को गले से लगा लिया और मुस्कुराते हुए कहा- " ये हुई न बात आराधना, अब कमला आंटी का जिक्र भी मत करना। चलो अब अच्छी सी चाय मिल जाये तो क्या बात हो? "

" आज आपके हाथों से बनी चाय मिल जाये तब तो और मजा आ जाये मेरे पतिदेव जी "
आराधना ने बिस्तर पर बैठकर ही अँगड़ाई लेते हुए कहा।

वंश के उठ जाने के बाद अमित के हाथों की चाय की चुस्कियाँ लेते हुए आराधना मन ही मन सोचने लगी कि अब वह सुनीता से नही मिलेगी। अग्रवाल अंकल, मनीष के साथ जो भी हुआ हो ये जानकर बस उसे दुःख ही होगा और वह नही चाहती कि कमला आंटी की परछाई भी उसके परिवार के आसपास हो।

रविवार का यह दिन वंश के लिये पसंदीदा था क्योंकि आज तो घर पर रहकर ही धमा चौकड़ी मचाने से उसे फुर्सत कहाँ?

शाम के 5 बज रहे थे रविवार का दिन होने से शॉप पर आज ज्यादा रौनक थी। अमित ग्राहकों को साड़ियाँ दिखाने मे व्यस्त था और आराधना काउंटर पर बैठी हिसाब किताब मे जुटी हुई थी। इस बिजनेस के शुरुआती दौर होने की वजह से उन्होंने कोई वर्कर नही रखा था और सारा काम खुद ही करते थे।
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रात के 8 बज रहे थे शॉप बंद होने के बाद अमित और आराधना वंश के साथ ही अपना समय व्यतीत कर रहे थे। दिनभर से उधम मचाता हुआ वंश आज तो जल्दी ही सो गया। तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी।

" इस टाइम कौन हो सकता है? "
ऐसा कहते हुए आराधना दरवाजे की ओर बढ़ी।

दरवाजे पर सुनीता खड़ी थी और उसे देखते ही आराधना चौक गयी, उसने हड़बड़ाते हुए उसे अंदर बुलाया।

" मेरे साथ कोई और भी है आराधना , आप कहो तो उनको भी अंदर आने को कह दूँ "
सुनीता ने आराधना से कहा।

" श्योर, जरूर मिनी और उनके पापा जी होंगे जाइये अमित जी उनको अंदर ले आइए "
आराधना ने अमित को इशारा करते हुए कहा।

सुनीता ने बताया कि उनके साथ न ही मिनी आयी है और न ही उसके पापा, बल्कि जो बाहर है वह उनकी काम वाली कमला है। वह सिर्फ तभी अंदर आयेगी जब खुद आराधना उन्हे आने को कहेगी। कमला का नाम सुनकर आराधना के हाथ पैर कांपने लगे और जैसे-तैसे उसने अमित को इस काम के लिये सौंपा।
आराधना के मन मे हलचल होने लगी वह तो अब कमला आंटी से कोई रिश्ता ही नही रखना चाहती थी फिर क्यों सुनीता उन्हे अपने साथ ले आयी? ये फिर से कोई साजिश तो नही?
अमित कमला आंटी को अंदर की ओर लेकर आया।
जो बदन कभी रंग बिरंगी साड़ियों से सजा हुआ करता था वहाँ सिर्फ एक सफेद साड़ी और हमेशा गहनों से लदी रहने वाली कमला आंटी एक विधवा के रूप मे आराधना के सामने खड़ी थी। न जाने कितने ही सवालों से घिरी हुई थी आराधना पर सुनीता के सामने उसके बोल फूट ही नही रहे थे। एकाएक कमला सामने आकर उसके पैरों पर गिर पड़ी और सिसकियाँ भरते हुए बोली -" आआ..राधना बेटी मुझे माफ कर दो, वरना मै पछतावे की आग मे जल-जल कर मर ही जाऊँगी "

आराधना ने उन्हे झटके से उठाया और सुनीता की ओर देखते हुए कहा - " नही..नही, आप मेरे पैर क्यों छू रही हैं? और किस बात की माफी?
सुनीता ये सब क्या है? अमित जी आप ही इन्हे रोकिये न "

आराधना ऐसे पेश आने लगी जैसे उसे कमला से कोई शिकायत नही है। उसके इस व्यवहार को देखकर कमला ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया और उसकी आँखों से धाराएँ बहने लगी , आराधना ने उन्हे सोफे पर बैठाया और उनसे दूर जाने की कोशिश करने लगी।

" मुझे सब पता है आराधना और इसलिए तो मै कमला को तुम्हारे पास लाई हुँ, मुझे तो उसी दिन से ही शक हो गया था। आखिर तुम घबरा कर क्यों चली गयी थी? अपनी सारी शिकायतें और उलझनें दूर कर लो, ये बेचारी तो तड़प रही है तुमसे माफी माँगने के लिए "
सुनीता ने आराधना को रोकते हुए कहा।

" नही सुनीता, प्लीज आप इनको यहाँ से ले जाओ। मै अपनी लाइफ मे बहुत खुश हूँ, बीती बातों से अब क्या फायदा? "
आराधना ने मुँह घुमाते हुए कहा।

" देखिए कमला आंटी, अब हम सारी बातें भूलकर नयी शुरुआत कर चुके हैं। पता चला कि अंकल और मनीष नही रहे अगर आपको मदद की जरूरत होगी तो हम बिल्कुल करेंगे। बस आप हमारे छोटे से परिवार से दूर रहिये अब "
अमित ने भावुक होकर कमला से कहा।

" मेरा विश्वास करो अमित बेटे, मानाकि मै माफ करने के भी काबिल नही पर जिन्दगी भर ये बोझ उठाकर मै नही जी सकती, आराधना बेटी प्लीज मेरी बात सुन लो, एक बार मेरी तरफ देखो बेटी, बस एक बार "
कमला ने आराधना के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

" क्या कहूँ मैं आंटी? कुछ बचा ही नही अब तो, मैने आपको अपनी माँ के रूप मे देखा था लेकिन आप....
आप लोगों ने मुझे कहीं का नही छोड़ा, वो अंकल जिन्होंने मुझे बाप का प्यार देने की बात कही थी वे हाल तक न पूछने आये और आपके बेटे मनीष जी ने तो प्यार के नाम पर सबसे बड़ा धोखा दिया मुझे "

" मेरा बेटा धोखेबाज नही है आराधना, नही है मेरा मनीष धोखेबाज और न ही तुम्हारे अंकल अपने वादे से पीछे हटने वाले थे ये सब तो मेरी... "

" आंटी प्लीज, अब बातों के हेर फेर मे मुझे फाँसने की कोशिश न कीजिए और यहाँ से चले जाइये "
आराधना ने हाथ झटकते हुए कहा।

" आराधना मुझे लगता है हमे एक बार आंटी की बात सुनकर देखनी चाहिए, अब इनके आँसू झूठे नही लगते। कुछ सोंच समझकर ही सुनीता जी इन्हें लेकर आयी हैं "
अमित ने आराधना को शांत करते हुए कहा।

अमित की बातों का जैसे तैसे सम्मान करते हुए आराधना कमला के पास बैठी। अमित किचन से सभी के लिये चाय लेकर आया।

" मैने तुम्हारे साथ ऐसा बर्ताव किया है आराधना कि कोई भी इस बारे मे सुनेगा तो मुझसे नफरत ही करेगा, शायद भगवान ने मुझे अपने बुरे कर्मों का फल दे दिया और मै तो इस उम्र के इस पड़ाव मे अनाथ हो गयी। सब चले गये मुझे छोड़कर "
कमला ने सिसकियाँ भरते हुए आराधना को स्पर्श किया ।

कमला की सिसकियाँ सुनकर भी आराधना मौन ही रही पर अनगिनत सवाल मन मे हिलोरें मार रहे थे।

" आंटी पर ये सब हुआ कैसे? अंकल और मनीष जी की डेथ कैसे? आप ऐसा क्यों कह रही कि मनीष जी ने आराधना को धोखा नही दिया? "
आराधना को मौन देखकर अमित ही कमला से पूछ बैठा।

क्रमशः.......