मुकम्मल मोहब्बत -17
"आज का दिन कैसा रहा?"
"अब तक का सबसे खराब दिन."
"क्या हुआ?"
"आज मधुलिका झील पर नहीं आयी.शायद ,अवसाद से अभी उभरी नहीं."
"ओह! वैसे कहानी तो किलयर है वह न भी आये तो भी पूरी कर सकते हो. छोटी उम्र का आकर्षण, एक दूसरे की खुशियों की परवाह, एक दूसरे के लिए जीने की तमन्ना, जातीय समस्या, अच्छे पॉईंट हैं. लेकिन लव पॉईंट डॉमिनेट रखना."ऐनी बोलती चली गई.
"वह सब हो जायेगा, ऐनी. लेकिन, टेंशन मधुलिका की है.कहीं जायदा टेंशन में आकर डिप्रेशन में न चली जाये और...."
"पागल हो तुम.इतना कुछ सहने वाली और कंडीशन से को फेस करने वाली लड़की जो तुम्हें अपनी कहानी लिखवा रही है सुसाइड कर लेगी. कभी नहीं...
...हां उसका दिल दुखा है आँसुओं से भीगी आँखों से कुछ बोल नहीं पायेगी ,इसलिए उसने आना रिजेक्ट किया है.देखना वह कल श्योर मिलेगी."
"काश! ऐसा ही हो."
"लगता है, लड़की जनाब के दिल में उतर गई."ऐनी हँसकर बोली.
"ऐनी,वह है ही ऐसी. तुम देखोगी तो आँख झपकाना भूल जाओगी.वीनस है....वीनस..."
"मैं समझ सकती हूँ.जैसा तुम बता रहे हो ,वैसी ही होगी. कलम और रंग के जादूगर से बड़ा हुस्न का पारखी भला और कौन हो सकता है. एक बार उससे अवश्य मिलूँगी. लेकिन, कहानी पूरी होने के बाद.वैसे भी वह तुमसे घुलमिल गई है. मुझे देखकर न जाने कैसा रियेक्ट करें."
"हां,यह तो है."
"देखो,नील!कल तुम झील पर अवश्य जाना. मुझे विश्वास है कल वह तुमसे मिलने जरूर आयेगी. बच्ची ही तो है. परेशान थी.मन नहीं किया होगा."
"मैं भी ऐसा ही सोच रहा हूँ."
"ठीक है. कल मधुलिका से मिलने के बाद, फोन करना. गुड नाईट..."कहकर ऐनी ने फोन काट दिया.
मैंने गहरी सांस ली. मेरा दिल भी यही कह रहा है-कल वह अवश्य आयेगी. आज की निराशा कल की आशा में बदलने लगी.मुझे केवल कहानी पूरी करने की जल्दी नहीं थी.दरअसल मुझे मधुलिका की मौजूदगी भाने लगी थी.
चंद दिनों की मुलाकात. बस ,आज का न आना और यह बेकरारी! क्यूँ होता है मेरे साथ ऐसा. क्यूँ इस कदर जुड जाता हूँ ,अपनी कहानी के पात्रों के साथ. क्यूँ जीने लगता हूँ, उनके साथ-साथ अपनी एक जिदंगी.
मैंने एक गहरी सांस ली. मेरी कहानी के अधिकांश पात्र सजीव होते हुए भी मूर्ति रुप नहीं होते ,लिखते समय. फिर भी मैं उनसे कहीं न कहीं अपने आप को जुडा पाता हूँ.लेकिन, मधुलिका तो जीती जागती मेरे सामने मौजूद है.बस,उसे छुआ भर नहीं है. लेकिन, उसे सामने बैठकर देखता हूँ. उसके चेहरे के उतार-चढ़ाव, उदासी, चहकना, हँसना, शरारतें, सभी से तो रूबरू हो रहा हूँ. अब,जुडाव तो महसूस करूंगा ही उससे.
वैसे कुछ खास लोग ही होते हैं जो दिल दिमाग में फीड हो जाते हैं. जिनसे हम इतना लगाव महसूस करने लगते हैं. बरना रोजमर्रा की जिदंगी में कितने लोगों से मिलना होता है. कितने जेहन से निकल भी जाते हैं.
आज पूरा दिन बिना कुछ करे -धरे गुजर गया था. रात धीरे धीरे गहराने लगी थी.जोशी आंटी और अंकल सो गये थे.आंटी डिनर के बाद मुझे कॉफी देने के बाद सोने चली जाती हैं. उन्हें सुबह जल्दी उठना होता है. अंकल को सुबह पांच बजे बेड टी लेने की आदत है.चाहें दिन गर्मियों के हो या सर्दियों की ठंडी सुबह.उन दोनों को सुबह पांच बजे उठ ही जाना. चाय फिर योगा.उसके बाद अंकल के हाथ में पेपर.आंटी अपने अपने गार्डन की देखभाल में.इसमें मेरा भी फायदा रहता है. सुबह जल्दी चाय मिल जाती है. मुझे सुबह उठकर कल का लिखा हुआ ऐडिट करने की आदत है.सुबह दिमाग भी ताजा होता है और किसी के डिस्टर्ब करने का खतरा भी नहीं रहता.
दीवार पर टंगी घड़ी बारह बजा रही थी. लेकिन मेरी आँखों में नींद का पता नहीं था. सोचा-लेपटॉप खोलकर मधुलिका की कहानी को एकबार रीड कर लूँ. ताकि लव स्टोरी को अच्छा शेड दे सकूं. मैं इस लव स्टोरी में कहीं कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता था. वैसे भी मैं यह समझता हूँ कि यह एक अद्भुत लव स्टोरी होगी. जिसकी नायिका परीयों जैसी खूबसूरत, राजकुमारी जैसी नजाकत, फूलों की तरह नाजुक, आज की लड़की जैसी बिंदास, निडर, बेखौफ, फिर भी मासूम, अधखिली ,अछूती कली सी,जिसके रोम-रोम में प्यार समाया हो,उसकी लव स्टोरी बेमिसाल ही होगी....
मधुलिका को लेकर मेरे जेहन में जाने कितने सम्बोधन आ रहे थे. लेकिन, उसकी खूबियों को समेटने वाला बस एक ही शब्द था-अद्भुत!
सच,अद्भुत ही तो है, मधुलिका. गहरी झील सी आँखें -कोई भी डूब जाये. बदन इतना खूबसूरत, संगमरमरी-कोई भी फिसल जाये.... अदायें ऐसी -कोई कली चटकी....
मेरे दिल -दिमाग पर मधुलिका इस कदर छायीं कि मैं कहानी न पढ़कर उसका स्केच बनाने बैठ गया.
जैसे ही स्केच बन कर पूरा हुआ. कमरा मोगरों के फूलों की खुशबू से भरता चला गया.
मैंने कई बार गहरी सांस लेकर इस खुशबू कोअपने भीतर भरा.खुशबू मोगरों के फूलों की ही थी.
मैं भौचक्का सा इधर -उधर देखने लगा.
क्रमशः