Jaggery sweetness in tamarind sauce - 4 in Hindi Moral Stories by Shivani Jaipur books and stories PDF | इमली की चटनी में गुड़ की मिठास - 4

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इमली की चटनी में गुड़ की मिठास - 4

भाग-4

गुत्थी सुलझाने की जितनी कोशिश करती उतनी ही उसमें उलझती चली जाती! थक हार कर नींद कब उसे अपने कब्जे में लेकर सुबह कर गई पता ही नहीं चला!रवि की खटर-पटर से उसकी आँख खुली तो कमरे में धूप खिली हुई थी। वो हड़बड़ा कर उठी और फ्रेश होकर बाहर निकल गई। सारा दिन फिर गृहस्थी के कामकाज में निकल गया। रवि से किसी भी तरह का कोई भी संवाद करने का प्रयास सफल नहीं हुआ। अब उसे रात का इंतज़ार था। देखते हैं क्या होता है!

कमरे में आते ही रवि लैपटॉप खोलकर काम करने बैठ गया।

"कैसा रहा आज का दिन?" शालिनी ने बात शुरू करने की गरज से पूछा।

"रोज़ जैसा ही!" संक्षिप्त जवाब से आगे बात बढ़ने की गुंजाइश समाप्त कर दी गई।

"मेरी याद आई?" आस बंधी हुई थी अभी भी!

"ऑफिस में काम करते हैं और शाम को पढ़ाई! एक रात मिलती है जो भी तुम बातों में बर्बाद कर देना चाहती हो!"कड़वाहट बता रही थी कि गुस्सा अभी उतरा नहीं है!

"तो क्या तुम्हें सिर्फ मेरी देह से काम है? मेरे मन,मेरी आत्मा तक तुम्हारी पहुंच नही हो सकेगी? मेरे सुख-दुख का ख्याल रखना, उन्हें समझना क्या तुम्हारे लिए कोई महत्व नहीं रखता?"

पहली बार रवि ने उसकी तरफ कुछ गुस्से से देखा! लैपटॉप बंद कर के रखते हुए बोला "आज तो ये सब तुमने कहा लिया और मैंने सुन लिया!आइन्दा कभी कोशिश भी मत करना! मैं जैसा हूं वैसा हूं! किसी के लिए बदल नहीं सकता! और फिर तुम्हें क्या तकलीफ़ है यहां? घर में सब कितने अच्छे हैं और तुम्हें पसंद करते हैं! कितना ख्याल रखते हैं तुम्हारा वो सब! ये महत्त्वपूर्ण नहीं है तुम्हारे लिए? किसी से कोई तकलीफ़ है तुम्हें?" जवाब का इंतज़ार किए बिना वो मुंह फेर कर सो गया। शालिनी पता नहीं कब तक सिसकती रही फिर आंसुओं से धुंधले पड़ गये चाँद पर पलकों का परदा खींचकर भीतर अमावस कर ली! उसे प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष किसी भी तरह से न सूरज की गर्मी चाहिए थी और ना ही रोशनी! यही कुछ तो था जो शालिनी को अजीब लगता था और उसे भीतर-ही-भीतर खाए जा रहा था। धीरे धीरे हर समय हँसती खेलती शालिनी जीवन से समझौता कर अब शांतिप्रिय हो चली थी। रातें रवि की मर्ज़ी और ज़रूरतों के हिसाब से व्यतीत होती थीं। ज़रा भी कमीबेशी रवि को उन्मादी बना देती थी। दिन भर इतना शालीन और शांत रहने वाला इंसान रात में इस तरह आक्रामक रुख से पेश आता होगा, कोई सोच भी नहीं सकता था!

छह महीने पूरे होते-होते रवि आई ए एस अफसर बन गया और शालिनी भी उम्मीद से हो गयी । घर में दुगुनी खुशियाँ मनाई गयीं । पहली बार रवि कुछ खुश-सा दिखाई दिया! अपनी घरेलू सफलता पर या करियर की सफलता पर, शालिनी के लिए ये कभी समझ न आने वाली पहेली रही।

सबसे ज्यादा खुश शायद मैना थी।उसके तो पैर ज़मीन पर पड़ ही नहीं रहे थे! एक तो भाई का ओहदा बढ़ने से अब उसके लिए बेहतर रिश्तों के अवसर थे और नन्हें मेहमान के स्वागत की उत्सुकता भी उसे दीवाना बना रही थी।

शालिनी के लिए तो ये खबर नई ऊर्जा नये जीवन के संदेश की तरह थी! अपने नीरस और घुटन भरे जीवन में सुख, उमंग और जीवंतता महसूसने का ये अवसर उसे भीतर तक प्रफुल्लित कर रहा था।वो अब रवि के बारे में न सोचकर आने वाले मेहमान के बारे में सोचती और खुश रहती!घर में खुशियां मनाई जा रही थीं।

समय पलक झपकते सा बीतने लगा। इधर शालिनी ने नन्हीं किरण को जन्म दिया और उधर मैना का रिश्ता पक्का हुआ। फिर से दुगुनी खुशियाँ मनाई गयीं । हर कोई शालिनी के भाग्यशाली कदम के गीत गा रहा था पर..... जिसके लिए ये गीत थे वो फिर अचरज में थी। क्योंकि रवि बाहर गया हुआ था और खबर सुनकर आया ही नहीं था!

तीन दिन तक बेटी का मुँह नहीं देखा था। चौथे दिन बच्ची का नामकरण किया गया 'किरण'! उस समय जब वो आया तो नन्हीं सी किरण को निहारता रहा और मुस्कुराया "बिल्कुल माँ पर गयी है!"

"किसकी माँ?इस की या तुम्हारी?"

बिना कोई जवाब दिए थोड़ी देर किरण को खिलाता रहा फिर शालिनी को थैंक्स कहकर चला गया!

शालिनी 'किरण किस पर गई है?' बस यही गुत्थी सुलझाने की कोशिश करती रह गयी...

किरण की जगमगाहट से शालिनी की दुनिया सजने लगी!

रवि से जितनी उम्मीदें टूटी थीं उनका दुख नन्ही किरण की किलकारियों से दूर होने लगा।

मैना की शादी का दिन भी नज़दीक आ रहा था। ऑफिस की ज़िम्मेदारी और बहन की शादी के काम से ओवरलोडेड रवि अक्सर ही सिर दर्द की शिकायत करता। कुछ घरेलू उपचार और कुछ सेल्फ मेडिकेशन से काम चलाया जा रहा था कि शादी से ठीक एक महिने पहले ऑफिस में उसे तेज़ दर्द उठा और वो बेहोश हो गया। फटाफट हॉस्पिटल ले जाया गया जहां तमाम तरह के टेस्ट हुए और फिर खुशियों को जैसे ग्रहण सा लग गया। रवि को ब्रेन ट्यूमर निकला। शादी की शॉपिंग की जगह दवाइयां और इलाज के लिए भागदौड़ होने लगी।आनन फानन में ऑपरेशन भी हुआ । रवि थोड़ा ठीक होने लगा तो मैना की शादी भी नियत समय पर सादगी से निपटा सी दी गई। छोटी सी बच्ची के साथ घर, हॉस्पिटल और शादी की ज़िम्मेदारियां निभाती शालिनी खुद भी चकरघिन्नी हुई पड़ी थी।वो तो समझो कि उसका पीहर पास ही था तो पूरा परिवार पूरी तरह से साथ निभा रहा था तो सब सम्हल गया। किरण तो इतने दिनों नानी के घर ही रही थी।

****

किरण घुटने चलने लगी थी।दादी ने उसे घुंघरू वाली पायल पहना दी थी। पूरा घर उसकी छम-छम से और किलकारियों से गुंजायमान होता और शालिनी तो जैसे खुद बच्चा बन जाती थी उसके साथ।

रवि की तबियत नरम-गरम रहती। दुनिया भर की दवाएं और मन्नतें भी उसे पूरी तरह ठीक न कर पा रही थीं।

एक दिन अचानक ही तेज सिर दर्द के साथ रवि सबको तड़पता हुआ अचानक ही चल बसा! पूरे घर के लिए बहुत भारी सदमा था। ख़ुशियों पर वज्रपात हो गया!10-15 दिन में ही सब कुछ बदल गया।

शालिनी को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे? लोग थे कि उसकी किस्मत फूट गयी कहकर रो रहे थे,रुला रहे थे पर शालिनी खुद को बोझ-मुक्त महसूस कर रही थी। अजीब बात थी जिस इन्सान ने कभी कोई प्रेम दिया ना बैर! उसके जाने पर राहत सी क्यों थी! न खुशी थी न ग़म बस हल्कापन सा महसूस हो रहा था। ऐसा लगता था कि सूरज की रोशनी में अब उतनी तपन नहीं रही है।राहत की छतरी ऐसे तनी हुई थी दिल-दिमाग में कि बरसती हुई आग भी अब उसे जला नहीं सकती थी।जैसे घने बादलों से छिटक कर चांदनी धरती तक पहुंचती है ऐसे ही घर में छाई मनहूसियत के बीच में सुकून शालिनी तक पहुंच रहा था। अपने मन को समझाती कि ऐसा सोचना गलत है लेकिन फिर दिन में रवि की उदासीनता, घूरती हुई दो आंखें, और रात में देह का प्यासा रवि याद आता तो अपने बेनूर जीवन की याद आ जाती और वो शांत बैठ जाती! सोचती ईश्वर जो करता है सोच समझकर करता है।

घर मेहमानों से भरा हुआ था। इतने लोगों से घिरे रहने के कारण उसे ज्यादा सोचने का समय भी नहीं मिलता था। फिर किरण को भी देखना होता था।उठावने की रस्म होते ही घर भी धीरे-धीरे मेहमानों से खाली होता गया। शालिनी की माँ उसे कुछ दिन अपने साथ रखना चाहती थीं पर सुलोचना जी और उनके पति की दुखद स्थिति देखकर कह नहीं पाई।

जल्दी ही शालिनी ने घर और घरवालों को सम्हाल लिया!किरण को पूरी तरह दादा-दादी के हवाले कर के उनका सूनापन किरण की किलकारियों से भर दिया और खुद ने अपनी आगे की पढ़ाई शुरु की। पढ़ने में होशियार तो थी ही! इसलिए अनुकंपा नियुक्ति के रूप में रवि से नीचे का पद स्वीकार न करके उसने रवि की तरह आई ए एस बनने का तय किया और उसी की तैयारियों में जुट गयी।

क्रमशः