Repentance Part-4 in Hindi Fiction Stories by Ruchi Dixit books and stories PDF | पश्चाताप भाग -4

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पश्चाताप भाग -4

पूर्णिमा का काम दिनोदिन बढ़ता जा रहा था| लोग उसके काम मे सफाई और बारीकी के मुरीद हो चुके थे |यहाँ तक की काम अधिक होने पर उसके मना करने पर लोग अनुरोधपूर्ण मुँह माँगे दाम देने तक को तैयार हो जाते | प्रतिमा भी पूर्णिमा के काम हाथ बटा देती थी | बहुत अधिक काम मिलने पर हाथों से पूरा करना अब मुश्किल हुआ जा रहा था परिणामत: उसे मना करना पड़ता | पूर्णिमा ने प्रतिमा से मशीन लेने की इच्छा जाहिर की, अब तक अपने काम से पूर्णिमा ने इतने पैसे जोड़ लिए थे कि मशीन आ गई | घर मे मशीन आने से काम मे भी तेजी आ गई, काम मे गुणवत्ता के साथ -साथ उसका मधुर व्यवहार लोगो को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था | उसके आस -पास उसी की समतुल्य दुकाने फीकी पड़ने लगी थी | कुछ दुकानदारों को तो उससे ईर्ष्या तक होने लगी | समय गुजरता जा रहा था पूर्णिमा के पति का कुछ पता न था | उधार वाले अब पूर्णिमा के पास आकर अपनी भड़ास निकालने लगे, पूर्णिमा भी यह आश्वासन देकर कि मै धीरे - धीरे सब चुकता कर दूँगी ! यह कह बिदा कर देती थी | पूर्णिमा ने अपने पति द्वारा लिए गये सभी उधार की एक लिस्ट बना हर महीने थोड़ा -थोड़ा चुकता करती | एक दिन पूर्णिमा कोे पता चला वह माँ बनने वाली है | यह बात जानकर पूर्णिमा को मानो एक और आघात लगा वह उस भविष्य को लेकर चिन्तित थी , जिसने अनायास ही उसके गर्भ मे अपनी जगह बना ली थी | यह बात जब उसने प्रतिमा को बताई ,पहले तो वह खुशी के मारे उछल पड़ी , पर अचानक उसकी स्थिति का भान होते ही उसके माथे पर भी चिन्ताओं की कई सारी लकीरें खिंच गई |
अब प्रतिमा पूर्णिमा का पहले से ज्यादा ध्यान रखने लगी थी |
उसे कोई भी भारी काम न करने देती | धीरे -धीरे पूर्णिमा के काम की गति धीमी पड़ने लगी, हॉलाकि प्रतिमा ने उसके काम को पूरी तरह से बाँट लिया था , किन्तु फिर भी समय से कार्यपूर्ती न होने की वजह से अतिरिक्त काम लेने से बचने लगी | आखिर एक वह भी दिन आया जब पूर्णिमा एक बेटी का माँ बनी | गोद मे उठाते हुए प्रतिमा " देखो न कितनी सुन्दर है ! बिल्कुल तुम्हारी जैसी आँखे ! तुम्हारे जैसे होठ! कोई प्रतिक्रिया न पाकर उसका ध्यान पूर्णिमा की तरफ जाता है | उसकी आँखें छत की तरफ टिकी ,बदहवासी का आलम समेटे आँखों की पोरे , मानो उफनती नदी से बोझिल अभी अपना तट तोड़ने ही वाली हैं| प्रतिमा की बात का उस पर कोई असर न था या फिर मन की वेदना ने उसके कान ही बन्द ही कर दिये हो जैसे | प्रतिमा पूर्णिमा को हल्के हाथो से झकझोरते हुए , अरे! ऐसे काम न चलने वाला ! मौसी बनी हूँ! मौसी ! अपना हिस्सा तो लेकर रहुँगी !! पूर्णिमा को सहजता मे लाने की अपनी यह कोशिश भी असफल पाकर , प्रतिमा पूर्णिमा की बेटी को पलंग पर पटने का नाटक करती हुई लो जी! पकड़ो , अपनी बिटिया मै तो चली ! | पूर्णिमा बुत सी बनी एक चिकनी जमीन की तरह जिसपर कितना ही पानी डालो, वह अपने ऊपर ठहरने ही नही देता | यथावत बनी रही, उसकी ऐसी अवस्था को देखकर प्रतिमा की आँखे भी भर आई | अचानक बच्ची के जोर -जोर से रोने की आवाज पूर्णिमा को पीड़ा से खींच, मातृ स्पन्दन के स्पर्श से भर देता है | बच्ची को दूध पिलाने के लिए जैसे ही वह अपनी छाती से लगाती है , उसकी माथे की लकीरे धीरे धीरे समाप्त होने लगती है ,जैसे वर्षा का जल पाकर धरती की सिकुड़न अपना स्वभाव बदल कर प्रफुल्लित हो गई हो |
मातृत्व का सुख अब पूर्णिमा के दुःख रूपी वृक्ष की एक एक कर टहनियाँ काटने लगा था | पूर्णिमा भी अब पूरी तरह अपनी बच्ची मे ही केन्द्रित होने लगी | समय गुजरात रहा तीन महीने बीत गये, अचानक एक दिन सुबह कुण्डी खड़काने की आवाज, गेट खोलते ही सामने पति को देख, पूर्णिमा सकपका गई, तभी पति ने क्या हुआ! पहचानती नही क्या! अन्दर आने के लिए रास्ता तो दो! पूर्णिमा एक तरफ हटती हुई, पति को बरामदे मे लेटी बच्ची के पास जाता हुआ देखती है | उसका पति बिना सवाल किये बच्ची को गोद मे उठाकर पूर्णिमा की तरफ देखता है, मानो वह पूछ कर आश्वास्त होना चाह रहा हो कि यह बच्ची मेरी ही है न | पूर्णिमा के माथे पर एकसाथ कई रेखाये देख जो उसी के प्रश्नो पर आरोपित थी , बिना उत्तर की प्रतीक्षा के उसे छाती से लगा लेता है | पूर्णिमा के मौन को समझ उसके पति ने कई बार अपनी सफाई देने की कोशिश की, किन्तु पूर्णिमा के भाव मे रेशे मात्र का भी परिवर्तन न आया | प्रतिदिन की भॉति घर के काम की व्यस्तता के पश्चात शाम को पूर्णिमा बेटी को लेकर बरामदे मे
ही सोई, अचानक अर्धरात्री मे एक स्पर्श से वह चौंक जाती है, उठकर देखती है तो पति उसके हाथो को पकड़ आग्रहपूर्ण भाव से दूसरी तरफ चलने का निवेदन करता है | बच्ची की नींद न टूटे यह सोच वह उसे स्वीकार कर चल देती है | बैठ जाओ! पति ने कहने पर भी पूर्णिमा खड़ी ही रही | तुम पूँछोगी नही इतने दिन मै कहाँ रहा? पूर्णिमा भावहीन सुनते हुये कोई उत्तर न दिया | गाड़ी मे माल भर कर जब मै जा रहा था ,तभी एक बच्ची का मेरी ट्रक से एक्सीडेंट हो गया | वहाँ के लोगों ने मुझे मारपीट कर, ट्रक को आग लगाने की कोशिश की बच्ची की मौके पर ही मौत हो गई |मुझे थाने मे दे दिया गया | किसी तरह कम्पनी के मालिक ने ट्रक छुड़ा मेरी जबानत करवायी | वहाँ से छूटते ही मै तुम्हारे पास आया हूँ | बताते हुए पति ने अंक मे भरना चाहा कि, पूर्णिमा बिना कुछ कहे खुद को मुक्त करने की कोशिश करती है | कि उसका पति फिर से बोल पड़ता है, मुझे माफ कर दो ! पूर्णिमा मुझे माफ कर दो! | धीरे- धीरे पूर्णिमा का विरोध समाप्त होने लगता है, और एक बार फिर वह खुद को समर्पित कर देती है | कई दिनो तक सबकुछ ठीक चलता रहा | पूर्णिमा भी पति की तरफ आकर्षित होने लगी, उसके पति का बेटी को आधार बना उसके लिए कुछ न कुछ कहते रहना पूर्णिमा को बहुत अच्छा लगता | इधर कई दिनो से प्रतिमा भी पूर्णिमा से मिलने नही आई थी | अब पूर्णिमा को उसकी चिन्ता होने लगी एक मन किया कि उसके घर जाकर देख आऊँ , कही बिमार तो नही? किन्तु इससे पहले कभी उसके घर न जाने और संकोची स्वभाव के कारण वह हिम्मत न जुटा पाती |