Hansta kyon hai pagal - 10 - last part in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | हंसता क्यों है पागल - 10 (अंतिम भाग)

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हंसता क्यों है पागल - 10 (अंतिम भाग)

सुबह जागते ही मोबाइल हाथ में उठाया तो अकस्मात ज़ोर से हंसी आ गई।
अब अपने ही मोबाइल को देख कर हंसना.. भला ये कोई बात हुई?
लेकिन अपना मोबाइल भी अपने नाम की ही तरह है। इसे हम ख़ुद नहीं, बल्कि दूसरे लोग काम में लेते हैं।
किसी को अपना ख़ुद का नाम लेने की ज़रूरत शायद ही कभी मुश्किल से पड़ती होगी। दूसरे लोग ही दिन भर लेते हैं हमारा नाम।
ठीक इसी तरह मोबाइल भी उसी सब से भरा रहता है जो दूसरे लोग हमें भेजते हैं। जो कुछ हमने भेजा, वो तो इससे निकल कर चला गया न!
तो मुझे अपने मोबाइल को देखते ही हंसी इसीलिए आई कि कल शरद पूर्णिमा थी। ढेरों दोस्तों और शुभचिंतकों ने शरद पूर्णिमा की शुभकामनाएं और बधाई भेज रखी थीं। किसी ने तो फ़िल्मों से चुने हुए "चांद" से संबंधित गीतों की एक पूरी फ़ेहरिस्त ही भेज रखी थी। आसमान में सारी रात एक स्निग्ध शफ्फ़ाक चांद रहा होगा।
और इस ग्लैमरस रात के बाद सुबह- सुबह मेरे हंसने की वजह सिर्फ़ इतनी सी थी कि चांद की कलाओं से सारी रात दिमाग़ की लहरों ने न जाने क्या - क्या तेवर देखे होंगे?
पर अख़बार हाथ में लेकर चाय पीते - पीते ये साफ़ हो चुका था कि दिमाग़ का हर पुर्ज़ा बदस्तूर अपनी जगह सही - सलामत है।
नहाने में मुझे कुछ ज़्यादा ही वक्त लगा। अब गैस पर गर्म किया हुआ सीमित पानी नहीं, बल्कि सुधरा हुआ गीज़र जो मेरे पास था। गर्म पानी की अनवरत जलधार!
मुझे आज समीर की याद भी सुबह से ही आ रही थी। उस रात देर तक की गई उसकी बातें दिमाग़ मथ रही थीं।
उसने मुझे बताया था कि वो अपने कुछ करीबी दोस्तों के साथ मिल कर एक कंपनी बनाना चाहता था। उसने अपने एक अंकल के माध्यम से अपने स्टार्टअप के लिए बैंक लोन लेने की बात भी कर ली थी।
वो संकोच के साथ घुमा- फिरा कर जो बातें करता रहा था उनका लब्बोलुबाब ये था कि वो "अपने" को बेचने का कारोबार करना चाहता था।
सचमुच वो एक बहुत प्यारा लड़का था। उसका कहना था कि जब कोई अपना तन - बदन बेच कर अपना पेट पाल सकता है तो ये काम हम क्यों नहीं कर सकते?
उसने अपने को बेचने के इस मंसूबे का खुलासा भी किया था।
वह कहता था कि उसके कुछ साथी अपना समय बेचेंगे। वे प्रति घंटा, प्रति चार घंटा और प्रति चौबीस घंटे के तीन स्लॉट में अपनी दरें रखेंगे।
लोग बाज़ार से सामान मंगवाने, बिलों को जमा कराने, बच्चों को स्कूल छोड़ने - लाने, किसी बीमार की तीमारदारी घर या हस्पताल में करने के लिए हमारे लोगों का उपयोग कर सकेंगे। अकेले लोग, अशक्त लोग, व्यस्त लोग, बिखरे हुए और परिवार से दूर रह रहे लोग हमारा उपयोग कर सकते हैं। वे हमारे फ़ोल्डर से दर चुन कर अपनी ज़रूरत के हिसाब से शिक्षा व उम्र आदि देख कर लोगों को चुन सकेंगे।
सुरक्षा, संरक्षा, विश्वसनीयता तथा गारंटी के लिए कंपनी परिचय पत्र जारी करेगी।
कुछ चुनिंदा और भरोसेमंद मामलों में वो "रिश्ते" भी बेचेंगे, और शरीर भी।
समीर कहता था कि समाज के दुष्कर्म, छेड़छाड़, ब्लैक मेल जैसे अपराधों से बचने के लिए ये सेवा एक बड़ा काम करेगी। वे इसे पूर्ण सुरक्षा और अनुज्ञा के साथ विधिवत करने का प्रयास करेंगे।
मेरा गीज़र बहुत अच्छा काम दे रहा था। मैं सोचता रहा कि मैकेनिक काम न जानने के कारण बहानेबाज़ी कर रहा है पर वो बेचारा दुर्घटना के कारण विवश था और अपने बाज़ार का सिद्धहस्त कामगार था।
कई बार लोग बेवजह बाजारी अफवाहों से मिसगाइड हो जाते हैं।
मुझे याद आया कि कुछ दिन पहले मेरे परिचित एक युवक ने ख़ास किस्म के मैटेरियल से शरीर के गोपनीय किंतु बेहद ज़रूरी अंग निर्माण करके ऑनलाइन बेचने का कारोबार भी शुरू किया था। अब वो अच्छी आय दे रहा था। छात्रावासों में रहने वाले छात्र छात्राएं, परिवार से दूर रहने वाले कारोबारी, सैनिक आदि उसके ग्राहक थे। बड़ी संख्या में लड़के लड़कियों को उसने काम दे रखा था।
मैं सोचने लगा कि हमारा देश विविध संस्कृतिधर्मा, विकासशील देश है जहां कुछ ऐसे लोग आधुनिक जीवन पद्धतियों का विरोध महज़ इसलिए करते हैं कि यहां का दकियानूसीपन उन्हें रास आता है। वे टोने- टोटके, जादू- मंतर की दुकानें चला कर, लोगों की भावनाओं से खेलकर काली कमाई करते हैं। शरीर के अजूबों और जीवन की मूलभूत ज़रूरतों से खिलवाड़ करके ही उनके कर्मकाण्ड चलते हैं। जबकि दूसरे कई देश अपनी युवा पीढ़ी और अकेलेपन से त्रस्त लोगों को सेक्स ट्वॉयज के लिए उकसा कर इन व्याधियों से बचे रहने के सुगम उपाय वर्षों पहले कर चुके हैं और अब सुखी संपन्न हैं। शिक्षित हैं। रोज़ी- रोटी की समस्या से बहुत ऊपर उठ चुके हैं।
अब मुझे ज़ोर की छींक आई। गर्म पानी की उपलब्धता का मतलब ये तो नहीं कि मैं बाथरूम से निकलूं ही नहीं। आख़िर और भी काम हैं दुनिया में नहाने के सिवा... मैं बाहर निकल आया।
खाना खाने के बाद दोपहर को मैं अपना लैपटॉप खोल कर बैठ गया। दोपहर में सोने की आदत तो मुझे कभी भी नहीं रही। अपना मेल देखा तो वहां एक लंबा सा मेल समीर की ओर से आया हुआ था। मैंने उसे पढ़ना शुरू किया ही था कि मेरे फ़ोन की घंटी बजी।
मैं लैपटॉप छोड़ कर फ़ोन की ओर बढ़ा।
फ़ोन समीर का ही था। सुखद आश्चर्य। मैंने उससे कहा कि मैं अभी- अभी उसका मेल ही पढ़ रहा था।
वो बोला - पढ़ लिया सर?
- नहीं... खोला ही तो था अभी। अब तुम्हीं बतादो क्या है उसमें।
वो बोला - सर चमत्कार हो गया।
- क्या हुआ? मैं भी उसके स्वर की बुलंदी से आवेश में आ गया।
- सर, जिस परीक्षा में उस दिन आपने मुझे जबरदस्ती धकेल कर भेजा था, उसका रिजल्ट आ गया। वह कुछ उत्तेजित हो कर बोला।
- और तुम पास हो गए?? वाह! बधाई। मुझे खुशी हुई।
- सर, बधाई आपको भी। आपने न जाने क्या सोचकर मुझे उस दिन जबरन रवाना कर ही दिया था। उसने कहा।
- अब? मैंने उत्सुकता से पूछा।
वह बोला - सर अब मेरा साक्षात्कार है, वह भी जयपुर में ही होगा। डेट आ गई है अगली ग्यारह तारीख़। टिकिट बुक हो जाए तब बताता हूं, फ़िर मैं आपके पास ही आऊंगा। लोग कह रहे हैं कि इस परीक्षा में लिखित परीक्षा ही मुख्य है, इंटरव्यू तो मात्र फॉर्मेलिटी है जिसमें केवल ये सब बातें करते हैं कि पोस्टिंग कहां चाहिए और कब तक ज्वॉइन कर लोगे आदि...!
- आओ, मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूं। अब एक बड़ी पार्टी देने की तैयारी से आना। मैंने कहा।
फ़ोन रख कर मैं अपने लैपटॉप को भी बंद करके रखने ही लगा था कि दरवाज़े की घंटी बजी।
दरवाज़ा खोला तो सामने पोस्टमैन खड़ा था।
- रजिस्ट्री!
उसकी आवाज़ सुन कर मैं भीतर से अपना चश्मा और पैन लाने के लिए मुड़ा। दस्तखत करके मैंने पत्र लिया और दरवाजा बंद कर के पत्र खोलने लगा।
पत्र पढ़ते ही मुझे ज़ोर से हंसी आ गई।
लिखा था कि अगली ग्यारह तारीख़ को होने वाले एक साक्षात्कार में सरकार की ओर से एक्सपर्ट के तौर पर आमंत्रित करके मुझे इंटरव्यू पैनल में शामिल किया गया है।
अब मुझे तत्काल अपनी हंसी का कारण ढूंढना था। संयोग से मैंने ढूंढ भी लिया।
मैं इसलिए हंसा था क्योंकि आज के ईमेल के ज़माने में पत्र भला कौन भेजता है, फ़िर भी सरकारी चिट्ठी?
मेरी हंसी में शरद पूर्णिमा के चांद की सचमुच कोई भूमिका नहीं थी। (समाप्त)