Sangam - 4 in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | संगम--भाग (४)

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संगम--भाग (४)

मास्टर किशनलाल जी के पुराने मित्र थे, सीताराम पाण्डेय वो एक बार मास्टर जी के घर आए, दोनों मित्र सालों बाद मिले थे, किसी विवाह में अचानक ही मुलाकात हो गई दोनों की तो मास्टर जी ने अपने घर आमंत्रित कर लिया, उन्होंने प्रतिमा के हाथ का खाना खाया और देखा कि प्रतिमा घर के कामों में कितनी सुघड़ है और साथ में सुंदर भी है तो उन्होंने उसे अपने बड़े बेटे के लिए पसंद कर लिया।
ये खबर मास्टर जी ने घर में सुनाई कि प्रतिमा को मेरे मित्र ने अपने बड़े बेटे के लिए पसंद कर लिया है__
सियादुलारी बोली, पूरी बात खुल कर बताओ जी, लड़का क्या करता है, परिवार कैसा है, बिटिया को ऐसे ही थोड़े बिना चांजे-परखे , कहीं भी ब्याह देंगे,लोग तो यही कहेंगे कि सौतेली मां है ना तो__
अरी,चुप करो भाग्यवान! सब बताता हूं, मास्टर जी बोले__
अच्छा परिवार है,खूब खेती-बाड़ी है, गांव में बड़ी सी परचून की दुकान है, बड़ा लड़का शशीकांत फौज में है,छोटा बेटा छोटी सी बात पर घर छोड़ कर दो साल पहले ना जाने कहां भाग गया,अब तक ना लौटा,इसी दुःख में मित्र की पत्नी की आंखों की रोशनी चली गई,एक छोटी बेटी है जो बालविधवा है, इसलिए मित्र ने अपने बेटे का कम उम्र में ब्याह नहीं किया, लड़का सुंदर और संस्कारी है और क्या चाहिए भला, मैं ब्याह में मिल चुका हूं उससे।
जब तुम्हें पसंद है तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है भला!!
हां बोल दो लड़के वालों को एक बार लड़का, लड़की देख जाए तो हम भी एक नजर लड़का देख लेंगे, सियादुलारी बोली।
ये सब बातें प्रतिमा दरवाजे के पीछे खड़ी सुन रही थी और मन-ही-मन मुस्कुरा रही थी, उसने अपने मन में कुछ कल्पनाएं सजा ली और उन्हें मुस्कुराहट का रूप दे दिया।
श्रीधर,रात का खाना खाने गया,उसे प्रतिमा खुश दिखाई थी, उसने कुछ नहीं पूछा और वो खाना खाकर चला आया।
रात को जब अपने सारे काम निपटा कर प्रतिमा, श्रीधर को बरामदे में पढ़ाने गई ___
श्रीधर ने पूछ ही लिया, मित्र आज बड़ी प्रसन्न लग रही हो,क्या बात है?
प्रतिमा, शरमाते हुए बोली, कुछ नहीं ऐसे ही....
नहीं बताना तो मत बताओ,श्रीधर बोला....
ऐसी बात नहीं है, तुम्हें नहीं बताऊंगी तो किसे बताऊंगी, पिता जी कह रहे थे कि मेरे लिए एक रिश्ता आया है,वो उस दिन जो चाचा जी आए थे ना, उनके बेटे का,प्रतिमा बोली।
अच्छा तो ये बात है,श्रीधर बोला!!
उसके चेहरे को देखकर लग रहा था कि उसे अच्छा नहीं लगा।
अब तुम ससुराल चली जाओगी, अपने इस मित्र को छोड़कर,श्रीधर बोला।
तो क्या हुआ, कभी कभी तो आऊंगी,प्रतिमा बोली।
इसी तरह दो-चार दिन बाद मास्टर जी ने सियादुलारी से कहा कि लड़का देखने आने वाला है कल प्रतिमा को, उन लोगों ने संदेशा भिजवाया है, देखना सारा इंतजाम अच्छे से हो, किसी चीज़ की कमी ना हो और जो कम पड़ रहा हो,श्रीधर से आज ही मंगवा लेना कल के भरोसे मत बैठे रहना।
ठीक है जी! सियादुलारी बोली__
दूसरे दिन सुबह-सुबह, सियादुलारी दरवाजा लीपने बैठी, मास्टर जी बोले घर तो सारा पक्का बना हुआ है लेकिन तुम्हारा लीपने का शौक नहीं गया जो बाहर आकर अपना शौक पूरा कर रही हो।
कैसी बातें करते हो जी, बिटिया को लोग देखने आने वाले हैं थोड़ा शगुन कर रही हूं, पुराने रीति-रिवाज थोड़े ही भूल जाऊंगी, आखिर मां हूं उसकी सौतेली ही सही, इतना कहकर सियादुलारी की आंखें भर आईं।
फिर प्रतिमा को आवाज दी,प्रतिमा इधर तो आना....
क्या है मां?आती हूं!!प्रतिमा बोली।
अच्छा! तूने स्नान कर लिया है ना तो तू ऐसा करना, यहां दरवाजे पर चौक पूरकर थोड़े फूल चढ़ा दे और ऊपर वाली मंजिल पर जाकर भण्डारघर से, कुछ,आचार,पापड, बड़ियां वगैरह निकाल लें और कुछ ऐसा खाना बना लें ताकि सबको जल्दी भूख ना लगे क्योंकि बाद में हमलोगो को मेहमानों के लिए खाना बनाना है फुरसत नहीं मिलेगी, क्योंकि मेहमान पता नहीं कब तक आए ,मैं ये काम निपटा कर,नहाकर फिर लगती हूं,रसोई में, बहुत कुछ बनाना है, बहुत काम पड़ा है, सियादुलारी बोली।
इधर प्रतिमा ने सबके लिए नाश्ते मैं,आलू की तरी वाली सब्जी, हलवा और पूड़ी बना लिए, मां के बताए हुए सारे काम निपटा कर।
मास्टर जी को नाश्ता देकर, दीनू को नाश्ता देने गई और श्रीधर से बोली चलो तुम भी खा लो!!
श्रीधर बोला,तुम चलो मैं आता हूं__
श्रीधर अंदर आया और बैठ गया,वो अनमने ढंग से खा रहा था, तभी,प्रतिमा दो-तीन साड़ियां लेकर आई, बोली मित्र,शाम को कौन सी वाली साड़ी पहनूं, मेरे ऊपर कौन सी अच्छी लगेगी___
श्रीधर बोला, मुझे नहीं पता!!
और खाना बिना खाए ही उठ कर चला गया__
प्रतिमा को श्रीधर का ऐसा व्यवहार अखर गया और उसकी आंखों से दो बूंद आंसू टपक गये।
दोपहर तक लड़के वाले आ गए, खातिरदारी और देखासुनी के बाद, दोनों परिवारों के बीच रिश्ता पक्का हो गया।
लेकिन अब प्रतिमा और श्रीधर के बीच बातचीत बिल्कुल से बंद थी,श्रीधर खाने आता प्रतिमा परोस देती,वो खाकर चला जाता,अब प्रतिमा उसे पढ़ाती भी नहीं थी।
अब विवाह का मुहूर्त भी निकल गया था और विवाह की तैयारियां भी जोर-शोर से चल रही थी,दहेज का सामान भी तैयार होने लगा था,प्रतिमा के गहने- कपड़े भी बनने लगे थे।
शादी को पन्द्रह दिन ही रह गए थे लेकिन अभी भी श्रीधर और प्रतिमा के बीच बोल चाल बंद थी ।
शादी को एक हफ्ते ही बचे थे कि एक अनहोनी हो गई,आलोक का कर्जा बहुत बढ़ गया था, कर्जदारों से उसे धमकियां मिलने लगी थी,वो अब जुआं भी खेलने लगा था__
फिर एक रात उसने प्रतिमा की शादी के गहने चुरा लिए और कुछ गहने गौशाला में छुपा दिए और रातों रात कर्जा चुकाकर घर भी आ गया।
सुबह सब उठे, खोजबीन शुरू हुई, पुलिस को बुलाया गया, तभी एकाएक, आलोक को उपाय सूझा और उसनेे कहा कि मैं रात जब घर लौटा था तो श्रीधर गौशाला में कुछ कर रहा था, पुलिस ने गौशाला की तलाशी ली, गहने मिल गये सारा इलज़ाम श्रीधर पर लग गया,श्रीधर के हाथों में जैसे ही हथकड़ियां लगी, दीनू ने बस इतना कहा कि मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी, तूने मेरी वफादारी पर कलंक लगा दिया और दीनू को दिल का दौरा पड़ गया, श्रीधर बहुत रोया और ऐसे ही हथकड़ियां लगे हुए उसने अपने बाबा का अंतिम संस्कार किया।

क्रमशः___
सरोज वर्मा__🥀