लहराता चाँद
लता तेजेश्वर 'रेणुका'
27
अनन्या की जिंदगी खौफ से निकल कर साधारण होने लगी थी। संजय और अवन्तिका का जन्मदिन एक ही महीने में आता है। इसलिए दोनों का जन्मदिवस एक ही दिन मनाया जाता है। इसके लिए चार दिन पहले से ही तैयारियाँ शुरू हो गई। 8 महीने गुजर जाने के बाद भी अवन्तिका, अनन्या के साथ हुई हादसे से परेशान थी। उसके मन में डर इतना ज्यादा था कि वह अनन्या को एक पल भी अपने से दूर होने नहीं दे रही थी। अवन्तिका के अपनी माँ को खोने के बाद अनन्या से उसकी गहरी रिश्ता जुड़ गया था। अनन्या के अपहरण से उसे खोने का डर उस पर हावी हो गया था। वह उस सदमें से उबर नहीं पा रही थी। अनन्या भी उन दिनों को याद कर काँप जाती। इन दुर्घटनाओं को भूलने और अवन्तिका को उस माहौल से अलग दिशा देने के लिए अनन्या ने अवन्तिका के जन्मदिन पर घर में छोटी सी पार्टी रखने को सोचा। उसने कुछ ख़ास दोस्तों को निमंत्रण भेजा। अनन्या और अवन्तिका के कुछ दोस्त समय पर पहुँच गए। अंजली, साहिल के घरवाले और दुर्योधन भी पार्टी में शामिल हुए।
अंजली अनन्या से मिलने कुछ समय पहले ही पहुँच गई। वह हरे रंग की साड़ी पहने हुई थी। हल्की सी लिपस्टिक, हाथों में चूड़ियाँ, माथे पर लाल रंग की बिंदी में बहुत खूबसूरत लग रही थी। गोरे रंग पर हरे रंग की साड़ी बहुत फब रही थी। अनन्या को देखते ही अंजली ने उसे बाहों में भर लिया। अंजली अनन्या की पीठ सहलाती रही। अवन्तिका ने पीछे से आकर दोनों को जोर से पकड़ लिया।
बहुत देर दोनों अंजली से लिपटी रहीं। अंजली दोनों को पलँग पर बिठाकर धीरे-धीरे पीठ थपकाते चुप कराई। अनन्या ने कुछ समय में खुद को सँभाल लिया लेकिन अवन्तिका देर तक सिसकती रही। हॉल से गुजरते हुए संजय तीनोँ को एक साथ देखकर एक पल के लिए सब कुछ भूलकर देखता रह गया। माँ के प्यार को संजय कभी पूरा नहीं कर सकता था लेकिन अंजली से दोनों बच्चियों को भरपूर प्यार मिलते देख उसकी आँखें नम हो गईं। अंजली के प्रति उसका ह्रदय कृतज्ञता से भर गया। वह वहाँ से चुपचाप बाहर आ गया। बहुत दिनों बाद अनन्या और अवन्तिका के दिल को कुछ राहत मिली।
साहिल भी अपनी माँ शैलजा और सूफ़ी को लेकर आ पहुँचा। शैलजा ने अनन्या को गले लगाकर खूब आशीर्वाद दिया। हँसती खेलती सूफी का चेहरा कुछ उतरा हुआ सा लग रहा था। अवन्तिका के पूछने पर उसने उदास चेहरे पर मुस्कान लाकर कहा, "कुछ नहीं है अवि, सब ठीक है, चल आज सभी को कुछ गेम खिलाते हैं। कुछ हंगामा करते हैं।"
- "याहू, सच में?" अवन्तिका खुश हो गई।
- "ठीक है, दीदी के लिए कुछ करते हैं।" तीनों मिलकर प्लान बनाने लगे।
समय 6 बजकर 45 मिनट हुआ था। संजय ने हरे रंग का कुर्ता पैजामा पहने रखा था। घर को भी फूलों, बैलून और रंगीन कागजों से नयी नवेली दुल्हन सा सजाया गया था। अवन्तिका सफ़ेद घेर की गाउन में परी सी लग रही थी। संजय कुर्ते पैजामा पहने दरवाज़े पर खड़े सभी का स्वागतकर रहा था। साहिल ने भी संजय के साथ खड़े रहकर मेहमानों का स्वागत किया। सूफी, क्षमा और अवन्तिका से मिलकर बहुत खुश थी।
अनन्या लाल रंग की लहंगे पर काली रंग की टॉप और गले के चारों ओर स्टोल ओढ़े थी। खुले बाल और हल्की से मेकअप में गुलाब की पंखुड़ियों की तरह नाज़ुक सी तितली लग रही थी। बहुत दिनों बाद संजय के चेहरे पर खुशी की झलक दिख रहा था। कई दिनों की परेशानियों से बाहर निकलकर एक स्वस्थ वातावरण में खुद को पाकर अनन्या की आँखे बार-बार नम हो रही थी।
साहिल को अनन्या से अकेले में मिलना था पर अनन्या काम में व्यस्त थी। जैसे कि अनन्या कुछ समय पाकर बाहर आई तभी साहिल ने उसे रोक लिया।
- "अनु तुमसे कुछ बात करनी है।"
अनन्या रुक गई, "बोलो साहिल।"
- पहले ये बताओ तुम अब ठीक तो हो ना?"
- हाँ बिल्कुल ठीक हूँ।
- तो फिर मैं कुछ जिम्मेदारियाँ तुम्हें सौंपना चाहता हूँ, क्या तुम कर सकोगी?
- "बोलो साहिल ये तो मेरा फ़र्ज़ है।
- "मैं कुछ महीनों के लिए अमेरिका जा रहा हूँ।"
- "कब?" अनन्या प्रश्न भरी नज़र से देखा। कुछ महीनों पहले आगे की पढ़ाई के लिए दरखास्त भेजा था। उसका जवाब कुछ ही दिन पहले आया है। उन्होंने कहा है कि शीघ्रतिशीघ्र अपना सीट सँभालूँ। सोच रहा था जाऊँ या नहीं?
- ऐसा क्यों?
- "माँ और सूफी को छोड़ कर जाने के लिए मन नहीं कर रहा लेकिन माँ जिद्द लेकर बैठी है कि पढ़ाई पूरी करूँ। एक साल की ही बात है, अगर ये पढ़ाई हो गई तो मेरे सारी परेशानियाँ खत्म हो जाएगी।"
- "कैसी परेशानी साहिल सब ठीक है ना?
- " नहीं सब ठीक नहीं है अनन्या,मन ही मन कहा... "खैर छोड़ो फिर कभी बताऊँगा। मेहमानों की देखभाल करनी है। अंदर चलो।
- हाँ, चलते हैं लेकिन तुम कब जा रहे हो?
- कुछ ही दिनों में निकलना होगा। अनन्या के पास कुछ कहने के लिए शब्द नहीं थे। वह फर्श की ओर देखती रह गई।
- "तुम कुछ नहीं कहोगी?"
- "क्या कहूँ?"
- "एक मदद करोगी?
- "जरूर! ये कोई पूछने वाली बात है?"
- "कुछ समय के लिए मेरी बहन और माँ को तुम्हारी जिम्मेदारी में छोड़ कर जा रहा हूँ? क्या जरूरत पड़ने पर मेरी जगह उनकी देखभाल करोगी?"
- "क्यों नहीं साहिल ये कोई पूछने की बात है? हम सब हैं यहाँ आंटी और सूफी की ख्याल रखने तुम बेफिक्र होकर जा सकते हो।" तभी अंदर से अवन्तिका की आवाज़ आई, "दीदी कहाँ हो?"
- "अब चलो अंदर अवि बुला रही है।"
- "हाँ तुम चलो, मैं आता हूँ।" कहकर वह रुक गया और अनन्या अंदर चली गई।
संजय शैलजा से अभिनव के बारे में पूछ ही रहा था कि अभिनव आ पहुँचा। उसने संजय से हाथ मिलाकर जन्मदिन की बधाई दी। शैलजा, अंजली को एक घर की सदस्य की तरह मेहमानों का स्वागत करते देख वह भी अंजली का हाथ बँटाने लगी। अंजली, शैलजा पहली बार अनन्या के घर पर मिले और कुछ ही समय में दोनों अच्छे दोस्त बन गए। घर में तनाव का माहौल खत्म होकर उनके जीवन में एक नई उम्मीद की लहर दौड़ गई। साहिल अभिनव को देख वहाँ से जा ही रहा था। शैलजा ने उसे रोका और अभिनव के पास आ खड़ी हुई। साहिल ने अनुरोध किया, "माँ मुझे जाने दो प्लीज।"
- नहीं साहिल, चुपचाप खड़े रहो, हमारे मन में या घर में जो भी चल रहा है, वह अपनी जगह है लेकिन दुनिया के सामने लाने की जरुरत नहीं। दुनिया की नज़र में आज तक हम जैसे हैं वैसे ही रहने दो। नहीं तो दुनिया भर बातें होगी और हम खिलौने बनकर रह जाएँगे।" साहिल माँ की बातों को टाल नहीं सकता था इसलिए अनिच्छा से चुप हो गया।
पूरे धूमधाम से अवन्तिका का जन्मदिन मनाया गया। खा पी कर मेहमान सब चले जाने के बाद अंजली अपने घर के लिए निकल ही रही थी अवन्तिका ने उसे रोक लिया और विनती करते हुए कहा, "आंटी आज रात हमारे साथ रुक जाइए प्लीज आप से बात करके हमें अच्छा लगता है।"
- लेकिन अवन्तिका रात को मेरा यहाँ रुकना ठीक नहीं होगा। मुझे जाना चाहिए।"
- आँटी प्लीज।"अवन्तिका जिद्द करने लगी।
जैसे ही संजय के कानों यह बात पड़ी उसने तुरंत ही अवन्तिका को टोकते हुए कहा, "अवन्तिका, आंटी को जाने दो। किसीको ऐसे रुकने के लिए मजबूर नहीं करते।"
अचानक अवन्तिका ने संजय के हाथ पकड़कर कहा, "पापा प्लीज आंटी को रोक लो।"
- नहीं, बेटा आँटी का यहाँ रहना उचित नहीं, उन्हें जाने दो।" फिर अंजली की तरफ देखते कहा, "आप हमारे घर आई और हमारे लिए जो भी किया हम आप के आभारी हैं। आइए मैं आप को घर तक छोड़ देता हूँ।" कहते हुए गाड़ी की चाबी ले आया। अंजली दोनों से बिदा ले कर संजय के साथ जा कर कार में बैठी। संजय ड्राइव करते हुए कहा, "माफ़ करना अंजली मेरे बच्चे इतने बड़े होने के बाद भी ये नहीं जानते किस वक्त क्या कहना है।"
अंजली कुछ देर चुप रही, फिर धीरे से बोली, "वैसे बच्चों ने कुछ गलत भी तो नहीं कहा। मैं उनकी माँ की कमी पूरा तो नहीं कर सकती लेकिन उनका दुःख बाँट सकती हूँ। उसमें मुझे कोई बुराई नहीं दिखी। वे अभी बच्चे ही हैं बल्कि वे जिन मुश्किलों से गुजर रहे हैं ऐसे में उन्हें सख्त माँ की जरूरत है। अगर मेरे साथ अपना दुःख बाँटना चाहा तो इसमें गलत क्या है?"
- गलत है अंजली जी, उन्हें अब तक माँ के बिना रहने का आदत पड़ जानी चाहिए।" परेशान होकर कहा।
- आदत और जरूरत दोनों अलग-अलग चीज़े हैं संजय जी। उन्हें आदत पड़ चुकी है लेकिन इस उम्र की लड़कियों के हर सवाल का जवाब सिर्फ एक औरत ही दे सकती है। जिसकी जरूरत हर लड़की को होती है। एक औरत का दर्द एक औरत ही जान सकती है। वह एक माँ ही है जो इस उम्र की बच्चियों की जरूरतों को, मनोवेदना को समझ सकती है।"
संजय चुप रहा। अंजली फिर से बोली, "संजय, आप को अब तक दूसरी शादी कर लेनी चाहिए थी। रम्या के जाने के बाद आपकी जिंदगी वहीं रुक गई है। रम्या के प्यार में घुट-घुटकर जीने की आदत डाल ली है अपने लेकिन कम से कम बच्चों के लिए सोचना चाहिए था।"
- क्या करना था क्या नहीं करना था ये सब अब सोचने का कोई फ़ायदा नहीं। मेरे बच्चों को मुझे अपने ही तरीके से सँभालने दो। हमारे बीच में कोई आए मुझे बरदाश्त नहीं होगा। ये मेरा परिवार है, मेरे बच्चे हैं अगर उन्होंने अब तक माँ के बगैर जिया है तो आगे भी जी लेंगे। अगर उन्हें आप की आदत पड़ जाये तो फिर माँ की कमी मैं जिंदगी भर पूरा नहीं कर पाऊँगा।" कार को अंजली के घर के सामने रोकते हुए कहा, "रम्या आज भी मेरे लिए जिन्दा है, मेरे साथ हर पल है। उसका स्थान कोई नहीं ले सकता कोई भी नहीं। उस स्थान पूरा करने के लिए कभी मेरे बच्चे जिद्द करें तो मैं पूरा नहीं कर सकता।"
- मैं समझ सकती हूँ संजय, तुम रम्या को कितना चाहते हो। तुम्हारी जीवन मे रम्या का स्थान कोई पूरा नहीं कर सकता। ये मुझसे ज्यादा कौन जान सकता है? रम्या के बाद भी इतने साल अकेले दो छोटे बच्चों को सँभालना आसान बात नहीं थी तुम्हारे लिए।" अंजली कब आप से तुम कहकर संबोधन करने लगी दोनों को ध्यान नहीं था।
"यही मेरा भय है कि अगर वे तुममें अपनी माँ का सहारा चाहने लगे तो वह मेरे बस की बात नहीं। आशा है तुम समझ सकती हो।"
"अनन्या के साथ जो हादसा हुआ उसे सँभालने के लिए प्यार और हिम्मत की आवश्यकता है। मैं उसकी माँ बन नहीं सकती लेकिन माँ का प्यार तो दे सकती हूँ। रम्या की दोस्त होने के नाते उसके बच्चों को सांत्वना दे सकती हूँ। एक मनोवैज्ञनिक और एक स्त्री ख़ास कर रम्या की सहेली होने के नाते ये मेरा फ़र्ज़ है। मैंने वही किया। अगर वे मुझसे थोड़ा सा दर्द बाँट लिए तो क्या गुनाह कर दिया?"
- आई ऍम सॉरी अंजली पर वे तुममें अपनी माँ को ढूँढ़ने लगे हैं , यही मेरा डर है। मुझे माफ़ कर दो। परिशानी में मैंने कुछ कह दिया।" संजय पछताते हुए कहा।
" मैं इन बंधनों को त्याग चुकी हूँ संजय। कभी अनजाने में तुमसे प्यार हो गया था लेकिन .... अब मेरी ऐसी कोई इच्छा नहीं है कि फिर शादी के सपने देखूँ। वह सब बीती बातेँ हैं।"
" अंजली,"आश्चर्य हो कर उसकी ओर देख रहे संजय को देख उसकी बातों पर जैसे ब्रेक लग गई। तभी वह समझ गई उसने भावनाओं में बहकर जो इतने दिन से अपने मन में दबाए रखी थी उस बात को अनजाने में कह गई है। वह घबराकर कार का दरवाजा खोलने की प्रयत्न की। संजय कार का इंजिन बंदकर लॉक खोल दिया। वह आश्चर्य से अंजली की ओर देख रहा था।
अंजली गाड़ी से उतर कर अति शीघ्र वहाँ चले जाना चाहा। उसे संजय की ओर देखने की हिम्मत नहीं थी। वहाँ से बड़े-बड़े कदमों में घर की ओर बढ़ गई अंजली। अपने कमरे में जाकर ग्लास भर पानी एक ही साँस में पी गई।
- "बहुत खुशनसीब है रम्या, जिसकी जाने के बाद भी संजय उसी की याद में जी रहा है। अन्य कोई होता तो साल, डेढ़ साल में फिर से शादी कर लेता और पहली पत्नी की याद पर एक फटे हुए पन्ने की तरह कहीं धूल जम गई होती या तो तस्वीर बनकर दीवार पर लटकती भर रह गई होती। लेकिन रम्या आज भी संजय के लिए प्यार बनकर जी रही है।"
##
अवन्तिका के जन्मदिन की पार्टी से लौटकर साहिल सोफ़े पर बैठ गया। शैलजा किचेन से पानी ले आई। सूफ़ी कपड़े बदलने अपने कमरे में चली गई।
- बेटा पानी पियेगा?
- ठीक है माँ दे दीजिये।
शैलजा ग्लास में पानी लाकर दी और किचेन में जा ही रही थी साहिल ने पीछे से बुलाया। "माँ एक मिनट सुनो ..."
- क्या बात है बोलो।
- ऐसे नहीं यहाँ आकर मेरे पास बैठो फिर बताऊँगा।
- क्यूँ कोई गर्ल फ्रेंड के बारे कहना है तो बोलो जरूर सुनूँगी। नहीं तो सुबह ही बताना, मुझे नींद आ रही है मैं चली सोने। नाटक भंगिमा करते बोली।
- माँ .. बैठो ना, प्लीज।
- बोलो गर्ल फ्रेंड..?मुस्कुराते पूछा।
- अच्छा ठीक है ऐसे ही समझो।
- तो बोलो। कहकर साहिल के पास आ बैठी।
- माँ पार्टी कैसी लगी?
- देख साहिल तू बात टाल रहा है, मैं जाती हूँ।
- नहीं माँ बैठो। कहकर शैलजा के दोनोँ हाथ पकड़ कर सोफ़े पर बिठाया और खुद उसकी गोद में सिर रखकर उसके पैर के पास बैठ गया।
- माँ मुझे किसीसे प्यार हो गया है। मेरा मतलब ये प्यार है कि नहीं मैं नहीं जानता पर कोई मुझे बहुत अच्छी लगने लगी है।
- अच्छा कौन है वह? मेरे बेटे को इतनी पसंद आ गई ?
- माँ.. वह..वो..
- मैं बताऊँ? शैलजा ने पूछा
साहिल चकित होकर शैलजा की ओर देखा, "आप को कैसे पता होगा? "
- हाँ .. क्यों मैं नहीं जानती मेरे बेटे की पसंद.. क्या है?
- माँ तुम भी न..
- बोलो बताऊँ
- माँ, वह अनन्या है ना.. वह..
साहिल की बात को बीच में ही टोक कर शैलजा बोली, "हाँ अनन्या, मैं तो तभी पहचान गई थी जब अनन्या को देख तेरे आँखे चमक उठे थे। मैं तभी पहचान गई थी जब अनन्या के घर जाने के लिए मेरा बेटा उतावला हो रहा था। तेरी माँ हूँ, अपने बेटे की पसंद को जान नहीं सकती? बोल।
- "माँ " साहिल अपने चेहरे को शैलजा की गोद मे छुपाकर मुस्कुरा दिया।
- क्यों मैंने ठीक कहा ना?
- हाँ माँ, आप बिलकुल ठीक पहचान गई तभी तो आप ने सीधे गर्लफ्रैंड का जिक्र किया। माँ आप को अनन्या कैसी लगी।
- हम्म! चेहरे से तो ठीकठाक है और घर के लोग भी बड़े अच्छे हैं। मुझे तो पसंद है कहो तो बात चलाऊँ?
- नहीं अभी नहीं पर ये बताओ माँ आपने कैसे पहचान लिया?
- कैसे नहीं पहचानूँगी, तेरी माँ जो हूँ, तेरे दिल की बात अच्छे से जान सकती हूँ। अच्छा ये बता कि ये बात अनन्या जानती है?
- पता नहीं माँ।
- पता होना जरूरी है बेटा, पहले अनन्या को बता दे कि तू उससे प्यार करता है।
- अब नहीं माँ, अभी वह बहुत बड़ी मुश्किल से बाहर निकली है। अगर अब इस बात को बताऊँ कहीं उसे ये ना लगे कि उसको बचाने के लिए हक़ से प्यार जता रहा हूँ या उसे बचाने की कीमत माँग रहा हूँ। और माँ मैं नहीं चाहता कि वह किसी एहसान के बदले मुझसे प्यार के लिए हाँ कहे।
- ठीक है बेटा जो तेरा दिल कहे पर साहिल ऐसे बातें बहुत दिन तक छुपाये रखना ठीक नहीं। समय देखकर बता दे उसे। आखिर मेरे बेटे की पसंद है।
- जरूर माँ।