Ek Duniya Ajnabi - 9 in Hindi Moral Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | एक दुनिया अजनबी - 9

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एक दुनिया अजनबी - 9

एक दुनिया अजनबी

9-

माँ विभा अपने बेटे का व्यवहार देखकर बहुत दुखी होती लेकिन जब भी वह उस से बात करने की कोशिश करती, कहाँ कोई सही उत्तर मिला उसे ? पति-पत्नी के बीच आपसी व्यवहार का न तो सही तरीका था, न ही सलीका ! हर रिश्ते में मित्रता व सम्मान का होना बहुत ज़रूरी है जिसे हम हवा में फूँक से उड़ा देते हैं फिर उसकी चिंदियों को असहाय बन घूरते रह जाते हैं |

प्रखर के पिता भी अपने जीवित रहते इस बात से परेशान ही रहे कि यह उनका ही पुत्र है जिसने अपने संस्कारों की चिंदियाँ बनाकर उड़ा दी हैं |कितना भी प्रेम क्यों न हो, अपने संस्कारों को किसीके भी प्रभाव में आकर चूर-चूर कर देना ! बड़ी असहाय स्थिति हो जाती है |

संबंधों की ईमानदारी बहुत ज़रूरी है, चाहे वह कोई भी संबंध क्यों न हो | पुत्रवधू से क्या और क्यों कोई उम्मीद की जाए ? जो थोड़ा -बहुत अधिकार था, वह उनका अपने पुत्र पर हो सकता था जब वही नहीं तो किसी दूसरे की बच्ची पर दोषारोपण करने का औचित्य क्या था भला !

प्रखर के माता-पिता ने सदा एक-दूसरे का सम्मान किया था, एक 'रिगार्ड' था जो घर की दीवारों के बीच बिचौलिया बन मुस्काता रहता | प्रखर के पिता में भी पुरुष का स्वाभाविक अहं खनखनाता, यह अहं बहुत ही प्राकृतिक है जो थोड़ा-बहुत सबके भीतर छिपा बैठा रहता है , विभा आहत भी होती किन्तु जीवन चलाने के लिए, संबंधों को बचाए रखने के लिए कुछ बातों को आत्मसात करना ज़रूरी शर्त है परिवार को जोड़कर रखने की |

प्रकृति ने स्त्री व पुरुष में जो अंतर रखा है, उसके भी तो कारण हैं | उन्हें समझकर यदि जीवन की गाड़ी चले तो पटरी पर रहने में कोई परेशानी नहीं होती किन्तु ----

यह सामंजस्य परिवार के लिए ज़रूरी है अन्यथा विवाह करने की ज़रुरत ही क्या है ? और विवाह हो भी गया तो बच्चे ? उन्हें इस दुनिया में लाने का अधिकार ऐसे माता-पिता को हरगिज़ नहीं जो उन्हें दोनों का प्यार, दुलार न मिल सके |अपने आप कुछ भी करो, बच्चों को दोनों की ज़रुरत है, न कि उनके कोमल मन पर थेगड़ी चिपकाने की !

बड़ी बड़ी डींगें हाँकने वालों में अहं होता है, यह सच लगता है | अब ज़्यादा या कम ? वह दीगर बात है | ज़रूरी तो नहीं यह अहं पाला ही जाए, उसे इतना विशाल दैत्य का सा आकार दिया जाए , ख़ुद क्यों नहीं समझ पाता मनुष्य अपनी सीमाएँ !

प्रकृति ने स्त्री-पुरुष को अलग-अलग गुणों, दुर्गुणों से सँवारा है, यह मनुष्य पर निर्भर करता है कि वह गुणों को अधिक सजग रखता है अथवा दुर्गुणों को अधिक बढ़ावा देता है |

सब जानते हैं गृहस्थी की गाड़ी एक पहिए पर नहीं चलती, उसे बैलेंस करने के लिए दोनों स्वस्थ्य पहियों की आवश्यकता है | 'ऐडजस्टमेन्ट' नाम की चिड़िया का घर की चारदीवारी के अंदर चहचाना इतना ही ज़रूरी है जितना मुख में पूरे दाँतों का होना | वरना देह का घर कच्चे खाने को निगलने से बीमार पड़कर जर्जर होने का खतरा तो पक्का !