लहराता चाँद
लता तेजेश्वर 'रेणुका'
25
साहिल जब घर पहुँचा शैलजा नाश्ता और चाय ले आई। रोज़ की तरह अभिनव घर पर नहीं था। अभिनव की याद आते ही उस पर किसी और का साया साहिल को अंदर ही अंदर असहनीय महसूस करा रहा था।
- माँ वो कहाँ है?" उसके पूछने के ढंग से उसकी नाराज़गी साफ़-साफ़ नज़र आ रही थी।
- कौन ? पापा.. वह अभी तक नहीं आये। फ़ोन आया था कि देर होगी।"
साहिल गुस्से में आकर तुरंत बाइक लेकर बाहर चलगया। जब वह कॉलेज पहुँचा कॉलेज बंद हो चुका था। वह वॉचमैन से पूछा, "पापा अंदर हैं?"
- नहीं, वह तो कब के चले गए।"
- ठीक से पता करके बताओ शायद अंदर काम कर रहे हों।"
- नहीं सर, कालेज रोज़ 8बजे बंद हो जाता है। 8 बजे ने के बाद कोई नहीं रहता कॉलेज में पीओन चाबियाँ देकर चला भी गया है। पिछले 2 साल से नौकरी पर हूँ, बहुत कम ऐसा होता है कि अभिनव सर कॉलेज में रुकें हों। हाँ जब कोई परीक्षा नज़दीक हो, कोई पढ़ाई होती है या कोई प्रोग्राम हो तो अलग बात है। अभी ऐसा कुछ है भी नहीं। चाहे तो आप लाइब्रेरी में जाकर पताकर सकते हो।
साहिल वापस घर लौट आया। अपने कमरे में अभिनव का इंतज़ार करने लगा। उसका गुस्सा चरम सीमा पारकर चुका था। क्या करेगा क्या नहीं कुछ सूझ नहीं रहा था। अगर डैड उस औरत के साथ बाहर घूमने लगे हैं इसका मतलब बात बहुत दूर पहुँच गई है। लोक लाज की परवाह न करते हुए दूसरी औरत के साथ बाहर जाने का मतलब क्या हो सकता है? कहीं पापा ने चोरी छिपे शादी तो नहीं करली है? साहिल काँप उठा। "माँ, माँ अब भी कितना प्यार करती है, भरोसा करती है डैड पर, और डैड...?' अगर माँ को पता चलेगा तो क्या गुजरेगी उनके दिल पर? कैसे बताएगा उन्हें डैड के बारे में? उनका दिल तो टुकुड़े हो जाएगा।" मन ही मन वह बुदबुदाने लगा।
तभी शैलजा ने साहिल को आवाज़ दी, "बेटा इधर तो आ।"
"हाँ माँ बोलो मेरे लिए क्या आदेश है।" सिर झुकाकर पूछा।
शैलजा ने उसका कान पकड़े और कहा, "आदेश? ठीक है आदेश ही है, जाओ बालक मेरे लिए एक कप गरमागरम चाय बनाकर ले आओ।"
"जैसे आपकी आदेश राजमाता। अभी चाय के कप के साथ बंदा हाज़िर हो जाएगा।" कहकर मुस्कुराया।
"चल छोड़ नाटकबाज़ी।" कहते हुए शैलजा साहिल को एक कवर देते हुए कहा, "साहिल, सुबह तेरा कोई पत्र आया था, देना भूल गई, देख तो कहाँ से है।"
साहिल खोलकर देखा और एक कोने रख दिया।
- "अरे बेटा क्या हुआ ?"
- "माँ कुछ दिन पहले अमेरिका के एक इंस्टिट्यूट में दरखास्त भेजी थी, उसका रिप्लाई है। अब कोई काम का नहीं।"
- "क्यों क्या हुआ?"
- "अब आगे पढ़ने का मन नहीं है माँ।"
- "क्यों नहीं पढ़ेगा?"
- "बस यूँ ही माँ, अब जाने दे बाद में सोचते हैं।"
- "लेकिन क्यों? तुमने मुझसे वादा किया था कि हालात कोई भी कैसा भी हो तुम पढ़ाई नहीं छोड़ोगे।" शैलजा अलमीरा में कपड़े रखते हुए पूछा।
- "हाँ माँ, पर अब थक गया हूँ, सुबह सोचते हैं। अभी आप क्या कर रही हैं?"
- "कपडे घड़ीकर रही हूँ कुछ चाहिए था तुझे?"
- "नहीं माँ बस यूँ ही, आप से बात करने को मनकर रहा था।"
- बोल ना! क्या बात है? कुछ परेशान नज़र आ रहा है।"
- डैड कब से घर देर आने लगे ?"
अचानक इस सवाल से वह कपड़ों को एक तरफ करके साहिल की और देखा। ऐसा सवाल साहिल से सुनकर वह साहिल के पास आकर बैठी। "बस कुछ ही दिनों से.. काम भी कुछ ज्यादा है न इसलिए। आ जाएँगे तू चिंता मत कर।"
- नहीं माँ कॉलेज जाकर देख आया हूँ डैड वहाँ कोई नहीं हैं। कॉलेज 8 बजे बंद हो जाता है ऐसा कोई जरूरी काम है नहीं जिसकी वजह से डैड को रुकना पड़े।"
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साहिल ने घड़ी देखी 9बज रहा है। कार में कॉलेज से घर पहुँचने को ज्यादा ज्यादा आधे घंटा का समय लगता है। फिर डैड रोज़ साढ़े 9 बजे तक कहाँ होते हैं सोचते हुए वापस अपने कमरे की तरफ जा ही रह था तभी अभिनव कमरे में कदम रखा।
- "क्या बुराई हो रही है मेरे बारे में?" अभिनव ने मुस्कुराते हुए पूछा ।
- "कुछ नहीं है अभिनव, बस यूँ ही साहिल कुछ पूछ रहा था।"
- "क्या साहिल क्या बात है?"
- "अब तक कहाँ थे आप ?"
- "कुछ काम था, लेकिन तू क्यों पूछ रहा है?"
- "आप इतनी देर तक घर न पहुँचे तो चिंता होती है ।"
- "अच्छी बात है पर बेटा मैं तेरा बाप हूँ तुझे मेरी चिंता करने की आवश्यक नहीं। शैलजा मेरे लिए एक कप हरी चाय ले आना। शैलजा को आदेश देकर वह अपना टाय को गले से उतारते हुए कहा।
- "आप घर देर से आने लगे हैं पापा।"
- "अच्छा, हुम् ... अच्छी बात है, इसका मतलब घर की जिम्मेदारी ले रहे हो। लेकिन मेरे बारे में चिंता न करो तुम्हरी माँ और बहन की चिंता करो बहुत है। जाओ अपने कमरे में आराम करो।" टाई को पलँग पर रखते हुए कहा।
- "आप मेरे पिता हैं आप की चिंता भी होती है।" बिना हिले वहीं खड़ा रहा और बड़ी ही नम्रता से कहा।
- "पर मैं बच्चा नहीं हूँ। मुझे पता है कब घर आना है। पर आज क्या हुआ तुझे पुलिस जैसे प्रश्न करने लगे हो? मेरे फिक्र छोड़ो जाओ फ्रेश हो जाओ साथ में खाना खाते हैं।" विषय बदलते हुए मुस्कुराते कहा।
- "मुझे जवाब चाहिए पापा आप अब तक कहाँ थे?" साहिल जिद्द नहीं छोड़ी।
- "अब मेरा काम तुझे बताऊँ? हो क्या गया है तुझे, तबियत ठीक तो है? सुबह भी मैं कुछ पूछ रहा था और तू बिना कुछ जवाब दिए चला गया।" साहिल की तरफ घूमकर सीधे उसकी नज़रों में नज़र मिला कर पूछा।
- "क्योंकि मैं जो भी कर रहा हूँ अच्छे से जानता हूँ।"
- "क्या मतलब है तेरा? मैं नहीं जानता कि मैं क्या कर रहा हूँ, मेरे इतने बुरे दिन नहीं आए कि हर बात तुझे बतानी पड़े।" इस बार अभिनव ने झल्लाते हुए कहा।
- "हाँ आप नहीं जानते हो आप क्या कर रहे हो।"
- "ठीक है तू बता मैं क्या नहीं जानता?" अभिनव की बात खत्म नहीं हुई थी कि शैलजा की चूड़ियों खनक से दोनों चुप हो गए। शैलजा चाय ले आई।
- "क्या हुआ दोनों चुप हो गए। मैं भी तो जानूँ क्या बात हो रही थी?" दोनों की ओर देखते पूछा।
- ऐसी कोई बात नहीं है। अभिनव चाय पीने लगा। साहिल असहज इधर-उधर घूमने लगा।
- साहिल बात क्या है? कुछ तो है मुझसे छुपाया जा रहा है।
- शैलू तुम अंदर जाओ ये हम बाप बेटे की बीच की बात है। मुझे बात करने दो, मैं भी जानना चाहता हूँ।" अभिनव ने शैलजा को जाने को इशारा करते हुए कहा। दोनों का गुस्सा चरम पर देख वह जाने को तैयार नहीं थी। लेकिन अभिनव के कहने पर वहाँ से चली गई।
शैलजा के जाने के बाद साहिल ने पूछा, "कल शाम आप कहाँ थे डैड?"
- "किसी काम से बाहर था।
- "किस काम से कहाँ गए थे डैड?
- "तू मुझसे ऐसे क्यों पूछ रहा है?
- "कुछ नई बात पता चलती है तो पूछना पड़ता है।
- "मत भूल कि तू मेरा बेटा है बाप नहीं। ऐसे सवाल कर रहा है जैसे कि मैंने कोई गुनाह कर दिया हो।
- "हाँ, आप ने गुनाह किया है डैड।
- "क्या मतलब?"
- "कल शाम को आप किसके साथ थे डैड?"...
- "क्या मतलब? अब मैं कहाँ जाऊँ क्या करूँ तुझको सफाई देने की नौबत आ गई।" अभिनव ने हड़बड़ा के कहा।
- "अपने दिल से पूछिए डैड, क्या आपने माँ के साथ गलत नहीं कर रहे हैं?
- "कैसी बातकर रहा है साफ़-साफ़ बता घुमा फिरा के बात मत कर।"
- "ठीक है साफ़-साफ़ पूछ रहा हूँ बताइए कल शाम को आप किस के साथ थे?"
अभिनव के चेहरे का रंग बदलने लगा। वह साहिल के हाथ पकड़ कर पलँग पर बिठाए - "पहले तुम बैठो और शांत हो जाओ। फिर पूछो तुम्हें क्या जानना है।"
- "मैने आप को कल ब्रिज के पास किसी के साथ देखा है। कौन थी वह आपके साथ ?"
- "अच्छा बस इतनी सी बात वह प्रोफ़ेसर नीलिमा है।"
- "वह आप के साथ क्या कर रही थी?"
- "बस कुछ काम से बाहर गया था वह वहाँ मिल गई। हमारे अलावा और लोग भी थे वहाँ।" साहिल के मन के शक को पहचान गया था अभिनव। बात को हल्के से उड़ाने की कोशिश की।
- "हाँ थे लेकिन आप की बाँहों में बाँहें डाले ... " आगे कहने से उसकी जुबान ठिठक गई।
- "साहिल तू मुझे गलत समझ रहा है, ऐसी कोई बात नहीं बेटा। भरोसाकर मुझ पर...", अनुनय करते हुए कहा।
- "आज तक भरोसा ही तो किये हैं न डैड, हम सब ने और माँ ने भी। हम अभी इतने भी बच्चे नहीं हैं कि एक पुरुष का पराये स्त्री से कितनी नज़दीकियाँ होनी चाहिए नहीं जानते और..... माँ, माँ ने तो आज तक आप ही को प्यार किया है ना पापा, फिर कैस आप माँ के प्रति अन्यायकर सकते हैं ?"
- बेटा धीरे बोल माँ सुन लेगी। ये सब बातें घर पर नहीं होनी चाहिए। इस बारे में बाद में बात करते हैं।
- "नहीं अभी इसी वक्त बात होगी। जब से आप को उस औरत के साथ देखा है मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया है। हाथ पकड़कर चलाने वाले पापा, सही गलत हमें सिखाने वाले पापा अगर खुद गलत रास्ते पर जा रहे हैं तो हमें रोकना है ...! और माँ, आखिर माँ के साथ इतना बड़ा धोखा क्यों डैड? वह आप पर बहुत भरोसा करती है ना डैड। उनके विश्वास को तोड़कर आप ऐसे कैसे कर सकते हैं?" सिर पर हाथ रखकर पलँग पर धड़ल्ले से बैठ गया। उसकी आँखों के सामने अंधकारमय भविष्य नज़र आ रहा था।
- "साहिल, बेटा चुप हो जा। माँ सुन लेगी। "
उसे माँ की फिकर थी। अगर माँ सुनेगी तो वह कैसे बरदाश्त कर पाएगी? लेकिन पापा सब हद पार कर गए ..... साहिल गुस्से और मजबूरी से घेरा हुआ था। वह रो भी नहीं सकता था। उसे पता था इस वक्त बहुत ही समझदारी से काम लेना होगा।
- "इस बारे में माँ से कुछ मत बोलना प्लीज।" साहिल का हाथ अपने हाथों में लेकर अनुनय करने लगे। साहिल आँखें पोंछते रह गया। कहता भी क्या, उम्र में छोटे होकर भी पापा से ऐसी बातें करनी होगी उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।
- "देख साहिल अगर तेरी माँ को पता चलेगा तो वह मुझसे हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ देगी, क्या तुम यह चाहोगे कि माँ मुझसे दूर चली जाए।"
तब सीढ़ियों पर काँच के टुकड़े होने के आवाज़ से दोनोँ चुप हो गए। शैलजा के हाथ की चाय की प्याली गिरकर टूट चुकी थी। वह कमरे में आई।
- " क्या बात हो रही है, मुझे कोई बताएगा?" उसे समझ में आ गया था कोई गंभीर विषय पर बात हो रही है, वरना दोनों की आवाज़ इस तरह दबी हुई पर गूढ़ नहीं होती। बहुत हँस खिलकर दोनों चर्चा करते। शैलजा की धड़कनों की आवाज़ उसे बखूबी सुनाई दे रही थी।
- "साहिल तू बता क्या बात हो रही है डैड से? क्या हो गया है तुझे? तुम दोनों को इस तरह बोलते कभी सुना नहीं मैंने। कौन किसे धोखा दे रहा है? बोलो अभिनव ... " शैलजा बीच में बोल पड़ी।
- "कुछ नहीं शैलू साहिल को कोई गलतफहमी हो गयी है और कुछ नहीं। मैं समझा दूँगा उसे तुम चिंता मत करो। "
- "क्या गलतफहमी क्या समझाओगे मुझे बताओ अभिनव..."
- "कुछ नहीं शैलजा.. वो ... वो"
- "क्या वो वो लगा रखा है साहिल तुम बोलो सच क्या है?"
- "जब नयी-नयी बातें पता चलती है न माँ तो ऐसी ही बात करनी पड़ती है। आप से कोई भी धोखा करे मैं बरदाश्त नहीं करुँगा। वह पापा ही क्यों न हो।"
- "कैसा धोखा?" शैलजा के पैर के नीचे से जमीन खिसक रही थी। उसने जो भी देखा था और पापा से जो भी बातें हुई सारी बातें शैलजा को बता दिया। शैलजा ने ठोस जमीन पर खड़े होने की शक्ति खो दी उसकी पाँव लड़खड़ाने लगे। साहिल ने शैलजा को सँभाला।
सारी बातें उजागर हो चुकी थी। एक तूफान के बाद सन्नाटा राज कर रहा था। अभिनव के पास कहने को कुछ नहीं बचा था। साहिल ने शैलजा को धीरे से पकड़ कर उसके कमरे में ले गया। पलँग पर बिठाकर पानी पिलाया और आराम करने को कहा। अब माँ की जो भी फैसला होगा वही उसे मंजूर होगा सोच कर वह बाहर आ गया। शैलजा के सामने सारी सच्चाई खुल जाने से अभिनव चुप था। अभिनव को शैलजा की नज़रों से नज़र मिलाना दुश्वार था। वह चुपचाप वहाँ से चला गया।