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इसी उदासी भरे माहौल में पाँच महीने बीत गए और एक दिन सुबह सोकर उठी धम्मो को अहसास हुआ कि वह फिर से माँ बनने वाली है । अम्मा जवाई की फिर से बुलाहट हुई और उसने खबर की पुष्टि कर दी तो घर में खुशियाँ लौट आई । पर अब धम्मो बहुत कमजोर हो गयी थी । ऊपर से उसके पैरों और चेहरे पर सूजन आ गयी । पैर मन मन के हो गये थे । टाँगे मानो बेजान हो गयी । खङी होती तो चक्कर आने लगते । चेहरे पर झांईयाँ हो गई । उसे फौरन सरकारी अस्पताल ले जाया गया । डाँक्टर ने परीक्षण किया तो सुबह शाम के लिए गोलियाँ लिख दी और हिदायत दी कि अधिक से अधिक आराम कराओ और खुराक का खास ख्याल रखो । सब ठीक हो जाएगा । पर कहते है न, “ कंगाली में आटा गीला “, वही बात यहाँ चरितार्थ हुई । लाख सावधानियों के बावजूद चौथा महीना आते ही गर्भपात हो गया । दुरगी को लगता, इस बार पक्का पक्का लङका रहा होगा । अच्छी चीजें मुश्किल से ही मिलती हैं । रवि को पहली बार कुछ खोने का अहसास हुआ और पत्नि से हमदर्दी भी । चाचा और चाची निरपेक्ष रहे । शायद भीतर ही भीतर एक और प्राणी के खर्चे से बच जाने का सुकून रहा हो पर प्रत्यक्ष रूप से वे शांत दिख रहे थे । धर्मशीला के दुख का कोई अंत नही था ।
मंगला और सुरसती को इस हादसे की खबर भेजी गयी । दोनों माँ बेटी खबर मिलते ही रात की गाङी से पहुँची । धर्मशीला के कई दिनों से रोके हुए आँसू आज बाँध तोङ गए । नानी के गले लग वह फूट - फूटकर रो पङी । काफी रो चुकने के बाद जब वह हलकी हुई तो घर परिवार की याद आई । उसने एक एक का नाम लेकर सब के हाल चाल पूछे । पूरा दिन बातों में बीत गया । मंगला ने समधन से बच्ची को साथ ले जाने की इजाजत माँगी । किसी को भला क्या ऐतराज होता । तुरंत तैयारी हुई और ये दोनों रात की गाङी से धर्मशीला को अपने साथ ले आई । सुबह रेलगाङी सहारनपुर पहुँची और वहाँ से ये तीनों पैदल चलकर घर । माँ और नानी का कल पूरे दिन का निर्जल व्रत हो गया था । बेटी के घर का पानी भी पीना हराम था तो दोनों ने उस शहर का पानी भी नही लिया था । अब नहा धो कर तुलसी को और महादेव को जल चढा दोनों ने लस्सी के गिलास के साथ नमक का परांठा खाया । धर्मशीला ने गरम पानी से नहा के मलाईदार दूध का कङे वाला गिलास खत्म किया तो उसके भीतर छिपी लङकपन वाली बच्ची जाग उठी । नानी और माँ के आँचल की छाया और भाइयों के प्यार और दुलार में धीरे धीरे भोजन उसकी देह को लगने लगा । दो महीने में ही वह स्वस्थ हो गयी । चेहरे की रंगत लौट आई । देह भर गयी और पुराना खिलंदङपन लौट आया । सुबह जब वह मधुर स्वर में तुलसीचौरा की परिक्रमा करते हुए कमलनयनम स्तोत्र गाती
श्री कमल नेत्र कटि पीताम्बर
अधर मुरली गिरिधरम
मुकुट कुंडल करल कुटिया
साँवरे राधेवरम
कमल नेत्र कटि पीताम्बर
अधर मुरली गिरिधरम
मुकुट कुंडल करल कुटिया
साँवरे राधेवरम
तो हवा रुमकना बंद कर देती, चिङिया चहकना भूल एकटक उसे देखती रहती । हर कोने में पवित्र ऊर्जा बिखर जाती ।
रवि इस बीच दो बार आ चुके थे और हर बार उसकी मनस्थिति देख संतुष्ट हो लौट जाते । दशहरा का त्योहार नजदीक आया तो मुकुंद ने पत्र भेजा – उम्मीद है कि आयुष्मति धर्मशीला अब स्वस्थ होंगी । दीवाली आ रही है । रवि को भेज रहे हैं । आप बहु को विदा कर दें ।
तुरंत विदाई की तैयारियाँ शुरु कर दी गयी । रवि जिस दिन पहुँचे, संयोग से उसी दिन लज्जा और नरेश भी बच्चों समेत आये हुए थे । नरेश शौंकीन मिजाज आदमी था । उसके साथ रवि और धम्मो ने पहली बार पिक्चर देखी । रामराज्य नाम की फिल्म थी । इन दोनों के सामने सपनों का संसार खुल गया । उसके बाद के दिन शाम को रामलीला देखने और रात सिनेमा देखने में बीते ।
अक्सर दोनों साढू सिनेमा देखने निकल जाते । तब टिकट के चार आने लगते थे । कभी कभी दोनों बहनें भी साथ चली जाती । ज्यादातर धार्मिक फिल्में हुआ करती थी । कभी कभी सामाजिक सरोकार की फिल्में भी आती । इस सबमें सात दिन कैसे गुजर गये, पता ही नहीं चला । सातवें दिन भारी मन से ये दोनों जोङे विदा हुए । नरेश और उसका परिवार अमृतसर के लिए और रवि और उसकी पत्नि गोनियाना के लिए । जाने से पहले दोनों बहने गले मिल रोती रही । दोबारा पता नहीं कब मिलना होगा । फिर फिर मिलती, अलग होती फिर एक दूसरे के गले लग जाती । वह तो गाङी प्लेटफार्म पर आ गयी वरना यह क्रम पता नहीं कितनी बार दोहराया जाता और कितनी देर तक जारी रहता ।
खैर गाङी में बैठे तो ऊपर की बर्थ पर जगह मिल गयी । अधलेटे बैठ दुख सुख करते दोनों ने दस घंटे का सफर चुटकियों में पूरा कर लिया । घर पहुँचे तो एक खुशखबर इंतजार कर रही थी । फरीदकोट में नहर बनाने का काम चल रहा था । रवि को मजदूरों का हिसाब -किताब करने का काम मिल गया था । मासिक वेतन ठहरा बीस रुपए नकद । दुरगी ने बेटे की नजर उतारी । पुरखों को पाँच आने का प्रशाद चढाया । पास पङोस में गुङ बाँटा । सौ शगुण करके अगले दिन रवि फरीदकोट के लिए रवाना हुआ । काम उसे रुचिकर लगा तो वह वहीं परिचित के घर रह गया । एक महीने बाद वेतन मिला तो एक कमरा तीन रुपया माहवार पर ठीक करके वह वापिस लौटा । आने से पहले माँ और चाची के लिए लेडामिन्टन के सूट खरीदना नहीं भूला । अगले दिन दोनों पति पत्नि थोङा बहुत घर गृहस्थी का सामान लेकर फरीदकोट रहने आ गए ।