Twelfth Fail - Anurag Pathak in Hindi Book Reviews by राजीव तनेजा books and stories PDF | ट्वेल्थ फेल - अनुराग पाठक

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ट्वेल्थ फेल - अनुराग पाठक

किसी ऐसी किताब के बारे में अगर पहले ही इतना कुछ लिखा..सुना एवं पढ़ा जा चुका हो कि उस पर लिखते वक्त सोचना पड़ जाए कि ऐसा क्या लिखा जाए जो पहले औरों ने ना लिखा हो। एक ऐसी किताब जो पहले से ही धूम मचा...पाठकों के समक्ष अपने नाम का झण्डा गाड़ चुकी हो। एक ऐसी किताब जिसका दसवाँ संस्करण आपके हाथ में हो। एक ऐसी किताब जो टीवी से ले कर अखबारों..पत्र पत्रिकाओं और यूट्यूब चैनल्स तक...हर जगह छाई हो। एक ऐसी किताब जिसकी तारीफ में सचिन तेंदुलकर, सुनील गावस्कर, राजकुमार हिरानी, विशाल भारद्वाज, आशुतोष राणा, मनोज बाजपेयी और अनुराग कश्यप समेत क्रिकेट..बॉलीवुड एवं मीडिया के बड़े बड़े दिग्गजों ने कसीदे गढ़े हों। दोस्तो...आज मैं बात कर रहा हूँ उस किताब की जिसकी टैगलाइन है...
"हारा वही जो लड़ा नहीं" याने के गिर कर उठते हैं शहसवार ही मैदान ए जंग में।

'ट्वेल्थ फेल' के नाम से जारी हुए इस उपन्यास को लिखा है अनुराग पाठक ने और इसमें कहानी है मनोज शर्मा की ज़िद...उसके जुनून और श्रद्धा से उसके बेइंतहा प्यार की। वो मनोज शर्मा जो कभी, बस जैसे तैसे कर के नकल के दम पर बारहवीं पास कर कहीं कोई छोटी मोटी नौकरी करने का सपना देखता था। वो मनोज शर्मा, जिसे कलैक्टर की सख्ती की वजह से बारहवीं में फेल होने पर मजबूरन गांव के सवारियाँ ढोने वाले खटारा टैम्पो में कंडक्टरी करनी पड़ी। वो मनोज शर्मा, जिसे खस्ताहाल टैम्पो को पुलिस थाने से छुड़ाने के लिए थानेदार के सामने गिड़गिड़ाना...रिरियाना पड़ा। वो मनोज शर्मा, जिसने कलैक्टर का रुआब देख, कुछ बनने..कुछ कर दिखाने की ठान ली। वो मनोज शर्मा, जिसकी कदम कदम पर अनेकों बार उसी के साथियों द्वारा ट्वेल्थ फेल होने की वजह से खिल्ली उड़ाई गयी।

उन्हीं तानों से प्रेरणा पा, जिसने पहले बारहवीं और फिर कॉलेज की परीक्षा पास कर दिखाई। वही मनोज शर्मा जिसे बेघर होने पर भिखारियों के साथ सड़क पर रात गुज़ारनी पड़ी और भूख से निबटने के लिए रेस्टोरेंट में बर्तन तक मांजने पड़े। वही मनोज शर्मा, जिसके रहने का ठिकाना ना होने पर उसे किसी के यहाँ खाना बनाने..सफाई करने से ले कर उसके कच्छे तक धोने पड़े। महीनों एक खंडहरनुमा लाइब्रेरी में महज़ इसलिए नौकरी करते हुए रहना पड़ा कि उसे तीन सौ रुपए महीने के साथ सर ढकने को एक अदद छत मिल सके। वही मनोज शर्मा जो बेईमानी का आरोप लगते ही लाइब्रेरी की नौकरी छोड़, आटे की चक्की में मजबूरन आटे के साथ धूल धूसिरत हो काम करने लगा।

इसमें कहानी है प्रेम में पागल उस मनोज शर्मा की जो अपने प्यार की एक झलक तक पाने को बिना कुछ सोचे विचारे ग्वालियर से अल्मोड़ा तक चला आया था। इसमें कहानी है उस मनोज शर्मा की जो अपने प्यार के चक्कर में पढ़ाई को नज़रंदाज़ कर अपने बेशकीमती दो साल गंवा बैठा। इसमें कहानी है उस मनोज शर्मा की जिसे दिल्ली में भूख और अपने सर्वाइवल के लिए कभी साथियों का खाना पड़ा तो कभी लोगों के कुत्ते तक घुमाने पड़े।

इसमें कहानी है विवेकानंद और उनके द्वारा स्थापित आदर्शों की। इसमें कहानी है ज़िद्दी..अड़ियल मगर ईमानदार बाप की। इसमें कहानी है मूक रह कर हमेशा हिम्मत का संबल बनी एक माँ की। इसमें कहानी है ऐसे अध्यापक की जो अपनी पल्ले से पैसे निकाल कर एक विद्यार्थी को देता है कि वह अपनी कोचिंग के पैसे भर सके। इसमें कहानी है वक्त पे काम आने वाले दोस्त के एहसान को हमेशा याद रखने वाले मनोज शर्मा की। इसमें कहानी है उस श्रद्धा की जिसे भावनाओं में ना बहते हुए इश्क और कैरियर में बैलेंस बनाना बखूबी आता है।

इसमें कहानी है उस ज़ुनूनी मनोज शर्मा की जिसने अपनी प्रेमिका की स्वीकारोक्ति के बाद एकदम से कायापलट कर दुनिया के सामने एक मिसाल कायम कर दी। इसमें कहानी है उस मनोज शर्मा की जिसने फर्श से अर्श तक पहुँचने के अपने सपने को मुकम्मल कर दिखाया।

कुल मिला कर एक ऐसी बढ़िया किताब जिसे हर उस व्यक्ति को पढ़ना चाहिए जो अपने जीवन में कुछ कर दिखाना चाहता है। इस उपन्यास के पेपरबैक संस्करण को छापा है नियोलिट पब्लिकेशन ने और इसका मूल्य रखा गया है मात्र 196/- रुपए जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट को देखते हुए बहुत ही जायज़ है। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए लेखक, प्रकाशक एवं मनोज शर्मा जी को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।