Aapki Aaradhana - 17 in Hindi Moral Stories by Pushpendra Kumar Patel books and stories PDF | आपकी आराधना - 17

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आपकी आराधना - 17


" बस.... इससे आगे तुम और क्या कर सकती हो चालाक लड़की। लेकिन अब इतना याद रख लो मनीष तुमसे सारे रिश्ते तोड़ चुका है और तो और उसने अपने लिये लड़की भी पसंद कर ली है "

कमला आंटी की इन बातों ने आराधना के हृदय मे गहरे आघात कर दिये और उसके हाथ से मोबाइल छूट कर नीचे गिर गया चारो तरफ अंधेरा सा छाने लगा और वह चक्कर खाकर नीचे गिर पड़ी।

............................................

होश आने पर उसने खुद को हॉस्पिटल मे एडमिट पाया। अमित उसके सिराहने पर ही बैठा था और माथे पर भी चिंता की लकीरें थी।

" अब कैसी हो आराधना ? "
सामने से आते हुए डॉक्टर लकड़ा ने पूछा।

" अभी ठीक हुँ मैम, लेकिन...."
उसने कराहते हुए पूछा।

" डोन्ट वरी आराधना, एक छोटा सा ऑपरेशन किया गया है। वैसे उस दवाई का असर इतना ज्यादा था कि आगे कुछ भी हो सकता था। फिलहाल तो तुम्हे कुछ दिनो का रेस्ट लेना पड़ेगा "
डॉक्टर ने आराधना से कहा।

" हाँ आराधना जी, आप बिल्कुल भी टेंशन मत लीजिए
मै आपके साथ हुँ न "
अमित ने आराधना की ओर प्यार भरी नजरों से देखते हुए कहा।

" कैसे चैन से रहुँ मै? मेरा बच्चा मुझसे छीन लिया गया। आपने सुना न अमित जी, कमला आंटी ने क्या कहा?
मनीष जी ने कोई और लड़की पसंद कर ली। मै तब तक तड़पती रहूँगी जब तक खुद उनसे पूछ न लूँ "
आराधना ने सिसकते हुए कहा।

" बिल्कुल आराधना जी, मै खुद आपको उनके पास ले कर जाऊँगा। लेकिन आपको पहले फिजिकली और मेंटली रूप से स्ट्रांग बनना पड़ेगा "

" अमित जी बिलकुल सही कह रहे हैं आराधना, आपने अभी -अभी अपना बच्चा खोया है और आपको भी रेस्ट की बहुत ज्यादा जरूरत है। बस कुछ दिन और फिर जो भी मेटर उसको आप दोनो सॉल्व करते रहना "
डॉक्टर ने आराधना के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

आराधना का मन बेचैन होता गया और रो -रो कर उसका बुरा हाल होता जा रहा था। न जाने कितने सपने देखे थे उसने इस बच्चे के लिये। एक पल उसे ऐसा लगा सब कुछ ठीक ही तो है अभी भी प्यार की वो अनमोल निशानी उसकी कोख मे है। मनीष तो आता ही होगा और पूछेगा उसकी वंशिका कैसी है? और वह इठलाते हुए जवाब देगी वंशिका नही जी हमारा वंश। लेकिन कुछ ही पलों मे उसे हॉस्पिटल की इस चाहरदीवारी ने एहसास करा दिया कि उसके सारे सपने अब चूर-चूर हो गये हैं और अब वह बिल्कुल अकेली है। उसकी ये हालत देखकर अमित की आँखे भी नम हो गयी। वह लगातार मिस्टर अग्रवाल और मनीष को कॉल करता रहा, मैसेज पर मैसेज छोड़ता रहा और उसे सिर्फ निराशा ही हाथ लगी।

हॉस्पिटल मे आराधना की देखभाल करने के लिये ही उसने कॉलेज से छुट्टी ले ली। दिन गुजरते जा रहे थे आराधना दिन रात बस इन्ही ख्यालों मे डूबी रही कि किस्मत फिर क्यों उससे रूठ गयी? कमला आंटी ने इतनी बड़ी चाल क्यों चली? क्या मनीष ने सच मे उसे भूला दिया? क्या अग्रवाल अंकल भी बदल गये? क्या फिर से मिल पायेगी अपने प्यार से?

....................................................
4 दिन गुजर गये हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद आराधना अमित के साथ भिलाई के लिये निकल पड़ी।
उसके दिल मे बस एक ही उम्मीद थी कमला आंटी की बात सच न निकले। आज तो मनीष को खुद जवाब देना पड़ेगा, आखिर ऐसी क्या वजह है? बीच राह पर यूँ मुँह मोड़ लेने का क्या मतलब? कस्मे वादे ऐसे बीच मे ही थोड़ी तोड़ दिये जाते हैं। सवालों और शिकायतों का पिटारा मन मे बाँध कर वह अमित के ही सहारे तो यहाँ आने की हिम्मत जुटा पाई। एक सच्चे मित्र की भांति अमित भी उसे हिम्मत देता और सब कुछ ठीक हो जाने की बात कहता। भिलाई शहर के ये रास्ते जैसे आराधना पर ही तंज कस रहे हो और पूछ रहे हो आखिर तुम मनीष के साथ क्यों नही आई? कहीं मनीष ने तुम्हे धोखा तो नही दे दिया? आराधना ने अमित से कहा कि पहले उन्हे श्रीराम वस्त्रालय ही जाना चाहिए।

" अरे! शॉप पर ये ताला कैसे?"
आराधना ने सामने की ओर देखते हुए कहा।

आराधना को कुछ समझ न आया, और उसने सामने चाय की दुकान पर जाकर ही पूछना ठीक समझा।

" अरे! आराधना बिटिया, कहाँ चली गयी थी तुम? अग्रवाल जी ने बताया था तुम कहीं और काम करती हो "
चायवाले यादव अंकल ने कहा।

" जी अंकल वो... मै कुछ दिनो के लिये "

" हाँ बेटी, बहुत दिनो बाद तुम्हे देखा। तुमने तो शादी भी कर ली। यही है ना तुम्हारे पति ? "

" नही - नही अंकल ये तो मेरे दोस्त हैं, अच्छा ये बताइये न शॉप क्यों बन्द है ? "

" बेटी शॉप तो कल से बंद है आज मनीष बेटे की सगाई जो है इसलिए सब बाहर गये है ।अग्रवाल हाऊस पर भी तुम्हे चौकीदार ही मिलेगा "

" क्या? मनीष जी की सगाई "

" हाँ बेटी तुम्हे नही बताया क्या उन्होने ? "

यादव अंकल की बातें सुनकर आराधना के नसों मे करंट सा भर गया और मानो उसकी साँस ही रुक गयी। उसने चौंकते हुए अमित की ओर देखा जो उसकी बगल मे ही खड़ा था।
अमित के चेहरे पर भी हवाइयां उड़ी हुई थी वह तो अब उसे झूठे दिलासे भी नही दे सकता था। फिर भी उसने कहा कि उन्हे एक बार अग्रवाल हाऊस जाकर देख लेना चाहिए।
........................................

यादव अंकल के कहे मुताबिक ही चारो ओर सन्नाटा और कुर्सी पर बैठा एक चौकीदार इस नजारे ने कमला आंटी की बात सच होने के संकेत दे दिये।
अग्रवाल हाऊस का ये गेट जहाँ आराधना ने अपना पहला कदम रखा था और उसे तो ऐसा एहसास हुआ था जैसे उसके आने पर ये गार्डन के फूल-पत्ते उसके स्वागत मे ही खिले हों और अपनी खुशियाँ बिखेर रहे हो। पर आज इस गेट पर लगे ताले को देखकर तो काटों की चुभन सी महसूस हो रही है। चौकीदार ने यहाँ भी तो वही खबर सुनाया जो ह्रदय को चीर कर किसी जहरीले बाणों की तरह निकल गये हो।


क्रमशः.......