Apne-Apne Karagruh - 8 in Hindi Moral Stories by Sudha Adesh books and stories PDF | अपने-अपने कारागृह - 8

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अपने-अपने कारागृह - 8

अपने-अपने कारागृह-7

एक दिन मम्मी जी नन्ही परी को तेल लगा रही थीं कि देवयानी आंटी का फोन आया । उन्होंने मम्मी जी से बात करने की इच्छा जाहिर की । उषा ने फोन मम्मी जी को दे दिया । मम्मी जी ने उनका उत्तर सुनते ही कहा,' बधाई देवयानी जी, मिठाई से काम नहीं चलेगा , पार्टी देनी होगी ।'

फोन रख कर मम्मी जी ने बताया कि शुचिता भल्ला दादी बन गई हैं । उनके पुत्र प्रियांश की पत्नी रत्ना को पोता हुआ है । मम्मी जी और वह बधाई देने पहले अस्पताल गए फिर देवयानी आंटी से मिलने घर पहुंचे । इस अवसर पर देवयानी आंटी की खुशी का ठिकाना न था । उनके थके- रुके कदमों में तेजी आ गई थी । मम्मी जी भी बेहद खुशी थीं । एक महीने के अंदर दो दो खुशियां … ।

जैसे ही शुचिता बहू रत्ना और पोते को लेकर घर आई ,मम्मी जी उससे मिलने गई । उनसे मिलते ही देवयानी ने उनसे कहा, ' देख क्षमा, कितना प्यारा बच्चा है । मेरे प्रियांश का ही प्रतिरूप है। केवल इस दिन के लिए ही मैं जीवित रहना चाहती थी । अब मुझे मृत्यु का भी कोई भय नहीं है । कल आए तो आज ही आ जाए । इसने मुझे सोने की सीढ़ी पर चढ़ा दिया है । शास्त्रों में लिखा है कि परपोता होने पर इंसान सोने की सीढ़ी चढ़कर स्वर्ग जाता है । ईश्वर ने मेरी सारी मनोकामना पूर्ण कर दी हैं ।'

' आप ऐसे क्यों कह रही हैं देवयानी जी ? अभी तो आपको इसे अपनी गोद में खिलाना है, चलते हुए देखना है ।'

' हाँ क्षमा इच्छा तो है इसे अपने हाथों से खिलाऊँ, इसे चलते देखूँ ... देखो ईश्वर को क्या मंजूर है ।'

देवयानी की बात सुनकर क्षमा सोचती रह गई थी कि न जाने कैसी इंसानी प्यास है जो बुझती ही नहीं है । पहले पुत्र का विवाह, फिर बच्चे की कामना फिर उसके बच्चे का विवाह फिर उसके बच्चे की चाह , शायद मानव मन की यही बढ़ती आस हमारी सांसो को रुकने नहीं देती ।

रिया को गए हफ्ता भर भी नहीं बीता था कि शुचिता भल्ला की सास बीमार हो गईं । पता चला कि उनके पेट में बेहद दर्द है । अल्ट्रासाउंड तथा सी टी स्कैन के पश्चात पता चला कि उनके पेट में इंफेक्शन है तुरंत ऑपरेशन करना पड़ेगा । इतनी उम्र में ऑपरेशन वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें पर अगर ऑपरेशन नहीं करवाते हैं तो बचने के चांस ही नहीं थे क्योंकि पेट फूलता जा रहा था कोई अन्य उपाय न पाकर अंततः ऑपरेशन का निर्णय लेना ही पड़ा । उनकी क्रिटिकल स्थिति देखकर भल्ला साहब ने अपने भाई बहनों को सूचित कर दिया था । वे सभी आ गए थे । शुचिता बेहद परेशान थी अभी महीने भर पूर्व ही रत्ना को पुत्र हुआ था । अभी वह जच्चा बच्चा में ही बिजी थी कि यह एक अन्य परेशानी...। बहुत कठिन समय था उसके लिए ...एक तो छोटे बच्चे के साथ बीमार सास की देखभाल और ऊपर से आए गयों की खातिरदारी । बीमार की जिम्मेदारी कोई नहीं लेना चाहता पर समय से खाना पीना सब को चाहिए ।

मम्मी जी भी अपनी अभिन्न मित्र देवयानी के लिए बेहद परेशान थीं । डॉक्टरों के अनुसार ऑपरेशन सफल रहा था पर उनकी रिकवरी की प्रोग्रेस पर ही उनकी स्थिति के बारे में निश्चित रूप से कहा जा सकेगा । उनकी छोटी आंत में इंफेक्शन था अतः लगभग 2 फीट छोटी आंत को काटकर निकालना पड़ा था । डिप चल रही थी उसके साथ ही अनेकों दवाइयाँ पर फिर भी रिकवरी का कोई साइन नजर नहीं आ रहा था । मायूसी सबके चेहरे पर स्पष्ट नजर आने लगी थी । डॉक्टर अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर ही रहे थे अतः इंतजार करने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय ही नहीं था । हफ्ते भर पश्चात जब डॉक्टर ने कहा कि अब उनके सिस्टम ने काम करना प्रारंभ कर दिया है अब आप उन्हें पतला बिना जीरे का मट्ठा दे सकते हैं । तब सबकी जान में जान आई । करीब-करीब 15 दिन पश्चात देवयानी आंटी घर आई थीं । उनके घर आने का समाचार सुनकर मम्मी जी बेहद प्रसन्न थीं । दूसरे दिन वह उनसे मिलने उनके घर गईं । जब वह लौट कर आईं तो बेहद गुमसुम थीं । कारण पूछा तो बिना कुछ कहे वह अपने कमरे में चली गई ।

आखिर उषा से रहा नहीं गया क्योंकि इतना चुप तो उसने मम्मी जी को तभी देखा था जब पिताजी छोड़ कर गए थे । वह स्वयं चाय बनाकर उनके पास लेकर गई तथा उनकी उदासी का कारण पूछा ,'क्या हुआ मम्मी जी देवयानी आंटी ठीक तो है ना ।'

'बेटा भगवान इतना लंबा जीवन ही क्यों देता है !!'

' मम्मी जी यह आप क्या और किसके लिए कह रही हैं ? '

' बेटा, हमारे जैसे लोग बोझ ही हैं न ।'

' मम्मी जी आप ऐसा कैसे सोच सकतीं हैं ? आप से ही तो हम हैं आप हमारा मनोबल हैं ।'

' बेटा यह तुम्हारा बड़प्पन है पर ऐसी जिंदगी से क्या लाभ जो दूसरों के लिए बोझ बन जाए । अब देखो न देवयानी को वह बिस्तर पर पड़ी है उसे अपने शरीर का भी होश नहीं है । देवयानी के लिए बड़ी मुश्किल से नर्स मिली है पर वह कह रही है कि वह डायपर नहीं बदलेगी । अब शुचिता बहू के बच्चे को संभाले या अपनी सास को । शुचिता कह रही थी कि आंटी बच्चे का डाइपर तो मैं बदल सकती हूँ पर इनका कैसे बदलूँ ? इतना भारी शरीर मैं अकेले कैसे अलट पलट पाऊंगी ? आया की तलाश कर रही हूँ । जब से वहां से लौटी हूं यही सोच रही हूँ यह जीवन की कैसी रिवर्स प्रोसेस है बच्चा जब होता है तब वह लेटा रहता है । लेटे लेटे ही सुसु पॉटी करता रहता है फिर वह वॉकर से चलना सीखता है फिर अपने पैरों पर चलने लगता है । यही बच्चा समय के साथ संसार सागर में अपने विभिन्न किरदार निभाते हुए न केवल अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निभाता है वरन् संसार में भी अपने कर्मों की छाप छोड़ कर संतुष्टि प्राप्त कर, स्वयं को सफल मानते हुए गर्वित हो उठता है पर धीरे-धीरे उसके सुदृढ़ और बलिष्ठ शरीर का क्षरण होने लगता है । वह अशक्त होता जाता है और एक दिन ऐसी भी स्थिति आती है कि उसे वाकर पकड़ना पड़ता है और फिर बिस्तर... स्थितियां एक जैसी ही होती है पर पहले वाली स्थिति में आस होती है पता है कि एक वर्ष या दो वर्ष पश्चात वह अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा पर दूसरी स्थिति में न कोई आस है न ही यह पता है कि यह स्थिति कब तक रहेगी !! सहने वाला भी मजबूर और करने वाला भी मजबूर । ऐसी स्थिति किसी को न झेलनी पड़े ।' कहकर माँ जी ने आँखें बंद कर ली थीं ।

उस रात उन्होंने अजय के समझाने के बावजूद भी खाना नहीं खाया बार-बार यही कहती रही,' मुझे भूख नहीं है मैं सोना चाहती हूं प्लीज मुझे अकेला छोड़ दो ।'

अजय को उस दिन उसने पहली बार बहुत परेशान देखा था । वह रात में कई बार उठ कर उनके कमरे में भी गए । सुबह जब वह चाय देने उनके कमरे में गई तो देखा वह अपने स्वभाव के विपरीत सो रही हैं । उषा ने माँ जी को आवाज लगाई तब भी वह नहीं उठीं । उषा ने उन्हें हाथ से हिलाया तो पाया उनके शरीर में कोई हलचल ही नहीं है । घबराहट में उसने अजय को आवाज दी । वह आए उनकी नब्ज देखी । अनिश्चय की स्थिति में डॉक्टर को फोन किया वह तुरंत ही आ गये । डॉक्टर ने आते ही उन्होंने उन्होंने उन्हें मृत घोषित कर दिया । मृत्यु की वजह ब्रेन हेमरेज बताया ।

डॉक्टर की बात सुनकर अजय किंकर्तव्यविमूढ़ रह गए थे । आखिर यह कैसी मृत्यु है जिसमें न किसी को सेवा का अवसर दिया और न ही कुछ कहने सुनने का समय । उन्हें लग रहा था कि उनका रुपया पैसा सुख सुविधाएं किस काम की ...न वह उस एक्सीडेंट में अपने पापा को बचा पाए और न अब मम्मी जी को । विधि के विधान के आगे सब नतमस्तक थे ।

शुचिता कह रही थी कि माँ भी आंटी की मृत्यु की खबर सुनकर बेहद विचलित हैं । बार-बार यही कहे जा रही हैं कि भगवान को बुलाना तो मुझे अपाहिज को चाहिए था पर बुला उसे लिया ।

दो महीने के अंदर एक बार फिर सब जुड़े पर इस बार सबके चेहरे गमगीन थे । अनिला ने आते ही पूछा, ' दादी ,बड़ी अम्मा कहाँ है ? सब उनके फोटो को फूल माला है क्यों चढ़ा रहे हैं ?'

अनिला की बात सुनकर उषा ने उसे गोद में उठा लिया था पर वह बार-बार एक ही प्रश्न पूछती जा रही थी अंततः उसे कहना ही पड़ा,' बेटा बड़ी अम्मा भगवान जी के पास चली गई हैं ।'

' दादी बड़ी अम्मा कब आयेंगी भगवान जी के पास से ?'

' बेटा, अब वह कभी नहीं आयेंगी ।'

' क्यों दादी ?'

' बेटा भगवान जिससे प्यार करते हैं उसे अपने पास बुला लेते हैं ।'

' तो क्या भगवान जी बड़ी अम्मा को ही प्यार करते हैं , मुझे नहीं...।' अनिला ने उनकी आंखों में देखते हुए कहा ।

' बेटा ऐसा नहीं कहते ।' उषा ने उसके मुँह पर हाथ रखते हुए कहा ।

' पर क्यों दादी ?'

' कहाँ हो तुम ?' अजय की आवाज सुनकर कहा, ' बेटा ,तेरे दादा जी बुला रहे हैं । मैं अभी आती हूँ ।' कहकर उसने अनिला को गोद से उतारकर सुकून का अनुभव किया था । यह बच्चे भी... तरह तरह के प्रश्न कर कभी-कभी पेसोपेश में डाल देते हैं ।

सारे कर्मकांड निभाए गए इस बार अजय उनकी अस्थियों को प्रवाहित करने गया गये तथा पिंड दान भी किया । उषा भी उनके साथ गई थी । इस बार वह सहज थी। इस बार उसे यह सब कर्मकांड पोंगापंथी नहीं वरन व्यक्ति की आस्था को दर्शाने वाले प्रतीत हो रहे थे ।

सुधा आदेश

क्रमशः