Jaggery sweetness in tamarind sauce - 3 in Hindi Moral Stories by Shivani Jaipur books and stories PDF | इमली की चटनी में गुड़ की मिठास - 3

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इमली की चटनी में गुड़ की मिठास - 3

भाग-3

पहली रात शालिनी भाभी की बातों को याद करती हुई,मन में ढेरों उम्मीद लिए सुहाग सेज पर फिल्मी स्टाइल में सज-संवर कर बैठी हुई रवि का इंतज़ार कर रही थी और सोच रही थी कि रवि आ कर जब उसका घूंघट उठाएगा तो उसके प्रेम में पड़ ही जाएगा! ज़िन्दगी की खूबसूरत शुरुआत की प्रतीक्षा करती शालिनी के अरमानों पर वज्रपात सा हुआ जब रवि ने कमरे में आते ही "कहा अरे! तुम अभी तक ऐसे ही बैठी हो?" वो खुद भी नाइट सूट में ही था! उसने एक खूबसूरत सी नाइटी उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा "जाओ फ्रेश हो आओ!"

टूटे हुए दिल के टुकड़ों को बटोरते हुए, कांपते हाथों और भारी मन से शालिनी ने नाइटी ली और वॉशरूम की ओर चल दी। जितना शावर से पानी बहा उससे कुछ कम ही उसकी आँखों से भी बहा! नाइटी वैसे बहुत सेक्सी और खूबसूरत थी। उसे पहनकर जब शालिनी ने खुद को आदमकद आइने में देखा तो यकायक शरमा सी गई! उम्मीद की एक किरण फिर जागी! रवि मुझे इस रूप में देखकर ज़रूर फिदा हो जाएगा! न जाने उसने कब और कैसे ये खरीदी होगी! ये सोचकर ही उसकी आँखों में लाज की लाली छा गई। गीले बालों को तौलिए में लपेटकर उस नाइटी में जब वो बाहर आई तो सचमुच रवि की आँखें चमक उठीं! उसने तौलिया हटा कर शालिनी के गीले बालों को बंधन से मुक्त कर दिया और उसका चेहरा हाथों में लेकर बेतहाशा चूमने लगा! शालिनी की सांसें रवि की गर्म सांसों में घुलने मिलने लगीं… नये रिश्ते की खूबसूरत शुरुआत हो रही थी।

सुबह-सुबह जब शालिनी ने उठकर रवि को प्यार से चूमना चाहा तो रवि मुंह फेर कर बोला "सोने दो अभी! तुम जाओ बाहर! सब इंतज़ार कर रहे होंगे! मम्मी तो कब की उठ गई होंगी!" शालिनी भौंचक्की सी रह गई! ये वही रात वाला रवि है? भारी मन से वो नहाकर, तैयार हो कर बाहर चली आई। शादी वाले घर में अभी भी बहुत मेहमान थे। ननदों और भाभियों ने रात की बात लेकर उससे खूब चुहलबाज़ी की। शालिनी भी याद करके मंद-मंद मुस्कुराती हुई शर्माती भी रही! दिन बस यूं ही रस्मों रिवाजों में निकल गया। रवि से एक-दो बार आमना-सामना हुआ! पर वो शादी से पहले वाले रवि की तरह ही उदासीन और निर्लिप्त भाव लिए हुए दिखाई दिया! एक ओर जहां शालिनी रात की बातें याद कर के रोमांच से भर उठती थी वहीं दूसरी ओर रवि ऐसे दिखाई दे रहा था जैसे कि कोई विशेष बात हुई ही नहीं थी कल रात! पर रात को कमरे के भीतर रवि फिर उसी भाव से सामने आया। कुछ ही दिनों में शालिनी को समझ आ गया कि रवि के लिए वो महज़ एक शरीर है! जिससे उसे खेलना है और फिर भूल जाना है अगली रात तक! ना लाड़ ना प्यार… बस कमरे में आते ही उसे शरीर की भूख जागती थी। शुरू शुरू में शालिनी जिसे प्यार समझ रही थी वो उस की भूल थी! ये वो बहुत जल्दी समझ गई! अजीब सी वितृष्णा से उसका मन भर गया! देह से देह का मिलन ही प्यार नहीं है! मन भी मिलने चाहिए। और मन मिलने के लिए आपस में बातचीत होनी चाहिए! पर रवि किसी भी तरह की कोई बात कमरे में अकेले में नहीं करता था। उसकी देह की भूख शांत होती और वो मुंह फेरकर हो जाता था।शालिनी की बातचीत करने की तमाम कोशिशें नाकाम रहीं! जितना वो रवि को समझने की कोशिश करती उतनी ही निराश होती!

समय अपनी गति से चलता रहा। एक एक करके सब मेहमान घर से विदा हो गए।रवि ने भी ऑफिस जाना शुरू कर दिया था और साथ ही साथ उसकी आई ए एस की परीक्षा की तैयारी भी चल रही थी! सो उसके पास समय ही नहीं होता था। ऊपर से थक भी जाता था।तो कभी कभी तो शालिनी का इंतज़ार किए बिना ही सो जाता था।

शालिनी के जीवन से प्रेम और रोमांस का दूर-दूर तक कोई वास्ता न था !हर दिन सामाजिक ज़िम्मेदारी में और रात वैवाहिक जीवन की रस्म अदायगी में गुज़र रही थी। सब कुछ होते हुए भी कुछ कमी-सी थी। पर किससे कहती?

एक दिन उसने हिम्मत करके रवि से पूछ ही लिया "तुम खुश हो मुझसे?"

"हां! हां! ऐसा क्यों पूछ रही हो?" रवि आश्चर्य में पड़ गया था!

"फिर कभी कोई बातचीत क्यों नहीं करते हो मुझसे?इतने उदासीन और निर्लिप्त से क्यों रहते हो?"

"रात को इतना प्यार करके सारी कसर निकाल नहीं देता?" रवि ने उसे बाहों में कसते हुए चूमना शुरू कर दिया।

"क्या सिर्फ रात को बिस्तर में ही मेरी ज़रूरत महसूस होती है? यही चाहिए होता है हमें पति-पत्नी के रिश्ते में?" शालिनी ने कसमसाते हुए उसकी पकड़ से छूटना चाहा!

"तो क्या चाहती हो?दिन भर यही सब करता रहूं?" रवि ने अपनी पकड़ मजबूत करते हुए अपने प्रेम के हस्ताक्षर शालिनी की तड़पती देह पर करने शुरू कर दिए!

शालिनी भीतर और बाहर से बुरी तरह आहत महसूस कर रही थी। उसने खुद को सम्हालते हुए रवि का चेहरा अपने हाथों में थामने की कोशिश करते हुए फुसफुसाया "मुझे तुम्हारे साथ बाहर घूमना है, हंसना बोलना है,चाय पीते हुए ढेरों बातें करनी हैं… मुझे ये रवि दिन में भी चाहिए…" पर एक पत्नी की मासूम चाहतें पति के 'प्रेम-ज्वर' के आगे अनसुनी कर दी गईं!

हमेशा की तरह रवि करवट ले कर सोने लगा! शालिनी ने उसे प्यार से निहारते हुए उसकी बांह पकड़ ली "बहुत नींद आ रही है? थोड़ी देर बातें करो ना मुझसे!" उसका हाथ रवि की लोमेश छाती को सहलाने लगा था ! रवि ने उसे बांह पर लिटा लिया और बालों को सहलाते हुए माथे पर चूमा "तुम्हें नींद नहीं आ रही?"

"नहीं... बिल्कुल भी नहीं"

"क्यों?" रवि ने कसकर और ज़ोर से चिपका लिया

"बरसों से तुम्हें दिल में समाए न जाने कितनी बातें करती रही ख़्वाबों में… पर हक़ीक़त में कभी करने का मौका नहीं मिला और कभी तुमने की ही नहीं! सच कहो… तुम्हारा मन नहीं करता था मुझसे बात करने का, मुझे देखने का या छूने का?" रवि की छाती शालिनी की गर्म सांसों और कांपते होठों के स्पर्श से भीग रही थी!

"अपनी चीज़ के लिए लार कौन टपकाता है!" पहली बार रवि कुछ खुलकर हंसा!

रवि की पकड़ से छूटने की नाकाम कोशिश करते हुए वो लाज से दोहरी हुई जा रही थी! 'अपनी चीज़' रवि का यूं उसे अपना कहना और समझना उसके मन को गुदगुदाने लगा और अब तक की सारी शिकायतें हवा हो गईं!वो देर तक यूं ही रवि के सीने से लगी रहना चाहती थी और रवि था कि उसको दूसरी पारी खेलने को खींच रहा था… इसी खींचातानी में उस के बाल रवि के शर्ट के बटन में उलझ गए। एक आह निकल गई उसकी! "ओह्ह रवि...रुको,रुको ज़रा! बाल निकालने दो ना! दुखता है…"

"क्या है यार? सारा मूड बिगाड़ दिया इन बालों ने! कहां है कैंची? अभी काट कर मसला ही खत्म करता हूं!"अचानक रवि झुंझला गया!

"अरे! इतनी सी बात में ऐसे गुस्सा?"वो आश्चर्यचकित हो गई।

रवि ने शर्ट खोलकर उसकी ओर फेंक दी। तेज़ी से फेंकी गई शर्ट में अटके हुए बाल एकदम से और भी खिंच गए! दर्द की एक लहर उसके चेहरे पर खिंच गई पर रवि का गुस्सा देखकर वो चुप लगा गई।

रवि मुंह फेरकर सो गया था पर शालिनी की आँखों से नींद कोसों दूर थी। ऐसा लग रहा था जैसे प्यासे के होंठों से पानी लगाकर छीन लिया गया हो! वो कुछ पल रह-रहकर याद आ रहे थे जब रवि खुलकर हंसा था, उसके माथे को चूम लिया था और बालों में हाथ फेरने लगा था…

और कहा था उसे 'अपना'!इतने दिनों से यही सब तो चाह रही थी वो! देह से अधिक मन की प्यास विकल किए हुए थी जो कि बुझते-बुझते रह गई थी! अचानक ही इतना भयंकर गुस्सा किसलिए?

क्रमशः