उस दिन हम दोनों रात को साढ़े तीन बजे सोए।
असल में जब वो आता था तो मैं यह सोचकर उसे अलग कमरे में ठहराता था कि अगले दिन उसका इम्तहान है और वो न जाने रात को कितनी देर तक पढ़ना चाहे, फ़िर उसे कोई डिस्टर्बेंस भी न हो और वह परीक्षा की मानसिकता में ही रहे।
लेकिन इस बार ख़ुद उसने कहा कि वो परीक्षा को लेकर गंभीर नहीं है। उसी ने ये इच्छा जताई कि वो मेरे पास ही सोएगा, तो मुझे भला क्या ऐतराज होता। वो मुझसे बहुत सारी बातें करना चाहता था। अगले दिन उसे वापस भी लौटना था तो हम मेरे ही शयन कक्ष में सोए।
अच्छा भी लगा कि उसके पास अपने भविष्य को लेकर एक गहरी चिंता भी है और स्पष्ट प्लान भी।
ऐसा नहीं था कि उसने किसी विफलता की मायूसी में लापरवाही से वो सब कहा हो, जिसने मुझे चकित किया।
रात को देर तक हुई बातचीत में वो सब निकल कर आया जो उसके मन में था।
सच में उसके प्लान ने मुझे सोचने पर विवश कर दिया।
वो मेरा एक बुद्धिमान छात्र तो था पर वो समाज के लिए इतनी समझदारी भरी सोच रखता है, इस बात ने मेरी नज़रों में उसका कद और बढ़ा दिया।
वो कहता था कि देश की आबादी बेतरह बढ़ रही है जो सीमित साधनों के चलते देश को धीरे- धीरे एक कबाड़खाना बनाती जा रही है।
उसे लगता था कि बेरोज़गारी के चलते देश का कानून व सामाजिक रूढ़ियां शारीरिक ज़रूरतों की अनदेखी करके परिवार व्यवस्था को खोखला कर रहे हैं। इसी से समाज में रिश्ते आदर खो रहे हैं। लोग जिस्म में बदल रहे हैं। नर और मादा के बीच भेदभाव एक दूसरे की निगाहों में एक दूसरे का विश्वास डिगा रहा है।
वह न जाने कितनी देर तक कितनी बातें और करता यदि मैं नींद के कारण लगातार उबासियां लेना शुरू न करता।
मैंने कहा - अब सो जाओ, परीक्षा भवन में नींद आयेगी।
वह झेंप गया, पर बोला - सर आपको अभी भी लग रहा है कि मैं परीक्षा दे पाऊंगा?
अगली सुबह मुझे तो अपने रोज़ के समय पर ही उठना था पर मैंने आंख खुलते ही मन में सोच लिया कि यदि वो कुछ देर तक और सोना चाहे तो उसे सोते रहने के लिए कहूंगा। परीक्षा देने जाए या न जाए, उसे शाम के बाद फ़िर रात की गाड़ी से सफ़र तो करना ही था।
लेकिन ये क्या? वो तो मुझसे भी पहले जाग चुका था और अब बाहर ज़मीन पर एक चादर बिछा कर योग, जिसे अब हम सब "योगा" के नाम से जानते हैं, करने में तल्लीन था।
ये भी एक बेहतरीन अनुभव था। प्रायः हम दुबले- पतले लोगों को योग करते हुए देखते हैं और पुष्ट मसल्स वालों को जिम में वर्कआउट करते हुए। पर वो योगा भी पूरी तल्लीनता से कर रहा था।
कुछ देर बाद हम चाय पी रहे थे। जहां रात को देर तक जागने की ख़ुमारी मुझ पर तारी थी, वह योग कर लेने के बाद स्फूर्ति से लबरेज़ लग रहा था।
ओह! अब ये नहाने के लिए गर्म पानी मांगेगा। और फ़िर मेरी कैफियत जान कर इस बात के लिए मुझे आड़े हाथों लेगा कि मैंने दो सप्ताह से ज़्यादा का समय अपना गीज़र ठीक करवाने में लगा दिया। अब मैं उसके सामने अपने शहर के महानगर होने की डींग नहीं मार पाऊंगा। उल्टे वो ही मुझे कहेगा कि "हमारे यूपी में तो...." । इसमें गलती मेरी ही थी। मैं उसे उनके यहां बार - बार बिजली चले जाने का उलाहना जो दे चुका था।
मैं जानता था कि मेरे उसका प्रोफेसर होने के कारण उसके लिहाज़ का मुलम्मा अब तक काफ़ी उतर चुका था। वैसे भी कॉलेज पास कर लेने के बाद लड़के अपने प्रोफ़ेसरों के दोस्त बन ही जाते हैं।
मैं अख़बार को परे रख कर चुपचाप रसोई में गया और एक बड़े से बर्तन में पानी गर्म होने के लिए रख दिया। मैंने सोचा था कि मैं गर्म पानी बाथरूम में पहले ही रख दूंगा ताकि जब वो नहाने जाए तो उसका ध्यान इस बात पर जाए ही नहीं कि गर्म पानी कहां से आया है। वह नहाकर निकल आए।
लेकिन वो मेरे ही पीछे पीछे चलता हुआ रसोई में आ गया और इतने बड़े बर्तन में पानी गर्म होता देख कर आश्चर्य से बोला - अरे, आप इतनी सुबह - सुबह नहा लेते हैं?
मैंने धीरे से कहा - मैं नहीं नहाता, लेकिन तुम्हें परीक्षा देने जाना है न! तो नहा कर नहीं जाओगे?
उसने मेरी ओर किसी छोटे बच्चे की तरह देखा और फिर बोल पड़ा - ओहो सर, आपके कॉन्फिडेंस लेवल का भी जवाब नहीं। आपको अभी तक पूरी आशा है कि मैं परीक्षा देने जाऊंगा ही।
- अरे पर क्यों नहीं जाओगे? इतनी दूर से ट्रेन का लंबा सफ़र करके तुम यहां आए हो तो तुम्हें चांस तो लेना ही चाहिए। मैंने समझाने के स्वर में कहा।
- ओ के। अगर ज़िन्दगी में कुछ करने से पहले विफलताओं की एक लंबी सूची होना ज़रूरी है तो मैं जाता हूं। उसने कुछ दृढ़ता से कहा।
इसके साथ ही वो कमरे में जाकर अपने बैग से अपना एडमिट कार्ड, पैन आदि संभालने लगा।
मैंने उसके नहा कर आते ही झटपट नाश्ता मेज़ पर लगा दिया। मक्खन, ब्रेड आदि तो था ही, अंडे भी बॉइल कर दिए। गर्म दूध का ग्लास देख कर वो बोला - इसमें बॉर्नविटा भी डाला है न सर? उससे ताकत आती है।
मैं ज़ोर से हंस पड़ा। मैंने उसे उसी के स्वर में जवाब दिया - तुम कोई युद्ध करने नहीं जा रहे, ताक़त का क्या करोगे?
- जी सर, मैं तो कल से ही कह रहा हूं कि मैं कहीं जीतने नहीं, बल्कि पराजित होने जा रहा हूं। और उसके लिए न तो ताक़त की ज़रूरत है और न ही शुभकामनाओं की।
- पर मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं। ऑल द बेस्ट!
वह निकल गया।
उसके जाते ही मैं भी नहाने की तैयारी करने लगा ताकि उसके लिए तैयार किया गया नाश्ता मुझे अपने लिए दोबारा गर्म न करना पड़े।
लेकिन नहाने से पहले शेव करने के लिए मैंने ब्रश हाथ में लिया ही था कि दरवाज़े की घंटी बजी।
- लो, वह लौट आया। जैसे - तैसे तो परीक्षा देने के लिए तैयार हुआ था अब न जाने क्या हुआ कि फ़िर लौट आया। राम जाने रास्ते में किसी मक्खी ने छींक दिया या फिर कोई बिल्ली रास्ता काट गई।
मुझे हंसी आ गई। मुझे याद आया कि बचपन में मेरा एक मित्र परीक्षा या ऐसा ही कुछ ज़रूरी काम होने पर घर से निकलने के बाद एक बार वापस ज़रूर लौटता था। उसे ऐसे अवसर पर पेशाब करने की हाजत ज़रूर होती थी। घर वाले भी चिढ़ाते थे कि घर से निकलते ही तुझे कुत्ता, शेर या भेड़िया, क्या दिख जाता है?
मैं कुछ बुदबुदाते हुए ही दरवाज़ा खोलने गया। मैं मन ही मन सोचने लगा कि अगर ज़रा दो मिनट बाद घंटी बजी होती तो मैं मुंह पर साबुन लगा कर कार्टून बना हुआ बाहर आता। गनीमत थी कि अभी तो ब्रश हाथ में ही था।
लो! दरवाज़ा खोला तो सामने नज़ारा ही दूसरा था। मेरे गीज़र को ठीक करने वाला मैकेनिक सामने खड़ा था। उसके एक हाथ में पॉलीथिन के थैले में कुछ सामान था और दूसरे हाथ में पट्टी बंधी थी।
मेरे कुछ पूछने से पहले ही वह बोल पड़ा - एक्सीडेंट हो गया था बाबूजी!
- ओह! मैं कुछ न कह सका।
वही फ़िर बोला - एक कार वाले ने टक्कर मार दी। मैं साइकिल से जा रहा था। वो तो कुछ कर्म अच्छे थे जो इतनी स्पीड में आती कार भी मुझे केवल गिरा कर ही निकली। वरना एक बार तो ऐसा लगा कि जैसे कुचल ही डालेगी। हाथ में ही चोट आई।
- तो तुम दुकान से किसी और को भिजवा देते, अभी आराम करो कुछ दिन। मैंने सहानुभूति दर्शाई।
- साहब, इस एरिया में मेरे जैसा मैकेनिक दूर - दूर तक कोई नहीं है, मालिक अच्छे - ख़ास ग्राहक के लिए मुझे ही भेजता है।