Trikhandita - 10 in Hindi Women Focused by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | त्रिखंडिता - 10

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त्रिखंडिता - 10

त्रिखंडिता

10

सलमा की सनक बढ़ती जा रही थी। वह दिन भर नहीं नहाती। पर रात को नहा-धोकर श्रृंगार करती और तमाम तरह से उसे लुभाने की कोशिश करती। आदम कद शीशे पर, दरवाजों पर वह उसकी मँहगी लिपिस्टक से ’मैडम आई लव यू’ लिख देती। वह नाराज होती तो हँस देती।

उस दिन वह गहरी नींद में थी। अचानक उसे अपनी देह पर सर्प रेंगने सा आभास हुआ। सर्प रेंगता हुआ उसके स्तनों पर बैठ गया था। वह गनगना उठी। भय से उसकी घिग्घी बँध गयी। वह जाग पड़ी थी। जोर से सर्प को उठाकर अपनी छाती से अलग किया......... पर ये क्या.............. यह कोई सर्प नहीं था। ये तो सलमा का हाथ था। वह चिल्ला उठी

-ये क्या कर रही थी..........................

’’मैं.....मैं.............मैं..........’’ सलमा हकला उठी। पहले तो उसे लगा। नींद में गलती से शायद सलमा का हाथ उसके स्तनों पर पड़ गया होगा, पर वह तो पूरी तरह जगी हुई थी और अजीब-आवेश में थी। उसकी ऑंखें लाल थीं। ऐसा तो पुरूष तब दिखता है, जब स्त्री से सहवास की इच्छा से भर जाता है...... पर सलमा.............इसे क्या हुआ ?

तुमने बताया नहीं.......... और तुम अभी तक जाग क्यों रही हो ?

’’नींद नहीं आ रही थी............माफ कर दीजिए ...............गलती से............।’’ वह सफाई दे रही थी। रमा ने बात को तूल नहीं दिया और उसे सोने का आदेश देकर खुद सो गयी। काफी समय से वह नींद की गोलियाँ लेती थी। अपने अतीत की कड़वाहटों को भुलाने का यही एक रास्ता बचा था उसके पास। जब वह डॉक्टर के पास गई तो उसने मुस्कुरा कर मजाक में कहा था अनिद्रा से मुक्ति के दो ही उपाय है। पुरूष का साथ या फिर नींद की गोलियाँ। या तो विवाह करिए या फिर............। ’वह भी हँस दी थी पर कैसे बताती!

विवाह ही तो उसकी अनिद्रा की बीमारी का जिम्मेदार है, वरना वह भी कभी घोड़े बेचकर सोया करती थी। इधर कई वर्षों से वह अकेली थी और अपने मन से पुरूष की कामना निकाल चुकी थी। हाँलाकि सख्ती से बंद किए गए उसे मन के दरवाजे पर पुरूष दस्तक देते रहते थे। एक सुंदर, युवा स्त्री को अकेला देखकर कामी पुरूषों की वासनाएॅ जाग ही जाती हैं पर वह कोई साधारण स्त्री नहीं थी, एक व्यक्तित्व भी थी इसलिए किसी की उस पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं थी।

सलमा की हरकतें उसे असामान्य लग रही थी। उसका रात को सजना-सॅवरना, तमाम तरह से उसे लुभाने की कोशिश। क्या है ये सब! उसका बचपना समझकर वह हॅंस देती थी, पर इधर वह कुछ ज्यादा ही बेचैन दिख रही थी। उसे तब तक नहीं पता था कि कुछ पुरूषों की तरह कुछ स्त्रियाँ भी समलैंगिक होती हैं। वह बचपन से ही बंद माहौल में रही थी। जहाँ यौन पर बात करना भी पाप समझा जाता था। घर में सिर्फ माँ थी। मामी, भाभी जैसे मजाक के रिश्ते भी नहीं थे। स्कूल-कालेज में भी उसकी कोई ऐसी वैसी सहेली नहीं थी। शहर आकर भी वह कुछ ना जान सकी। पुरूष स्त्री के प्रेम-सम्बन्ध तो उसे समझ में आते थे, और कुछ नहीं। ना तो ऐसी कोई किताब पढ़ी थी, ना फिल्में देखी थी, इसलिए वह सलमा को समझ नहीं पा रही थी। एक दिन सलमा ने झल्लाकर कह भी दिया -’’ आप बिल्कुल बुद्धू है। इतनी बड़ी हो गई पर मेरे प्रेम को नहीं समझतीं।’’

’तुम्हारे प्रेम को.....हा.......हा.........हा................।’ वह हँस पड़ी थी।

’’खूब हँसिए मैं ही बेवकूफ हूँ जो पत्थर से सिर टकरा रही हूँ बेदर्द हैं आप जा़लिम हैं।’’

-क्या पागलों जैसी बातें कर रही हो ? रही प्रेम की बात, तो वह तो साथ रहने पर जानवर तक से हो जाता है...........।

’’मै उस प्रेम की बात नहीं कर रही हूँ............।’’

-तो फिर..........अगर तुम पुरूष होती या मैं पुरूष होती तो बात समझ में आती। पर.........।

’’क्या एक लड़की का दूसरी लड़की से स़्त्री पुरूष जैसा सम्बन्ध नही हो सकता..........।’’

-पागल हो गई हो..............जाकर पढ़ो। कभी पढ़ते नहीं देखती तुम्हें । तुम्हारी अम्मी को क्या जवाब दूँगी ? रमा ने डाँट दिया? तो वह मुँह बनाकर चली गई।

एक दिन सलमा की अनुपस्थिति में उसने उसकी किताब-कापियाँ चेक की, तो एक डायरी मिली, जिसमें ढे़रों शेरो-शायरी लिखी थी। एक कॉपी में पत्रनुमा कहानियॉं भी थीं, जिसे पढ़ने पर उसे कुछ अजीब-सा एहसास हुआ क्योंकि सभी कहानियों में नायक-नायिका दोनों स्त्रियाँ थी। वह चकरा गई। शाम को उसने सलमा से इस विषय पर बात की, तो वह बोली-आप पिछड़े दिमाग की है पुरातन पंथी .....इसीलिए कुछ नहीं समझती.....मेरा पहला प्यार मेरी टीचर आगा मैडम थीं.....................।

-और अब............................।

’’आप है..................’’

-पर मैं प्रेम करूॅंगी.......... तो किसी पुरूष से करूॅंगी।

’’आपने किसी पुरूष से प्रेम किया, तो उसे मार डॉलूगा......................’’

-क्यों ?

’’क्योंकि मैं आपसे जी-जान से प्यार करती हूँ। आप मुझसे प्यार करें ना करें पर किसी और से नहीं कर सकतीं।’’ सलमा की आँंखों में जुनून था।

सलमा उसके दिल में जगह बनाने का हर संभव प्रयास कर रही थी, पर रमा के मन में उसके लिए कोई आकर्षण नहीं था। हो भी कैसे सकता था। वह प्राकृतिक रिश्ते में विश्वास करती थी। उसकी प्रवृत्ति, उसके संस्कार, उसकी रूचियाँ सलमा से भिन्न थी। सलमा के प्रयास उसके जीवन में प्रवेश पाने के इच्छुक कामी पुरूषों की तरह असफल हो गए तो वह बौखला उठी। रमा भी परेशान थी। सलमा की हरकतें उसे पसंद नहीं आ रही थी। उसने फोन पर अपनी सहेली विभा से सलमा के बारे में बताया, विभा चौंक पड़ी और तुरंत हिदायत देने लगी जल्दी उसे घर से निकालो। वह समलिंगी है। तुमसे सम्बन्ध बनाना चाहती है। कहीं तुम्हें किसी मुसीबत में ना फँसा दे। झूठा केस भी दर्ज करा सकती है शोषण का आरोप लगाकर। कहीं तुम्हारी सम्पत्ति हड़पने के प्लान से ना आई हो...............।

-पर वह तो बहुत छोटी है..........।

.................छोटी ............तुम्हें तो हर लड़की इन्नोसेंट लगती है। मेरी बात मानो.........जितनी जल्दी हो..........किसी बहाने उसे घर से बाहर करो.................।

विभा की बात से वह चिन्तित हो गई। पर ऐसे कैसे वह सलमा को निकाल दे। उसके माँ-बाप को आश्वासन दिया है। क्या कहेगी उनसे ? वे बेचारे क्या जानते होंगे कि पढ़ाई के बहाने उनकी बेटी..............

पर रमा का भाग्य उसका साथ दे रहा था। इस बात के लिए वह हमेशा ईश्वर की शुक्रगुजार रहती है कि वह संकट में फँसते-फँसते बच जाती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ।

उस दिन सलमा ट्यूशन पढ़कर लौटी, तो झल्लाई हुई थी। ’क्या हुआ.. ।’.उसने पूछा तो नाराजगी से बोली-

’मैडम वह बूढ़ा मास्टर, जो मेरे दादा जी की उम्र का है मुझसे गन्दी बात कर रहा था।’

’’क्या कह रहा था..........।’’

’कह रहा था। रसगुल्ला और केला खाओगी..........।’

’’क्या........... ये क्या कम्बीनेशन है..........और इसमें गन्दा क्या है।’’

’गन्दा है...........गाली है आप नहीं समझेंगी।’

’जो भी हो.........तुमसे कुछ कहने की हिम्मत कैसे करता है! डाँंट क्यों नहीं देती।

’डॉटा है आज........... सभी विद्यार्थियों के सामने उसका पोल खोल दिया। बड़ी बेइज्जती हुई उसकी.......।’

सलमा के चेहरे पर एक शातिर मुस्कान उभरी। थोड़ी देर बाद ही रमा के फोन की घंटी बजी। फोन के उस तरफ कोई अजनबी बूढ़ी आवाज थी।

-आप कौन................?

’मैं एक काँलेज का लेक्चरर हूँ। आप मुझे नहीं जानती, पर मैं आपको जानता हूँ।................।’

-कैसे ?

’आपके घर में जो लड़की है। उसने सिर्फ मुझे ही नहीं कइयों को आपका फोन नं0 दिया है। आप टीचिंग पेशे में हैं इसलिए आपसे मुझे हमदर्दी है। आप उस लड़की को अपने घर से निकाल दीजिए।’

-क्यों.....................

’आपको पता नहीं। वह आपको बाहर कितना बदनाम कर रही है।’

-क्या कहती है ? उसने गम्भीरता से पूछा।

’वह कहती है आप उसके साथ जबरदस्ती........गलत रिश्ते बनाने को बाध्य करती हैं.........और.................और.........रहने दीजिए...............खुद समझ जाइए.............।’

-आप यह सब इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि उसने आज आपको.......।

नहीं मैडम ................वह आपको बदनाम कर रही है। आपके बारे में तमाम खराब बातें करती है। आपके अतीत को उसने आपकी डायरियों में पढ़ लिया है और सबसे बताती फिरती है.......आप तो विश्वास में अपनी आलमारियों में ताला तक नहीं लगातीं और वह उसका खूब फायदा उठाती है.................।

फिर उस मास्टर ने कुछ ऐसी बातें बताई, जिसे सलमा और रमा के सिवा कोई नहीं जानता था। हाँ, अंतर बस इतना था कि जो कुछ सलमा करती थी, उसका आरोप रमा के सिर पर था। रमा डर गई कि सलमा अगर इसी तरह उसके बारे में अफवाह फैलाती रही तो उसकी सारी तपस्या ब्यर्थ हो जाएगी। वर्षां से बनायी छवि खराब हो जाएगी। अपनी छवि के कारण वह पुरूषों से दूर रही थी, पर क्या जानती थी कि एक कम उम्र लड़की भी उसे............। जीवन में धोखा खाना ही क्या उसकी नियति है ? प्रेम में धोखा! फिर विवाह में धोखा ! और अब जो भी पास आता है, वह ठगना ही चाहता है। उसकी अच्छाई, उसकी सरलता उसका प्रेम ही उसके शोषण का कारण है, पर वह खुद को बदल भी तो नहीं पाती। उसे खुद पर गुस्सा आने लगा था।

मास्टर अभी तक फोन पर था और बहुत कुछ बताए जा रहा था। एकाएक रमा ने उसे टोका ’आप बुजुर्ग होकर भी एक बच्ची से गन्दी बात करते हैं.........।’ वह हकलाया- ’अरे नही मैडम, आप उसे नहीं जानती बड़ी शातिर है। उसने मेरा पैसा खाया था। माँगा तो इल्जाम लगा दिया............।’ मास्टर से बातचीत सलमा अभी तक नहीं सुन पाई थी क्यांकि स्नानघर में नहा रही थी। नहाकर आई तो बातचीत से सब कुछ समझ गई और आगे बढ़कर फोन रमा के हाथ से लगभग छीन लिया। और फिर फोन पर मास्टर से लड़ने लगी- ’क्यों मास्टर दाल नहीं गली तो मुझे मैडम के घर से निकलवाने चले......? उधर से भी कुछ कहा गया, सलमा गाली देने लगी। रमा कुछ देर सुनती सहती रही फिर आगे बढ़़कर फोन काट दिया और सलमा से पूछने लगी-तुमने पैसे क्यों लिए उससे ?

’कुछ खाने का मन था..........।’

मैं तुम्हारे अम्मी अब्बू के भेजे पैसे नहीं लेती। खुद खिलाती-पिलाती हूॅं। आने-जाने के लिए किराया तक देती हूँ। फिर तुमने उससे पैसे क्यों माँगे ? कितने पैसे लिऐ थे ?

’गलती हो गयी मैडम । कभी पचीस........कभी पचास ........अब तक ज्यादा से ज्यादा पाँच सौ लिए होंगे....................।’

तुम्हें मैंने समझाया था कि पुरूष फ्री में किसी लड़की पर खर्च नहीं करता.......फिर भी तुमने उससे पैसे लिए और मेरे बारे में वह सब क्यों कहा ?

वह हँस पड़़ी उसमें झूठ कहाँ है ? आप करें........या मैं.....बात तो एक ही हुई............।

-एक ही.......... तुम गन्दी लड़की हो......। वह गुस्से में चीखी। तब वह भी धीरे से बोली-’और आप कितनी शरीफ है.... सारा शहर जानता है..........यह मोहल्ला जानता है। आप कोई कुँआरी तो हैं। नहीं..........शादीशुदा हैं फिर भी पति को छोड़ दिया और अकेली रहती हैं....इतनी शरीफ होतीं तो ये सब करतीं................।

रमा का गुस्सा अब पगहा तुड़ा चुका था। उसने सलमा के बायें गाल पर जोर से तमाचा मारा। सलमा चकरा गई पर उसका मुँह बंद नहीं हुआ। वह और भी बुरा-भला कहने लगी तब रमा ने दाए गाल पर भी तमाचा जड़ दिया और जोर से चीखी- ’निकलो मेरे घर से ..............अभी उठाओ अपना सामान। फ्री में घर, खाना-पीना, सुख-सुविधा सब दे रखा है और मेरे ही चरित्र पर अँगुली उठा रही हो। उठो, अभी तुरंत। सच कहती थी मेरी माँ। किसी पर दया करना पाप है।..........उठती हो कि नहीं।’

अब सलमा के होश ठिकाने पर आ गए। उसने रमा के पैर पकड़ लिए ’मुझे माफ कर दीजिए। गलती हो गई। अब कभी ऐसा नहीं करूँंगी। ना जाने मुझे क्या हो गया था ? मुझे घर से मत निकालिए। इतनी रात को मैं कहाँ जाउँगी ? अपने अम्मी.......अब्बू को क्या जबाब दूँगी।’

सलमा को रोते देख रमा का गुस्सा पिघलने लगा। उसने ध्यान से उसकी ओर देखा। उसका बाँया गाल सूज गया था। होंठ के कोने पर खून छलछला रहा था। उफ, वह कितनी निर्दय है। फूल-सी बच्ची को कोई ऐसे मारता है उसके भीतर की सहृदय स्त्री बोली। ’पर यह बच्ची नहीं है..............शातिर लड़की है..............इसने कितना बदनाम किया है उसे...........। उसने सोचा और फिर गुस्से से भर गयी। उसकी अपनी बहन-बेटी होती तो वह इससे भी कड़ा व्यवहार करती। उसने फिर कड़कते हुए कहा-’मैं अब तुम्हें अपने पास नहीं रख सकती.......... सुबह तुम्हें जाना ही होगा।’

-मुझे माफ कर दीजिए मैडम।

’नहीं कर सकती। तुमने मेरे हृदय पर आघात किया है। मेरी भलमनसी का अनुचित लाभ लिया है। अब और नहीं.......।.’

-मैडम आप जिस मास्टर के बहकावे में आकर मुझे निकाल रही हैं.......वह खुद गंदा है......................।

’पर वह हम दोनों के बीच की हर बात कैसे जान गया।’

-वह मैंने एक दिन यूँ ही बता दिया.......... मजे के लिए...............।

’तो अब सजा भुगतो............।’

-प्लीज मैडम, अगर आप मुझे माफ कर दें ंतो एक राज की बात बताऊँगी।

’तो कोई रहस्य भी है........।’ रमा जानने को उत्सुक हो गई और जो कुछ सलमा ने बताया, उसे सुनकर रमा जैसे आसमान से गिरी। सलमा यूँ ही उसके पास नहीं आई थी। उसे भेजा गया था। अलका की इसमें बड़ी भूमिका थी। अलका ने ही सलमा को समझाया था कि ’रमा अकेली रहती है, वर्षो से पति से अलग है। नौकरी करती है। ठीक-ठाक पैसा भी है। अपना मकान, बैंक- बैलेंस सब कुछ। खर्चा कोई नहीं........... ना कोई उत्तराधिकारी है। भावुक हृदय की स्त्री है। तुम जाओ। प्यार से उसका दिल जीतो। उसकी देह को जगाकर उसकी कमजोरी बन जाओ। फिर तो सारी सम्पत्ति तुम्हारी। एक बार भी तुमने रिश्ता बना लिया तो फिर तुम बदनामी का डर दिखाकर उसे कंगाल कर सकती हो। बहुत बोल्ड बनती है.............उसे ठीक करना है।