Ass protection in Hindi Classic Stories by Alok Mishra books and stories PDF | गधों का संरक्षण

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गधों का संरक्षण




वैधानिक चेतावनी
" इस आलेख का मानव जाति के किसी व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है । वैसे यह बताए जाने के बावजूद भी शायद किसी को ऐसा लग सकता है कि यह आलेख उन पर लिखा गया है उन्हें सबसे पहले अपने आप को गधा या घोड़ा सबित करना होगा । "

आप तो जानते ही है कि कल्‍पनाओं के बीहड में कहीं गधादेश बसता है । आप शायद गधादेश के इतिहास से तो परिचित ही होंगे । इस गधादेश में पहले शेरों का राज था , वो भी बिखरा हुआ । शेर वर्तमान गधादेश में अपने- अपने क्षेत्रों में अलग- अलग नियमों और कानूनों के अनुसार राज करते थे । शेरों के राज में हुनरमंद घोड़े समाज में आगे निकल गए, शेरों ने भी घोड़ों को महत्‍व दिया अक्‍सर शेरों के दरबार में घोड़े ही नियम बनाते । आप तो जानते ही है कि रेवड़ी अंधे ही बांटते है और जिसे भी नियम बनाने का मौका मिलता है वो हमेशा ही पहले अपना , जाति और समाज का ध्‍यान रखकर नियम बनाता है। घोड़ों के बनाए नियमों ने उन्‍हें समाज में और अधिक महत्‍वपूर्ण स्‍थान दे दिया । अब घोड़े अपने घोड़ेपन पर इठलाने लगे ; उनके लिए अब गधे एक तिरस्‍कृत जाति से अधिक कुछ नहीं थे । फिर शेरों के राज समाप्‍त होते गए लेकिन घोड़ों का समाज में कुशलता और सामाजिक सरोकारों के चलते दबदबा बना रहा । गधों को इस समय तक अपने गधे होने का कोई मलाल नहीं था ।

फिर गधादेश के इतिहास ने पलटा खाया, शेरों के राज्‍य तो पहले ही समाप्‍त हो चुके थे । अब उनके राज्‍यों को मिला कर एक नए देश गधादेश का निर्माण हुआ । अब जब नया देश बना था तो उसके लिए नया कानून बनाना भी आवश्‍यक होगा । इस समय यह बात आम हो चुकी थी कि घोड़ों के बनाए नियम और कानून समतामूलक नहीं है इसलिए यह निश्‍चित हुआ कि गधादेश के कानून बनाने में घोड़ों की भूमिका नहीं होगी । काफी खोज के बाद ऐसे गधे खोजे गए जो विदेशों में पढ़े थे और विदेशी कानूनों की नकल करना जानते थे । अब उन्‍हीं गधों को गधादेश का कानून बनाने का काम सौंपा गया । उन्‍होंने विदेशी कानूनों की खूब नकल की और समतामूलक समाज के नाम पर कानून में गधों को संरक्षण देने की बात रखी । गधादेश नए देश के बनने की खुशी में डूबा हुआ था और सामाजिक समानता जैसी बात को कौन नकारता . घोड़े अपने पुराने रूतबे और कौशल के मद में डूबे हुए थे इसलिए उन्‍होंने भी विरोध करना उचित न समझा । कानून अनुसार गधादेश में गधों को संरक्षित प्रजाति घोषित कर दिया गया । अब देश की प्रगति का मतलब गधों की प्रगति हो गया । घोड़ों के आगे बढ़ने के अवसरों को कम योग्‍य गधों को संरक्षण के नाम पर दे दिया गया । अब गधे का बच्‍चा दौड़ने वाले घोड़ों से आगे निकल जाता है यदि नहीं निकल पाता है तो घोड़ों को रोक कर उसे आगे निकाला जाता है । अब दौड़े कोई भी;जीतेगा तो गधा ही क्योंकि उन्‍हें घोड़ों की अपेक्षा सारी सुविधाओं के साथ आधी या और भी कम दूरी दौडनी होती है । कहीं- कहीं तो संरक्षण के नाम पर घोड़ों को दौड़ने ही नहीं दिया जाता ।

गधे अब इस असमानता पूर्ण संरक्षण का अनेक दशकों से आनन्‍द ले रहे है और अब तो वे इसे अपना अधिकार ही समझने लगे है। घोड़े कानून के भय से इस असमानता को सहने के लिए मजबूर है । स्‍थिति इतनी खराब है कि घोड़ों के पास खाने को घास का एक तिनका भी नहीं है और गधे संरक्षण के नाम पर चारागाहों में आराम करते हुए घोड़ों की पिछली पीढ़ियों को कोसते रहते है । गधादेश की राजनीति में गधों का वोट उनके गधेपन के कारण किसी एक ओर गिरने की आशंका रहती है अत: सभी राजनैतिक दल गधों के संरक्षण का समर्थन करके उन्‍हें बेवकूफ बनाने का प्रयास करती है। गधे अब होशियार हो गए है वे भी इस राजनीति का भरपूर फायदा उठाना जानते है । यदि देखा जाए तो घोड़े अपनी होशियारी और कौशल के कारण ही गधों से मात खा गए क्‍योंकि अब शासकों को होशियार औार कुशल से अधिक मूर्ख और जी हुजूरी करने वाले पसंद है । अन्‍याय का यह रूप बिलकुल उसी तरह का है जैसा कभी घोड़ों ने किया था ।

गधादेश अपनी राजनीति के चलते घोड़ों के कौशल से वंचित होकर जिस राह पर चल रहा है उसे वो प्रगति मानता है । घोड़ों को मालूम है कि गधे गधादेश को किस खाई की ओर ले जा रहे है, लेकिन वे मौन है क्‍योंकि अब उनकी सुनता भी कौन है ?



आलोक मिश्रा "मनमौजी"