ab file nahi rukti in Hindi Book Reviews by Yashvant Kothari books and stories PDF | अब फाइलें नहीं रुकती

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अब फाइलें नहीं रुकती

अब फाइलें नहीं रुकती

लेखक: निशिकान्त

प्रकाशक: सुनील साहित्य सदन, ए-101, उत्तरी घोण्डा, दिल्ली,

पृप्ठ: 128

मूल्य: 40 रु.

प्रस्तुत पुस्तक में निशिकान्त के छोटे-बड़े 34 व्यंग्य लेख संकलित हैं। अधिकांश लेखों का तेवर राजनीति से ओत-प्रोत है, कुछ लालफीताशाही से सम्बन्धित हैं और कुछ हल्के-फुलके लेख हैं। निशिकान्त के पास वह मुहावरा है जो व्यंग्य को धारदार हथियार बनाता है। उनमें मारक क्षमता भी है मगर शैलीगत वैशिप्ट्य का अभाव है।

यदा-कदा जब वे राजनीति के दोगलेपन पर प्रहार करते हैं तो वे सफल भी होते है।

जैसे- ‘‘ मुझसे अभागा नेता कौन होगा ? सिर्फ मेरा चुनाव क्षेत्र ऐसा है, जहां पिछले दो साल से न बाढ़ आई न सूखा पड़ा।’’ का प्रश्न जैसे विचारात्मक निबंध तथा पत्रकारिता, अर्थशास्त्र एवं राजनीतिक निबंध संकलित कर आज की पीढ़ी को उस महान व्यक्तित्व के विचारों से अवगत कराने का महत्वपूर्ण कार्य भी किया हैं।

इस संग्रह में संकलित विद्यार्थीजी की रचनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि उन्होंने अपनी चिन्तना से, अपनी भावना से राप्ट जीवन को समृद्ध किया है। ये रचनाएं सभी दृप्टियों से प्रतिनिधित्व करने वाली रचनाएं कही जा सकती हैं। इस संकलन में जहॉं भाव, भापा, विचार, शैली, जन-जागरण एवं सामाजिक-चेतना में योग देने वाले लेख हैं तो कुछ रचनाएं ऐसी भी हैं जो यह प्रकाशित करती हैं कि विद्यार्थीजी ने अपनी भावनाओं में मानस को आन्दोलित करने वाले किसी भी विचार, व्यक्ति या घटना पर कलम चलाई है तो उनकी शैली पत्रकारिता से अलग भावात्मक शैली के रुप में निखार कर सामने आई हैं।

सच्चे राप्टीय नेता, अनुकरणीय पत्रकार, सच्चे समाजसुधारक व मानव मूल्यों के लिए पल-पल संघर्परत इस जुझारु व्यक्तित्व ने अपनी रचनाओं से देश में नव-जागरण का कैसा महत्वपूर्ण सन्देश दिया- इसकी जानकारी कराना संपादक का उद्देश्य है जिसमें वह कुछ सीमा तक सफल रहा है।

लेकिन जब निशिकान्त राजनीति को छोड़कर अन्य विपयों पर लिखते हैं तो ज्यादा वजनदार हो जाते हैं। वैसे भी पिछले कुछ वर्पाे में राजजनीति पर इतने व्यंग्य आये हैं कि नया लिखा जाना मुश्किल लगता है।

कुछ रचनाएं कहानीनुमा ढंग से लिखी गई हैं। इस प्रकार की रचनाओं में एक प्रकार की सपाटबयानी आ जाती है जो व्यंग्य की धार को भोंथरा कर देती है। इससे बचा जाना चाहीए।

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पुस्तक: उलझे तार

लेखक: मुनि सुखलाल -कविता

प्रकाशक आदर्श साहित्य संघ, चूरु राजस्थान

मूल्य: 10 रु.

पृप्ठ: 84 ।

उलझे तार: गहरी संवेदनाओं का संसार

मुनि सुखलाल जैन साहित्य के प्रकाण्ड पण्डित और यशस्वी लेखक है। मुनिश्री के काव्य संकलन ‘उलझे तार’ को पढ़ते हुए बार बार गहरी संवेदनाओं की अनुभूति होती है।

लगभग सभी कविताएॅं छन्दोबद्ध है और गेय है।

मुनि ने ‘अपनी ओर से’ के अन्तर्गत लिखा है-‘‘ जीवन शाशवत-स्वर होते हुए भी खंडशः जीया जाता है अतः उसे परिभापा का मुकुट पहनाना असंभव है। जीवन के इसी शाशवतस्वर की कविताओं का गुच्छा है यह संग्रह। कवि कहता है:

‘ स्नेह पिला पाओं उतने ही दीप जलाओ।’ ‘पृ. 3’

इसी प्रकार कवि-वाणी है:

‘खोलो मन के द्वार, विचारों का दम ना घुट जाए।’ पृ. 5

इसी प्रकार कवि दीपक के माध्यम से पृ.29 पर कहता है:

‘किन्तु तुम्हें तो जलना होगा, रख कर अपनी शिखा सुनिश्चल।’

वास्तव में कोई सन्त कवि ही निरन्तर जलने की बात कर सकता है।

कवि ने कई स्थानों पर सुन्दर प्रतीक, बिम्बों का प्रयोग किया है। पृ. 66 पर ‘मन बनजारा’ पृ. 74 पर क्षितिजपर सेवरा, पृ. 84 पर पीड़ा का वरदान।

इन प्रतीकों-बिम्बों के माध्यम से कवि ने अपनी चनीभूत पीड़ाओं को वाणी दी है। कवि ने गहरी संवेदनशीलता तथा मानवीय सरोकारों पर कलम, चलाई है।

पुस्तक का द्वितीय संस्करण लोकप्रियता का प्रमाण है, मगर किसी व्यक्ति की ष्शादी आर्थिक सहयोग से पुस्तक का प्रकाशन मुझे उचित नहीं लगता।

पुस्तक का गेट अप, कवर सुन्दर है। कागज भी अच्छा है और मूल्य कम। मुनिश्री की आगामी रचनाओं का इन्तजा़र रहेगा।