Lata sandhy-gruh - 6 in Hindi Moral Stories by Rama Sharma Manavi books and stories PDF | लता सांध्य-गृह - 6

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लता सांध्य-गृह - 6

पूर्व कथा जानने के लिए पिछले अध्याय अवश्य पढ़ें।

छठा अध्याय
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गतांक से आगे….
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छठें कमरे के निवासी थे विभव सक्सेना एवं उनकी पत्नी अंजू देवी।विद्युत विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद एक स्थायी ठिकाने के लिए बना-बनाया डुप्लेक्स घर ले लिया तीन बेडरूम का।इकलौता बेटा MBA करने के बाद अपने ही शहर में जॉब करने लगा था, उसी के साथ कार्यरत थी समिधा, दोनों का परिचय शीघ्र ही प्रेम में परिवर्तित हो गया।जब बेटे ने अपने प्यार के बारे में बताया तो उन्होंने सहर्ष दोनों को विवाह बंधन में बांध दिया।समिधा उनके घर में बहू बनकर आ गई।कुछ ही समय में वह बेटे से ज्यादा प्रिय हो गई।
समिधा थी ही ऐसी हँसमुख कि जबतक घर में रहती तो ऐसा प्रतीत होता कि घर का हर कोना मुस्कुरा रहा है।घर के कार्यों में थोड़ी कच्ची थी, लेकिन उनका ध्यान बहुत रखती थी।घर की व्यवस्था अंजू जी गृह सहायिका की सहायता से अच्छी तरह संभाल लेती थीं।एक वर्ष पश्चात ही पोता प्रसन्न घर में आ गया।बच्चे की देखभाल के लिए समिधा जॉब छोड़ना चाहती थी लेकिन विभव एवं अंजू जी के समझाने पर प्रसूतावकाश के बाद जॉब कंटीन्यू कर लिया।
जब प्रसन्न प्रथम बार स्कूल जा रहा था तो अंजू जी की आंखें डबडबा आईं तो पोते ने कहा कि दादी रोओ मत,जल्दी ही घर आ जाऊंगा।
उनके जीवन में चारों तरफ खुशियों का साम्राज्य था।एक व्यक्ति को धनधान्य से सम्पन्न एक प्रेमपूर्ण परिवार के अतिरिक्त और क्या चाहिए होता है।समय पँख लगाकर उड़ रहा था कि एक दिन उनकी हंसती-मुस्कुराती जिंदगी को दुर्भाग्य की नजर लग गई।बेटा-बहू साथ ही घर लौटते थे।उस दिन सामने से आते ट्रक ने उनकी कार को टक्कर मार दिया।ड्राइव करते बेटे की तो घटना स्थल पर ही मौत हो गई, चोट तो समिधा को भी अत्यधिक लगी थी लेकिन अभी उसका जीवन शेष था, अतः डॉक्टरों के अथक प्रयास ने उसकी जिंदगी बचा ली।युवा पुत्र के आकस्मिक निधन के आघात को सहन करना अत्यंत दुरूह कार्य था।विभव जी एवं बच्चों के मित्रों ने ही सब कुछ सम्भाला था।समिधा के शरीर के घाव तो भर गए,परन्तु मन की पीड़ा का तो कोई ओर-छोर ही नहीं था,वह तो अपने साथ साथ प्रसन्न की तरफ से भी उदासीन हो गई थी।
विभव जी ने स्वयं को तो सम्हाला ही,प्रसन्न,समिधा तथा अंजू जी को भी सम्हालने में जुट गए।समय सबसे बड़ा मरहम होता है।कुछ वक़्त तथा कुछ विभव जी के प्रयासों से जिंदगी की गाड़ी पटरी पर लौटने लगी थी, हालांकि यह रिक्ति तो ऐसी थी जिसकी भरपाई तो सम्भव ही नहीं थी।
तीन-चार माह बीतने के उपरांत उन्होंने समिधा को ऑफिस भेजना प्रारंभ कर दिया।कार्य की व्यस्तता उसे दुःख सागर से उबरने में सहायक हो रही थी।प्रसन्न की किसी शरारत पर जब समिधा महीनों बाद मुस्कराई थी तो विभव जी ने राहत की सांस ली थी।भले ही उसने जीना शुरू कर दिया था, किंतु पुरानी समिधा तो पति के साथ ही चली गई थी।
समिधा के भविष्य के लिए विभव जी काफ़ी चिंतित रहते, आखिर उसकी उम्र ही क्या थी,मात्र 32 वर्ष की ही तो थी वह।भले आर्थिक समस्या तो नहीं थी ,पर वे बुजुर्ग पति-पत्नी कबतक उसका साथ देते।
शिखर समिधा एवं बेटे का सीनियर तथा मित्र था।दुःख के समय वह एक मजबूत सहारा बन कर आया था और अब तो वह उनका दूसरा बेटा बन चुका था।सुदर्शन व्यक्तित्व था उसका एवं बेहद समझदार।इन दो वर्षों में प्रसन्न तो उसके बेहद करीब आ गया था।एक दिन शिखर प्रसन्न के साथ खेल रहा था, समिधा किचन में चाय बना रही थी कि तभी प्रसन्न अचानक से कह बैठा कि आप मुझे मेरे पापा जैसे अच्छे लगते हैं।वह तो बच्चा था,जो उसके मन में आया कह बैठा, शिखर कुछ अचकचा गया।किंतु खुले विचारों वाले विभव जी के मन में एक सुविचार कौंध गया कि यदि यह सत्य हो जाय तो समिधा के जीवन में खुशियां दुबारा लौट आएंगी।
अब उन्होंने सभी बातों पर बारीकी से निरीक्षण करना प्रारंभ किया।कभी कभी शिखर की आँखों में समिधा के लिए स्नेह की चमक दिखाई पड़ती, परन्तु समिधा के लिए वह मात्र मित्र था।उन्होंने सर्वप्रथम अंजू जी से इस विषय में विचार-विमर्श करना उचित समझा।थोड़े ना-नुकुर के बाद वह सहमत हो गईं क्योंकि समिधा के प्रति स्नेह तो उन्हें भी अत्यधिक था।
फिर एक दिन उन्होंने शिखर के समक्ष स्पष्ट रूप से समिधा से विवाह का प्रस्ताव रखते हुए कहा कि कोई बाध्यता नहीं है, तुम समय लेकर अच्छी तरह से सोच -विचार कर लो।
शिखर ने कहा कि मुझे तो अत्यधिक प्रसन्नता होगी क्योंकि मैं प्रसन्न से बेहद प्यार करने लगा हूँ, साथ ही समिधा से भी अत्यंत प्रभावित हूं, परन्तु सर्वप्रथम तो आप उससे इजाजत लीजिए।दूसरी एक ऐसी बात है मेरे बारे में, जिसे आप सभी का जानना अति आवश्यक है।विभव जी की आज्ञा पाकर शिखर ने बताया कि किशोरावस्था में उसका एक्सीडेंट हो गया था, जिसमें चोट लगने के कारण उसके पिता बनने की क्षमता समाप्त हो गई थी, इसीलिए उसने अबतक विवाह नहीं किया था, लेकिन वैवाहिक जीवन में कोई बाधा नहीं आएगी।
खैर, पहले तो समिधा ने दूसरे विवाह हेतु मना कर दिया।फिर विभव एवं अंजू जी के समझाने पर कुछ समय में विवाह के लिए राजी हो गई।उन्होंने समिधा को बेटी की तरह विदा किया।देखते-देखते दो साल बीत गए।शिखर ने अपने प्रेम से समिधा एवं प्रसन्न के जीवन को पुनः खुशियों से भर दिया,जो उनके चेहरों पर साफ परिलक्षित होता था।
शिखर-समिधा ने काफ़ी प्रयास किया कि वे उनके साथ ही चलकर रहें, परन्तु वे तैयार नहीं हुए, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उनके साथ उनके बेटे की मौजूदगी का अहसास उन्हें कभी भी व्यथित करे।इसी मध्य शिखर का स्थानांतरण दूसरे शहर में हो गया तो समिधा ने भी उसी शहर में ट्रांसफर करवा लिया।
फिर वे अपने मकान को किराए पर उठाकर सांध्य-गृह में शिफ्ट हो गए।कभी बच्चे मिलने आ जाते है, कभी वे लोग जाकर मिल आते हैं।
क्रमशः ……
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