इश्क़ 92 दा वार (पार्ट10)
जावेद और उसका दोस्त नदीम शहर के एक व्यस्ततम इलाके की गलियों कूचों में से होते हुए लतीफ भाई के मुकाम पर पहुँचे थे.. किसी किले नुमा दीवार की तरह चारों तरफ से बंद लतीफ भाई का ठिकाना था जिस दीवार में अंदर जानें के लिए एक लकड़ी का बड़ा सा दरवाजा था जिसे देख कर ऐसा लग रहा था ये इस ज़माने की कारीगरी का नमूना नहीं है.. जावेद चारों तरफ अपनी गर्दन घुमा घुमा कर देख रहा था.. नदीम ने दरवाज़े पर लटक रही लोहे की जंजीर से दरवाजा दो तीन बार पीटा था.. तभी ऊपर से किसी ने अपनी गर्दन छोटे से झरोखे से निकाल कर देखते हुए पूछा.
कौन है भाई..?
नदीम- अरे मुज्जू भाई मैं नदीम.. असलवालेकुम भाई..
मुज्जू- अरे नदीम... वालेकुमसलाम..! खैरियत से है.
नदीम- हां भाई.. ये जावेद भाई है इन्हे लतीफ भाई से मिलना था.
मुज्जू- दो मिनट नदीम अभी दरवाज़ा खुलवाता हूं. (और वो अपनी मुंडी अंदर कर लेता है)
जावेद- कोई गड़बड़ तो नहीं होंगी भाई.
नदीम- कुछ नहीं होगा.. बस तूं अपने दिल की बात भाई को बता देना भाई की इतनी बात है अगर उनके दिमाग़ में तेरी बात बैठ गयी तो तूं देखना तूने जो ख्वाब में भी ना सोचा होगा वो कर देंगे मंत्री पुलिस सब सलाम मारते है भाई को.
तभी चुर्र की आवाज करता हुआ बड़े दरवाज़े में बना एक छोटा सा गेट खुलता है गेट खुलते हीं नदीम जावेद का हाथ पकड़ कर अंदर उसे अंदर लें जाता है. अंदर का नज़ारा किसी मोटर गेराज से कम दिखाई नहीं पड़ रहा था अंदर गाड़ियों को डिस्मेंटल किया जा रहा था काफ़ी सारे लोग काम पर लगे थे सामने हीं डलहान में एक लकड़ी के तखत पर लगभग 40 साल की उम्र का दुबला पतला सा नौजवान बैठा था जिसे देख कर नहीं लग रहा था के वही लतीफ मियां है लेकिन जावेद का सोचना यहां गलत साबित हो चुका था. पास पहुंचते हीं नदीम ने सलाम किया
नदीम- भाई सलवालेकुम.. !
लतीफ- आजा आजा नदीम आ बैठ.. !
जावेद- सलाम भाई
लतीफ- सलाम सलाम.. इसी के बारे में तुम बता रहे थे.
पास में रखी कार की डबल सीटर पर दोनों बैठ जाते है.
लतीफ- हां तो जावेद क्या परेशानी है.
जावेद- जी भाई वो.
लतीफ- डरो मत जो भी बात है खुल कर बताओ.
जावेद- भाई मुझें इश्क़ हो गया है.
लतीफ- अभी तुम्हारी उम्र हीं क्या है.. लगता है किसी अच्छे स्कूल मे तालीम हांसिल कर रहे हो.
नदीम- जी भाई इनके अब्बा पी एच क्यू में सहाब है.
लतीफ- अच्छा
नदीम- भाई मसला ये है की लड़की हिन्दू है और निहायती खूबसूरत है भाई.
लतीफ नदीम की बात सुनकर थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है.. लतीफ की चुप्पी जावेद को बेचैन कर देती है जावेद लतीफ और नदीम की शक्ल देखता है.
लतीफ- क्या वो तुमसे भी प्यार करती है..?
नदीम- लेकिन भाई जावेद को पसंद है.
लतीफ- वो किसी और को तो नहीं करती
दोनों चुप हो जाते है
लतीफ - हूं मतलब मसला पेंचीदा है..
जावेद निराशा भरी निगाहों से नदीम को देखता है.
नदीम- भाई बहुत आस से आपके पास लेकर आया था इसे अब आप हीं कुछ रास्ता दिखाओ भाई..
लतीफ जावेद की तरफ देखता है
लतीफ- ठीक है कोई रास्ता निकालते है लेकिन थोड़ा वक़्त लगेगा.
जावेद- लेकिन भाई जो भी करना होगा जल्दी करना होगा हमारे पास एग्जाम तक का वक़्त है.
लतीफ- क्यों क्या उसके घर वालों ने उसकी शादी कही और पक्की कर दी..
जावेद- नहीं भाई अभी उसके पिताजी का पिछले महीने हीं इंतकाल हुआ है एग्जाम के बाद वो लोग दिल्ली शिफ्ट हो जाएंगे.
लतीफ-और कौन- कौन है घर में
जावेद- और कोई नहीं बस उसकी मां है और वो है.
लतीफ- ठीक है देखते है... और हां अभी कुछ दिन तुम उसके आसपास मत फटकना... और वो लोंडा कौन है जिससे वो सेट है..?
जावेद- वो मनु... हमारे हीं स्कूल में पढ़ता है
तभी लतीफ का एक आदमी आकर कहता है भाई मौलाना सहाब ने आपको मस्जिद में बुलाया है
लतीफ- क्यों क्या बात है...?
आदमी- अब ये तो मुझें पता नहीं.. !
लतीफ मस्जिद को जानें के लिए खड़ा होता है
लतीफ- नदीम.. जब इसे बुलाये तभी जावेद को लेकर आना कुछ करते है इसके लिए.
और लतीफ उस आदमी के साथ मस्जिद के लिए निकल जाता है.
जावेद नदीम से गले मिलते हुए
जावेद- शुक्रिया नदीम भाई.
नदीम- देखता जा जावेद ये लतीफ भाई की ज़ुबान है जो कह देते है वो करके हीं दिखाते है.. चल अब..
और दोनों वहां से निकलते है
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स्कूल में लंच हो चुका था सारे बच्चे स्कूल के परिसर में बिखरे हुए थे वही एक पेड के निचे रिया अनु और मनु बैठे लंच कर रहे थे..
रिया- आज जावेद दिखाई नहीं दे रहा..
अनु- यार तूं उसकी बात मत कर.. (अनु रिया को गुस्से में बोलती है)
रिया- सॉरी.. सॉरी... अब नहीं करूंगी लेकिन फिर भी उससे तुम दोनों को सतर्क रहने की ज़रूरत है
मनु- मैं तो उसे बहुत अच्छा अपना दोस्त समझता था लेकिन मैं गलत था.
अनु- मुझें पता है वो चुप बैठने वालों मे से नहीं है... मुझें बहुत टेंसन हो रही है.. वो स्कूल तो आया है पर आज वो क्लास में भी दिखाई नहीं दिया.
रिया- उसकी संगत भी अच्छे दोस्तों की नहीं है.. तूने उसके दोस्त को नहीं देखा कैसा मवाली सा दिख रहा था..
मनु- हां वो मेकेनिक नदीम होगा..
अनु- तुम जानते हो उसे..?
मनु- हां उसकी खाला का लड़का है दो तीन बार जेल भी जा चुका है चोरी के केस में
अनु- है भगवान फ़िर भी तुम जावेद से दोस्ती रखें हुए हो.?
मनु- अब वो दोस्त तो तुम्हारा भी तो है.
अनु- वो मेरा कोई दोस्त वोस्ट नहीं है वो तो फालतू में जबरन मेरे आगे पीछे घूमता है.. वो भी तुम्हारे चक्कर में..
रिया- ओके ओके अब ये सब छोड़ो... मनु अब तुम जावेद को अनु के बारे में कोई भी बात नहीं बताओगे.
मनु- ठीक अब नहीं बताऊंगा और तुम भी..
तभी लंच खत्म होने की बेल की आवाज़ सुनाई देने लगती है सभी अपना अपना टिफिन समेटते हुए अपनी अपनी क्लास की तरफा जानें लगते है
मनु- शाम को साथ हीं चलेंगे
अनु-अगर आपके पापा जी आ गए तो
मनु- (हस्ते हुए ) अरे अब नहीं आएंगे यार..
और तीनों जल्दी जल्दी बातें करते हुए अपनी अपनी क्लास में चलें जाते है..
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कंटीन्यू (पार्ट -11)