कहानी--
शुरूआत
आर. एन. सुनगरया,
रवि के मस्तिष्क में अनेकों कल्पनाऍं हिलोरें लेते-लेते कुछ कल्पनाऍं होंठों पर आ गईं...........
सोचा था स्वतंत्र रहकर समाज सुधार के लिए कुछ रचनात्मक कार्य करूँगा, मगर मुझे क्या मालूम था कि मेरे रोम-रोम, मेरी डॉक्टरी डिग्री, सब पर किसी अज्ञात महापुरूष का अधिकार है। मेरा एक-एक रोम, खून का एक-एक कतरा उसके धन से विकसित हुआ है......
वह एकाएक चुप हो गया और जहॉं चल रहा था, कड़ी धूप में वहीं रूक गया। ठन्डा चश्मा उतारकर सम्मुख गहरी छॉंह में देखता ही रह गया, आहा! कितना सुहावना सुन्दर दृश्य है, रेशमी छल्लेदार लटें हवा का सहारा लेकर कोमल कमल कपोलों का चुम्बन ले रही हैं। लवलीन लोचनों से मदिरामयी प्रकाश-किरणें पुस्तक के पृष्ठ पर टकरा रही हैं। रसीले रसगुल्ले रूपी होंठ बारम्बार एक-दूसरे का स्पर्श कर रहे हैं। शॉंत-समीर में बैठी वह साहित्य का आनन्द ले रही है। काश! मैं पुस्तक का पृष्ठ होता। वह उसके करीब बढ़ा। डॉ. रवि तुम! तपती दुपहरी में गॉंव आये हो? तुम तो कश्मीर......।‘’
‘’हॉं रश्मि कश्मीर तो जरूर जाता।‘’ वह उसके बहुत करीब आ गया, ‘’लेकिन अचानक इसी समय मुझे इस गॉंव आना पड़ा।‘’ वह बैठ गया।
‘’अचानक?’’ वह मुस्कुराने लगी, ‘’या मेरी याद खींच लाई तुम्हें।‘’
‘’तुम्हारी याद?’’ वह और कुछ कहना चाहता था, मगर रश्मि को बड़ी मादक नज़रों से देखने लगा, ‘’तुम्हारी याद ही मेरा सहारा है।’’
‘’मगर मैं जानता हूँ मुझ में और तुम में वही अन्तर है, जो एक अपवित्र नाले और एक पवित्र नदी में होता है।‘’
‘’शायद तुम भूल रहे हो कि नाला नदी में मिलकर उतना ही पवित्र हो जाता है, जितना वह अपवित्र था।‘’ रश्मि के चेहरे पर क्रोध झिलमिलाने लगा, फिर उसे उतना ही सम्मान मिलता है, जितना उस पवित्र नदी को प्राप्त है।‘’
‘’लेकिन......’’
‘’लेकिन क्या?’’ वह उसे जैसे डॉंट रही हो, ‘’तुमने डॉक्टरी पास की है। मगर हीन भावना नहीं निकाल सके। हर मरतबा रट लगाये रहते हो, हरिजन हूँ, ऊँची जाति की लाइन में नहीं हूँ, मुझे उच्चजातिय लोग सम्मान नहीं देंगे....कैसे नहीं देंगे? मैंने तुमसे शादी कारने का निश्चय किया है। मेरा निश्चय कोई नहीं बदल सकता।‘’
‘’मैं जानता हूँ जितना प्यार मुझे तुमसे है, उससे ज्यादा तुम मुझे चाहती हो।‘’ रवि की नज़रें रश्मि के चिकने चेहरे पर तैरने लगी, ‘’मगर समाज हमें मिलने नहीं देगा?’’
रश्मि ने कुछ अजीब सी सूरत बना कर उसकी ओर देखा, फिर वह उस किताब के पन्ने पलटने लगी, जिसे वह अभी कुछ समय पूर्व पढ़ रही थी।
रवि ने पास-पड़ोस का अवलोकन किया। कई मीटरों तक आम के वृक्षों की घनी छाया है। करीब ही कुँआ है, जो आधुनिक साज-सज्जा से सुसज्जित है। पड़ोस में अनेक पौधे फूल खिला रहे हैं। गर्म हवा उस स्थान पर आते ही ठण्डी हो जाती है। पास पड़ोस के खेतों में किसान अपना पसीना बहा रहे हैं।
‘‘मैंने तुम्हें एक प्रतिभाशाली, उभरते हुये लेखक के रूप में भी देखा है।‘’ रश्मि ने उसे उसके खास रूप और उद्धेश्य की याद दिलाई, ‘’तुम्हीं कहा करते हो कि तुम हरिजन समाज के दो मजबूत हाथ हो और ये दो हाथ हरिजन समाज की भलाई के लिए, उन्हें शोषण से मुक्त करने के लिये, उन्हें उच्च समाज में सम्मानित स्थान दिलाने के लिये, जो भी रचनात्मक कार्य हो सकेंगे करोगे। इसलिये मैं तुम्हारी तरफ आकर्षित हूँ कि तुम अपने बीच की जॉंति-पॉंति की दीवार तोड़कर अपने जीवन-मार्ग में अपने उद्धेश्य में हिस्सेदार कर लोगे।‘’
‘’लेकिन उद्धेश्य प्राप्ति की यात्रा अकेले को ही तय करनी होती है।‘’ रवि ने सारा काम अपने सर लेना चाहा।
‘’नहीं, हम दोनों एक होकर, हर कदम साथ-साथ उठायेंगे।‘’ रश्मि ने अपना अटल निश्चय उसे बता दिया, ‘’मेरी हर सॉंस तुम्हारी सॉंस बन गई है।‘’
‘’पिछले कई सालों से तुम मुझे समय-समय पर प्रेरित करती रही हो।‘’ रवि ने स्पष्ट कह दिया, ‘’तुम्हारे परामर्श के बिना मैं कुछ भी नहीं कर पाता। मैं अपना कैरियर निश्चय नहीं कर पा रहा हूँ कि मैं क्या करूँ। यही निश्चय करने में यहॉं आया हूँ।‘’
‘’तुम अपना क्लिनिक ही खोलो।‘’ रश्मि ने विस्तृत सलाह दी, ‘’मैं तुम्हारे साथ रहूँगी, तुम ऐसे साहित्य का सृजन करो, जो अछूत समाज की जड़ता और हीनभावना खत्म कर सके। उनके रहन-सहन, वातावरण, व्यवहार को बदल सके। जो उनमें ऐसी भावनाऍं जगा सके कि वे भी अपने आप को इन्सान समझने लगे। उन्हें आत्मविश्वास हो जाये कि वे भी अपनी समस्याओं को लेकर लड़ सकते हैं। बच्चा–बच्चा उच्च से उच्च शिक्षा प्राप्त करने की लालसा रखने वाला हो जाये। सरकार ने उन्हें जितनी सुख-सुविधाऍं देने का प्रस्ताव फायलों में फैला रखे हैं, वे सब पूर्ण रूप से प्राप्त करने के लिए तन-मन से क्रियाशील हो जायें। अपने अधिकारों के लिए लड़ सकें, जुल्मों के खिलाफ कड़ी आवाज उठा सकें। वे इस काबिल हो जायें कि उनके मार्ग में बाधक जो भी चट्टानें हैं, उन्हें पीस सकें। वे उन लोगों से उनके कान पकड़कर जवाब-तलब कर सकें, जो उनको दी गई सहूलियतों (या कहना चाहिए मुआवजों) को बीच में निगल जाते हैं। वे इतने सामर्थ्यशाली हो सकें, जो उनका गिरेबान पकड़ सकें, जो उनके मामलों को दबा देते हैं। वे इतने प्रभावशाली और श्रद्धा के पात्र हो जायें कि उन्हें प्रत्येक सभा की प्रथम पंक्ति में स्थान मिले। दूसरी उच्च जाति उनके कंधे से कन्धा मिलाकर देश कल्याण की योजनाऍं बनाने को मजबूर हो जायें.....’’
रश्मि के हृदय में ना जाने कब से ये स्रोत फूटना चाहता था। आज फूटा तो बन्द होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
रश्मि ने पुन: भाषण की तरह बोलना शुरू कर दिया, ‘’हम गॉंव-गॉंव जायेंगे शिविर लगायेंगे, उन्हें रहन-सहन, सफाई-स्वास्थ आदि की शिक्षा देंगे और फिर तुम तो डॉक्टर हो। उन्हें अपनी साहित्यिक सरल भाषा से प्रभावित करेंगे, वे अपने बच्चों को किस तरह पढ़ा-लिखा कर प्रथम पंक्ति में स्थान दिला सकते हैं। उन्हें उन कारणों से अवगत करेंगे जिनकी वजह से वे आज भी गुलामी जैसी जिन्दगी जी रहे हैं। हम उन्हें उन फिजूल रश्मों-रिवाजों को छोड़ने के लिये कहेंगे, जो उनकी आर्थिक गुलामी का कारण बनते हैं।‘’
‘’ये मत भूलो रश्मि।‘’ इससे पूर्व कि रश्मि आगे कुछ कहती रवि बोल पड़ा, ‘’हम रश्मों-रिवाजों को नहीं छुड़वा सकते, क्योंकि ये उनके जीवन के अंग बन चुके हैं। इन्होंने उनके हृदयों में अपना अमिट स्थान बना लिया है।‘’
‘’लेकिन हम उनको अनेक बाधाओं के बावजूद आगे बढ़ना तो सिखा सकते हैं।‘’ रश्मि ने आगे सुझाव दिया, ‘’हम उन्हें ये तो सिखा ही सकते हैं कि वे अपनी वर्तमान व्यवस्था में किस तरह आगे बढ़ सकते हैं।‘’
‘’आओ अभी तो उस काम को करते हैं। जिसके लिये मैं यहॉं आया हूँ।‘’ रवि ने खड़े होते हुये गॉंव आने का कारण बताया, यानि बातें करने का विषय बदला, ‘’मुझे सेठ धरमदास, जो यहॉं के चौधरी हैं, से मिलना है।‘’
‘’सेठ धरमदास चौधरी!’’ रश्मि उसे ताकते हुये तुरन्त खड़ी हो गई, ‘’क्या काम है उनसे?’’
‘’काम?’’ रवि कुछ गम्भीर हो गया, ‘’मेरी डॉक्टरी डिग्री पर उन्हीं का अधिकार है।‘’
‘’उन्हीं का अधिकार?’’ रश्मि को रवि पर विश्वास नहीं हो रहा है।
‘’हॉं!’’ रवि ने स्वीकार करते हुये आगे कहा, ‘’मैं उनसे जानना चाहता हूँ। वह कौन सा कारण है, जिसने उन्हें मुझे डॉक्टर बनाने के लिये प्रेरित किया।‘’
रश्मि की सूरत पर आश्चर्य छा गया। उसने रवि को देखा, जो उससे नज़रें मिलाते हुये कह रहा है, ‘’हॉं रश्मि, मेरे साथ यह धोखा क्यों किया गया। मुझसे झूठ क्यों बोला गया कि तुम्हारे पिताजी ने तुम्हें डॉक्टर बनाने के लिए रूपये बैंक में रख छोड़े हैं। जबकि मेरे पिताजी चौधरी साहब के यहॉं गुलामी करते थे।‘’
‘’गुलामी!’’ रश्मि की निगाहें फिर आश्चर्य उत्सर्जित करने लगीं।
‘’हॉं गुलामी!’’ रवि क्रोधित हो गया, ‘’वे भी औरों की तरह एक जानवर सा बदतर जीवन काटते थे। उन्हें भी अनेक अत्याचारों को सहना पड़ा और यहॉं तक कि इन अत्याचारियों ने ही उनकी जान ले ली।‘’
‘’जान ले ली?’’ रश्मि का स्वर फूट पड़ा, ‘’मेरे पापा ऐसा नहीं कर सकते।‘’
‘’क्या?’’ रवि ने रश्मि की दोनों बाहें कसकर पकड़ ली, ‘’तुम्हारे पापा.....क्या चौधरी जी तुम्हारे पापा हैं?’’
‘’हॉं!’’ आश्चर्य के साथ चल दी। रवि भी उसके पीछे हो लिया। पास-पड़ोस के घने वृक्षों और खेतों को पीछे छोड़ते हुये अब वे गॉंव के टूटे-फूटे गंदे, छोटे बड़े कवेलूदार मकानों के समीप से गुजर रहे हैं।
‘’अब समझा तुम अपने पिताजी का नाम क्यों नहीं बताती थीं।‘’ रवि ने चुप्पी छोड़ी।
‘’नहीं यह गलत है। मुझे अपने पिताजी का यह रूप बिलकुल नहीं मालूम।‘’ रश्मि ने अपने पिताजी का परिचय दिया, जो उसे मालूम था, ‘’पास-पड़ोस के गॉंवों में भी पापा की तरह धर्मात्मा कोई नहीं है। उन्होंने अनेक धर्म ग्रन्थों का अध्ययन किया है। सभी को ज्ञानवर्धक प्रवचन सुनाते हैं। हर व्यक्ति की मदद करते हैं। उनसे सहानुभूति रखते हैं। हाँ गॉंव का न्याय करते हैं। सभी उन्हें बाबा कहते हैं। उनका आदर करते हैं। उनकी हर बात पत्थर की लकीर होती है। लेकिन......’’
‘’लेकिन वे अत्याचारी थे?’’ दोनों सन्न रह गये।
वे एक आलीशान मकान के सामने कुछ पल रूके, फिर प्रवेश किया। आगे रश्मि पीछे रवि।
रश्मि ने अपने पापा के कमरे में प्रवेश किया।
‘’आओ....आओ बेटी, आओ।‘’ चौधरी साहब कोई लाल जिल्द वाली किताब पढ़ रहे थे, ‘’कोई काम तो नहीं मेरे लायक?’’
‘’नहीं पापा।‘’ रश्मि कृतिम दुलारपूर्वक बोली, ‘’आप मुझसे कहते थे ना पापा कि उस लड़के से परिचय कराओ जिसने तुम्हारी इज्जत बचाई।‘’ वह उनके पास पहुँच गई। दरवाजे की तरफ देखकर बोली, ‘’ये है वह लड़का रवि.....’’
रश्मि ने देखा, जैसे ही रवि के चेहरे पर पापा की नजर पड़ी, वे मूर्तिवत्त हो गये। उनके चेहरे पर आश्चर्य रेखाऍं स्पष्ट उभर आईं।
बाबा ने मन ही मन सोचा, अजब इत्तेफाक है, पच्चीस वर्ष पहले इसके पिता ने इस घर की इज्जत बचाई और अब इसने.......यह सोचते-सोचते एक क्षण के लिये उनकी ऑंखों में पच्चीस वर्ष पूर्व का एक अत्यन्त वीभत्स दृश्य कौंध गया.........
........रश्मि की मॉं बहुत ही लज्जा जनक खड़ी है। उसके कपड़े जगह-जगह से फट गये हैं। वह बिलकुल अचेतावस्था में है। हल्लू हरिजन और रामूदादा उसके एक-एक हाथ अपने कंधों पर रखकर घर की तरफ ला रहे हैं। मेरी नज़रें हल्लू पर अग्नि बरसाने लगीं, मेरे हाथ में कुल्हाड़ी थी। मैंने पूर्ण शक्ति से उसकी खोपड़ी में दे मारी। वह चीख मारता थर-थर्राता हुआ जमीन पर फिसल पड़ा। तभी रामूदादा ने कहा, ‘’अरे! पापी ये तूने क्या किया, मैं तो अभी आया हूँ। इसी ने तो तेरी बीबी की इज्जत अपनी जान लगाकर बचाई है और तूने इसे ये इनाम दिया।‘’
मैंने उसे काँपते तड़पते हाथ पैर मरोड़ते हुये देखा। वह, खून में लथ-पथ लुढ़कते हुये मेरे पैरों में आया। तभी उसके थर-थर्राते होंठों से एक वाक्य उचक पड़ा, ‘’मेरे मुन्ने का ख्याल रखना।‘’ वह सदा के लिए चला गया, लेकिन वह दृश्य मेरे हृदय में अभी भी तरोताजा है.........
‘’पापा!’’ रश्मि ने उसका परिचय दोहराया। ‘’यह है रवि इसी की वजह से मैं आज आपके सामने हूँ।‘’
रवि हाथ जोड़कर नमस्ते कर रहा है।
चौधरी साब ने उसे पास बुलाया, ‘’आओ बेटे, आओ, बैठो।‘’
वह उनके सामने बैठ गया और अपने सारे प्रश्न चौधरी साहब के सामने रख दिये, ‘’मुझे रामूदादा ने बताया कि आपने मुझे पढ़ाया है, आखिर क्यों? जबकि आप हमारे पूर्वजों पर क्रूर से क्रूर अत्याचार करने में भी नहीं हिचकिचाते थे।‘’
चौधरी साहब ने रश्मि और रवि को एक नज़र देखा और सब राज, जो उनके दिल पर बोझ था, बताना ही उचित समझा। वे उठे और खिड़की की ओर देखते हुये सुनाने लगे, ‘’तुमने ठीक कहा बेटे, मैंने तुम्हारे पूर्वजों को बहुत सताया। उनको कई दिनों भूखे पेट रखा। मारा पीटा उन्हें बेइज्जत करता रहा। उनके घर जला डाले उन्हें पानी तो क्या कीचड़ भी ठीक से नहीं पीने दी। उनसे गुलामी करवाई।‘’
एक दिन हमारा जाति वाला, हरामी-पापी रश्मि की मॉं को बेइज्जत करने के लिये उस पर टूट पड़ा, लेकिन तुम्हारे पिता ने अपनी जान की बाजी लगाकर उसे बचा लिया। उसी पापी ने मुझे झूठी खबर दी कि तुम्हारे पिता हल्लू ने मेरी बीबी की इज्जत लूट ली, तो मैंने क्रोध में बिना सोचे समझे तुम्हारे पिता को मौत के घांट उतार दिया।
बाद में रश्मि की मॉं ने उस पापी को मारकर खुद आत्महत्या कर ली। उसकी ही अंतिम इच्छा तुम्हें पढ़ाने लिखाने की थी।‘’
‘’गॉंव वालों के बयानों ने मुझे जेल जाने से बचा तो लिया, लेकिन उस पाप के लिये आज तक प्रायश्चित करने हेतु मैंने तुम्हें पढ़ाया, कई धर्म ग्रन्थों का अध्ययन किया। धर्म-कार्य किये लेकिन शान्ति नहीं मिली....’’
सब एक अजीब वातावरण में खो गये, लेकिन रश्मि ने अपने-आपको सम्हाल कर उस मनहूस वातावरण को बदला, ‘’पापा, यदि आप मेरी शादी रवि से कर दें, तो आपको निश्चय ही शान्ति मिल जायेगी।‘’
चौधरी साहब ने दोनों को एक साथ देखा, ‘’मैं जानता हूँ तुम एक-दूसरे को बहुत चाहते हो और तुम्हारी जि़द के आगे मैं क्या कर सकूँगा, लेकिन समाज मानेगा इसे?’’
‘’आप की बात कौन नहीं मानेगा पापा?’’ रश्मि कुछ खुशहाल शब्दों में बोली, ‘’हम दोनों मिलकर समाज के सुधार हेतु कुछ रचनात्मक कार्य करना चाहते हैं।‘’
‘’इसके लिये पंचायत बुलानी पड़ेगी।‘’ चौधरी साहब ने सुझाव दिया।
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गॉंव के ही नहीं बल्कि अन्य गॉंवों के लोग भी बुलवा लिये गये। जो वृत्ताकार में मेज पर बैठे हैं। सरपंच तो बाबा थे ही। उनके पास में और भी कुछ जाने-माने आदर्णिय लोग विराजमान हैं।
सब जानना चाहते हैं कि उन्हें क्यों एकत्र करवाया गया है, हालांकि कुछ लोग मुख्य बात जानते थे कि रवि और रश्मि की शादी का चक्कर है। ये शादी कैसे हो सकती है और एक चौधरी अपनी बेटी हरिजन को क्यों व्याहना चाहता है। यह सब जानने की सबको तीव्र इच्छा है।
बाबा ने खड़े होकर सभी पंचों को पूर्ण आदरपूर्वक सम्बोधित करते हुये कहा, ‘’पंचों में अपनी बेटी की शादी रवि के साथ करना चाहता हूँ। आपकी अनुमति की आवश्यकता है।‘’
लगभग सभी विस्मय विमान के नीचे खिसक गये। एक ने बाबा को समझाने की चेष्टा की, ’’आपका यह कायापलट कैसे हो गया? कहॉं आप राजा भोज, चौधरी और कहॉं ये रवि गंगू तेली, हरिजन! भला यह कैसे हो सकता है?’’
‘’ना कोई राजा भोज है और ना ही कोई गंगू तेली।‘’ चौधरी साहब के वाक्यों समानता की भावना थी, ‘’हम सब की जाति एक है मानवजाति।‘’
किसी ने अपने दिमाग पर जोर देकर उनकी बात असत्य करने का असफल प्रयास किया, ‘’धर्मशास्त्रों के अनुसार ईश्वर ने उन्हें पाप योनि और पैरों से उत्पन्न बतलाकर अछूत कहा है।‘’ क्योंकि बाबा धर्म ग्रंथों को पढ़कर इन्हीं लोगों को सुनाया करते थे। इसलिये लगभग सभी गॉंव वालों को धर्मग्रन्थों का अच्छा ज्ञान हो गया था।
‘’कहा अवश्य है।‘’ बाबा अपने विचार की पुष्टि करने लगे, ‘’परन्तु ईश्वर समदर्शी हैं। वे सभी को एक लाठी से हॉंकते हैं। इसलिये हमें चाहिए कि सभीको समान समझें। किसी से किसी प्रकार की घ़ृणा-द्वेष आदि ना करें।‘’
शायद कुछ लोगों को समझ में ना आया। इसलिये बाबा से उन्होंने अपना आशय स्पष्ट समझाने के लिए कहा, ‘’आप जो कहना चाहते हैं। कृपया पुन: समझाइए।‘’
बाबा ने कुछ उदाहरण पेश किये, ‘’हमें ईश्वर ने या प्रकृति ने प्रकाश, हवा, पानी आदि प्रदान किये हैं। जिनका उपभोग सछूत और अछूत समान रूप से करते हैं। ईश्वर ने हमें सोचने, समझने, देखने, सुनने, सूँघने बोलने आदि शक्तियॉं दी हैं। वे सब अछूतों को भी उसी प्रकार प्राप्त हैं, जैसे हमें, जब ईश्वर ही सबको एक समझते हैं, तो फिर हम क्यों भेद-भाव रखें।‘’
‘’आप ठीक कहते हैं।‘’ किसी ने कहा, ‘’मगर परम्परानुसार यह शादी अनुचित है। वह अछूत है। अछूत ही रहेगा।‘’
‘’यह उसके साथ अन्याय होगा।‘’ बाबा का कठोर स्वर गूँज गया, ‘’धर्म शास्त्रों में अनेक ऐसे महामानव हैं जैसे वशिष्ट, विश्वामित्र, पारासर, नारद आदि जो अछूत थे, मगर विद्वान होने के कारण पंडित कहलाये।‘’
‘’रवि में कौन सी विद्वानता है?’’ किसी ने जानना चाहा।
‘’वह एक डॉक्टर है।‘’ बाबा ने बताया, ‘’यदि वह शहर में शादी की कोशिश करता, तो अभी तक किसी ऊँचे घराने में उसकी शादी हो गई होती। क्योंकि शहर में छुआछूत और भेदभाव के इतने जाल नहीं हैं। शहर में अनेक समय लोगों में अन्तर्जातिय विवाह धडा-धड़ हो रहे हैं।‘’
बाबा के और जोर देने पर उन्होंने शादी की अनुमति तो दे दी, मगर उनके और बाबा के बीच एक हल्की नफ़रत की अदृश्य दीवार खड़ी हो गई और उनके बीच मन-मुटाव हो गया। इसे रवि पूर्ण रूप से भॉंप गया। उसने निश्चय किया कि जब तक वह उनमें व्याप्त घृणा और उनके मन-मुटाव को खत्म नहीं कर देगा, तब तक हमेशा उनकी सेवा करता रहेगा।
सब लोग चले गये। चौधरी साहब ऑंखों में ऑंसू लिये रवि और रश्मि के निकट आये, ‘’मुझे वाक्यी आज विशेष शान्ति मिली, मैं बहुत खुश हूँ।‘’
‘’हॉं पापा मुझे भी बहुत खुशी है।‘’ रश्मि, चौधरी साहब के पहलू में आ चिपकी।
रवि भी उनके दूसरे पहलू के बिलकुल करीब आ गया, ‘’खास खुशी के लिये तो अभी संघर्ष करना शेष है। यह तो मात्र शुरूआत है।‘’
♥♥♥ इति ♥♥♥च्
संक्षिप्त परिचय
1-नाम:- रामनारयण सुनगरया
2- जन्म:– 01/ 08/ 1956.
3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्नातक
4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से
साहित्यालंकार की उपाधि।
2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्बाला छावनी से
5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्यादि समय-
समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।
2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल
सम्पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्तर पर सराहना मिली
6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्न विषयक कृति ।
7- सम्प्रति--- स्वनिवृत्त्िा के पश्चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं
स्वतंत्र लेखन।
8- सम्पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)
मो./ व्हाट्सएप्प नं.- 91318-94197
न्न्न्न्न्न्