Lahrata Chand - 21 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | लहराता चाँद - 21

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लहराता चाँद - 21

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

  • 21
  • संजय को गौरव से कॉल आते ही वह तुरंत ही पुलिस स्टेशन फ़ोनकर खबर बता दिया। अवन्तिका और क्षमा को बुलाकर दरवाज़ा अच्छे से बंद करने को कहा। दोनों को सँभलकर रहने को कहकर गाड़ी लेकर पुलिस स्टेशन की ओर निकल पड़ा।
  • साहिल और गौरव बाइक को झाड़ियों के बीच छिपाकर वहाँ से पैदल ही जंगल की ओर चलने लगे। गौरव धीरे फुसफुसाते हुए पूछा, "साहिल तुझे क्या लगता है इतनी बड़ी जंगल में कहाँ ढूँढेंगे?"
  • "चल देखते हैं। कुछ न कुछ तो पता चलेगा ही।
  • "संभलकर चल बहुत अंधेरा है। बहुत ज्यादा जरूरत न हो तो लाइट चालू मतकर, न जाने दुश्मन कहाँ-कहाँ छिपे हैं।" दोनों चुपचाप साथ चलने लगे। चौथ के चाँद की हल्की सी रोशनी में दोनों झाड़ियों में चलने लगे।
  • दोनों जंगल के अंदर प्रवेश कर चुके थे। अंधेरे में पैर रखते ही सूखे पत्तों की आवाज़ शोर मचा रही थी। सुनसान जंगल और रात की निस्तब्धता में सूखे पत्तों की सरसराहट दूर तक सुनाई दे रही थी। दोनों एक हाथ में मोबाइल टॉर्च लिए एक-एक कदम सँभालकर चल रहे थे। अँधेरे में आँखों को आदत-सी पड़ गई थी चीज़ें साफ़-साफ़ नहीं दिख रहा था लेकिन सही अंदाज़ा लगा सकते थे। चाँद बादलों से आकाश में रह रहकर निकल आता था पल में फिर से बादलों के बीच छुप जाता था।
  • चाँद की किरणों की हल्की सी रोशनी से कुछ समय जंगल में चलना सम्भव हो पा रहा था। उन्हें पता भी न था कहाँ जाना है, बस यूँ कहो तो जंगल में रास्ता ढूँढते जा रहे थे। समय बहुत कम था। रात की अँधेरे में अनन्या को ढूँढ निकलना आसान नहीं था। मोबाइल या टॉर्च लाइट का इस्तेमाल करना भी खतरे से खाली नहीं थी। जंगली जानवर से ज्यादा इन गुंडों का डर है।
  • अचानक साहिल गौरव को रोक लिया। "गौरव देख दूर कहीं से रौशनी दिख रही है। लगता है वहाँ कोई है।" जंगल के बीचों बीच रौशनी को देख दोनों सतर्क हो गए। उस रौशनी को देखते ही उस की ओर धीरे बढ़ने लगे। एक-एक कदम फूँक फूँककर रखना पड़ रहा था। पैरों से धीरे सूखे पत्तों को आड़े करते हुए कदम रख रहे थे। उल्लू की भयानक कुडुकुडु आवाज़ के साथ पेड़ों के साये डरावना लग रहे थे। लेकिन उन्हीं पेड़ों में खुद को छिपते-छिपाते दोनों करीब अढ़ाई किलोमीटर दूर जाने के बाद एक कुटिया नज़र आने लगी।
  • - गौरव, उस कुटिया से रोशनी आ रही मतलब वहाँ कोई है। हमें सावधानी बरतनी पड़ेगी।"
  • - हो सकता है कुटिया में अनन्या हो और कुटिया के आस-पास पहरा होने का भी संभावना है।" गौरव सावधानी से रास्ता पार करते हुए कहा। दोनों चुपचाप आगे बढ़ने लगे। दीवार पार कर कुटिया के पास खड़े अंदर झाँकने की कोशिश की। अंदर धूल टूटे-फूटे चीज़ों के अलावा कुछ नहीं दिख रहा था। एक दीया खिड़की पर थी जिसकी रोशनी दूर तक दिखाई दे रहा था। दोनों अपने ऊपर उजाला न पड़े इसका ध्यान रखते हुए कुटिया की दीवार को चिपककर धीरे-धीरे दरवाज़े की ओर चलने लगे।
  • ####
  • अनन्या धूल भरे फर्श पर लेटी हुई थी। उसकी आँखों में नींद नहीं थी। दो दिन तो जस-तस कट गए, कल का क्या भरोसा कुछ भी हो सकता है। पल-पल खतरोँ से भरा है। कब क्या हो जाए पता नहीं, कुछ पैरों के चलने की आवाज़ पास आ रही थी। अनन्या सचेत हो गई। हो सकता है महुआ लौट आया हो। चिट्ठी लेकर जाने के बाद से वह फिर दिखा भी नहीं। अब कौन कहेगा कि चिट्ठी वह पहुँचा पाया कि नहीं। एक कोशिश ही तो की थी, ऐसा न हो कि महुआ किसी मुसीबत में फँस गया हो। तरह-तरह के विचार उसके मस्तिष्क में घूम रहे थे। अगर महुआ पकड़ा गया हो तो उसकी सन्देश भी नहीं पहुँचा होगा। क्या महुआ को उस चिट्ठी के साथ ही पकड़ लिया? अगर उस के बारे में पता लग गया हो तो उसकी क्या हश्र करेंगे पता नहीं। महुआ के साथ वह खुद भी खतरे में है।

    रात का खाना देने महुआ नहीं आया। कमरे में जगह-जगह सूखे पत्ते से भरे पड़े थे। अनन्या के हाथ पैर रस्सी से बँधे हुए थे। जुबान सूख रही थी। एक छोटा-सा मिट्टी का दीया कमरे के एक कोने में अलोक की एक किरण बिछा रहा था। लहलहाती ज्वाला कितनी देर साथ दे सकती थी अनिश्चित था। शरीर में एक प्रकम्पन सा हुआ और एक अनजान भय से सिहर उठी अनन्या।

    माँ की थपकियों की याद आई। लोरी के संग माँ के गोद का सहारा चूड़ियों के खनक के साथ थपकियाँ दे सुलाते हुए उनके हाथ का स्पर्श आशीर्वाद सा हमेशा उसके सिर पर था। माँ के आँचल की महक, सहलाती हुई कपास की साड़ी नरम बिस्तर से भी आराम दायक था।

    - माँ, माँ कहाँ है तू देख तेरी बेटी किस हालात में बँधी पड़ी हुई है। मुझे यहाँ से निकाल ले, इस अँधेरे में गहरे जंगल में बहुत डर लग रहा है। कुछ देर मेरे पास आजा कि तेरे गोद में सिर रखकर बेफिक्र सो जाऊँ।" मन ही मन माँ को यादकर रही थी अनन्या। जब वह छोटी थी नींद नहीं आती तो रम्या लोरी गाकर सुलाती थी। उन पंक्तियों को यादकर खुद में दोहराती रही-

  • "आजा निन्दियाँ रानी, मुन्नी को गोद में सुला जा,
  • नींद एक प्यारी और मीठी सी मुस्कान ले आ।
  • परियों के घर से तारा बन के आँखों में नींद सजा दे
  • नन्हें फूलों में बसकर तू मीठी सुगंध फैला दे।
  • आजा निन्दियाँ रानी मुन्नी को गोद में सुला जा
  • नींद एक प्यारी सी औ' मीठी एक मुस्कान ले आ।
  • आजा...." गुनगुनाते हुए नींद में फिसल गई अनन्या। 👍👍👍👍