Kaisa ye ishq hai - 15 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 15)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 15)

भाग –15

“प्रशांत जी आप” कहते हुए वो अपने पीछे मुड़ कर खड़ी हो जाती है।अर्पिता की बच्ची।क्या क्या कहा था तुमने तब जाकर मै तैयार हुई थी और मैडम जी देख कर किसे गयी “बीरबल की खिचड़ी” को।क्या समझ रही हो तुम नीचे आकर, क्या मुझसे बच जाओगी हाँ...। अरे वो बीरबल की खिचड़ी न तुम्हे ही मुबारक हो॥किरण नीचे आकर अर्पिता के पास खड़े होकर कहती है उसे इतना बोलता देख अर्पिता अपने होठों पर अंगुली रख चुप रहने का इशारा करती है।

काहे काहे चुप रहूं मैं।ये सब न तेरी वजह से हुआ है। किरण ने तमतमाते हुए अर्पिता से कहा। किरण के तेवर देख अर्पिता अपना सर पीट लेती है और दोनो हाथ जोड़ कर उसे चुप होने के लिये इशारा करती है। लेकिन हमारी किरण की गाडी‌ किसी सुपरफास्ट ट्रैन के जैसे पटरी पर दौड़ती ही जा रही है रुकने का नाम ही नही ले रही है।किरण अर्पिता के बिल्कुल पास आ जाती है और उसे झुंझलाते हुए कहती है अब क्या सांप सूंघ गया तुझे तो चुप्पी साध कर बैठ गयी।

उसे अपने पास देख अर्पिता धीमी आवाज में किरण से कहती है हम किसलिये चुप है ये अभी पता चल जायेगा जरा अपना ध्यान हम से हटा कर वो जो पिलर के पास खड़े हुए है न उन पर लगाओ।अपने सर पर पैर रख कर न तुम यहाँ से भागी तो कहना॥


अच्छा जरा देखे तो ऐसा कौन है वहाँ कहते हुए किरण पिलर की ओर देखती है तो उसके चेहरे पर छाई मुस्कुराहट हवा हो जाती है वो बेचारी नजरो से अर्पिता की ओर देखती है।अर्पिता मुस्कुराते हुए आंखो ही आंखो मे उससे प्रश्न करती है और किरण से धीमे से कहती है, “ कहो,लगा न झटका”। हाँ “जोरो का” कह किरण अपनी साड़ी सम्हाल उपर की ओर चली जाती है।


नीचे अर्पिता अकेली रह जाती है।प्रशांत जी अर्पिता के पास आकर उसका दुपट्टा चारो ओर से लपेटते हुए उससे कुछ शब्द कहते हैं ---

माना कि मै हू नये जमाने का लेकिन मेरे ख्यालात जरा पुराने है। समझ रखता हूँ मेरे भारतीय रिवाजो के... जिसके लाखो अफसाने हैं।मुझे पसंद है भारतीय संस्कारो के आवरण को लपेटे ‘वो’ जिंदगी जिसके माथे पर बिंदी, हाथो में चूड़ी और पैरों में झनकती हुई पायल होगी।......

कहीं तो ‘वो’ होगी हाँ कहीं तो ‘वो’ होगी।

अर्पिता को उसके दुपट्टे में लपेट कर वो उसके सामने आ जाता है और उसके कान के पास आ कर चुपके से कहता है, “ लगता है तुम्हारे दुपट्टे को मेरा साथ कुछ ज्यादा ही रास आ रहा है” तभी तो न जाने कैसे मुझ तक पहुंच ही जाता है और वहाँ से मुस्कुराते हुए चला जाता है।अर्पिता अपनी नजरे उठा कर उसे जाते हुए देखती रह जाती है।कुछ सेकण्ड तो वो समझ ही नही पाती है कि अभी अभी प्रशांत जी ने उससे क्या कहा।जाते जाते प्रशांत जी एक बार फिर मुड़ कर देखते है और वहाँ से चले जाते हैं।लेकिन इस बार हमारी अर्पिता के चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ साथ हल्की सी हया की लाली भी छोड़ जाते हैं।अर्पिता लाली क्या हुआ हाँफ क्यू रही हो? बीना जी ने अंदर अर्पिता के पास आते हुए प्रश्न किया।

क क कुछ नही मासी वो बस किरण के लिये हम सादा पानी लेने आये थे वो उसकी आंखो में न मिर्ची चली गयी है।अर्पिता ने बहाना बनाते हुए कहा।

क्या .. कैसे लाली बीना जी ने परेशान हो कहा।और अब कैसी है कैसी क्या मै खुद ही जाकर देखती हूँ।...

न न नही मासी आप परेशान न होइये किरण अब ठीक है।वो क्या है न हमने सोचा कि किरण को कहीं नजर न लग जाये तो सबसे पहले उसकी नजर ही उतार लेते हैं।उसी में मिर्ची का झारा देते समय थोड़ी सी मिर्ची उसकी आंखो में चली गयी।अर्पिता ने धीमे स्वर में बड़ी ही मासूमियत से कहा जिसे देख बीना जी मुस्कुराते हुए उसके सिर पर हाथ मुस्कुरा कर कहती है अच्छा किया लाली।और एक काम करो जल्दी से पानी ले जाओ उपर उसकी आंखे जल रही होगी मै अभी कुछ ही देर में आती हूँ अगर ज्यादा परेशानी हो उसे तो फिर मुझे बताना हम तुरंत ही उसे किसी अच्छे डॉक्टर के पास ले चलेंगे। ओके लाली।

जी मासी कहते हुए अर्पिता वहाँ से तुरंत ही रसोइ में चली जाती है और वहाँ से पानी का जग उठा उपर किरण के कमरे के बाहर पहुंचती है।किरण अर्पिता के आने की आहट सुन कर दरवाजे के पीछे छिप जाती है और सोचती है आज तो तुझे नही छोड़ने वाली मैं अर्पिता मजा तो तुम्हे मै चखा कर ही रहूंगी।अर्पिता कमरे में अंदर पहुंचती है और चारो ओर देखती है।किरण को न पाकर वो उसे आवाज लगाते हुए आगे बढ जाती है।उसकी नजर सामने रखे ड्रेसिंग टेबल के मिरर पर पड़ती है जिसमे किरण को दरवाजे के पास छुपा देख उसके चेहरे पर शरारत वाली मुस्कान आ जाती है।वो किरण की मौजूदगी से अनजान बनते हुए वही‌ खड़ी हो कहती है लगता है किरण बाथरूम में गयी हुई है।हम यहीं खड़े हो उसके आने का इंतजार करते है।कहीं एसा न हो हम यहाँ से गये और मासी ऊपर आ जाये और किरण से पूछताछ करने लगे। वैसे भी वो आने वाली तो होगी ही न्। अर्पिता खुद से कहती है और वही खडी होकर इधर से उधर टहलने लगती है।अर्पिता की बाते किरण सुन लेती है तो उसकी तरफ तनतनाते हुए आगे बढती है और उससे कहती है तो मतलब फिर से तुमने कोइ रायता फैलाया है। अब क्या किया है तुमने बताओ मुझे।और मां यहाँ क्यूं आयेगी पूछ्ताछ करने।

ओह गॉड क्या कर रही हो किरण तुम। तुमने तो हमें डरा ही दिया यूं एकदम से देवी की तरह प्रकट हो गयी हो अर्पिता अपने सीने पर हाथ रख थोड़ा सा ड्रामा करते हुए कहती है।

देखो अर्पिता मेरा मूड तो वैसे ही खराब है और अब तुम यूं बातें गोल गोल घुमा कर इसका दही मत बनाओ। जो पुछा है साफ साफ बताओ।किरण ने कहा ।


किरण की बात सुन कर अर्पिता उसके सामने आकर कहती है वो मासी को हम सम्हाल लेंगे तुम बस ये बताओ कि तुम्हे प्रशांत जी कैसे लगे।ये कुछ शब्द कहते हुए उसके होंठ कांपने लगते हैं। जिन्हे देख किरण कहती है अर्पिता जब इतना ही डर लग रहा है तो साफ साफ कुछ कहती क्यूं नही हो।

क्या.. क्या साफ साफ कहे हम किरण्।अर्पिता ने अनजान बनते हुए पूछा।

यही कि तुम्हारी लाइफ में अब कोइ स्पेशल वन आ गया है वो स्पेशल वन जिसके आने का इंतजार हर लड़की को तब से होता है जब से वो यौवन की दहलीज पर कदम रखती है।जब से उसकी आंखे किसी अनजाने से अजनबी की छवि को सभी ओर ढूंढने लगती है।जिसके आसपास होने भर से उसे हर तरफ, हर वस्तु में एक ही रंग नजर आने लगता है।वो रंग जिसे राधे राने प्रेम का रंग कहती हैं अर्पिता।जब से तुम मेरे कॉलेज से आयी हो तबसे ही मुझे लग रहा था कि तुम्हारे साथ कुछ अलग हो रहा है। तुम्हे इस बात का एहसास भी है लेकिन जता नही रही हो।और देखा मैंने कल मॉल में जिस तरह तुम प्रशांत को देख रही थी और आज सुबह मुझसे उनकी तारीफ पर तारीफ किये जा रही थी सब देखा मैने सो अब तुम अंजान तो बनो मत।किरण अर्पिता से स्पष्ट कहती है जिसे सुन कर अर्पिता हकलाते हुए कहती है... क्या किरण ! किसी को पसंद करने में और किसी के स्पेशल वन होने में अंतर होता है यार। हाँ ये सच है कि हम प्रशांत जी को पसंद करते है लेकिन वो हमारे स्पेशल वन है ये बात तुम कैसे कह सकती हो। भला चंद मुलाकातो में प्यार कैसे हो सकता है जबकि हमने सुना है कि प्यार को महसूस करने में ही जीवन निकल जाता है और तुमने तो हमारी पसंद को प्यार बना दिया हद है यार्। चंद मुलाकातो मे तो सिर्फ आकर्षण ही हो सकता है प्यार नही।प्यार और पसंद में अंतर होता है किरण समझी..।और अब फालतू की बातें न बना हमने जो पूछा है उसका जवाब दो।

ठीक है तुम्हे जवाब चाहिये न तो मै बताती है तुम्हे मुझे वो मुझे बेहद पसंद आये आखिर तुमने ही तो कहा था कि उनसे मिल कर कोई न नही कह सकता तो भला मै ये बेवकूफी काहे करुं।किरण ने कुछ सोचते हुए कहा।किरण की बात सुन कर अर्पिता मुस्कुराते हुए कहती है हमें पता था कि तुम्हे वो अवश्य पसंद आ जायेंगे।हम ये खबर जाकर मासी को बता कर अभी आते हैं। कहते हुए अर्पिता तुरंत ही कमरे से बाहर निकल आती है।बाहर आकर वो दरवाजे से एक तरफ हट अपनी आंख में भरे हुए आंसू पोंछती है और खुद से ही कहती है “हमारा पहला प्यार सच में अधूरा रह गया”।

वहीं अर्पिता के जाने के बाद किरण सोचती है कि सच में प्यार इंसान को कितना बदल देता है।नीचे इतना साफ मां पापा ने कहा कि परम जी यहां आये नही है उनसे बाद में मुलाकात कराई जा सकती है लेकिन नही फिर भी इन्हे समझ नही आया। मुझे तो ये लॉजिक ही समझ नही आता कि क्यूं एक अच्छा खासा बुद्धिमान व्यक्ति कभी कभी इतना बेवकूफ बन जाता है।हद है यार... अब इसकी बेवकूफी का फायदा मै उठाउंगी इसे थोड़ा परेशान कर के अब इतनी सजा तो इसे मिलनी ही चाहिये।इसकी वजह से ही तो मै ऐसी सिचुएशन में फंस चुकी हूं।इमेजिन कर किरण खड़े खड़े मुस्कुराने लगती है।

ओह नो.... इन सब मे तो मै भूल ही गयी कि वो नीचे सबसे कहने गयी हुई है। अब बिन मिले तो मैं किसी को हाँ न करने वाली और मैडम समझती हैं कि हम उससे मिल लिये हैं बड़ा सॉलिड वाला पंगा हो जाना है अगर इसने नीचे जाकर मां को बता दिया तो, अभी इसे रोकना पडेगा कहते हुए किरण अर्पिता के पीछे आती है और उसे दरवाजे से थोड़ा हट कर खड़े हुए देख वो फुर्ती से उसके पास आती है और उसकी बान्ह पकड़ कर अंदर कमरे में खींच ले आती है।


अब क्या किरण। तुम हमें ऐसे क्यू लेकर आयी।किरण अब बोलो भी क्या बात है।अर्पिता की बात सुनकर किरण थोड़ा सा झिझकने का अभिनय करते हुए उससे कहती है वो मै चाहती हूँ कि हम एक बार और मिल ले। तभी मैं अच्छे से कोई निर्णय ले पाउंगी।अब तुम ही सोचो, ये भी मिलना किस काम का रहा जहाँ न अच्छे से दो बातें हो पाई है और न कुछ सुनना सुनाना हुआ है।तो बस इसीलिये मै सोच रही थी कि एक बार और मिल लूं अच्छे से। ये ख्याल आते ही मैंने तुझे नीचे जाने से रोक लिया अर्पिता।तुम गुस्सा मत करो इसके अलावा कोई और कारण नही है।तुम समझ रही हो न मेरी बात।

किरण की बात सुन कर अर्पिता मुस्कुराते हुए उससे कहती है चल ठीक है फिर इस बारे में मासी से तुम ही बात करना।काहे कि हम इस बारे में कुछ न कहने वाले। अर्पिता अपने हाथ खड़े कर किरण के सामने से हट जाती है और बेड के पास जाकर खड़ी हो जाती है।ये देख कर किरण बेड के पास उसके पीछे आती है और उससे दोबारा पूछती है, “तुम सच में मां से इस बारे में बात नही करोगी” अर्पितान में गरदन हिलाते हुए न कहती है।ठीक है फिर अब ये लो इसकी सजा, कहते हुए किरण पास ही रखे पानी का जग उठाती है और अर्पिता के सर पर उड़ेल कर उससे कहती है ठीक है मत बात करना तुम्। मुझे मिलना है न मै बात कर लूंगी।तुम इसी लायक हो “बीरबल की खिचड़ी” के जिसके पकने का इंतजार ही करती रहो जीवन भर्। कहीं ऐसा न हो तुम बस इंतजार ही करती रह जाओ और तुम्हारी खिचड़ी किसी और के हिस्से में चली जाये इडियट। अब इससे ज्यादा मै तुझे नही समझा सकती कह कर किरण बाहर चली जाती है।अर्पिता समझ जाती है कि किरण उसे ताना मार कर गयी है । लेकिन वो उससे कुछ नही कहती है और वहाँ से अपने कपड़े निकाल कर चेंज कर अपनी पढाई करने लगती है।लेकिन जब दिमाग में दुनिया जहाँ की उलझने हो तो पढाई में मन कैसे लगे।अर्पिता भी किताबे खोलकर बैठ जाती है लेकिन ज्यादा देर पढ नही पाती है।उसके मन के किरण की कही हुई बातें घूमने लगती है और उसका मन उचट जाता है।

अर्पिता किताब बंद कर वहाँ से उठ जाती है और खुद को व्यस्त करने के लिये नीचे सबके पास चली आती है।जहाँ उस घर के अन्य सदस्य नीचे बैठ कर बातचीत कर रहे होते हैं।अर्पिता भी नीचे आकर उस बातचीत का हिस्सा बन जाती है।

किरण तब तक बीना जी और बाकि सब से परम से “एक मुलाकात” के विषय में बात कर चुकी होती है।किरण ने खुद पहल की है ये जान बीना जी और हेमंत जी को बेहद खुशी होती है वो मुस्कुराते हुए एक दूसरे की तरफ देखते हैं और किरण को एक मुलाकात कराने का आश्वासन देते हैं।दिन गुजर जाता है और अगले दिन अर्पिता किरण दोनो खुशी खुशी तैयार होकर घर से कॉलेज के लिये निकलती है।टेम्पो स्टैंड जाकर दोनो अपने अपने कोलेज का रास्ता पकड़ती हैं और कॉलेज पहुंच जाती है।कॉलेज के मेन गेट पर पहुंचते ही अर्पिता की सीधी भौंह फड़कने लगती है।और एक पल को उसके मन में किसी अंजाने भय की आशंका उत्पन्न होती है।एक अजब सी खामोशी का एहसास होता है उसे.....

क्रमश:....