Mission Sefer - 8 in Hindi Moral Stories by Ramakant Sharma books and stories PDF | मिशन सिफर - 8

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मिशन सिफर - 8

8.

राशिद की एक माह की वह कड़ी ट्रेनिंग खत्म हो चुकी थी। उसके दोनों उस्ताद महीन से महीन बातों को तुरंत समझने की उसकी काबिलियत, मेहनत और लगन के कायल हो चुके थे। इस ट्रेनिंग के दौरान उसने इतना कुछ सीखा था जिसकी उसे ख्वाब में भी उम्मीद नहीं थी। उसकी पढ़ाई ने तो सिर्फ बेस बनाया था, उसका इस्तेमाल कैसे और कहां करना है, यह उसने इस ट्रेनिंग से ही सीखा था। पर, उसे अभी भी यह समझ नहीं आ रहा था कि उस अकेले को ही यह अहम् ट्रेनिंग क्यों दी गई है। महकमा उससे क्या काम लेना चाहता है, यह भी उसे स्पष्ट नहीं हो रहा था। उसने अपने उस्ताद लोगों से पूछा था – “जनाब, यह ट्रेनिंग उसे अकेले को ही क्यों दी जा रही है? इसका इस्तेमाल किस प्रोजेक्ट में होना है?”

“देखिए राशिद, हमारा काम सिर्फ ट्रेनिंग देना है, किसको और क्यों देना है इसका इल्म हमें नहीं होता। हम तो सिर्फ हुकुम बजाने का काम करते हैं। फिर आपको तो अब पता चल ही गया होगा कि यह कोई मामूली ट्रेनिंग नहीं है और हमें कहा गया है कि इसके बारे में किसी को पता नहीं चलना चाहिए। आपसे भी यही उम्मीद की जाती है कि आप इसके बारे में किसी से कुछ नहीं कहेंगे। अगर कोई पूछता है तो उसे यही बताना है कि महकमे के रुटीन कामों के बारे में आपको बताया गया है। समझ गए?”

“जी जनाब, मैं इसे अपने तक ही पोशीदा रखूंगा, आप खातिर जमा रखें।“

“शाबास। अब आपकी ट्रेनिंग खत्म हो चुकी है। अबू काजमी साहब को इसकी इत्तला कर दी गई है। उन्होंने कहा है, कल सुबह दफ्तर में तशरीफ लाने के बाद आप उनसे मिल लें।“

दूसरे दिन जब वह अबू काजमी से मिला तो उन्होंने पूछा – “राशिद मियां, कैसी रही आपकी ट्रेनिंग?”

“जी बहुत अच्छी थी। काफी कुछ सीखने को मिला। महकमे के काम में इसका कैसे और कहां इस्तेमाल करना है, मुझे बता दें। मैं अभी से अपना काम शुरू करना चाहता हूं।“

“आपकी यह हसरत भी जल्दी ही पूरी हो जाएगी। आपको कुछ दिन सिर्फ आराम करना है। उसके बाद आपको प्रोजेक्ट के बारे में बताया जाएगा।“

“मुझे आराम की कोई जरूरत नहीं लगती। मैं चाहता हूं, अपना काम शुरू करूं। प्रोजेक्ट क्या है, इसके बारे में आप मुझे कुछ आइडिया दे देंगे तो मैं उसके लिए खुद को तैयार कर सकूंगा।“

“आपको किस प्रोजेक्ट से जोड़ा जाएगा, यह तय करना और बताना ट्रेनिंग इंचार्ज का काम नहीं है। जब तक ऊपर से कोई हुकुम नहीं आता, आपको बगल वाले केबिन में बैठना है और कुछ फाइलें पढ़ते रहना है जो आपको दे दी जाएंगी। एक बात और, यहां लोगों से मिलो, दोस्त बनाओ, पर उन्हें ट्रेनिंग या कोई दीगर जानकारी न दें। जाइये, अगले इंस्ट्रकशंस के लिए इंतजार कीजिए।“

राशिद के दो दिन बहुत बेचैनी से गुजरे। उसके लिए करने को कोई काम नहीं था। पता नहीं हर चीज पोशीदा क्यों रखी जा रही थी। ऐसा कौन सा प्रोजेक्ट था, जिसके लिए उसे इतनी कड़ी और जानकारी से भरी ट्रेनिंग दी गई है। क्या उसे पाकिस्तान के एटमी इदारे में काम करने के लिए चुना गया है। अगर ऐसा है तो यह उसकी खुशकिस्मती होगी। शायद इसी वजह से उसे साफ-साफ बात नहीं बताई जा रही थी। उसे लगता था, यह पोशीदगी जितनी जल्दी खत्म हो अच्छा है, उसकी रूह को कुछ आराम तो मिले।

अगले ही दिन उससे लंच के बाद कहीं जाने के लिए तैयार रहने को कहा गया। लंच तक का उसका समय बड़ी मुश्किल से बीता। लंच के तुरंत बाद ही अबू काजमी ने उसे बुला भेजा। जब वह वहां पहुंचा तो उसे साथ लेकर अबू काजमी तौफीक अहमद के केबिन में गया। वहां पहले से ही बैठे शफीक नाम के शख्स से तौफीक अहमद ने राशिद का तआर्रुफ कराया। शफीक ने बड़ी गर्मजोशी से उससे हाथ मिलाया – “बड़ी खुशी हुई राशिद आपसे मिलकर।“

“जी, मुझे भी बहुत खुशी हुई है।“

तभी अबू काजमी को बाहर जाने का इशारा करते हुए तौफीक अहमद ने राशिद से कहा – “आपकी यहां की ट्रेनिंग खत्म हुई। अब आपको महकमे की तरफ से पाकिस्तान के एक अहम इदारे में डेपुटेशन पर भेजा जा रहा है। अब आप इनके हवाले हैं। ये आपको अपने साथ ले जाएंगे।“

कुछ ही देर में वे दोनों एक जीप में बैठे एक्सप्रेस हाइवे पर सौ से ज्यादा की स्पीड से चले जा रहे थे। राशिद ने उनसे पूछा था – “हम कहां जा रहे हैं?”

“बस, घंटे भर में पहुंचने ही वाले हैं, वहां जाकर आपको सबकुछ मालूम हो जाएगा।“ वह चुप होकर बैठ गया था। पता नहीं वे कहां जा रहे थे। वह और शफीक बिलकुल चुपचाप बैठे हुए थे। पूरे रास्ते उन्होंने आपस में कुछ ही लफ्ज़ एक्सचेंज किए होंगे।

लगभग एक घंटे के सफर के बाद जीप जिस बिल्डिंग के सामने जाकर खड़ी हुई उसे देखते ही राशिद समझ गया कि उसका अंदाजा सही था, उसे पाकिस्तान के एक एटमी इदारे में लाया गया था। जीप से उतरने के बाद बहुत कड़ी सीक्यूरिटी से गुजरते हुए वे अंदर पहुंचे। उसे एक बड़े से केबिन में ले जाया गया जहां कुर्सी पर एक रौबदार शख्स बैठा था। शफीक ने उस शख्स को बताया कि वे राशिद को ले आए है। उस शख्स ने गर्दन हिलाई और शुक्रिया कह कर उन्हें जाने के लिए कहा। उनके जाते ही उस शख्स ने राशिद से कहा – “आओ राशिद मियां, पाकिस्तान के इस अहम् इदारे में आपको खुशआमदीद कहता हूं। मैं इमामुल हक हूं। आज से आप मेरे साथ काम करेंगे। यहीं पास में बने क्वार्टर में आपके रहने और मैस में खाने-पीने का इंतजाम कर दिया गया है। कल से हम आपको कुछ खास काम की ट्रेनिंग देंगे।“

“जनाब, मुझे हमारे महकमे में खास ट्रेनिंग दी जा चुकी है, अब मैं काम करने के लिए तैयार हूं। आप मुझे सीधे ही काम पर लगा सकते हैं।“

“इतने बेताब न हों मियां। वहां जो ट्रेनिंग दी गई थी, यह उससे आगे की और बहुत एडवांस ट्रेनिंग है। बीस दिन की इस एडवांस ट्रेनिंग के बाद शायद आपको किसी अहम् प्रोजेक्ट में लगाया जाएगा।“

“जी, कौन सा प्रोजेक्ट?”

“सच कहूं तो मुझे भी नहीं पता कि प्रोजेक्ट क्या है। हमसे कहा गया है कि आपको यह खास ट्रेनिंग दी जाए, इसलिए आपको हम यह खास ट्रेनिंग दे रहे हैं।“

“फिर भी....।“

“कहा ना, अपनी इस बेताबी पर थोड़ा लगाम लगाइये, सबकुछ चंद दिनों में सामने आ जाएगा। आज का दिन आप अपने क्वार्टर में जाकर आराम फरमा सकते हैं। बब्बन मियां आपको आपका क्वार्टर दिखा देंगे, पास बनवा देंगे और कुछ जरूरी मालूमात दे देंगे। कल हम यहीं मेरे केबिन में सुबह ठीक दस बजे मिलते हैं, अल्लाह हाफिज।“

बब्बन मियां उसे साथ लेकर कई जगह घुमाते रहे और रस्मो-कायदे पूरे करते रहे, उसके बाद उसे बिल्डिंग के परकोटे में ही कुछ दूर बने क्वार्टरों में से एक बैचलर क्वार्टर में छोड़कर और तमाम तरह की हिदायतें देकर चले गए। उनके जाने के बाद राशिद ने क्वार्टर में नजर दौड़ाई, वहां जरूरत की सारी चीजें मौजूद थीं। दूसरे दिन से शुरू होने वाली ट्रेनिंग के बारे में सोचते हुए वह बिस्तर पर जा पड़ा।

सपने में वह खुद को ट्रेनिंग लेते देखता रहा। कैसी ट्रेनिंग थी, उसे समझ में नहीं आ रहा था। वह जिस किसी से उसके बारे में बात करना चाहता, वह उसकी बात का कोई जवाब नहीं दे रहा था। मास्क और ग्लब्स पहने उस्ताद लोग उसे बड़ी-बड़ी मशीनों पर कुछ समझा रहे थे। उसे भी मास्क और ग्लब्स पहनने के लिए दिये गये थे।

जो कुछ भी था, उसे बहुत अहमियत दी जा रही थी, उसे यह सब बहुत अच्छा लग रहा था। वह खुद को बहुत खुशनसीब समझ रहा था कि वतन के किसी बड़े प्रोजेक्ट में शामिल करने के लिए उसे यह ट्रेनिंग दी जा रही थी। कितनी नई-नई तरह की मशीने थीं। कितनी सीक्योरिटी थी वहां।

हर चीज उसे बहुत पोशीदा लग रही थी। पता नहीं, उससे क्या काम लिया जाने वाला था। उसने हरा मास्क पहने और हाथों में रबड़ के दस्ताने पहने एक उस्ताद को सामने से आते देखा तो वह उससे पूछ बैठा – “जनाब, मुझे कुछ बताएंगे, यह सब क्या है और मुझे किस प्रोजेक्ट के लिए तैयार किया जा रहा है?” उस्ताद ने उस पर कड़ी नजर डाली थी और बिना कोई जवाब दिए तेज-तेज कदम बढ़ाते हुए पास की गैलरी में घुस गया था। वह उसके पीछे भागा था। उसने सारी गैलरी छान मारी थी, पर उस्ताद का कहीं पता नहीं था। वह वहां से निकल जाना चाहता था, पर उसे कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। उसकी सांस घुटने लगी थी और उसी के साथ वह उठ कर बैठ गया था। उसने एक लंबी सांस ली – “ओह, तो यह सब सपना था।“ उसने उठ कर पास रखी सुराही से पानी पिया और फिर से लेट कर सोने की कोशिश करने लगा।