Samaj Ke Gaddar in Hindi Moral Stories by Prem Nhr books and stories PDF | समाज के गद्दार

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समाज के गद्दार

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आज मैं अपने विचारों और आशा के सहयोग से एक कहानी लिख रहा हूँ जो कि लॉक डाउन की विभीषिका पर केंद्रित है। आशा है कि आपको मेरा लेखन पसन्द आये और आप मेरी कहानी को पढ़कर अपनी शानदार प्रतिक्रिया के माध्यम से मुझे प्रोत्साहित करेंगे। आईये चलते हैं कहानी की ओर...


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गद्दारी सिर्फ देश के खिलाफ जाने से ही नहीं होती


अपितु किसी दानवीर द्वारा किसी जरूरतमंद को दी
गयी मदद को मार कर भी की जा सकती है।
कोरोना काल में लगे लॉक डाउन ने ऐसे बहुत से चेहरों पर से पर्दा हटा दिया…।
अचानक जीवन में आयी इस आपदा में बहुत से लोग जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं जैसे- दाल-चावल, आटा अथवा तैयार किया हुआ भोजन या पकाया हुआ भोजन यथा; सब्जी-पूड़ी आदि को अपने घरों में जमा कर किसी जरूरतमंद का अधिकार मारते दिखे।
सिरसा हरियाणा का एक बेहद खूबसूरत और समृद्ध शहर है। जहाँ पर पंजाब की सीमा लगने के कारण पंजाबी और हरियाणवी भाषी लोगों का संगम सा है।
रजनी एक मध्यम वर्गीय गृहिणी है। जो कि सिरसा की ही रहने वाली है। उसके परिवार में उसके सास-ससुर, पति और एक बेटा है।
उसके ससुर रेलवे से रिटायर्ड हैं जो कि पेन्शन के अधिकारी हैं। रजनी के पति की हार्डवेयर की दुकान है, जो कि सदर बाजार में है। अर्थात उसका घर-परिवार आराम से गुजर-बसर करता है।
आस-पड़ोस में रजनी की छवि बहुत अच्छी है। वो अक्सर पड़ोस की गौष्ठी में बैठकर गरीबी, शिक्षा और समाज-सुधार की बातें किया करती है। कुल मिलाकर वो एक जागरूक और सभ्रांत महिला की छवि रखती है। इस कारण वहाँ के लोग उसे बहुत ही सम्मान की दृष्टि से देखते हैं।

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हँसती-खेलती ज़िन्दगी मानो थम सी गयी, जैसे किसी ने तेज़ी से भागती-दौड़ती ज़िन्दगी के कदमों में बेड़ियाँ पहना दी हों…।
कोरोना के कारण लॉक डाउन लगने से सब कुछ बन्द हो गया अचानक ही सभी को अपने-अपने घरों में कैद हो जाने को मजबूर होना पड़ा..।
इस बात का सबसे गहरा असर निम्न स्तर पर जीवन-यापन करने वाले लोगों पर पड़ा..।
खासकर उन लोगों पर जो रोज ही कुआँ खोदकर रोज ही पानी पीते हैं, अर्थात् जिस दिन कमाया उसी दिन उसी कमाई से अपना पेट भरने वाले लोगों पर..। उनके लिए तो जैसे भीषण आपदा का ही समय आन पड़ा…।
इसी आपदा का सामना रजनी के पड़ोस में किराये पर रहने वाली राधा के परिवार को भी करना पड़ा।
राधा के पति दैनिक मजदूर हैं। राधा भी दो-चार घरों में काम करके अपने पति की सहायता करती है; अपने परिवार का स्तर सुधारने में…।
परिवार में तीन ही तो सदस्य हैं, स्वयं राधा, उसका पति और एक बेटा।
कुछ दिन तो जैसे-तैसे गुजारा हुआ, पर समय बढ़ने के साथ ही परिवार के मुखिया के माथे पर संकट के बादल गहराने लगे…।
कारण लॉक डाउन की समयावधि का बार-बार बढ़ते जाना और जमा पूँजी का घटते जाना…।
साथ ही सभी लोगों का अपने-अपने घरों में कैद हो जाने के कारण कोई भी काम न मिलना। इस कारण राधा और उसके पति की चिन्ता की लकीरें बढ़ती ही जा रही थी कि आगे के दिन कैसे कटेंगे?
बड़े तो फिर भी कुछ दिन भूख सहन कर सकते हैं पर छोटा सा बालक कैसे सह पायेगा भूख? वैसे भी माता-पिता अपनी संतान को किसी कष्ट में नहीं देख पाते हैं।
पर भगवान की लीला भी अपरम्पार है, भगवान यदि मनुष्य की परीक्षा लेने के लिए उसके प्रारब्ध में खराब समय को लिख देते हैं तो उससे निपटने के लिए सद्बुद्धि, मानवता और सहृदयता को भी लिखते हैं।
इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है भारतीय समाज और उसमें रहने वाले परोपकारी लोग जो कि परोपकारी होने के साथ ही उच्च मानवीय गुणों से ओतप्रोत भी हैं। लॉक डाउन में भी इसका प्रमाण लोगों के सामने आया, जब कुछ लोगों ने समूह बनाकर जरूरतमंद लोगों की सहायता करने की पहल की…।
ऐसे ही एक समूह का आगमन रजनी और राधा की कॉलोनी में भी हुआ। एक दिन कुछ लोग उसी कॉलोनी में जरूरतमंदों को भोजन वितरण करने के लिए आये..।
समूह के सदस्य खाने के पैकेटों के साथ-साथ पाँच-पाँच किलो आटा-चावल, दाल आदि बाँट रहे थे। ताकि लोग भोजन के लिए परेशान ना हों और उनकी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे।
दानदाताओं द्वारा विचार किया गया कि, “चूंकि हम लोग यहाँ के वास्तविक जरूरतमंदों को नहीं जानते हैं और साथ ही हो सकता है कि लोग हमसे सहायता लेने में संकोच करें क्योंकि लोग ज़रा सी मदद करके जिस तरह से फ़ोटो, वीडियो आदि सोल मीडिया पर डालते हैं, उससे मदद लेने वालों के स्वाभिमान को ठेस पहुँचती है।“
जब उन लोगों ने जानकारी प्राप्त की तो पता चला कि इस क्षेत्र में अच्छी और परोपकार की भावना से युक्त रजनी जी ही हैं।
लोगों तक उनकी पहुँच और पकड़ भी है। वो अच्छे घर-परिवार से भी हैं, तो उनके द्वारा इस पुनीत कार्य में गड़बड़ी करने की कोई संभावना नहीं है।
अतः उस सहायता समूह ने रजनी जी को सहायता का माध्यम बनाने का फैसला कर उनसे संपर्क किया।
ये सब सुनकर रजनी और उसके परिवार को भी बहुत प्रसन्नता हुई।
रजनी और उसके परिवार ने इस कार्य के लिए सहर्ष अनुमति दे दी।
सहायता समूह द्वारा खाने व सामान के बहुत सारे पैकेट रजनी के घर पहुँचा दिए। साथ ही अपना सम्पर्क नम्बर भी दिया ताकि कोई कमी होने पर सहायता समूह को तुरंत सूचित किया जा सके।
प्रारम्भ में रजनी ने बहुत ही उत्साह और लगन से काम किया। सहायता प्राप्त करने वाले लोग उसके घर के आगे सामाजिक दूरी बनाकर पंक्तिबद्ध होकर खड़े रहते और अपना नम्बर आने पर राशन प्राप्त करते। रजनी सबको सहायता पहुँचाती जाती। इसी क्रम में रजनी ने राधा के परिवार की भी बहुत मदद की।
राधा और उसके पति भी चिन्ता मुक्त हुए।
चूँकि वो इस परिस्थिति से गुजर चुके थे इस कारण उनको पता था कि ऐसे कौन-कौन से परिवार हैं जिनको वास्तव में मदद की जरूरत है। ये सोचकर राधा के परिवार ने भी इस पुनीत कार्य में अपना सहयोग करने का निर्णय लिया और वास्तविक हकदारों को उनके घर तक पहुँचाने लगे।
रजनी कुछ दिन तो सबकी मदद करती रही, लेकिन धीरे-धीरे ना नुकुर करने लगी। कभी किसी को कुछ दे देती और कभी किसी को ये बोलकर टरका देती कि राशन खत्म हो गया है जब आएगा तब बता दूँगी।
एक दिन तो उसने राधा को भी टोक दिया कि, “तुम हर किसी को मेरे घर मत भेजा करो। मेरे घर में कोई खजाना नहीं है और ना ही भण्डार भरे हुए हैं जो हर किसी को बाँटती फिरूँ। । मुझे जो कुछ भी मिला था मैंने वो सब बाँट दिया है। अब तो उन लोगों ने भी सामान भेजना बन्द कर दिया है।“
ये सब सुनकर राधा को बहुत बुरा लगा, फिर उसने भी सोचा कि सही तो कह रही हैं, रजनी जी। हर समय तो कोई भी किसी की मदद नहीं कर पायेगा। और अगर रजनी बहन के पास होगा तो भला वो क्यों मना करेंगी, और यदि नहीं होगा तो फिर वो भला कहाँ से दे पायेंगी।
ये सब सोचकर उसने अपने पति को भी मना कर दिया कि अब किसी से मत कहना कि हम मदद दिलवा सकते हैं। ठीक है बोलकर दम्पति ने बात को वहीं रफा-दफा कर दिया।
एक दिन की बात है कि राधा कुछ कार्य से अपनी छत पर गयी तो क्या देखती है कि रजनी छत पर पापड़ सूखा रही है।
ये सब देखकर राधा सोच में पड़ गयी कि कहाँ तो
लोगों के पास खाने को भी नहीं है और रजनी को पापड़ बनाने की सूझ रही है।
फिर अचानक उसके दिमाग में कुछ आया और उसने गौर किया तो पाया कि रजनी जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए मिले दाल-चावलों से बने पापड़ ही सूखा रही थी।
ये सब देखकर राधा को बहुत दुःख हुआ। वो सोचने लगी कि लोगों की मानसिकता कितनी गिर गयी है। एक ओर तो इस भयानक आपदा में लोगों के भूखों मरने की नौबत आ रही है।
जिसमें कुछ सज्जन और दयालु लोग लोगों की सहायता कर इससे लड़ने का साहस भी दिखा रहे हैं तो दूसरी ओर रजनी जैसे लोग उन से समाज से देश से इस तरह की गद्दारी कर मानवता को शर्मसार कर रहे हैं। धिक्कार! है ऐसे दोगले लोगों पर जो शराफत का चोला धारण कर गरीब जनता का हक़ मारकर उनको क्षति पहुँचा रहे हैं।


'समाप्त'


✍️ 'प्रेम' NHR 💞


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