Suljhe Ansuljhe - 9 in Hindi Moral Stories by Pragati Gupta books and stories PDF | सुलझे...अनसुलझे - 9

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सुलझे...अनसुलझे - 9

सुलझे...अनसुलझे

दोषी कौन

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तारीख और दिन आज सोचूं तो मुझे याद नही पर जब भी सुनीता नाम की उस मरीज़ा के बारे में सोचती हूँ तो उसके साथ-साथ न जाने कितनी ही बातों का ज़खीरा स्वतः ही मेरे रोंगटे खड़े कर देता है| क़रीब छब्बीस-सताईस साल की एक लड़की अपनी रसीद रिसेप्शन पर बनवा अपनी जांचो का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी|

चूँकि मुझे रिसेप्शन पर रखे हुए पेशेंट रजिस्टर से देखना था तो मैं स्वयं ही उठकर स्टाफ के पास आ गई थी| वजह सिर्फ यही नहीं थी क्यों कि यह मेरी आदतों में शुमार था| बीच-बीच में रिसेप्शन के चक्कर लगाना ताकि वहां की गतिविधियों पर भी मेरी नज़र रहे| चूँकि उस समय कैमरों का इतना प्रचलन नहीं था| तो सभी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए ख़ुद ही जतन करने होते थे|

सुनीता नाम की यह मरीज़ा बहुत बैचेन थी| शायद तभी उसके हाव-भाव उसको शांत नहीं होने दे रहे थे| कभी अपना पर्स खोलती....कभी आँखे बंद करके शांत होने की चेष्टा करती....तो कभी उँगलियों पर कुछ दोहराती हुई प्रतीत होती| उसको देखकर लग रहा था शायद किसी मन्त्र का जाप कर रही है|

साथ ही कभी आस-पास बैठे मरीजों कि बातों को सुनने की कोशिश करते हुए वह दिख रही थी| पर मुझे नहीं लगा कि उसका ध्यान वास्तव में मरीज़ों की तरफ है| उसकी इतनी बैचेनी मुझे भी बार-बार सोचने पर मजबूर कर रही थी| यही वजह थी कि मुझे भी अपने काम के बीच उसका ख्याल बार-बार उसके लिए सोचने पर मजबूर कर रहा था| तभी मैंने फ़ोन करके स्टाफ से उस मरीज़ा को पहले मेरे पास भेजने को कहा|

जैसे ही मैंने उसको अन्दर बुलाया उसको लगा मैं ही वो डॉक्टर हूँ, जिसको उसकी सोनोग्राफी जांच करनी है| अन्दर आते ही वो मेरे पैरों पर गिर गई और उसने रोना शुरू कर दिया| मैंने उसको उठा कर सबसे पहले कुर्सी पर बैठाया और उसको शांत होने को कहा| पर शायद वो जितना अपने रोने को रोकने की कोशिश करती उतनी ही उसकी रुलाई फूटती जाती| उसके शब्द मुँह से निकल नहीं रहे थे बस यही....प्लीज मैम आप मेरी मदद करो.. प्लीज मैम आप मेरी मदद करो|....

मेरे से बहुत छोटी थी तो अनायास ही मेरे मुहं से निकल पड़ा ..

पहले चुप हो जाओ बेटा| फिर मुझे बताओ क्या हुआ है तुम्हें...शायद बहुत देर से वो अपनी रुलाई रोक कर बैठी थी तो बहुत देर के रुके हुए भाव जब फटते है तो शायद इतनी जल्दी शांत नहीं होते| भावों कि बिखरन इंसान को सँभलने और स्वयं को समेटने में बहुत वक़्त मांगती है| जितना भावों को सहेजने में इंसान को वक़्त लगता है उससे ज्यादा वक़्त उन्ही भावों के बिखरने पर स्वयं को समेटने में लगता है|

आप मेरी सोनोग्राफी करेगी ...उस लड़की ने पूछा|

नहीं मैं नहीं करुँगी| सोनोग्राफी के डॉक्टर दूसरे है बेटा...कुछ बताओगी मुझे क्या परेशानी है तुमको मैं तुम्हारी मदद कर पाऊं शायद|...

आंटी! आप तो प्लीज डॉक्टर को कह कर मुझे सिर्फ़ यह बता दो कि मेरे लड़का है....मेरे बेटा करके बोलने से ही सुनीता भी अब आंटी जैसे संबोधन पर आ गई थी|

मुझे आंटी और कुछ नहीं चाहिए सिर्फ लड़का होना चाहिए| प्लीज आंटी...आप करो न मेरी मदद...बोल कर उसने फिर से रोना शुरू कर दिया| मुझे उसका रोना देखकर लग रहा था कि वो ह्य्स्टेरिक(उन्मादी) हो रही है तो मैंने जोर से उसको डांट लगाईं...

चुप हो जाओ तुम, बिल्कुल रोना बंद करो और खामोश बैठो थोड़ी देर|.. मेरे जोर से बोलने से सुनीता इकदम चुप होकर

मेरी तरफ़ देखने लगी| तभी स्टाफ को बुला कर मैंने उसके लिए पानी मंगवाया और चुपचाप पानी पीकर बैठने को कहा|

पहले मन को शांत करने की कोशिश करो बेटा और मुझे सब कुछ सच-सच बताओ |क्या हुआ है तुम्हारे साथ? क्यों इतना परेशान हो? मैं तुम्हारी जो मदद हो सकेगी जरूर करुँगी| पर पहले तुमको और तुम्हारी परेशानियों को जानना चाहूंगी |....उसको शांत हो कर संयंत होने में क़रीब आधा घंटा लग गया| फिर नार्मल होते ही उसने कहना शुरू किया ...

आंटी जबसे मैंने कंसीव किया है मैं बहुत परेशां हूँ| मुझे लगता है कहीं मैं पागल न हो जाऊं|....आज से पांच साल पहले मेरे शादी किशोर नाम के आदमी के साथ हुई थी | अच्छा बिज़नस है इनका यहाँ| रुपयों की कोई कमी नहीं है|..

परिवार में किशोर के एक छोटे भाई के अलावा उनके माँ-पिता भी साथ रहते हैं| मेरे मम्मी-पापा ने बहुत सारा क़र्ज़ लेकर मेरी शादी की थी| छोटा भाई है, जो कि बहुत छोटी नौकरी करता है और पापा की दो साल पहले देहांत हो गया है| अब गुज़ारा बहुत होता मुश्किल से होता है|...

यहाँ सुसराल में रुपयों की कोई कमी नहीं है| पर पिछले सालों में, मैं तीन बार माँ बनी| आंटी पर हर बार जब में चेकअप को जाती तो मुझे नहीं पता कब यह लोग डॉक्टर से बात करके पता करते थे कि लड़का है या लड़की| आंटी मुझे नहीं पता किस चीज़ में मुझे इन लोगों ने क्या खिलाया कि सब अच्छा चलते-चलते अचानक ही तीनो बार भारी रक्तस्त्राव के साथ मुझे गर्भपात हुआ|….

मैं बहुत पढ़ी-लिखी नहीं हूँ सो कभी इतना सब कुछ सोच ही नहीं पाई कि मेरे साथ सब कुछ ठीक होते हुए भी ऐसा क्यों हो रहा है| उल्टा यह लोग बहुत तरीके से यह सब करते रहे| यह तो जब इस बार कंसीव किया, तब मुझे पता लगा|....

मैंने किशोर को पापा-मम्मी से अकेले बात करते में सुना कि इस बार तो भगवान् करे लड़का हो| नहीं तो इस बार दवाइयां खिलाने से इसकी जान को खतरा हो जायेगा, यह बात डॉक्टर बोल चुकी है| कुछ ऐसा ही किशोर अपने माँ-पापा से बोल रहे थे| चूँकि बच्चे की बात हो रही थी मेरे भी कान खड़े हो गए और मैंने ध्यान से सुनने की कोशिश की|…

आंटी तब मुझे अहसास हुआ कि मेरे पहले वाले गर्भपात प्राकृतिक नहीं थे| सब इन लोगों की चाल थी| बेटे की चाहत ने इन लोगों को इतना गिरा दिया था कि होने वाले बच्चे कि जान लेते हुए इनको कोई तरस नहीं आया| इन लोगो की बातें सुनते ही मुझे इतनी जोर का रोना आया आंटी कि मैं ख़ुद को रोने से रोक न सकी|...

तब इन लोगों को शायद यह आभास हो गया की मैंने इनकी बातें सुन ली है| जैसे ही किशोर कमरे से बाहर आए तो मुझ से पूछने लगे कितनी देर से खड़ी हो यहाँ और रो क्यों रही हो|...

आंटी मैं बहुत डर गई थी| साथ ही मुझे अपने लिए भी खौफ़ हो गया कि यह लोग तो नन्ही-सी बच्ची को मार सकते है| अगर इनको पता लग गया मैंने इनकी बातें सुन ली है तो यह मुझे या तो मार डालेगे या तलाक़ न दे दें| मैं तो पीहर भी नहीं जा सकती थी आंटी| वहाँ तो सभी कुछ बहुत मुश्किल से चलता है| बस चुपचाप ही मैंने किशोर को झूठ बोल दिया कि मैं डर गई थी कि इस बार भी मैं कहीं बच्चे को खो न दूँ|...

आंटी जब से मैंने इन लोगों की बातें सुनी है मैं रात-रात भर सो नहीं पाती| बस एक खौफ़ मन में समा गया है कि पता नहीं कब ये किसी डॉक्टर को अपनी तरफ मिला लें और मुझे न जाने कब कुछ बगैर बताये खिला दे| मैं अपने बच्चे को खो दूंगी| आंटी अब मुझे अहसास हुआ है कि यह हमेशा ही क्यों ऐसे डॉक्टरों के पास जाते थे जिनको कोई जानता तक नहीं| अब तो आंटी मुझे लगता है पता नहीं वो डॉक्टर थे भी कि नहीं|...इतना सब कुछ बोलते में फिर सुनीता ने रोना शुरू कर दिया और रोते रोते बोली ..

आंटी! आजकल तो सपने में मेरे पिछले तीनो बच्चे मेरे पास आते है| मुझे कहते है मैं अच्छी माँ नहीं हूँ क्यों कि मैं उनको बचा नहीं सकी| आंटी मुझे तो कुछ भी पता ही नहीं था कैसे बचाती उनको| बहुत रोते है आंटी मेरे बच्चे सारी-सारी रात रोते है और मुझे भी सोने नहीं देते|..

आंटी आप ही बताओ कैसे वापस लाऊं उनको| मुझे तो लगता है मेरा यह भी बच्चा कहीं उनकी बातें सुन सुनकर मुझ से रूठ न जाए और हमेशा के लिए मेरे से दूर चला जाये|…

सुनीता की बातें सुनकर मुझे लगने लगा था कि गहरे अवसाद में वो जा चुकी है| अपने इस दर्द को डर की वजह से किसी से साझा नहीं कर पाई और अन्दर ही अन्दर घुटने से उसने अपने लिए भी एक बीमारी खड़ी कर ली थी| कितना अजीब लग रहा था अब मुझे| एक मासूम-सी बच्ची जिसकी कोई गलती नहीं थी और वो इन बेकार की लड़का होने जैसी सोच की वजह से आहत की जा रही थी|

लोगों की दकियानूसी सोच किसी को कितना आहत करेगी कई बार लोग अपने स्वार्थों के बीच सोच ही नहीं पाते| इस परिवार ने तो तीन अजन्मे बच्चो के साथ तो अन्याय किया| साथ ही इस लड़की को गहरे अवसाद में डुबो दिया| कितना जानवरों जैसा व्यवहार है यह| इंसान अपने स्वार्थों के पीछे किसी को आहत करते में जरा भी संकोच नहीं करता| इस समय मुझे इस बच्ची पर इतना प्यार आ रहा था कि इसके सभी दर्दों को कहीं स्वयं में समेट लूँ|

खैर सभी कुछ सँभालने के लिए मुझे बहुत तरीके से और समझदारी से काम करना था| नहीं तो हो सकता था कि किसी भी दिन यह लड़की कोई गलत निर्णय न ले ले| सबसे पहले सुनीता के पति को अपने विश्वास में लेना था| ताकि सुनीता मेरे पास बराबर आती रहे| साथ ही मेरे यहाँ से ही उसकी सब जांचे हो और उसके घर वाले कोई गलत निर्णय न ले सके|

यह काम मेरे लिए भी बहुत मुश्किल था| आसान नहीं था क्यों कि किसी को भी सिर्फ हमारे यहाँ से ही सभी जांचे करवाए, ऐसा विश्वास दिला पाना बहुत टेडी खीर था| मेरी मंशा सिर्फ सुनीता के भावों को सँभालने की ही नहीं थी बल्कि मैं हर कीमत पर चाहती थी कि यह बच्चा हो जाये| ताकि सुनीता इस अवसाद से निकल सके|

मैंने सुनीता को सुनने के बाद उससे पूछा...

सुनीता क्या तुम बताओगी तुमको यहाँ आने के लिए किसने सलाह दी?..मेरे प्रश्न पूछने के पीछे मक़सद यह था कि कोई तो होगा इसको बोलने वाला कि इस डॉक्टर के पास जाओ वो आपको सही जांचे करके देगे या सलाह देगे|

आंटी! मेरी सहेली के दोनों बच्चों के समय की सभी जांचे पूरी प्रेगनेंसी के समय आपके यहाँ ही हुई है| उसी ने मुझे बोला तेरी सभी परेशानियों का हल वहां हो जायेगा| सुनीता ने मुझे ज़वाब दिया|

थोड़ी ही देर में सुनीता का पति उसको लेने आ गया| चूँकि अभी तक उसकी सोनोग्राफी नहीं हुई थी सो उसके पति को भी इंतज़ार करना था| अब तक सुनीता सामान्य हो चुकि थी और उसके पति को ऐसा कुछ भी नहीं बताना था जिसकी वजह से वो सुनीता को यहाँ आने से उसका परिवार रोकता| मैंने और डॉक्टर गुप्ता ने यह निर्णय लिया कि किसी भी तरह इसको यहीं वापस आने के लिए बोला जाये|

सुनीता का जैसे ही नंबर आया हमने उसके पति को भी अन्दर बुला भेजा| उसको बच्चे के अच्छे होने की सूचना दी और चूँकि मरीज़ की हिस्ट्री ली जाती है उस हिस्ट्री को ही माध्यम बना किशोर को समझाया|

चूँकि पहले तीन बार बच्चा गिर गया है| अब की बार सुनीता का विशेष ध्यान रखना होगा| अगर अबकि बार कुछ ऐसा हुआ तो सुनीता की जान को बहुत खतरा है| उसको खाने-पीने के सभी सुझाव देकर वापस चार-पांच दिन बाद आने के लिए, यह कहकर बुलाया कि सुनीता को अन्दर डर बैठा हुआ है....बच्चे को कुछ ना हो जाये| इसको अन्दर से मजबूत करने की ज़रूरत है ताकि माँ और बच्चा दोनों ही स्वस्थ रहे| इसलिए इसको समझाइश की ज़रूरत पड़ेगी और किशोर जी आपको ही सुनीता को बराबर हमारे पास लेकर आना होगा| जितना सुनीता मन से मजबूत होगी बच्चा उतना ही स्वस्थ होगा| शायद मेरी बात किशोर को समझ आ गई थी और उसने अपनी सहमति दी|

अब किशोर शायद सुनीता के मरने की बात सुनकर चुपचाप हाँ में हाँ मिलाता रहा| शायद अभी वो कुछ भी पूछने या कहने की स्थिति में नहीं था| बच्चे का जैसे-जैसे विकास हुआ सुनीता अपने आप में चिकित्सिय समझाइश के साथ मजबूत होती गई|

कुछ महीने गुजरने पर जब एक दिन किशोर उसके साथ आया और मुझे लगा शायद वो मुझे कुछ पूछना चाहता है मैंने उसको अकेले ही अन्दर बुलाया| तब उसने मुझसे पूछा ‘मैम यह तो आपने बताया कि बच्चा बहुत अच्छे से बढ़ रहा है क्या आप बताएगी कि हमारे बेटा है या बेटी|’...तब मैंने उसको भी बहुत अपनेपन के साथ समझाया...

किशोर बेटा! एक बात पूछूँ तुमसे सच-सच बताना तुमको अगर जरा-सा भी प्यार है सुनीता से तो बेटा उसको इस बच्चे के साथ जीने दो| बहुत मुश्किल से उबरी है वो, उसको वो खुशियाँ दो जो उसको चाहिए| अगर उसको कुछ हो गया तो उसके जाने के बाद क्या गारन्टी है कि तुमको बाद में भी किसी और स्त्री से बेटा ही होगा| सब ईश्वर पर छोड़ो बेटा| तुम्हारी माँ भी स्त्री है जिसको तुम बेहद प्यार करते हो| अब जो भी हो,सुनीता की जान की ख़ातिर उसको जी लेने दो|....

शायद मेरा उसको बेटा कह कर समझाना निरुत्तर कर गया और शायद कहीं वो सुनीता की मौत को लेकर परेशान भी हो गया था| क्यों कि सुनीता उसके माँ-बाप का बहुत दिल से ख़याल रखती थी|

जी मैम! बोलकर वो चला गया|...और नौ महीने बाद सुनीता ने एक स्वस्थ बेटी को जन्म दिया| जिसने सुनीता के सारे बुरे स्वप्नों के आने-जाने पर रोक लगा दी| बच्चे के आगमन और उसकी उपस्थिति ने सबकी मानसिकताओं में तब्दीली कर दी|

इस मरीज़ा के जाने के बाद मैं सोचने पर मजबूर हो गई कि बेटा-बेटी जैसी मानसिकता का सामाजिक स्तर पर सुधार होना सबसे पहले जरूरी है| जब तक लोगों की मानसिकताए नहीं बदलेगी समाज में परिवर्तन मुश्किल है| इसलिए किसी को भी दोष देने से पहले इसकी शुरुवात परिवार से होनी चाहिए|

प्रगति गुप्ता

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