Niyati - 7 in Hindi Women Focused by Apoorva Singh books and stories PDF | नियति... - 7

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नियति... - 7

अमर पूरे दो दिन बाद कोलेज आता है।वहीं मुझे भी बेसब्री से इंतजार होता है अमर के कोलेज आने का।उसे देख मेरे मुरझाए चेहरे पर रौनक खुद ब खुद लौट आती है।अमर को देख मै उसकी तरफ अपने कदम बढ़ा देती हूं और अमर के पास पहुंच जाती हूं।उस पल मेरे लिए वक़्त मानो रुक सा गया हो। इन दो दिनों में आंखे तरस गई थी उसे देखने के लिए।उसे देख कर मेरी आंखे खुशी से बरस पड़ती हे।अमर बस मुस्कुराते हुए मेरे चेहरे की तरफ ही देखता जा रहा था।और मै अपने आंसुओ के जरिए उससे मौन रहकर बाते कर रही थी।मै कुछ कहने के लिए अपने होठ खोलती हूं तो अमर ये कह कर चुप करा देता है मै जानता हूं तुम क्या कहना चाहती हो।तुम्हारी आंखे और उन आंखो से बहते आंसू सब कुछ कह रहे है।तुम्हे मुझे समझाने के लिए शब्दों की जरूरत नहीं है।

समझी झल्ली सी लड़की।कह कर अमर हंस देता है।अक्षत सुचिता आशीष रश्मि सभी खड़े होकर हमारी तरफ ही देख रहे थे।अमर मुझसे इशारे से आंसू पोंछ कर मुस्कुराने के लिए कहता है।

मै अमर की बात मान कर मुस्कुरा देती हूं और बाकी सभी दोस्तो के पास चली आती हूं।अक्षत आशीष सुचिता रश्मि मै और अमर क्लास रूम पहुंचते है।रश्मि हमें देख कर पलके झपका कर एक छोटी सी मुस्कान देती है।जिसे देख हमारे चेहरे पर भी अनायास ही मुस्कान खिल उठती है।

अक्षत आशीष सुचिता सब समझ जाते हैं।सुचिता हमारे रिश्ते के बारे में सुन कर मुस्कुरा देती है लेकिन मन ही मन उसके मन में क्या तूफान चल रहा है इसका शायद किसी को अंदाजा भी नहीं होता है।क्यूंकि नियति और अमर की नियति बदलने में सबसे बड़ा रोल सुचिता का ही है।

वर्तमान में ---

अमृता - आप के कहने का अर्थ है अमर के इस समय आपके साथ न होने का कारण सुचिता ही है।

नियति - जी।।सुचिता।।आस्तीन का वो सर्प बन गई मेरे जीवन में जिसने अपने प्यार को पाने के लिए हर हद पार कर दी।अगर सुचिता ने अपनी जिद को पूरा करने के लिए गलत रास्ता न चुना होता तो अमर और नियति साथ होते।

आपके जीवन के इस मोड़ के बारे में भी मै सुनना चाहूंगी लेकिन आज नहीं नियति जी।।समय का अभाव है जिसके कारण मुझे घर जाना होगा।कल ठीक दस बजे आपसे फिर से मुलाकात होगी।बाय।।

जी अवश्य।। बाय बाय।।चलिए मै आपको दरवाजे तक छोड़ देती हूं नियति अमृता से सोफे से उठते हुए कहती है।

आ उसकी कोई आवश्यकता नहीं मिस नियति।मै खुद से चली जाऊंगी।आप अपना कार्य देखिए।।

ठीक है जैसा आपको ठीक लगे।।....अमृता अपने घर के लिए निकल जाती है।और नियति अपने घर में कदम रखती है जहां राघव और आरुषि हॉल में सोफे पर बैठ कर उसका इंतजार कर रहे होते हैं।

नियति राघव और आरुषि को ऐसे हॉल में बैठे देख उनसे पूछती है आप दोनो यहां क्या कर रहे हो।आरुषि आप कॉलेज से आज जल्दी आ गई क्यों??और राघव तुम ऑफिस गए नहीं थे क्या??

ओह हो थोड़ा शांत हो जाओ और यहां बैठो हम सब के पास।कितनी टेंसन लेती हो तुम।मै ऑफिस गया था और प्रोजेक्ट का कार्य भी अच्छा चल रहा है। इन बुजुर्गो के पास तो सच में अनुभव का खजाना है नियति।जो आज की पीढ़ी के लिए बेहद आवश्यक है।मै जबसे तुम्हारे साथ इस प्रोजेक्ट से जुड़ा हूं बुजुर्गो की अहमियत समझता जा रहा हूं।

रसोई से लेकर जीवन के महत्वपूर्ण फैसले लेने तक इनके अनुभव का कोई तोड़ नहीं है।तुम्हे पता है जब मै इन बुजुर्गों से बातचीत कर रहा था तब मुझे बुजुर्ग महिलाओं ने रसोई के मसालों और खाने में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं के ऐसे ऐसे नुस्खे बताए जिनसे कुछ समस्याओं में तो तुरंत लाभ मिल जाता है।जैसे कि पेट में कब्ज, गैस से रिलेटेड परेशानी हो तो गुनगुने पानी में चुटकी भर हींग जीरा पाउडर लेने से राहत मिलती है।और तो और जिस खूबसूरती के लिए तुम लड़कियां पार्लर में जाकर हजारों रुपए बर्बाद करती है वो खूबसूरती घर पर मेनटेन करने के भी कई उपाय बताए।जैसे नीम के पत्तो और जरा सी मुल्तानी मिट्टी मिलाकर जो लेप तैयार होता है वो नेचुरली खूबसूरती निखारने का कार्य करता है। तुम इनके इसी अनुभव का लाभ उठाकर व्यवसाय का रूप देने की कोशिश कर रही हो जिससे ये सभी आत्मनिर्भर बन सके।

हां राघव इस व्यवसाय से जो भी लाभ होगा उसका आधा इन्हीं सबको बांट दिया जाएगा और आधे को व्यवसाय में लगा उससे व्यवसाय को आगे बढ़ाने में सहायता मिलेगी।अच्छा ये बताओ जो प्रोडक्ट्स तैयार हो गए है उन की लैब टेस्टिंग हो गई अभी तक या नहीं।कहां अटकी हुई है फाइल्स।।

नियति कुछ प्रोडक्ट्स की हो चुकी है।और कुछ प्रोडक्ट्स की होनी बाकी है।कल तक वो भी हो जाएगी।।

ओके।।राघव।।अच्छा क्रोएशिया के वर्क का कार्य जो महिलाएं कर रही थी वो कहां तक प्रगति पर पहुंचा।।जिन महिलाओं ने जिम्मेदारी ली थी इस कार्य के लिए उनसे बातचीत हुई कि नहीं।

नियति टेबल से फाइल उठाते हुए राघव से पूछती है।

नहीं अभी तक उनसे बातचीत नहीं हो पाई है।मैंने कल सुबह उनसे बातचीत करने का सोचा है जिससे बातचीत के साथ सारा कार्य भी अपनी आंखो से देख लूंगा !

ओके राघव।।और आरुषि कैसी पढ़ाई चल रही है आपकी। कॉलेज में कोई परेशानी तो नहीं हो रही है आपको।

आरुषि नियति की बात सुन नज़रे इधर उधर घुमाने लगती है।नियति एक नजर आरुषि के चेहरे को देखती है और फिर से अपने कार्य में लग जाती है।

क्या हुआ आरुषि कहां खोई है आप क्या कोई परेशानी है आपको।आपने जवाब नहीं दिया अब तक।

नहीं कोई दिक्कत नहीं है।और पढ़ाई भी अच्छी चल रही है।आज एक प्रोफेसर आए नहीं थे तो मै जल्दी आ गई।

तो इतनी बात बताने में इतना सोच विचार करना पड़ा आपको।।नियति आरुषि के पास जाती है और उसके सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए कहती है आरुषि।हम सब एक परिवार हैं और अगर परिवार के किसी सदस्य को कोई दिक्कत परेशानी होती है तो सभी मिल कर उसे सॉल्व करते हैं।आप मेरे लिए छोटी बहन की तरह हो अपनी परेशानी मुझसे कहने में कोई परेशानी तो नहीं होनी चाहिए।

हां दी। अगर कोई परेशानी होगी तो आपको अवश्य बताऊंगी।आप चिंतित न हो।आरुषि मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहती है।नियति की नजर उसकी मुस्कान परख लेती है।लेकिन आरुषि से कुछ कहती नहीं है।

आरुषि बातें तो होती रहती रहेंगी।आपको पढ़ाई भी करनी होगी। आप जाइए पढ़ाई कर लीजिए।ठीक है।

आरुषि मुस्कुराते हुए ठीक है कहती है।और उठ कर वहां से अपने कमरे में चली जाती है।नियति राघव से एक बार आरुषि के कॉलेज जाने को कहती है।

राघव नियति का इशारा समझ जाता है।और अगले दिन आरुषि के कॉलेज जाने का कहता है।।

दिन व्यतीत हो जाता है अगले दिन अमृता ठीक दस बजे नियति के घर पहुंचती है।जलपान करने के बाद नियति से अपनी कहानी आगे सुनाने को कहती है।

नियति अपनी दास्तां आगे सुनाती है ----

नियति की कॉलेज लाईफ का समय --

उस दिन के बाद अमर और मै एक कपल के रूप में लाईफ को एंजॉय करने लगे।वहीं सुचिता के मन में मुझे लेकर कड़वाहट आ जाती है।वो हम सब के साथ तो होती है लेकिन साथ होकर भी न के बराबर।वो सबसे हंस कर मुस्कुरा कर बात करती है लेकिन मेरे साथ अजनबी जैसी रहती है।।समय गुजरता है और समय के साथ हमारा अमर नियति का रिश्ता और मजबूत होता है।एक वर्ष व्यतीत हो जाता है।स्नातक के प्रथम वर्ष के एग्जाम हो जाते है जिसमें अक्षत और मैंने टॉप किया हुआ होता है।इसी बीच घर पर मेरे रिश्ते की बातचीत भी छिड़ती है।मेरे पिताजी मुझे बिन बताए सब कुछ तय करने के लिए लडके वालो के घर भी जाते है।लेकिन मेरी किस्मत अच्छी होती है जो लडके में कई एब निकल आते है और मेरे मां पिताजी ये रिश्ता तोड़ देते हैं।कृति मुझे ये सारी बाते फोन पर बताती है।जिसे सुन कर मै अवाक रह जाती हूं।लेकिन ये जान कर तसल्ली मिलती है कि फिलहाल के लिए ऐसा कुछ नहीं है।
हम सभी स्नातक के द्वितीय वर्ष में आ जाते हैं।इस एक वर्ष भी मेरे लिए सुचिता का व्यवहार नहीं बदला होता है।अमर के बाद अगर किसी लड़के से मै फ्रैंक ली बात करती हूं तो वो अक्षत होता है।अक्षत से भी मै मोस्टली अपनी सारी बाते शेयर करती हूं।यहां तक कि जो बातें मै अमर से नहीं कह सकती उन्हें अक्षत से शेयर कर अपने मन को हल्का कर लेती हूं।इसी बात को नमक मिर्च लगाकर सुचिता कई बार अमर से कह चुकी होती है।अमर सुचिता की इन बातो को इग्नोर कर देता है।

कॉलेज में एक दिन सभी फ्रेंड्स गार्डेन में बैठे हुए होते है। अमर सुचिता रश्मि आशीष सभी आपस में बाते करते है --

रश्मि - अमर एक बात बताओ तुम्हे किसी से डर लगता है क्या।।

अमर - हां!! लगता है न।।मेरी जान निया को खोने से।।

अमर के जवाब से सुचिता को छोड़ कर सभी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है।
ओह हो अमर।।मैंने सीरियसली पूछा था और तुम मज़ाक में ले रहे हो।रश्मि अमर की खिंचाई करते हुए कहती है।

अच्छा ठीक हैं नहीं कर रहा मज़ाक। ख़ुश।अब सीरियसली बताता हूं मुझे अपनी मां के अलावा किसी से डर नहीं लगता।उनके आंखे दिखाने से ही मेरे पसीने छूटने लगते हैं।

रश्मि - ओह गॉड।। मां तो कितनी प्यारी होती है। मां की डांट में भी प्यार छुपा होता है।और तुम अपनी मां से डरते हो।वैसे ये बात तुमने नियति को बताई क्या।।

अमर - नहीं बताया रश्मि।क्यूंकि वो सब समझती है।और सब जानती है।

फिर तो बहुत अच्छा है।अच्छा गाईज मेरे मन में एक ख्याल आया है।क्यूं न कुछ डेयरिंग किया जाए।देखते है हमारे दोस्तो में कौन कितना हिम्मती है।

आशीष - रश्मि तुम्हारे मन में ये कैसे उल जलुल ख्याल आ रहे है।जरूरत पड़ने पर सभी हिम्मती बन ही जाते है यार।। अच्छा बताओ क्या खिचड़ी पक रही है तुम्हारे दिमाग में...

खिचड़ी तो ये है कि कुछ डेयरिंग किया जाए।क्यूं न हम एक हॉरर पार्टी रखते हैं।

पार्टी वो भी हॉरर।।रहने दो रश्मि।।कोई और आइडिया हो तो वो बताओ।।नहीं तो फिर रहने दो।भला पांच लोगों की पार्टी मै कौन सा फन आएगा।पार्टीज में तो जितने ज्यादा लोग हो उतना ज्यादा मज़ा आएगा।कहते हुए अमर रश्मि की बात को टाल देता है।

बात आई गई हो जाती है।लेकिन सुचिता के दिमाग में खिचड़ी पकने लगती है। वाह रश्मि! ! क्या आइडिया दिया है यार तुमने।इसका लाभ उठाकर मै अमर की लाईफ से नियति को बाहर कर सकती हूं। कहते हुए सुचिता के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है।थैंक यू रश्मि!! कार्य सारा मै करूंगी और सबको यही लगेगा कि ये सब संयोग से हुआ है।सुचिता एक जहरीली मुस्कान अपने चेहरे पर रखती है और अपने भाई आशीष के पास जाकर कहती है।भाई क्यूं न कुछ शरारत की जाए फ्रेंड्स के साथ।थोड़ी डेयरिंग वाली। बिन किसी को बताए।

क्या सुची तुम अभी भी बच्ची ही हो।स्नातक के दूसरे वर्ष में आ गई अब तो शरारत कम कर दो।

ना भाई।।शरारतें करती रहनी चाहिए।।तभी लाईफ में रोमांच बना रहता है।शरारतें न हो तो इंसान इंसान नहीं मशीन कहलाए।जिसमें कोई फीलिंग्स नहीं होती बस दिन रात कार्य कराते रहो।सो भाई मुझे तो शरारतें पसंद है।।आप प्लीज़ मेरा साथ दो न।सच में बहुत मज़ा आएगा इसमें।।और फिर फ्रेंड्स ही तो है सब कोई भी बुरा नहीं मानेगा।

आशीष अपनी बहन के आगे हार जाता है और उसकी बात मान कर दोनो हॉरर सरप्राइज पार्टी अरेंज करते हैं।

ये पार्टी आशीष ने अपने घर अरेंज की है।जिसमें जगह जगह साउंड फिट कर दिए है।कहीं धीमी आवाज़ में तो कहीं सन्नाटे को चीरती हुई तेज आवाज में।जगह जगह 👻 घोस्ट के कॉस्ट्यूम फोटो लटका दिए हैं कहीं कहीं मद्धिम रोशनी का प्रबंध किया है।ये सब आशीष ने घर के हॉल में किया होता है।क्यूंकि आशीष की फैमिली में उसके मां और पिताजी है को दोनो ही वर्किंग पर्सन हैं।

हौले सामने एक बड़ा सा स्टेच्यू खड़ा कर दिया है और इसे डरावने से कॉस्ट्यूम पहना दिए होते हैं।

परफेक्ट भाई।सुचिता खुश होकर ताली बजाते हुए कहती है।अब एक बार लाइट बंद कर साउंड लगा कर देखते है कोई कमी तो नहीं रही।

हां ठीक है।।आशीष जाता है और सारे स्विच बंद कर देता है तथा सुचिता साउंड सिस्टम ऑन कर देती है।जिसमें कभी धीमे धीमे सनसनाती हवा की आवाज़ आती है।कभी धीमी धीमी हवा की आवाज़ बढ़ती जाती है और अचानक से चीख में तब्दील हो जाती है।जिससे खुद सुचिता ही चौंक जाती है और पलट कर देखती है।कहीं कहीं फैन भी फिट कर दिए है आशीष ने।और तो और अन्य जनवरी की वॉइस भी लगा रखी है बीच बीच में इन सब की आवाज़ से एकदम से कोई भी खड़ा व्यक्ति चौंक जाए।

आशीष और सुचिता ने बहुत ही शानदार तरीके से माहौल बना दिया है।जिसे देख सुचिता कहती है नियति इं सब का इफेक्ट तो जरूर पड़ेगा तुम्हारे रिश्ते पर।बस अब देखना है ये रिश्ता कितना और टिकेगा।।

अच्छा भाई अब सबको कॉल कर यहां बुलाते हैं।सबसे कहते है पार्टी है हमारे घर में आना आवश्यक है।वो भी एक घंटे में।अच्छा आइडिया है न।

हमम चलो कॉल करते हैं।सुचिता और आशीष दोनो अपने बाकी चारो को कॉल करते हैं।

सुचिता अमर को कॉल करती है और उससे पार्टी में आने को कहती है।

अमर - पार्टी!! सुचिता किस खुशी में पार्टी दे रही हो।।आज तो तुम्हारा बर्थडे भी नहीं है।फिर पार्टी क्यू??

अमर का प्रश्न सुन सुचिता कुछ क्षण खामोश हो जाती है फिर कॉल पर ही मुस्कुराते हुए कहती है।अप पार्टी किस खुशी में है ये तो तुम्हे यहां आकर ही पता चलेगा।सरप्राइज पार्टी है डियर ! ! ऐसे कैसे भंडा फोड़ कर दे कारण का।

अमर - ये भी सही है।।चलो फिर निकलता हूं मै कुछ ही देर में। मां से बात करवा देना आशीष की।। नहीं तो पहुंच गया फिर मै।

अब अगर तुम नहीं पहुंचोगे तो मेरा प्लान का क्या होगा अमर महाशय।। मन ही मन सुचिता सोचते हुए कहती है हां बिल्कुल मै आशीष भाई से कह दूंगी।अच्छा बाय अब।मिलते हैं कुछ ही देर में।

बाय सुचिता कहते हुए अमर फोन रख देता है।आशीष मुझे और रश्मि को कॉल कर बोल देता है।वहीं सुचिता अक्षत से कॉल कर कह देती है।चारो को इन्वाइट करने के बाद आशीष बाजार की तरफ निकल जाता है।

मेरे मन में आशीष की इस पार्टी को लेकर संदेह होता है।क्यूंकि आशीष सुचिता का भाई है और सुचिता मेरे लिए अच्छी भावनाएं नहीं रखती है।मै इस बारे में कुछ कहने के लिए रश्मि की ओर देखती हूं जहां वो खुशी खुशी ड्रेस सलेक्ट करने में व्यस्त होती है।

मै उसकी खुशी देख मुस्कुरा देती हूं।और अमर से इस बारे में बात करने के लिए फोन उठा उसे कॉल लगाती हूं और सरप्राइज पार्टी में जाने के बारे में पूछती हूं।

अमर - मै रेडी हो गया हूं बस अभी निकल ही रहा हूं तुम बताओ रेडी होकर निकली कि नहीं। हां तैयार होकर एक फोटो भेजना न भूलना।और सुनो न पार्टी में वो मेरी पसंदीदा पिंक वाला ड्रेस पहनना उसमे तुम बहुत सुंदर दिखती हो।

अमर लेकिन मै तो वो नींबू कलर वाला फ्रॉक पहनना चाहती हूं।मेरा बहुत मन है उसे पार्टी में पहनने का।

ओह हो निया।।वो फिर कभी पहने लेना लेकिन आज मेरा मन है तुम्हे पिंक ड्रेस में देखने का।प्लीज़ वहीं पहनो ना।

मै उसकी बात सुन बस मुस्कुरा देती हूं।और फोन रख देती हूं।पहली बार मेरे मन में ये ख्याल आता है कि क्या सच में एक स्त्री कि अपनी कोई ख्वाहिश नहीं होती।उसे सिर्फ त्याग ही करना पड़ता है।मेरा कितना मन है अपनी वो ग्रीन वाली घेरदार फ्रॉक पहनने का।लेकिन अमर ने मेरी भावनाओ को कोई महत्व नहीं दिया अपनी पसंद मुझे बता दी।
खैर अभी मै तैयार हो जाती हूं।नहीं तो देर हो जाएगी पार्टी में पहुंचने के लिए।

रश्मि तैयार हो जाती है और मेरे पास आती है।मेरा उखड़ा हुए मूड देख कर मुझसे कहती है क्या हुआ डियर।ये चेहरे पर बारह क्यू बजा रखे हैं।पार्टी में जाना है इस बात की खुशी नहीं है तुम्हे।

अब क्या बताऊं तुझे कहते हुए अपनी व्यथा उसे बता देती हूं।जिसे सुन कर पहले तो वो हंसती है फिर मुझसे कहती है। हद है अब वो अपना प्यार जताए तो तुम्हे परेशानी।और तुम्हे अपनी मर्जी से जीने दे बिन रोक टोक फिर भी मुंह फुला लेती हो कि प्यार कम हो गया है अब।बताओ बेचारा अमर मेरे तो करे क्या।

रश्मि इतनी मासूमियत से कहती है कि मेरे उदास चेहरे पर हंसी आ जाती है।जिसे देख वो कहती है बस मेरी ये बात कहने का कारण पूरा हुआ।अब तुम्हारी परेशानी तो इतनी बड़ी है नहीं जितना बड़ा मुंह बनाए हो।यार ये सब तो नॉर्मल है अब अमर और तुम एक कपल हो जिस कारण उसकी कुछ अभिलाषाएं इच्छाएं है जिन्हें वो चाहता है कि तुम उन्हें पूरा करो।इसमें गलत क्या है नियति।।उसे अच्छा लगता है जब तुम उसकी पसंद को महत्व देती हो।क्या तुम्हे अच्छा नहीं लगता जब अमर तुम्हारी पसंद को महत्व देता है।तुम्हारी पसंद कि फ्लेवर वाली आइस क्रीम खाता है। अगर कभी घूमने भी गए तो तुम्हारे कम्फर्ट को ध्यान रखता है।अपने बारे में नहीं सोचता।फिर तुम क्यों इतना सोच रही हो।सिर्फ पार्टी के लिए ही तो पहनने के लिए कहा है।आज पहन लो उसकी पसंद का।। ग्रीन वाला ड्रेस फिर कभी पहन लेना।नियति तुम दोनों का जो रिश्ता है वो बाकि कपल से बहुत अलग है।तुम दोनों के बीच सिर्फ प्यार ही प्यार है कोई डिमांड नहीं है एक दूसरे से।ये छोटी छोटी बातें डिमांड नहीं कहलाती डियर।।ये तो प्यार जताने का छोटा सा तरीका होता है।

समझी झल्ली।।मै रश्मि की बात समझ जाती हूं और मुस्कुराते हुए उसके गले लग जाती हूं तथा थैंक यूं कहती हूं।

चल झल्ली।।अब तैयार हो जा जल्दी से और अमर को लेकर ये ऊटपटांग ख्याल न लाना अपने मन में।इतना समय हो गया है हम सब को एक साथ तो उसे मै समझने लगी हूं अच्छे से।जैसे तुम समझती हो।बस जो अतीत में तुम्हारे साथ हुआ है उस वजह से कभी कभी अमर की भावनाओ को गलत समझ लेती हो।

हां रश्मि शायद तुम सही कह रही हो।मै भी न ज्यादा ही सोचती हूं।रुको तुम दो मिनट मै तैयार होकर आती हूं।उसके बाद चलते है पार्टी में।कुछ ही पलों में मै भी तैयार हो जाती हूं।मै अमर के रिएक्शन देखने के लिए बेहद उत्साहित होती हूं।खुशी खुशी हंसते मुस्कुराते मै और रश्मि आशीष के घर पार्टी के चल देते है।

रश्मि ने वेस्टर्न ड्रेस पहनी होती है।उसने रेड कुर्ती जिसमें येलो रंग के किनारे किनारे बुंदे लटके होते हैं हलके सफेद और नीले रंग की जींस है।अक्षत भी बन ठन कर घर से निकल आता है।सबसे पहले अमर आशीष के घर पहुंचता है।जैसे ही अमर डोरबेल रिंग करता है।सुचिता और आशीष अंधेरा कर देते है।एवम् साउंड सिस्टम ऑन कर देते है।जिससे विभिन्न तरीके की डरावनी आवाजे आने लगती है।डेकोरेशन लाइट्स ऑन कर देते हैं।सुचिता जाकर जल्दी से दरवाजा खोल देती है और दरवाजे के पीछे छिपते हुए अंधेरे का लाभ उठा वहां से खंभे के पास पहुंचती है और अमर के रिएक्शन देखने लगती है।

अमर अंधेरा देख सुचिता को आवाज़ लगाता है।तथा आगे बढ़ता है। कि तभी उसकी नज़र सामने खड़ी मूर्ति पर पड़ती है उसे देख अमर एकदम चीख पड़ता है।... गॉड जी!!! सुचिता और आशीष छिप कर उसे देखते हुए हाथो से मुंह बंद किए हंसे जा रहे है।

एक तो मद्धम रोशनी उस पर उस मूर्ति को गोल स्टूल पर रख एक साधारण कद काठी के इंसान का रूप देते हुए उसे हॉरर कॉस्ट्यूम पहना देते है जिस कारण वो स्टेच्यू किसी भूत से कम नहीं लग रही।

अमर उसे देख जहां था वहीं खड़ा रह जाता है। उसके चेहरे पर पसीना आ जाता है।

अमर - कौन!! कौन है वहां! सुचिता तुम हो क्या!!

लेकिन सुचिता कुछ नहीं कहती उल्टा हंस देती है।जिसे सुन अमर और डर जाता है।एक तो स्टेच्यू,उस पर हल्का अंधेरा और ये डरावनी आवाज़ें और अब ये हंसी ऐसे में तो अच्छे खासे निडर इंसान की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाए।फिर ये तो अमर है एक साधारण स्वभाव का इंसान।अमर हिम्मत कर आगे बढ़ता है और जैसे तैसे स्टेच्यू के पास पहुंचता है। उसे पास देख उसके कॉस्ट्यूम देखता है तो उसकी थोड़ी हिम्मत बढ़ती है।धीरे धीरे अपना हाथ उठा कर उसे टच कर देखता है तो समझ जाता है कि ये स्टेच्यू है।

तभी उसे रश्मि की दोपहर वाली की बात याद आती है।अमर सब समझ जाता है और मुस्कुराते हुए कहता है।।सच में बहुत अच्छा अरेंजमेंट किया है तुम लोगों ने।अब सब समझ आ गया है मुझे अब यहां जो भी हैं बाहर निकल आओ।

आशीष सुचिता जब अमर की बात सुनते हैं तो हंसते हुए खंभो में पीछे से बाहर निकल आते हैं।ओह तो ये तुम दोनों की कारस्तानी है।वैसे सेटअप बढ़िया है।एक बार को तो मै सच में डर ही गया था।

ओह रियली।।मतलब अपनी मां के अलावा भी किसी और से डरते हो तुम।।वो भी भूतो से।। हाहाहा 😀😀।
हां तो अब यूं अचानक ऐसे शॉक दोगे तो किसे डर नहीं लगेगा आशीष।।अब ये सब छोड़ो हम सब छुप जाते हैं। बाकी दोस्तो के रिएक्शन भी देखते हैं।

हां हां सही कहा।।सभी दोस्त छिप जाते है और दरवाजे कि ओर किसी के आने का इंतजार करने लगते हैं।दो मिनट बाद दरवाजे कि घंटी बजती है।अक्षत दरवाजे के उस तरफ खड़ा होता है। दरवाजा पिछली बार खुला ही रह गया था जिस कारण अक्षत के दरवाजे पर जरा सा हाथ लगाते ही खुल जाता हैं
अक्षत दरवाजे से अंदर आ जाता है।

घर में अंधेरा देखकर चौंक जाता है।बाकी जब सिस्टम की आवाज़ सुनता है तो उसे कुछ स्ट्रेंज लगता है।वो मद्धिम रोशनी की तरफ बढ़ता है।जहां उसे वहीं स्टेच्यू दिखता है।अक्षत उसकी तरफ बढ़ जाता है उसे देख एक पल को तो वो सिहर जाता है लेकिन अगले ही पल खुद को संयत कर कोई है यहां!! कोई है यहां!! कहकर आवाज़ लगाता है।

आशीष सुचिता और अमर ये देख हैरान हो जाते हैं कि अक्षत तो बिल्कुल नॉर्मल बिहेव कर रहा है डर का उसके चेहरे पर नामोनिशान भी नहीं है।

ओह हो तो तुम लोग नहीं निकलोगे।।खैर तुम सभी की इच्छा मै तो यहां टेबल के पास पड़ी कुर्सियों पर बैठ आराम से आशीष की लाई हुई कोल्ड ड्रिंक एंजॉय करता हूं।कह कर अक्षत जाकर कुर्सियों पर बैठ जाता है।और उन सब को दिखाने के लिए कोल्ड ड्रिंक पीने की एक्टिंग करने लगता है।

अमर,आशीष सुचिता तीनों अपने छुपी हुई जगहों से निकल आते है और अक्षत से कहते है अकेले ही अकेले यार।।हम भी है यहीं।।वैसे मान गए तुम्हे।।डर नाम कि चिड़िया का पता ही नहीं है तुम्हे।
बड़े ही निडर हो।मै जब यहां आया तो मेरी तो बैंड बज गई डर की वजह से।और तुम तो एक योद्धा की तरह निडर बैठे हो।अमर अक्षत के कंधे पर हाथ रखते हुए कहता है।

हां अमर।अब मै तो ऐसा ही हूं।सभी ऐसे ही अंधेरे में बैठे हुए होते हैं कि तभी रश्मि और मै भी वहां पहुंच जाते हैं।वो सभी एकदम से शांत हो जाते हैं।और जहां थे वहीं बैठे रह जाते हैं।मै और रश्मि आशीष सुचिता के घर पहली बार गए हुए होते हैं।घर एकदम से बंद होता है। अगर लाइट न जले तो घुप्प अंधेरा रहता है उनके घर के ग्राउंड फ्लोर वाले हिस्से में।

ग्रामीण क्षेत्र से संबंधित होने के कारण मेरे घर के सदस्य इन भूत प्रेत अलाय बलाय पर अंधा विश्वास करते हैं।मै ये नहीं कह रही कि भूत होते ही नहीं है।।होते होंगे!!अवश्य होते होंगे!! वो कहते हैं न अच्छाई है तो बुराई भी है।।सुख है तो दुख भी है।उसी तरह ईश्वर का अस्तित्व है तो शैतान का भी होगा।।लेकिन ग्रामों में अधिकांशतः देखा गया है कि खेत में,या किसी ऐसी जगह जहां मृत शरीर को दफनाया जलाया जाता हो, स्वास्थ्य खराब होने पर चक्कर,उल्टी आने पर ग्रामीण डॉक्टर के पास न जाकर झाड़ फूंक करने वाले के पास जाते हैं और वहां जाकर न जाने कैसे कैसे अनगिनत उपाय अपनाते है।

बस इसी परिवेश का असर होने के कारण ऐसा कृत्रिम माहौल देखने पर मै कस कर रश्मि का हाथ पकड़ लेती हूं।और कांपने लगती हूं।

रश्मि देख घर के अंदर मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा।तुम खुद ही सोचो जिस घर में पार्टी हो वहां ऐसा अंधेरा और इसी भयानक आवाज़ें भला क्यूं आयेंगी।

ओह हो सरप्राइज पार्टी है झल्ली।।हम दोनों जब और अंदर जाएंगे तभी एकदम से लाइट ऑन कर दी जाएगी जिससे ये हम दोनों का सरप्राइज हो जाएगा।समझी कुछ।कहते हुए रश्मि थोड़ा और अंदर कदम रखती है।उसके पीछे डरते हुए मै भी आगे कदम बढ़ाती हूं।मेरी जो उस समय हालत थी मै बता नहीं सकती।मतलब इतनी बुरी तरह डरी हुई थी मै की अगर रश्मि मेरे साथ नहीं होती तो मै तो वहीं दरवाजे से थोड़ा आगे आकर ही बेहोश हो जानी थी।तभी मेरी नजर सामने खड़े स्टेच्यू पर पड़ती है जिसे देख कर मै जोर से चीख पड़ती हूं।मेरी चीख सुनकर रश्मि मेरा हाथ छोड़ एकदम छिटक कर दूर खड़ी हो जाती है और खुद भी चिल्लाने लगती है।मेरी चीखने की आवाज़ सुन कर अमर अक्षत दोनो एक साथ पूछते है निया.. !! तुम ठीक हो!!मै कुछ जवाब देती कि हवा के बढ़ने की साउंड आती है जिसे सुन कर चीखते हुए मेरी नज़र अक्षत पर पड़ती है।डूबते को तिनके का सहारा अक्षत को देख मै अक्षत कह दौड़ती हुई जाकर उसके गले से लग जाती हूं।डर इतना हावी हो गया था मुझ पर कि मेरी सांसे उखड़ने लगी थी।हाथ पैर थर थर कांप रहे थे। और हृदय तो डर कि वह से बैठा जा रहा था।

अक्षत मेरी हालत देख सबको चुप होने के लिए कहता है।और मेरे सर पर हाथ फिरा कर रिलेक्स होने को कहता है।और मुझे पास ही पड़ी कुर्सी पर बैठने को कहता है।

अमर को ये देख कर बुरा लग रहा होता है।उसके चेहरे के हावभाव देख कर सुचिता मन ही मन खुश होते हुए खुद से कहती है।परफेक्ट काम किया है तुमने सुचिता।।हॉरर पार्टी अरेंज करने का आधा फायदा तो मिल गया तुझे।बाकी बचा आधा काम करने के लिए मै हूं ही।अब अगर मै कोई नॉर्मल पार्टी रखती तो इन दोनों के रिश्ते में शक का बीज बोना मुश्किल नहीं नामुमकिन होता।वो कहते है न सुख में सभी साथ होते है और दुख में केवल अपने।।और यहीं तो परेशानी में नियति ने अमर का नाम न लेकर अक्षत को याद किया है।।।

अपने..... हा हा हा।मन ही मन कुटिल हॅंसी हंस ही रही होती है कि उसकी नज़र गुस्से में मुट्ठी भींचे अमर पर पड़ती है।ओह मेरा अमर..सुचिता मन ही मन आह भरकर कहती है।चलो सुचिता बाकी कार्य भी कर ही देती हूं सोच सुचिता अमर की तरफ बढ़ जाती है।

क्यूं अमर बुरा लग रहा है? सुचिता सीरियस मोड़ में जाकर अमर से कहती है।मैंने तो कितनी बार इशारा किया तुम्हे।।तुमने मेरी बात पर ध्यान ही नहीं दिया।अब बुरा क्यूं लग रहा है तुम्हे।।

शट अप सुचिता!!क्यूं बकवास कर रही हो।।जैसा तुम सोच रही हो वैसी नहीं है निया।।

अमर किससे झूठ बोल रहे हो।।अपने आप से अगर तुम्हे बुरा नहीं लग रहा तो ये चेहरा लाल क्यू है।और ये मुट्ठी क्यूं भींचे हुए हो। शौक के लिए?

अमर के पास उसकी बात का कोई जवाब नहीं होता।वो बस उसे घुर कर देखते हुए अक्षत के पास चला आता है।

वेल डन सुचिता।।आखिर तुम कामयाब हो ही गई।।अमर के रिएक्शन देख लग रहा है उसे इस घटना क्रम से तीखी मिर्ची लग रही है।बस अब इसका असर ख़तम होने से पहले मुझे एक दो बार और मिर्च का तड़का लगाना है।जिससे रिजल्ट मेरे मन मुताबिक निकल कर सामने आए।

गाइज!! अब क्या ऐसे ही बातें करते रहोगे या फिर पार्टी एंजॉय भी करोगे।। सुचिता की बात सुन कर हम सभी बाकी दोस्त हंसते हुए कहते हैं पार्टी ....है कहां?? सुचिता !! ये पार्टी के इंतजामात है डरावने से ?? अमर सुचिता से कहता है।थोड़ा रिलेक्स होने के बाद मै अक्षत से सॉरी कहते हुए उसके गले से अलग होती हूं।मुझे बहुत अजीब लगता है।मै अमर की तरफ देखती हूं।जहां उसके चेहरे पर मुझे थोड़े चिढ़ न के भाव नज़र आते है। मै उठ कर उसके पास खड़ी हो जाती हूं और उसके चेहरे की तरफ देखने लगती हूं।

सुचिता - गाइज़ सॉरी हां।।पार्टी का तो नाम किया है। हम दोनों ने बस सोचा था कि रश्मि के आइडिया को अपनाकर सभी फ्रेंड्स के साथ थोड़ी मस्ती की जाए। कुछ डेयरिंग किया जाए।। देखा जाए कितनी निडरता है आप सब में।

ओह तो ये सब इसीलिए प्लान किया गया था।।चलो अब आ ही गए हैं तो थोड़ा एंजॉय करना तो बनता है।

सभी फ्रेंड्स खूब मस्ती करते हैं।वहीं मेरे और अमर के बीच अनकही खामोशी छा गई थी।मै अमर की तरफ देख कर उसकी नज़रे पढ़ने की कोशिश कर रही हूं।अमर का मूड अभी तक ठीक नहीं हुआ था।लेकिन सभी को दिखाने के लिए मुझसे स्माइली से बातें करने लगा।ये देख कर सुचिता अंदर ही अंदर कुढ़ गई।और अमर के पास आकर खड़ी हो गई।

ओ लव बर्डस!!पार्टी में आए हो तो पार्टी एंजॉय करो न।यूं अकेले अकेले एक दूसरे की कम्पनी तो हमेशा ही एंजॉय करते रहोगे।चलो न यहां खड़े क्यूं हो वो देखो बाकी सभी फ्रेंड्स कितनी मस्ती कर रहे हैं।

हां हां सुचिता बिल्कुल हम लोग तो बस यूं ...
हां हां!!यूं ही सब समझती हूं मै... एक्सप्लेनेशन देने की जरूरत नहीं है।चलो अब।।कहते हुए सुचिता अमर का हाथ पकड़ कर खींच ले जाती है जिसे देख मेरे सीने पर सांप लौटने लगते है।

सुचिता अमर को अपने साथ ले जाती है और डांस फ्लोर पर पहुंच वेस्टर्न डांस करने लगती है।जिसे देख मुझे सच में बहुत गुस्सा आ रहा होता है।उस समय अगर मेरे हाथ में कोई चीज होती तो पक्का मै उससे सुचिता का सर फोड़ देती।अमृता जी उस समय मै अमर को लेकर पजेसिव होने लगी थी।जिस कारण मेरे मन में सुचिता को लेकर ऐसे ख्याल आने लगे थे।मै ये भूल गई थी कि प्रेम में तो पजेसिव होने का कोई स्थान ही नहीं होता क्यूंकि प्रेम तो स्वतंत्र होता है उसमे कोई बंधन नहीं होता।जैसे ही अधिकार की बात प्रेम में आने लगती है तो वो उस सच्चे प्रेम के लिए विष के समान होता है।वहीं शक अगर किसी रिश्ते में पड़ जाता है तो उस रिश्ते के लिए विनाशकारी ही होता है।इसी शक के बीज को जमाने का कार्य सुचिता कर रही थी।

अमर सुचिता के साथ व्यस्त था।रश्मि आशीष के साथ डांस फ्लोर पर थी मै अकेली ही वहां खड़ी हुई थी।मुझे अकेले खड़ा हुआ देख अक्षत मेरे पास आता है और मुझसे बातचीत कर कम्पनी देने लगता है।

अमर और सुचिता दोनो मेरी तरफ देखते हैं।अमर के हाव भाव बदलते जा रहे थे।।
अब काहे अपना खून जला रहे हो अमर।।क्या अब भी तुम्हे यकीन नहीं हो रहा कि इन दोनों के बीच कुछ नहीं है।ये लड़की तुम्हे चीट कर रही है अमर।।तुम क्यूं जान बुझ कर अनदेखा कर रहे हो सब।।किसी पर इतना विश्वास करना भी अच्छी बात नहीं है अमर।तुम्हे पता है ये तो इसके दोस्त राघव से भी ऑनलाइन बातचीत करती है।सुचिता... बस बहुत कह लिया तुमने निया के बारे में और मै बहुत देर से सुन रहा हूं।मै तुमसे कुछ कह नहीं रहा या पलट कर जवाब नहीं दे रहा इसका अर्थ ये नहीं है कि मै तुम्हारी बातों से इत्तेफाक रखता हूं।।अब से तुम इसके क्या किसी भी लड़की के खिलाफ कुछ नहीं कहोगी।।ये अच्छी आदत नहीं है। आई होप अब तुम समझ गई होगी।।कहते हुए अमर सुचिता को वहीं स्टेज पर छोड़ आशीष के घर की छत पर चला जाता है।और वहां बालकनी में जाकर चुपचाप कुर्सी पर बैठ जाता है और जो भी घटित हुआ उसके बारे में सोचने लगता है।सुचिता की बाते उसके जेहन में घूम रही होती है और न चाहते हुए भी अमर उन सब के बारे मी सोचने लगता है।
अमर को छत की तरफ जाता देख सुचिता मन ही मन खुश होती है।और अमर के पीछे पीछे छत पर पहुंच जाती है।जहां वो देखती है अमर कुर्सी पर बैठे हुए सोच विचार में डूबा हुआ होता है।सुचिता अमर के दिमाग में शक का कीड़ा बिठाने में कामयाब हो जाती है।

वो वहां से नीचे चली आती है और सबके साथ हंस हंस कर बातें करने लगती है।कुछ देर बाद जब अमर का मूड ठीक होता है तो वो नीचे आ जाता है।और मेरे पास आकर खड़ा हो मुस्कुराने लगता है।उसकी मुस्कुराहट मुझे फीकी हुई सी महसूस होती है।इससे पहले मै कुछ कहती उससे या पूछती सुचिता सभी को दोबारा से कोल्ड ड्रिंक समौसा स्नैक्स आदि के लिए आवाज़ लगा देती है।अमर और मै भी सबके पास पहुंच जाते है।।और ये छोटी सी ट्रीट एंजॉय करने लगते हैं।कुछ देर और एंजॉय कर हम सभी घर के लिए निकल जाते हैं।

रूम पर पहुंच कर मै और रश्मि आज जो छोटी सी पार्टी थी उसके बारे में बातें कर कहते हैं।

निया डर तो मुझे भी लगा लेकिन मज़ा भी बहुत आया।।आइडिया कॉपी भले ही किया हो आशीष सुचिता ने लेकिन अरेंजमेंट तो लाजवाब किया।

मै अपने ही ख्यालों में खोई हुई होती हूं और अमर के चेहरे पर आने जाने वाले भावों के विषय में सोचती हूं।
क्या सच में मैंने जो देखा है अमर की आंखो में वो वाकई में था या सिर्फ उसे खोने का मेरा डर था।

मुझे अमर से इस बारे में बात करनी चाहिए।।अगर सच में वैसा हुआ तो हमारा एक साल का रिश्ता धीरे धीरे ख़तम होने की कगार पर आ जाएगा।या यूं कहो ख़तम हो जाएगा।

ओए निया।।परेशान आत्मा।।मै तुमसे ही बात कर रही हूं। न जाने कहां खो गई।।

कहीं नहीं रश्मि वो मै भी पार्टी के बारे में ही सोच रही थी।सब कुछ अमेजिंग रहा न।।

हां निया।।खैर अब तुम रुको कुछ देर मै अभी फ्रेश होकर आती हूं।फिर आराम से बैठ कर पढ़ाई करेंगे।।

हम्म ठीक है।।रश्मि फ्रेश होने चली जाती है और मै अमर को कॉल करती हूं।

अमर कॉल उठा लेता है।।हेल्लो!!
हेल्लो अमर!! घर पहुंच गए।।

हां!!अभी दस मिनट पहले पहुंचा हूं।

मै - क्या हुआ अमर।।तुम्हारी आवाज़ में कुछ उदासी है।क्यू?घर पर सब ठीक है।

अमर - हां सब ठीक है।वो बस अभी बाहर से आया हूं न इसीलिए ऐसा लग रहा होगा तुम्हे!!अच्छा मै कुछ देर में बात करता हूं कहकर फोन रख देता है।मै समझ जाती हूं कि अमर का मूड अभी तक ठीक नहीं हुआ है।

कुछ देर बाद अमर का दोबारा फोन आता है।मै हड़बड़ा कर फोन उठाती हूं और उससे बात करती हूं।बात करते करते अमर की परेशानी मुझे पता चलती है तो मै उससे कहती हूं अमर क्या इतनी ही रेस्पेक्ट करते है आप मेरी।।अमर जहां प्रेम होता है वहां विश्वास भी होता है।रिश्ते इतने मजबूत होने चाहिए जिनमें हमें कुछ भी पूछने से पहले सोचना ना पड़े। बस इत्ती सी बात के लिए इतना परेशान हो रहे थे।ऐसी कोई बात थी तो पूछना चाहिए था आपको क्लियर कर लेते सारी बात यूं हृदय में बाते रखने से सिर्फ उलझने बढ़ती है।जिससे रिश्तों में दरार पड़ती है।।अमर !! अक्षत और राघव मेरे फ्रेंड्स है।जहां तक राघव की बात है उससे तो कभी कभी बातचीत हो जाती है।महीने में एक दो बार।वो खुद ही इतना व्यस्त रहता है अपनी पढ़ाई को लेकर।।और अक्षत को तो आप भी अच्छे से जानते है।।आप उसे अपने भाई जैसा कहते है फिर मै भला उससे कोई रिश्ता कैसे रख सकती हूं।।अमर प्रेम है तो विश्वास भी होना चाहिए।।जहां विश्वास नहीं है वहां प्रेम नहीं ठहर सकता।।मै आप पर विश्वास करती हूं तभी सुचिता के साथ आपकी बातचीत या संपर्क देख कभी कोई प्रश्न नहीं किया।।हालाकि सुचिता से मुझे जलन होती है लेकिन आपसे कुछ कहा नहीं और न ही इस बात का कभी आपको और सुचिता को एहसास कराया।

सॉरी नियति।।वो मै ऐसी सिचुएशन देख गलत समझ बैठा।।अब से ऐसा कभी नहीं होगा।।पक्का!!

ओके अमर।।कोई बात नहीं।।लेकिन मेरी बात याद रखिए।।विश्वास करना सीखिए।।लेकिन अंधा विश्वास नहीं।।खैर अमर अब मै रखती हूं।कल मिलते है कॉलेज में बाय बाय।।

अमर - बाय बाय ।।अगले दिन हम सभी कॉलेज पहुंचते है जहां मै अक्षत अमर आशीष सुचिता सभी को हेल्लो कहती हूं।सुचिता ये देख हैरान हो जाती है कि अमर और मै एक दूसरे से कैसे मुस्कुराते हुए बात कर रहे है जैसे कल कुछ हुआ ही न हो।।मै अभी आती हूं कुछ काम है वहां कोरिडोर में!!सभी से कह सुचिता वहां से निकल लेती हे।

ओह गॉड इन दोनो को देखकर लग रहा है जैसे सारी बातें क्लियर के कर ली हो इन्होंने।। अगर ऐसा रहा तो मेरी तो सारी योजना खटाई में पड़ जाएगी।।कुछ तो सोचना पड़ेगा सुचिता।।ऐसे ही इस शक के बीज को नष्ट नहीं होने दूंगी मै।मुझे अपना प्यार हासिल करना है हर कीमत पर।।उसके लिए मै हर हद पार भी कर दूंगी।अमर सिर्फ मेरा है और उसे मै अपना बना कर ही रहूंगी बाई हुक और बाई क्रुक..

सुचिता बाहर कॉलेज कोरिडोर में खड़े होकर खुद से ही ये सारी बातें कर रही होती है जिन्हें मै सुन लेती हूं।क्यूंकि मुझे और रश्मि को लाइब्रेरी जाना था जिसका एक रास्ता कोरिडोर से होकर भी गुजरता था वहां से गुजरते हुए मेरी नज़र सुचिता पर पड़ी जो खुद से ही कुछ बड़बड़ाने में लगी हुई थी।उसकी बात सुन कर मेरा मुंह खुला का खुला रह जाता है।मै सुचिता से कहती हूं --

हे अंबे मां।।तो तुम ये सब जानबूझ कर इंटेंसनली कर रही हो।जिससे मेरे और अमर के बीच में दूरियां आए जिनका तुम लाभ उठा कर अमर के करीब पहुंच जाओ।।

ओ नो!! सब जान गई हो तुम नियति।।यहीं सच है।।मै अमर से प्यार करती हूं।।जैसे कि तुम करती हो।और उसे अपना बनाने के लिए मै किसी भी रास्ते से गुजर जाऊंगी फिर चाहे वो रास्ता शॉर्ट कट हो या गलत।कहते हुए सुचिता वहां से बाकी सब दोस्तो के पास चली जाती है।

रश्मि और मै सुचिता की बात सुन हैरान रह जाते हैं क्या बोल रही थी वो।।मै हैरानी के भाव से रश्मि की तरफ देखती हूं। ऐसे यूं टुकुर टुकुर कर मेरी तरफ न देखो उसने कहा था और वो कह कर चली गई।।अब बस तुम्हे सतर्क हो जाना है।क्यूंकि वो आगे भी कुछ न कुछ ऐसा अवश्य करेगी जिससे तुम्हारे और अमर के रिश्ते में दिक्कतें आए।मै और रश्मि आपस में बातचीत कर ही रहे होते है कि तभी मुझे पेट दर्द महसूस होता है।दर्द की वजह से मेरा मुंह बनने लगता है जिसे देख रश्मि मुझसे कारण पूछती है।
मै रश्मि को इशारा कर दर्द का कारण बताती हूं।

रश्मि हैरान होकर कहती हे यार फिर से।।देख निया तुम अपना चेक अप करवा ही लो एक बार।एक बार पहले भी तुम्हे ये दिक्कत हुई थी कि महीने में दो दो बार तुम्हे ये पीरियड वाली प्रॉब्लम हुई।और इस बार फिर से वैसा ही है।

हो सकता है रश्मि ये सब मेरी खानपान की लापरवाही वजह से हो रहा हो।अब मेरी आदतें ही ऐसी है।बिन नहाए पूजा किए कुछ गले से नीचे न उतरना।।शाम को भी अब तो लेट नाइट हो जाता है क्यूंकि पढ़ाई से पहले खा लूं तो नींद आने लगती है इसलिए पढ़ाई के बाद ही कुछ खाती हूं ।उस पर पिछले कुछ दिनों में गर्म तासीर वाला खाना खाए जा रही हूं शायद इसीलिए ये परेशानी हो गई हो।

बातो में तो अब तुम सबकी नानी हो।पहले ही ठीक थी चुपचाप सीधी साधी।कम से कम इतनी बातें तो नहीं बनाती थी।जो कहो वो चुपचाप मान लेती थी।अभी मेरी बात भी मान लो तुम्हारे भले के लिए ही है मिल लो एक बार डॉक्टर साहिबा से।

रश्मि नेक्स्ट टाइम!! अगर फिर से ऐसी दिक्कत हुई तो पक्का मिल लूंगी डॉक्टर से।।
ठीक है तो अब एक काम करो फिलहाल के लिए रूम पर निकलो ।वहां ड्रॉअर में एक पेन किलर पड़ी हुई है येलो रंग की वो ले लेना।

मै - ठीक है डियर।।टेबलेट ले लूंगी रूम पर पहुंच कर।।बाय।। और अमर को बिन बताए मै वहां से चली आती हूं।

अमर रश्मि से मेरे लिए पूछता हे तो रश्मि उससे कह देती है कि उसके पेन हो रहा था सो रूम पर चली गई।

अमर - ओके।।चलो सभी चलते हैं क्लास रूम की तरफ।।
क्लास रूम में पहुंच कर अमर सुचिता अक्षत सभी खूब मस्ती करते हैं।एवम् लेक्चरर के आने पर सभी शांत हो बैठ जाते हैं।

वहीं सुचिता के दिमाग में खुराफात चल रही होती है।वो आगे के बारे में सोच रही है कि अब उसे आगे क्या करना चाहिए!!

नियति इतनी बुरी भी नहीं दिखती है।खूबसूरत है ठीक ठाक हाइट है।सुंदर सी आंखे है।गोल सा चेहरा है।ये तो हो है नहीं सकता कि इसके लिए लडके पागल न हुए हो।ऐसा कोई तो अवश्य होगा जिसने इसे प्रपोज किया होगा।। ऐसा कोई मिल जाए तो.....शायद तब कोई बात बन जाए मेरी।लेकिन मुझे ऐसा कोई मिलेगा कहां!!वो तो आगरा की रहने वाली नहीं है किसी गांव से रिलेटेड है।कोई न कोई रास्ता तो मै निकाल ही लूंगी।।मन ही मन खुद से बड़बड़ाती हुई कहती है।

क्यूं न मै आंटी जी का हृदय जितने की कोशिश करूं।
(सुचिता अमर की मां को जानती है क्यूंकि आशीष के साथ साथ उसका भी अमर के घर में आना जाना रहता है।)उनसे तो मेरी कभी कभी बातचीत भी हो जाती है और अगर आंटी जी का सपोर्ट रहेगा तो अमर फिर मेरा हो ही जायेगा।। वाह क्या आइडिया निकाला है मैंने।।एक तीर से दो निशान ।।एक तो ये अमर की मां का हृदय जीत लिया तो उस घर में मेरी एंट्री पक्की और दूसरा ये मै अमर पर नजर भी रख सकूंगी।।नियति और अमर की लाईफ के सीक्रेट भी पता कर पाऊंगी जिसका लाभ उठा मै नियति को अमर की लाईफ से आउट कर दूंगी।

सुचिता मन में ख्याल आते ही इस कार्य पर लग जाती है।धीरे धीरे समय गुजरता जाता है।सुचिता और अमर की मां की बॉन्डिंग बन जाती है।

एक दिन सभी दोस्त कॉलेज से घर आ जाते हैं।शाम को मेरी अमर से बातचीत होती है तो बातो ही बातो में हमने अगले दिन आगरा के सिकंदरा घूमने का प्लान बनाया।रश्मि को भी अपने साथ ले लिया।।क्यूंकि बिन उसके मेरा अकेले कहीं भी जाना खतरे से खाली नहीं होगा।।रश्मि को तो फैमिली के सदस्य जानते है इसीलिए उसके साथ आने जाने में मुझे कोई खतरा नहीं होता।यहीं सोच कर रश्मि भी हमारे साथ आने के लिए तैयार हो जाती है।

अमर रश्मि और मैंने प्लान तो बना लिया लेकिन हमारे प्लान को सुचिता सुन लेती है जो शाम के समय अमर के घर होती है और उस पर नजर रखे हुए होती है।
अगले दिन हम तीनो सुबह के समय सिकंदरा के लिए निकल गए।।रूम से भगवान टाकीज पहुंचे और वहां से ऑटो पकड़ सीधा पंद्रह मिनट में सिकंदरा पहुंच गए।सिकंदरा पहुंच कर हम तीनो ने एंट्री टिकट ली और अंदर एंट्री कर हम तीनो बादशाह अकबर की टॉम्ब बनी हुई उस इमारत के पास पहुंच वहीं साइड में बने पार्क के पास पहुंचते है।जहां कुछ हिरन तथा अन्य छोटे जीव पार्क में घूमने का आनंद ले रहे होते हैं।



सिकंदरा जिसका निर्माण अकबर ने अपने जीवन काल में करवाया था लेकिन इसे पूर्ण करने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गई।बाद में इसका निर्माण उसके पुत्र जहांगीर ने पूर्ण करवाया।।




यहां का मुख्य दार्शनिक स्थल अकबर का मकबरा है।ऐसा कहा जाता है कि अकबर के मकबरे में दीवारों पर सोना चांदी माणिक आदि कीमती धातु जड़ी हुई थी जो लुटेरों ने आक्रमण कर लूटना चाहा।।दीवारों में जड़ी हुई होने के कारण वहां आग लगा दी जिससे सोना एवम् अन्य धातु पिघल गई जिसे लूट के ले गए।।इस बात में कितनी सच्चाई है ये कहा नहीं जा सकता।। अगर कभी सिकंदरा घूमने जाओ तो वहां दीवारों पर जलने के निशान अवश्य मिलते है।।


टॉम्ब ऑफ अकबर की इमारत के अंदर की एक झलक..

रश्मि पूरी इमारत में घूम घूम कर फोटोग्राफी करने लगती है।मै और अमर एक पेड़ के नीचे पड़ी लंबी सी कुर्सी पर बैठ कर बतियाने लगते हैं।

मुझे ऐसा महसूस होता है जैसे कोई तो है जो हमें वहां बैठे हुए चुपके से देख रहा है।कुछ ही देर में फोटो ज क्लिक होने की आवाज़ आती है।जिसे मै सुन लेती हूं और अमर से कहती हूं।।

अमर ऐसा लग रहा है कोई जैसे कोई हम पर नजर रख रहा है और हमारे फोटो भी क्लिक कर रहा है।।क्या आपको कोई आवाज़ सुनाई दी।।

नहीं निया।।मुझे कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी।और वैसे भी ये टूरिस्ट प्लेस है यहां कैमरों की आवाज़ सुनाई देना कोई बड़ी बात नहीं है!!

मै अमर की बात से सहमत होती हूं।आखिर टूरिस्ट प्लेस जो है। यही हमारी सबसे बड़ी गलती होती है...।।जिस पर बाद में हम दोनों बहुत पछताते हैं।

क्रमश.