Mukambal Mohabat - 14 in Hindi Fiction Stories by Abha Yadav books and stories PDF | मुकम्मल मोहब्बत - 14

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मुकम्मल मोहब्बत - 14



मुकम्मल मोहब्बत -14


मैने अपनी गर्दन मधुलिका की ओर घुमायी तो उसकी निगाहें मेरे चेहरे पर टिकी हुई थी. मैं कुछ कहता, वह गम्भीरता से बोली-"इतने सीरियस क्यूँ हो?ममा से डॉट पड़ी है?"

उसकी बात सुनकर मैं हँसने ही वाला था, लेकिन मैंने अपने चेहरे पर संजीदगी ओढ़ ली.


"देखो,स्वीट डियर !ममा की डॉट का बुरा नहीं मानना चाहिए. दरअसल ,हम उनकी नजरों में कुछ गलत करते हैं, तब वह हमारे भले के लिए हमें डाटते हैं."मधुलिका ने गम्भीरता से कहा.


"उनकी नजरों में हम कुछ गलत करते हैं..."मैंने उसका वाक्य दोहराया.


"हां,कुछ चीजें हमारी नजरों में सही होती हैं और हम उन्हें करते हैं. वहीं चीजें जरूरी नहीं कि हमारे बड़ों को सही लगें."


"मसलन..."

"अपने साथियों से दोस्ती ...प्यार..."कहते हुए रूकी मधुलिका-"लिखो न !"

मैं लेपटॉप निकाल कर लिखने लगा-हां ,कुछ चीजें....


"हमें किसी का साथ अच्छा लग रहा है और हम उसके साथ वक्त गुजारना चाहें. जरूरी नहीं हमारे परेंट्स को यह पंसद आये. उन्हें लगे हम वक्त बरबाद कर रहे हैं तो डॉट तो पड़ेगी ही."कहकर वह चुप हो गई.


लिखते हुए मैं सोच रहा था-सही कह रही है, मधुलिका. ममा भी कितनी बार डॉट चुकीं हैं. ऐनी के साथ वक्त मत बरबाद करो.कहीं जॉब देखो और शादी बना लो.

"हमें अपनी सच्चाई साबित करनी चाहिए. उनके अहम मुद्दों को उठाना चाहिए. जो हम कर रहे हैं, वह कितना सही है,ममा को किलयर करना पड़ेगा..."


मैं आँखें झपकाना भूल गया. यह नादान उम्र और फलक छूती सोच.कहीं ऐनी की आत्मा तो नहीं आ गई इसमें. वह भी किसी मुद्दे को लेकर बहस नहीं करती. बस उसे सही साबित करने में जुट जाती है.


"देखो, डियर,तुम्हें जिस बात को लेकर डॉट पड़ी है अगर वह गलत है तो उसे छोड़ दो.यदि तुम सही हो तो ममा को समझाने की कोशिश करों."

मैं लिखते हुए रूका. उसके चेहरे पर नजर गड़ा कर बोला-"मधुलिका, तुम्हें कभी ऐसी बातों पर डॉट पड़ी है जो तुम्हारी नजरों में सही हो और ममा की नजरों में गलत "


"हां,हां,क्यूँ नहीं पड़ी है न!"मधुलिका का स्वर सहज था.


"कब..."

"बादल ने अपनी बर्थडे पर अपनी ममा के हाथ की बनी सिगोड़ी लाकर दी थी.मैं खुशी से घर ले गई. ममा को खिलाने के लिए. लेकिन, ममा को बहुत गुस्सा आया. बोली-सिगोड़ी बाहर फेंक कर आओ.उसके बाद नहाओ जाकर."

"क्यूँ, ?"मैंने आश्चर्य से मधुलिका का चेहरा देखा.


"बादल शिल्पकार है.ममा का कहना था कि हम गौड़ ब्राह्मण हैं. हम शिल्पकार के घर का नहीं खा सकते. लेकिन...मैं सिगोड़ी फेंक नही पायी. बादल ने बहुत प्यार से दी थी .वैसे भी खुशी की मिठाई फेंकी थोड़े न जाती है. मैंने बाहर जाकर सारी सिगोड़ी खाई और मुँह साफ करके नहाने चली गई..... मैंने सही किया न!"वह अपनी बडी-बड़ी आँखें झपकाकर बोली.



"हां,ठीक किया. क्या तुमने यह बात बादल को बतायी?"


"अरे,बुध्दू ! जो बात किसी का दिल दुखाये. वह उसे बतायी जाती है क्या"


"अरे,बुध्दू भी लिखना है, क्या?"मैंने रूककर पूँछा.


"हां,जब बुध्दू जैसी बात करोगे तो लिखोगे ही."मधुलिका ने अपनी बडी बडी आँखें नचाकर कहा.


मैंने गहरी सांस ली-"तुम्हारी कहानी मैं न जाने मुझे अपने आप को कितनी बार बुध्दू लिखना पड़ेगा."

"बुरा लगा.सॉरी डियर."वह उदास हो गई.


"नो,सॉरी... अच्छा ,यह बताओ.बादल शिल्पकार और तुम गौड़ ब्राह्मण .तुम्हें भी यह लगता है कि यह दोस्ती सही नहीं है."

"अरे,डियर, दोस्ती को कहां इतनी फुरसत है कि वह जाति, पैसा, रूप,रंग देखे. दोस्ती तो बस दोस्तों के दिल मिलने की बात हैं .एक दूसरे को अच्छे लगे बस एक दूसरे के हो गए. न स्वार्थ ,न लालच,बस एक ही उसूल है-जब तक है जान ....दोस्त दोस्ती पे फिदा. मेरी जान उसकी.उसकी जान मेरी."



यह लड़की जब भी बोलती है न! मुझे हैरान कर देती है. देखता रह जाता हूँ -कितनी गहन सोच है,कितना बड़ा शब्द कोष है,



आसमान का सुरमई रंग गहराने लगा था.आसपास की लाईट भी जल उठी थीं. मधुलिका की वापसी का वक्त हो चला था. मैंने दिमाग में कौंधता सवाल मधुलिका की ओर उछाल दिया-"तुम्हारी और बादल की दोस्ती चलती रही."

"हां,चलती रही. दोस्ती भी भला तोडऩे के लिए की जाती है. वह तो एक दूसरे पर मर मिटने के लिए होती है."उसकी आँखों में विश्वास की चमक थी.


"लेकिन तुम्हारी ममा...."


"यार,मैंने बताया न.हमें अपनी बात को साबित करना पड़ता है और हम अगर अपनी जगह सही हैं. हमारी दोस्ती सच्ची है तो कायनात भी हमारा साथ देती है."कहते हुए मधुलिका के गुलाबी होंठ हाथ में बंधे गजरे से जा लगे.उसके होठों के स्पर्श से फूल महक उठे.



मैंने वोट किनारे की ओर मोड़ दी.


क्रमशः