Antardwand - 1 in Hindi Women Focused by Sunita Agarwal books and stories PDF | अन्तर्द्वंद - 1

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अन्तर्द्वंद - 1

अंतर्द्वन्द (भाग -1)
वह माँ को देखती आई थी, पापा के आगे पीछे नाचते हुए, उन्हें हर वस्तु हाथ में पकड़ाते हुए, बात बेबात पापा की झिड़की खाते हुए, तो सोचती मम्मी कम पढ़ी लिखी हैं, इसलिये पापा ज्यादा धौंस जमाते हैं।वह कहती"ये क्या पापा, ये कोई बात करने का तरीका है, आप कमाते हो तो मम्मी भी तो घर संभालती हैं, इसलिये आप दोनों बराबर हो, न कोई छोटा न बड़ा ,आप मम्मी से ऐसे कैसे बात कर सकते हो ? "वह अक्सर पापा से लड़ जाया करती थी।पापा भी अपनी बेटी की हर बात चुपचाप सुन लिया करते थे।फिर धीरे धीरे उन्होंने अपनी आदतों को सुधार लिया।और वह बड़ी हो गई, वह सोचती कि कहीं उसे भी पापा जैसा गुस्से वाला पति न मिले,दूसरे ही पल सोचती "नहीं ऐसा नहीं होगा, में तो पढ़ी लिखी हूँ ,और वो भी पढ़ा लिखा ही होगा, जो मेरी भावनाओं की कद्र करेगा ,मुझे समझेगा" ।पर वह ये भूल गई कि हमारा समाज पुरुष प्रधान है, यहाँ लड़के कितना भी पढ़ लिखकर तरक्की कर ले पर उनकी मानसिकता वही होती है।खुद को श्रेष्ठ और औरत को दोयम दर्जे की समझने की।इसका कारण भी हम औरतें ही हैं, जो बेटे को बेटी से श्रेष्ठ समझती हैं और अपनी परवरिश से लड़कों में ये भावना कूट कूट कर भर देती हैं कि वह औरत जात से श्रेष्ठ है।पोस्ट ग्रेजुएट करते ही नेहा की शादी तय हो गई ,हालांकि लड़के तो बी.ए.में थी जबसे ही देखे जाने लगे थे,पर रिश्ता फाइनल अब हो पाया था।हालाँकि पहली बार जब निखिल उसे देखने आया था,तभी उसे निखिल का स्वभाव कुछ अटपटा सा लगा था, लेकिन घरवालों के सामने वह कुछ बोल नहीं पाई थी।कुछ महीने बाद उसकी शादी भी हो गई और वह दुल्हन बनकर ससुराल आ गई।ससुराल वाले शादी के इंतजाम और दहेज आदि से खुश नहीं थे, ये बात वह ससुराल आते ही समझ गई थी।उसकी सास उससे बहुत कम बात करती थी।वह सोचती शायद इनका स्वभाव ही ऐसा होगा।लेकिन निखिल के प्यार और सहयोग को पाकर जैसे वह सब कुछ भूल गई थी ।निखिल उसका खूब ख्याल रखता,उसे घुमाता फिराता और जरूरत की हर चीज उसे लाकर देता तथा घर के काम काज में भी उसकी मदद कर दिया करता था। उनकी दवा की दुकान थी जो 10 बजे ही खुलती थी और 10 बजे तक निखिल घर में ही रहता था, और दोपहर में जब खाना खाने आता तो ससुर जी दुकान चले जाते थे।सब कुछ ठीक ही था,लेकिन वह उसके मायके वालों से कटा कटा रहता।और उसे उसके मायके भेजने या ले जाने के लिये बड़ी मुश्किल से तैयार होता था।वह सोचती कि "निखिल मेरे मायके वालों से नाराज ही सही पर मेरे साथ तो उसका व्यवहार बहुत अच्छा है और धीरे धीरे उनसे भी इनकी नाराजगी दूर हो जाएगी"।शादी के बाद के चार महीने जैसे पंख लगा कर उड़ गए।आने वाली मुश्किलों से बेख़बर वह निखिल के साथ बहुत ख़ुश थी ।लेकिन सासूमाँ का व्यवहार उसे परेशान कर देता था।कभी कभी निखिल से उनका झगड़ा हो जाता तो वह नेहा से कहतीं कि "निखिल मेरा बेटा नहीं है, मैंने तो इसे गोद लिया है"।धीरे धीरे उनकी यह बात नेहा के दिमाग में घर करती चली गई।वह सोचती "शायद इसीलिये ये मुझे पसंद नहीं करतीं क्योंकि में इनकी सगी बहु नहीं हूँ "।निखिल और नेहा जब भी बाजार जाते या कहीं और, निखिल नेहा से कहता "मम्मी से पूछ लो" और वह पूछती तो सासु माँ सिर हिला कर जबाब देतीं, और जब वह लौटकर आते तो उनका मुँह फूला हुआ होता।आज दशहरे का त्योहार था, निखिल नेहा को मेला दिखाने ले गया ,जब वह लौट कर आये तो थोड़ी देर हो गई थी, घर आकर देखा कि ससुर जी सासूमाँ ने खाना न बनाया है, न खाया है ,तो निखिल ने नेहा से कहा कि सब्जी बनने में तो देर लगेगी तुम पराठें सेक लो दही और अचार से खा लेंगे।नेहा जब खाना बनाकर 'ससुर जी' और 'सासूमाँ' के लिये ले गई तो उन्होंने खाना तो खा लिया ,लेकिन बोलीं "इसने मायके में देखा ही क्या है?अचार से रोटी खा ली,चटनी से रोटी खा ली, जैसा देखा है, वैसे ही हमें खिला रही है"। ये सब सुनकर नेहा की आँख में आँसू आ गए लेकिन वह चुप रही।अपने मायके के बारे ऐसी बातें सुनकर उसे बहुत बुरा लगता, लेकिन निखिल के अच्छे स्वभाव को देखकर वह सब सह लेती थी, कि कोई बात नहीं मेरा पति तो अच्छा है।लेकिन रात को जब वह दूध गरम करके अपने सास ससुर को देने गई तो उसकी सासू माँ को वह दूध कुछ कम गर्म लगा, तो उन्होंने सुनाना शुरू कर दिया "में ही हूँ जो इसको झेल रही हूँ, कुछ भी सिखाया नहीं इसकी माँ ने"और भी बहुत कुछ कहा ।इतना सब कुछ सुनकर नेहा अपने कमरे में आ गई ,कमरे में निखिल भी था। निखिल को देखकर नेहा अपने आप को रोक नहीं पाई बोली "मम्मी जी क्यों इतनी नफरत करती हैं मुझसे?,चार महीने से देख रही हूँ,मुझसे ठीक से बात भी नहीं करतीं"।निखिल बोला "ऐसी कोई बात नहीं तुम्हें ऐसे ही लगा होगा"।वह बोली "ऐसे ही नहीं वह बात बात पर मुझसे ऐसे ही बोलती हैं "। शायद उसे निखिल से हमदर्दी की उम्मीद थी।लेकिन वह इस बात से बेख़बर थी कि उसने ओखली में सिर दे दिया है ।उसकी बात सुनकर निखिल का जो रूप उसने देखा देखकर वह दंग रह गई और सहम भी गई।पिछले चार महीने में निखिल ने पहली बार इतनी नफरत और बेरुखी से बात की थी ।और यहीं से उसके जीवन में द्वन्द और अंतर्द्वन्द की शुरुआत हो गई।