Mukambal Mohabat - 13 in Hindi Fiction Stories by Abha Yadav books and stories PDF | मुक्म्मल मोहब्बत - 13

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मुक्म्मल मोहब्बत - 13


मुक्म्मल मोहब्बत-13


मुझे आश्चर्य भी थाऔर मैं परेशान भी था.झील के किनारे, वोट के पास ,मुझसे पहले पहुंचने वाली मधुलिका का कहीं पता नहीं था.जबकि मुझे उसके यहां मिलने का पूरा यकीन था.इसलिए मैंने वोट का प्रीपेड भी कर दिया था.

अब झील के किनारे में पन्द्रह मिनट से चक्कर काट रहा हूँ. साथ ही कई सवाल भी मेरे दिमाग में कौंध रहे हैं. कहीं बीमार तो नहीं हो गई. लेकिन, कल तो भली चंगी थी.शायद,नाराज हो गई. मैंने स्वयं को उसका दोस्त कह दिया था. जबकि वह बादल के अलावा किसी को अपना दोस्त मानती ही नहीं.


लेकिन, ऐसा भी क्या गुनाह कर दिया ,मैंने. बस दोस्त ही तो कह दिया था. उसकी आपत्ति पर मैंने विरोध भी तो नहीं किया था. उसने भी तो कह दिया था कि दोस्त नहीं हूँ,लेकिन बहुत अच्छा हूँ.नाराजगी की उलझन मेरे दिमाग से निकल गई. अब ,मुझे मधुलिका की चिंता हो रही थी-कहीं बीमार तो नहीं है, कहीं उसके घर वालों ने आने से तो नहीं रोक लिया. नहीं आयी तो....कहानी कैसे पूरी होगी. फिर मुझे अपने आप पर हँसी आ गई. लेखक हूँ-कल्पनाओं की उड़ान भरूँगा. कहानी को मनमुताबिक मोड़ दे दूँगा. लेकिन, कहानी को छोड़ कर मधुलिका की चिंता दिमाग से नहीं निकली.सच कहूँ-मुझे मधुलिका से लगाव हो गया है. उसकी एक झलक पाने के लिए मैं अपने अंदर बैचेनी महसूस कर रहा हूँ.


इस समय मुझे झील का झिलमिलाता पानी भी आकृषित नहीं कर रहा.वैसे आज तक ऐसा नहीं हुआ कि झील के किनारे आऊं और वोटिंग न करूँ. आज यह पहला मौका था कि मैं अकेले झील में नहीं उतर रहा था.जबकि मुझे पंसद था,अकेले वोटिंग करते हुए आसपास के खूबसूरत दृश्यों में खो जाना.


आसमान में सुरमई रंग घुलने लगा था .साथ ही मेरा मन मधुलिका के न आने की उम्मीद से निराश हो चला था.अब यहां रूकना भी निरर्थक लग रहा था. मैं वापस जाने का विचार करने लगा.


अभी मैं वापस जाने के लिए सोच ही रहा था कि पीछे से मेरे ऊपर मोगरों के फूलों की बरसात होने लगी.मैंने पलटकर पीछे देखा. मधुलिका हँस रही थी-"हाय,स्वीट!"

"आज बहुत देर कर दी."मैंने वोट की ओर बढ़ते हुए कहा.

"कहां ,मैं तो तुमसे पहले आ गई थी."वह वोट में चढ़ते हुए बोली.


"मुझे तो दिखीं नहीं."

"कहां से दिखती?मंदिर के पीछे छिपी तुम्हारी बैचेनी देख रही थी. बिल्कुल बादल की तरह बैचेन हो रहे थे तुम.न दिखने पर बादल भी ऐसे ही परेशान होकर इधरउधर ढूंढता है."कहते हुए वह मुस्कुरा दी.


पल भर के लिए मुझे बादल से ईष्या हुई. बादल के सिवाय इसे कुछ सूझता ही नहीं. दुनिया में और भी लोग हैं, इसके अपने. अपने.... लेकिन, मैं उसका अपना कहां हूँ. चंद दिनों की मुलाकात ही तो है. तो क्या हुआ ?किसी का अपना हो जाने के लिए एक पल भी बहुत होता है. एक ही पल में कोई किसी का हो जाता है. उसी एक पल की अपने आप में बहुत अहमियत होती है. एक पल में प्यार.... एक पल में नफरत.... एक पल में जुदाई.... एक पल में मिलन....

मैं भी तो ऐनी का उस एक पल में हो गया था.जब मैंने ऐनी को लालवत्ती पर गाड़ी से उतर कर एक बूढ़ी औरत को हिफाजत से सड़क पार करायी थी.इससे पहले मैंने अपने साथ पढ़ने वाली इस साधारण सी लड़की को कभी नोटिस नहीं किया था.करता भी कैसे? मुझ जैसे खूबसूरत, हैंडसम, टापर लड़के पर कालेज की सभी लड़कियां जान देती थीं. खूबसूरत, पैसे वाली, लड़कियों की मेरे आगे लाईन लगी थी.मैं उनका सपनों का राजकुमार था.सच कहूँ-मैं भी अपने लिए परी जैसी खूबसूरत लड़की की जीवनसाथी के रूप में कल्पना करता था. लेकिन, जब-जब ऐनी से मिला .उसके अंदर की इंसानियत, उसका कुछ करने का जज्बा. बूढ़ों के लिए औलाद बन जाना. बेसहारा गरीब बच्चों के लिए सहारा बन जाना. मुझे उसके करीब खींचता गया.


एकदम अलग है ऐनी, और लड़कियों से. शहर के जाने माने बिजनेस मेन की इकलौती बेटी है ऐनी.लेकिन, अंह उसे छू भी नहीं गया.सबके लिए साधारण सी है. वैसे चाहें तो उसके पापा की कमाई उसकी सात पुश्तें बैठकर खायें. लेकिन, एक जज्बा अपने आप को साबित करने का उसमें हमेशा रहा. और उसी जज्बे के तहत वह टीवी से जूड़ गई. टीवी सीरियल, शॉट फिल्में बनाने लगी.मुझे भी लेखन का शौक रहा .यही शौक मुझे ऐनी से जोड़ता गया. मेरा लेखन ,ऐनी का उस पर काम करना दोनों की जिदंगी बन गये.


"हैलो, डियर !"मधुलिका ने झील के पानी की छींटे मेरे चेहरे पर मारीं तो में अपने अंदर की जिदंगी से बाहर आ गया. मैं अपनी भीतरी दुनिया में इतना खो गया था कि एहसास ही न रहा कि मधुलिका मेरे साथ है.


क्रमशः