Ishq Wala Love - Part 4 in Hindi Love Stories by Sunil Gupta books and stories PDF | इश्क वाला Love - भाग 4

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इश्क वाला Love - भाग 4

क्या हुआ मिष्ठी इतना उदास क्यों हो बताओ ना आज मैंने साइकिल की घंटी बजाई तब भी तुम बाहर नहीं आई ,और बुलाने पर बाहर आयी मम्मी पापा ने डांटा है क्या? तृषा के उदास चेहरे को देखकर देव ने पूछा

नहीं देव ऐसी कोई बात नहीं है पहले स्कूल चलो फिर मैं तुम्हें बताती हूं।
दोनों साइकिल से स्कूल पहुंचे और फिर अपने क्लास में चले गए

दोपहर में जब लंच टाइम हुआ तो साथ में अपना अपना टिफिन लेकर के लंच करने आए तृषा का चेहरा अभी भी उतरा हुआ था और वह उदास लग गई थी आज उसका मन पढ़ाई में भी नहीं लग रहा था मानो वह अपने आप में गुम और खोई हुई थी ।

मिष्ठी तुम आज इतना उदास क्यों हो ,मैने सुबह भी तुमसे पूछा तुमने कुछ नहीं बताया आज तुम हंस भी नहीं रही हो ,ना अच्छे से पढ़ रही हो, ना अच्छे से बोल रही हूं क्या हुआ? दिव्यांश ने तृषा को पसरेसान देखकर पूछा

तृषा ने कोई जवाब नहीं दिया वह चुपचाप सर झुकाये बैठी रही उसने अपना टिफिन भी अभी तक नहीं खोला था और हाथों में ले कर के बैठी हुई थी.

क्या हुआ मिष्ठी बोलो ना तुम आज लंच भी नहीं कर रही हो ,मुझे लग रहा है आज आंटी ने तुम्हें बैगन की सब्जी दी है जो तुम्हें पसंद नहीं है ,यह लो मेरा लंच कर लो ,मेरी मम्मी ने तुम्हारी मनपसंद सब्जी बनाई है । देव ने अपना टिफिन मिष्ठी को देता हुआ बोला

नहीं देव ऐसी कोई बात नहीं है। तृषा ने जवाब दिया

तो फिर क्या बात है तुम खाना क्यों नहीं खा रही हो और आज सुबह से सैड सा फेस क्यों बनाई हो , बताओ तृषा को इस तरह से उदास देख कर देव बेचैन हो गया और तृषा की उदासी का कारण जानने के लिए छटपटाने लगा ।

देव मेरे मम्मी पापा मुझे लेकर के दूसरी जगह जा रहे हैं ,तृषा ने बड़ी मुश्किल से कहा

अरे वाह तुम लोग घूमने जा रहे हो यह तो खुशी की बात है इसमें सैड होने वाली कौन सी बात है तुम लकी हो कि तुम्हारे मम्मी पापा तुम्हें घुमाने ले जा रहे हैं मेरे तो मम्मी पापा सिर्फ पढ़ाई पढ़ाई पढ़ाई और इसके अलावा कुछ भी नहीं दीदी कभी-कभी मुझे पार्क में लेते जाती हैं बस ,वैसे कहां जा रही हो। तृषा की जाने के बाद सुनकर करके देव खुश हो गया

तुम ना बिल्कुल पागल हो मैं घूमने की बात नहीं कर रही हूं मेरे मम्मी पापा हमेशा हमेशा के लिए मुझे यहां से ले जा रहे हैं अब मैं तुमसे कभी भी नहीं मिल पाऊगी ।तृषा ने पूरी बात बताई

क्या तृषा की बात सुनकर के देव उछल गया उसकी आंखें आश्चर्य फटी की फटी रह गई

लेकिन क्यों ? वह तुम्हें क्यों लेकर जा रहे हैं और फिर तुम स्कूल,, पढ़ाई नहीं करोगी ? तृषा की जाने की बात सुनते ही देव का पूरा का पूरा दिमाग भन्ना गया ।

पता नही कल मम्मी पापा मुझे लेकर जाने की बात कर रहे थे हमेसा हमेसा के लिए तो मैंने सुना था अब वही मेरा एड्मिसन करवाएंगे और वही मैं पढूंगी ।तृषा रूवासी होकर बोली

ऐसे कैसे जा सकते हैं तुम्हें लेकर के और तुम क्यों जा रही हो मना कर दो मत जाओ । देव ने कहा तृषा के जाने की बात सुनकर के देव विचलित हो गया था

नहीं कर सकती देव मुझे जाना पड़ेगा तुम्हे छोड़ कर यह स्कूल छोड़कर सब कुछ छोड़ कर तृषा की आंखों में आंसू भर आए

तुम ऐसे कैसे कर सकती हो मिष्ठी तुम हम सब को अकेला छोड़ कर कैसे जा सकती हो कि हम सब किसके साथ खेलेंगे तुम मेरी दोस्त हो वह भी सबसे अच्छी वाली बेस्ट फ्रेंड मुझे तुम्हारी बहुत याद आएगी, तो मत जाओ ना मना कर दो ना, तृषा की आंखों में आंसू देख कर देव भी रूवासा सा हो रहा था

मेरा भी बिल्कुल जाने का मन नहीं है देव और मम्मी को मैंने मना किया लेकिन सब के सब जिद पर अड़े हैं और वह मुझे जबरदस्ती यहां से ले जा रहे हैं मैं यहां से जाना नहीं चाहती। तृषा बोली

मिष्ठी तुम बहुत खराब हो, बहुत ही खराब ,मैं तुमसे बात नहीं करूंगा मैं तुमसे कट्टी कर रहा हूं तुम मुझे छोड़ कर जा रही हो तुम ऐसा कैसे कर सकती हो मैं खाना भी नहीं खाऊंगा मैं साथ खेलूंगा भी नहीं तृषा के जाने का सुनकर के देव बौखला सा गया उसने अपना आधा खाया टिफिन समेट लिया और उठ कर जाने लगा

देव मेरी बात तो सुनो आई एम सॉरी बट मैं क्या करूं सुन तो लो। तृषा ने पीछे से देव को बुलाया

तुम मेरी दोस्त नहीं हो अब मैं तुमसे कभी बात नहीं करूंगा देव ने कहा और वह चलता ही चला गया ।तृषा के बर्दाश्त से बाहर हो गया और वह वहीं बैठे बैठे रोने लगी देव का इस तरह गुस्से में चले जाना उसे बहुत अखर रहा था

उसका यहां से जाने का बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था यहां से जाने का ख्याल आते ही उस जोर की रुलाई फूट रही थी और वह बुरी तरीके से परेशान थी

तृषा के हमेशा हमेशा के लिए चले जाने का सुनकर के दिव्यांश बेचैन हो गया था उसका भी कुछ मन नहीं कर रहा था ना तो उसने अपना पढ़ाई करने का मन कर रहा था और ना ही स्कूल में रहने का मन कर रहा था बस सब कुछ छोड़ कर भाग जाना चाहता था

शाम को स्कूल से छुट्टी हुई दोनों हमेशा की तरह बाहर निकले परंतु आज दोनों के चेहरे लटके हुए थे और दोनों एक दूसरे से बात भी नहीं कर रहे थे हालांकि तृषा का मन था बात करने का परंतु दिव्यांश उस से बहुत नाराज था और इसी लिए तृषा से कोई बात नहीं कर रहा था और अकेले ही अपनी साइकिल निकाल कर जाने लगा तृषा ने जल्दी-जल्दी अपनी साइकिल को आगे बढ़ाया और दिव्यांश के सामने ले जाकर के खड़ा किया
देव तुम मेरी बात तो सुन लो पहले ,तुम भी ऐसे गुस्सा हो रहे हो। तृषा ने कहा

तुम बहुत गंदी हो मिष्ठी में तुमसे बात नहीं करूंगा तुम मुझे छोड़ कर जा रही हो तुम मेरी दोस्त नहीं हो मैं तुमसे कोई बात नहीं करूंगा देव ने अपनी साइकिल किनारे से निकाली और चलने लगा

तृषा के पास भी कोई रास्ता नहीं बचा था वह भी दिव्यांश के पीछे पीछे चलने लगी

देव का दिमाग ठिकाने पर नहीं था तृषा की जाने की समाचार सुनकर के जैसे वह बौखलाया हुआ था। वह चला तो साइकिल रहा था परंतु उसका दिल दिमाग जैसे कहीं और था यह उसके लिए बहुत ही सदमे वाला था कि उसकी दोस्त मिष्ठी उसे छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए चली जाएगी वह गुस्से से अपनी साइकिल भगाए जा रहा था और तृषा भी पूरी ताकत से उसके पीछे पीछे चल रही थी।

दिव्यांश का दिल दिमाग मिष्ठी की जाने की बात से हिला हुआ था वह दूसरी दुनिया में था और इसी गफलत में सामने आती हुई साइकिल को वह देख नहीं पा रहा था पीछे पीछे आती हुई तृषा को स्थिति का आभास हो गया और उसने बहुत तेजी से अपनी साइकिल को आगे बढ़ाते हुए दिव्यांश के बिल्कुल बगल पहुंची और दिव्यांश को जोर का धक्का दे दिया दिव्यांश जैसे होश में आया हो और उसने सामने से आती हुई साइकिल को देखा और जल्दी से अपनी साइकिल का हैंडल घुमाया अगर एक पल की भी देर हो जाती तो दिव्यांश की साइकिल सामने आती हुई साइकिल से बुरी तरीके से टकराती और इस तरह तृषा के धक्का देने पर दिव्यांश की साइकिल जोर से लड़खडाई और एक तरफ जा करके गिर पड़ी उसी के साथ-साथ दिव्यांश भी गिर पड़ा तृषा ने जल्दी से अपनी साइकिल को दिव्यांश के पास खड़ा किया और लपक कर देव के पास पहुची उसे उठाया

क्या कर रहे हो देव ,कहां है तुम्हारा दिमाग सामने आती हुई साइकिल तुम्हें दिख नही रही है अगर मै तुम्हें धक्का नहीं देती तो अभी एक्सीडेंट हो जाता कि नहीं ,तृषा गुस्से से दिव्यांश के ऊपर चिल्लाई

तो हो जाने दो तुमसे क्या मतलब है तुम तो जा रही हो ना मुझे कुछ भी हो तुमसे क्या मतलब है । जब मैं तुमसे कोई बात नहीं कर रहा तुम क्यो मेरे पास आ रही हो तुम मेरी दोस्त नहीं हो। दिव्यांश ने कहा

समझने की कोशिश करो दिव्यांश मुझे खुद जाना अच्छा नहीं लग रहा है लेकिन मम्मी पापा मुझे ले जा रहे हैं मैं क्या करूं और तुम भी अब मुझसे गुस्सा हो गए हो तृषा ने लाचारी से बोला उसकी आंखों में दो बूंद आंसू छलक आए थे

देव ने अपनी साइकिल उठाई और तेज तेज कदमों से फिर चलने लगा इस बार वह सीधा जाकर घर में रुका

उसने अपनी साइकिल खड़ा की और सीधा अपने कमरे में चला गया उसका दिल दिमाग बहुत ही बेचैन था तृषा के हमेसा हमेसा के लिए जाने की बात वह पचा नहीं पा रहा था

थोड़ी देर बाद पूर्णिमा उसके कमरे में आई और बोली

अरे देव आजा खाना खा ले, आज तू स्कूल से आकर के बाहर नहीं आया

अचानक से पूर्णिमा की नजर देव के चेहरे पर पड़ी

वह उदास गुमसुम और रूवासा हो रहा था देव को इस हालात में देख कर के पूर्णिमा घबरा गई

अरे क्या हुआ देव , क्या फिर लड़ाई हुई क्या पूर्णिमा ने देव को ऐसे देख करके पूछा

दीदी मिष्ठी बहुत गंदी है ,बहुत बहुत गंदी मैं उससे कभी भी बात नहीं करूंगा कभी भी नही ,दिव्यांश ने रोनी से सूरत बना कर कहा
क्यों ? क्या हुआ? वह तो तुम्हारी बेस्ट फ्रेंड है फिर क्या हुआ ? तुम दोनों का झगड़ा हो गया क्या? पूर्णिमा को बहुत आश्चर्य हुआ

मैंने उससे कट्टी कर ली है अब मैं उससे कभी भी बात नहीं करूंगा वह बहुत गंदी है बहुत बहुत गंदी है। देव की आंखें आंसूओ से भरी हुई थी मानो किसी भी पल छलक पड़ेंगी
लेकिन हुआ क्या तृषा ने तुम्हें कुछ कहा क्या?

दीदी मिष्ठी हमेशा हमेशा के लिए यहां से जा रही है अब कभी नहीं मिलेगी यह कहते-कहते देव के बर्दाश्त से बाहर हो गया और वह फफक फफक कर रो पड़ा

जा रही है कहां जा रही है पूर्णिमा ने आश्चर्य से देव से पूछा

पता नहीं क्यों उसके मम्मी पापा उसे यहां से बहुत दूर ले जा रहे हैं हमेशा हमेशा के लिए । देव ने बताया

बस इतनी सी बात इसीलिए तू उदास है । पूर्णिमा को सारा मैटर समझ में आ गया उसने प्यार से देव के सर पर हाथ फेरा और उसके पास बैठ गई उसे अपने भाई के स्थिति का अंदाजा हो गया था

बस इतनी सी बात है इसलिए तू रो रहा है उसके मम्मी पापा उससे लेकर के हॉस्पिटल जा रहे हैं बड़े शहर इलाज करवाने के लिए उसकी तबीयत नहीं ठीक है ना और तू रो रहा है देखना कुछ दिन बाद में वह वापस आ जाएगी तू बिल्कुल भी चिंता मत कर पूर्णिमा ने झूठ मूठ का देव को बहलाने की कोशिश की ।

वह अब नहीं आएगी उसमें खुद कहा है कि मैं हमेशा हमेशा के लिए जा रही हूं वह तो मेरी दोस्त है ना वह कैसे जा सकती है दीदी ,और वह तो बिल्कुल ठीक है फिर उसके मम्मी पापा उसे क्यों लेकर जा रहे हैं यहां पर भी तो हॉस्पिटल है यहां पर इलाज करवा दे । देव ने मासूमियत से कहा

देव तू इतना समझदार हो करके पागलों जैसी बातें कर रहा है । शहर में बड़े हॉस्पिटल होते हैं वहां पर अच्छे से इलाज होता है तू सबसे पहले रोना बंद कर लड़कियों की तरह रोता है पूर्णिमा ने मुस्कुराकर देव के आंसू पोछे और उसे अपने सीने से चिपका लिया

देव मिष्ठी तेरी सबसे बेस्ट फ्रेंड है अगर वह बीमार रहेगी तुझे अच्छा लगेगा क्या ? नहीं ना फिर, फिर उसको जाने दे उसका अच्छे से इलाज हो जाएगा वह ठीक हो जाएगी फिर वह तुम्हारे पास आ जाएगी फिर तुम दोनों आराम से खेलना इतनी छोटी सी बात के लिए नही रोते हैं ,अब लड़कियों की तरह रोना बंद कर और चल हाथ मुह धो करके चल खाना खाते हैं आज कपड़े भी नहीं उतारे हैं तूने । पूर्णिमा ने कहा

मुझे नहीं खाना कुछ भी ,मुझे भूख नहीं है । देव ने कहा

अरे चल ना, मैं अपने भाई को आज अपने हाथों से खिलाऊँगी।

चल फटाफट कपड़े चेंज करके हाथ मुंह धो कर के आ जा शाम को चलूंगी तृषा के घर उससे मिलने के लिए ,ऐसी रोनी सूरत बना कर जाएगा क्या ? तृषा देखेगी तो क्या कहेगी कि देव रोदणु है लड़कियों की तरह रोता है अब जल्दी से जा हाथ मुंह धो कर आ जा । पूर्णिमा ने कहा

देव उठा और जल्दी से उसने अपने कपड़े निकाले और फिर हाथ मुंह धो करके वापस आया
पूर्णिमा ने देव को मुस्कुरा कर देखा और उसके बालों में हाथ फिराया और फिर अपने साथ बाहर ले आई

देव का चेहरा अभी उदास ही था

क्या हुआ पुर्णी ? यह क्यों मुंह बना कर बैठा हुआ है, आज फिर लड़ाई करके आया क्या स्कूल मे किसीसे । पूर्णिमा की मम्मी ने पूछा
नहीं मम्मी आज इसकी बेस्ट फ्रेंड तृषा शिफ्ट कर रही है दूसरी जगह इसीलिए देव उदास है।

क्यों दूसरी जगह क्यों पूर्णिमा की मम्मी ने भी आश्चर्य से पूछा
पता नहीं अभी शाम को जाऊंगी देव को ले करके फिर बात करूंगी।

पूर्णिमा और देव ने साथ बैठकर के खाना खाया और फिर देव अपने कमरे में चला गया और पूर्णिमा अपनी मम्मी की हेल्प करने लगी।

दिव्यांश ने अपना खिलौनों का पिटारा खोला और उसमें से सारे खिलौने छांटने लगा वह बहुत देर से परेसान था लेकिन उसे कुछ जम नही रहा था

तभी उसकी नजर एक चांदी के पायल पर पड़ी जो उसकी पूर्णिमा दीदी उसके लिए लेकर आई थी और उसे पहना कर के घुमाती थी उस पायल की छन छन सुनकर के देव बचपन में बहुत खुश होता था उसने वह पायल अब पहनना छोड़ दिया है लेकिन उसे संभाल कर रखा था उसे उसने उठा कर देखा और एक तरफ रख दिया।

फिर और कुछ ढूढने लगा उसके बाद उसकी नजर एक खूबसूरत से पेन पर पड़ी जिसमें बहुत ही सुंदर रंग बिरंगा मोर बना हुआ था जिसे उसके पापा ने उसके फिफ्थ बर्थडे पर प्रजेंट किया था उसको भी उसने निकाल कर अलग कर लिया और सारा सामान वापस अपने पिटारे में डाल कर के बंद कर दिया

उसने वह दोनों समान एक छोटे से चमकीली सी पन्नी में रख कर के पैक कर लिया और रख दिया

पूर्णिमा ने देव को बहलाने के लिए तृषा के घर चलने की बात की थी लेकिन शाम होते ही देव चलने की जिद करने लगा पूर्णिमा ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन देव अपनी जिद पर अड़ा रहा आखिर में थक हारकर पूर्णिमा को देव के साथ तृषा के घर चलने के लिए राजी होना पड़ा।

जैसे-जैसे देव बताता जा रहा था पूर्णिमा वैसे से चल रही थी और आखिर में वे कुछ देर बाद तृषा के घर के सामने खड़े थे।

पूर्णिमा ने डोरबेल बजाई और अंदर से तृषा की मम्मी बाहर निकली है उन्होंने पूर्णिमा और देव को दरवाजे पर खड़ा हुआ देखा तुम मुस्कुरा के स्वागत किया और उन्हें अंदर बुलाया।

आई एम सॉरी आंटी देव बहुत ज्यादा जिद कर रहा था तृषा से मिलने के लिए इसलिए मुझे आना पड़ा इसने रो रो कर के अपना बुरा हाल कर लिया है। पूर्णिमा ने झेंपते हुए तृषा की मम्मी से कहा

कोई बात नहीं बेटा तृषा भी जाने की बात सुनकर के उदास और गुमसुम सी हो गई है जब से स्कूल से आई है तब से वह अपने कमरे से बाहर नहीं निकली है दोनों बच्चों में बहुत प्यार था दोनों एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त हैं इसीलिए दोनों एक दूसरे से दूर जाना बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं ।तृषाकी मम्मी ने मुस्कुरा कर कहा

आंटी जी तृषा कहां है। देव को किसी चीज से कोई मतलब नहीं था वह तो तृषा के लिए परेशान था।

मिस्टी देखो तुम से मिलने देव आया है तृषा की मम्मी ने वहीं बैठे बैठे ही तृषा को आवाज लगाई

देव का नाम सुनते ही तृषा दौड़ती हुई बाहर आई और देव को देख करके खुश हो गई उसका हाथ पकड़ कर के वह अपने कमरे में ले जाने लगे

उसके जाने के बाद पूर्णिमा और तृषा की मम्मी बैठ गए और बाते करने लगे ।
आप लोग कहां जा रहे हैं पूरा घर का सामान पैक हुआ पड़ा हुआ था यह देखकर के पूर्णिमा ने तृषा की मम्मी से पूछा

बात यह ना बेटा की मिष्ठी के पापा का ट्रांसफर मेरठ हो गया है इसीलिए सारा सामान शिफ्ट करके हमें आज रात ही मेरठ के लिए निकलना पड़ेगा कल संडे है कल पूरा दिन घर सही करने में निकल जाएगा

तो इसका मतलब देव सही कह रहा था आप लोग हमेशा हमेशा के लिए यहां से जा रहे हैं। पूर्णिमा ने कहा

हां बेटे मजबूरी है अब क्या करें नौकरी का सवाल है जहां इसके पापा ले जाएंगे वहां तो जाना ही पड़ेगा।तृषा की मम्मी ने कहा

और तृषा की पढ़ाई ? उसका क्या ? पूर्णिमा ने पूछा
देखेंगे वहां जाकर किसी स्कूल में एडमिशन करवाएंगे और कोई ऑप्शन भी तो नहीं है । तृषा की मम्मी ने कहा
तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए चाय लेकर आती हूँ ।

नहीं आंटी रहने दीजिए इस की कोई जरूरत नहीं है ,बस वह तो देव जिद कर रहा था इसी वजह से मैं उसे मिलाने के लिए लेकर आई थी पूर्णिमा ने मना करते हुए कहा ।

अरे बैठो ना पहली बार मेरे घर में आई हो तो ऐसे कैसे , तुम बैठो बस मैं अभी आती हूं तृषा की मम्मी ने कहा और फिर उठ करके चली गई

तृषा देव को ले करके अपने कमरे में पहुंची दोनों एक दूसरे को देख कर खुश थे और चहक रहे थे

तुम्हें क्या हुआ है ,तुम तो जा रही हो तृषा , यहां पर भी तो हॉस्पिटल है यहां पर इलाज करवा लो ।देव ने कहा

इलाज कैसा इलाज अरे बुद्धू में कोई इलाज करवाने थोड़े ना जा रही हूं वह मेरे पापा जॉब करते हैं ना तो वह अब दूसरी जगह जॉब करेंगे यहां से उनकी नौकरी छूट गई है इसीलिए हम लोग जा रहे हैं और यही बात मैं तुमसे कब से बता रही हूं लेकिन तुम कुछ समझते ही नहीं हो । तृषा ने कहा

लेकिन मेरी दीदी तो कह रही थी कि तुम्हारी तबीयत खराब है तुम इलाज करवाने जा रही हो पापा को बोल दो ना यही नौकरी कर ले । देव ने कहा

अरे तुम नहीं समझोगे अच्छा छोड़ो यह बताओ मुझे जाने के बाद मुझे याद करोगे कि नहीं।तृषा ने पूछा

क्यों नहीं याद करूंगा तुम मेरी बेस्ट फ्रेंड हो मैं तुम्हें बहुत मिस करूंगा ।देव ने कहा और तुम तुम मुझे याद करोगी
हां मैं भी तुम्हें मिस करूंगी। तृषा बोली

अच्छा मैं तुम्हारे लिए गिफ्ट लाया हूं देखोगी। दिव्यांश ने कहा

गिफ्ट कैसा गिफ्ट दिखाओ। तृषा खुश होते हुए कहा

देव ने अपनी चमकीली सी पन्नी निकाली और उसे तृषा को दे दिया
तृषा ने उसे फटाफट खोला और और उसमें से पायल और पेन निकाला

यह पायल यह किसकी पायल है पायल को देखकर कि तृषा ने पूछा

यह मेरी पायल है मेरी पूर्णिमा दीदी ने मुझे दिया था अब मैं बड़ा हो गया हूं तो पहनता नहीं हूं इसलिए मैं इसे तुम्हें दे दे रहा हूं तुम पहनना ।देव ने कहा

तुम पायल पहनते थे ,हा हा हा तृषा खिलखिला कर हंस पड़ी और हंसते ही जा रही थी अरे तुम कोई लड़की हो जो पायल पहनते थे तृषा जोर जोर से हंसे जा रही थी और उसे इस तरह हंसता हुआ देखकर के देव भी सरमाकर मुस्कुराने लगा
अब नहीं पहनता मिष्ठी ,पहले पहनता था, अच्छा अब हँसना बंद करो और तुम भी मुझे कुछ गिफ्ट दो ।देव ने कहा

मैं तो तुम्हारे लिए कुछ लाई नहीं हूँ , क्या दूं,अच्छा रुको देखती हूँ क्या दूं ,क्या दूं तृषा ने इधर उधर नजर दौडाते हुए सोचा लेकिन उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया

तभी उसकी नजर अपने गले में पड़े हुए छोटे से लॉकेट पर गयी
जिसे उसने खुद पसंद करके जिद करके खरीदा था वह दिल के आकार का नगदार लॉकेट था जो गोल्ड प्लेटेड फ्रेम में जड़ा था वह बहुत खूबसूरत था और तृषा उसे कभी नही उतारती थी।

तृषा ने अपने गले से वही लॉकेट निकाल कर के देव को पहना दिया इसे उतारना मत इसे पहने रहना हमेसा। तृषा ने कहा
दिव्यांश भी तृषा का गिफ़्तपाकर खुश हो गया और मुस्कुराने लगा ।
बहुत देर तक दोनों एक दूसरे से बात करते रहें और दोनों एक दूसरे के साथ मस्ती करते रहे करीब 1 घंटे बाद पूर्णिमा देव को लेकर के अपने घर आ गई।

क्रमसः

मुहब्बत क्या है ,दोस्ती है ,नफरत है या है सहारा
देके सारी खुशियां बदले में ले ले सारा ग़म तुम्हारा
हमे नही आता कुछ और बस तुम्हे ही खुश रखना है
प्यार को भी प्यार हो जाए ऐसा प्यार है हमारा

दोस्तो अभी कहानी की भूमिका तैयार हो रही है अभी थोड़ा सा इंटरेस्ट कम आ रहा होगा बस थोड़ा सा सहयोग करे कोशिश करूंगा जल्द ही आपको इस कहानी से अच्छे से जोड़ पाऊ ,ये पार्ट कैसा लगा प्लीज कमेंट करके बताये आप सब उत्तर भले न दे पा रहा हु कमेंट सारे पढता हूँ अगला भाग जल्द ही