Kamnao ke Nasheman - 17 in Hindi Love Stories by Husn Tabassum nihan books and stories PDF | कामनाओं के नशेमन - 17

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कामनाओं के नशेमन - 17

कामनाओं के नशेमन

हुस्न तबस्सुम निहाँ

17

दोपहर को मोहिनी एक आंधी की तरह कॉलेज से लौट कर बेला के कमरे में आयी और उससे लिपटते हुए बोली-‘‘जानती हो...आज दो सफलताएं मिलीं।‘‘

‘‘कैसी सफलताएं..‘‘ बेला ने आश्चर्य से पूछा।

‘‘पहली सफलता तो यह कि मेरा कॉलेज में एप्वाइंटमेंट हो गया आज...‘‘

‘‘और दूसरी...?‘‘

‘‘..अमल बाबू से अमेरिका जाने का स्वीकृति पत्र भिजवा दिया दिल्ली।‘‘

बेला ने मोहिनी की आँखों में तैरती चमक को निहारते हुए मुस्कुरा कर कहा- ‘‘अमल मान गए...यह सिर्फ आपके बस की ही बात थी। मेरे लिए उन्होंने आप पर ही विश्वास किया। आपके यहाँ रहने से ही वह मेरी चिंताओं से मुक्त हुए होंगे।‘‘

‘‘आपको साथ ले जाएंगे वहाँ। वहाँ आपका अच्छा इलाज भी हो जाएगा। आप बिल्कुल ठीक हो कर लौटेंगी।‘‘ मोहिनी ने बहुत विश्वास के साथ कहा। बेला मोहिनी की इस बात पर बिल्कुल चुप लगा गई। फिर मुस्कुराते हुए बोली- ‘‘देखिए, वे विदेश पहली बार अपना कार्यक्रम देने जा रहे है। वे वहाँ छा जाएंगे। मेरी बीमारी से ये ज्यादा महत्वपूर्ण है।...मैं उनके साथ जाकर उनको तनाव में नहीं रखना चाहूँगी। वैसे भी यह सब आप लोगों को भ्रम है कि मैं अब बिस्तर से कभी उठ पाऊँगी।‘‘

मोहिनी ने बेला के गाल को खींचते हुए कहा- ‘‘तुम बहुत निराशावादी बन गई हो।...जमीन पर जितनी भी पांव रखने की जगह मिले उसे खूब मस्ती से जी लेना चाहिए।‘‘ फिर उसने बेला को छेड़ते हुए कहा- ‘‘तुम्हारे होंठों में रस है, तुम्हारी आँखों में अजीब चितवन है, अमल तुम्हें चूम तो सकते हैं न...बांहों में भर कर प्यार तो कर सकते हैं न...बहुत खाली नहीं हुई हो...समझीं।‘‘

अभी इस क्षण मोहिनी जैसे किसी वृक्ष पर चढ़ कर और उसे झकझोर कर ढेर सारे फूलों को उस पर गिरा गयी है। आकांक्षाओं की एक उष्मा उसमें भर गयी है। फिर तत्काल ही बेला के चेहरे पर फिर एक उदासी घिर आयी और उसने फीकी हँसी के साथ कहा- ‘‘इतने से ही पुरूष का मन नहीं भरता।...क्या कहूँ आपसे। अमल सिर्फ मेरी बीमारी का ही तनाव नहीं झेलते वे अपने समूचे पुरूष का भी तनाव झेलते हैं। मैं भी इसे महसूस करती हूँ। उन्हें जो नहीं दे पा रही हूँ वह असमर्थता ही अपनी बीमारी से ज्यादह मुझे मार डाल रही है।‘‘

मोहिनी इस बात पर सहसा चुप सी लगा गयी है। एक स्त्री के पुरूष को वह सब न दे पाने की मारक असमर्थता को वह गहरायी से महसूस करने लगी थी। स्त्री की यह रिक्तता शायद उसे अंदर तक तोड़ डालती है चुपचाप। तभी मोहिनी ने बातों की दिशा बदलते हुए हँस कर पूछा- ‘‘...आज क्या खाएंगी आप...आपके ही मन का डिस बनाऊँगी।‘‘

बेला ने मोहिनी की निरूत्तरता को महसूस कर मुस्कुरा कर कहा- ‘‘‘एक बात पूछूं?‘‘

‘‘क्या...?‘‘

बेला ने इस क्षण मोहिनी के पूरे मोहक तन को निहारते हुए कहा- ‘‘बहुत नशा है आपमें....इत्ते-इत्ते महीनों तक आप यहाँ रहेंगी तो आपके वे कैसे रह पाएंगे आपके बिना। पुरूष का मन बड़ा अजीब होता है न..‘‘

अभी यह बात बेला जाने किन अर्थों में कह गयी थी। मोहिनी एक दग्धता के साथ उसका चेहरा निहारती भर रह गयी थी। वह एक अजीब निरूपायता में डूबने लगी थी। जब किसी प्रश्न का उत्तर न देते बने तो मन वैसी ही बहुत तकलीफदेह निरूपायता से घिर उठता है। बेला हालांकि अपने इस मारक और मोहक प्रश्न के उत्तर के लिए मोहिनी का चेहरा अभी भी तके जा रही थी। तभी अमल आ गए। मोहिनी उठ कर किचेन की ओर जाने लगी। अमल ने सहज भाव से पूछा- ‘‘क्या बातें हो रही थीं?‘‘

बेला ने मोहिनी की ओर देखते हुए उसी सहज अंदाज में कहा- ‘‘बस, ऐसे ही एक सवाल पूछ लिया था मैंने कि महीनों-महीनों तक आप यहाँ रहेंगी तो आपके पति वहाँ कैसे रह पाएंगे।...वे बहक भी तो सकते हैं।‘‘

अमल ने बेला के चेहरे पर देखा, वह बहुत ही सहज भाव में अपने इस मोहकता से भरे प्रश्न पर मुस्काती जा रही थी। मोहिनी ने जाते-जाते एक बार मुड़ कर अमल की ओर न जाने किन अर्थों में देखा था। जैसे वह किसी समुद्र की लहरों पे तैरते फेन की तरह चुपचाप किनारे लगने लगी थी। अमल कुछ भी न बोल पाए थे। फिर जैसे उस घुटते वातावरण से उबरने के लिए वे बेला से बोले- ‘‘...मोहिनी ने बताया, कि उसका एप्वाइंटमेंट कॉलेज में हो गया है?‘‘

बेला ने मुस्कुरा कर कहा- ‘‘उन्होंने यह भी बताया है कि आप अमेरिका जाने के लिए राजी हो गए हैं।‘‘

अमल फिर थोड़ा गंभीर होते हुए बोले- ‘‘मोहिनी के यहाँ रहने से मुझे बहुत भरोसा है कि वह तुम्हें संभाल लेगी।...फिर भी बेला, मन एक महीने तक तुमसे दूर रह नहीं पाएगा..‘‘

बेला ने अमल के बालों को सहलाते हुए कहा- ‘‘...देखो मुझे साथ ले जाने की जिद मत करना। मोहिनी जी सब संभाल लेंगी।....बहुत अपनी सी लगती हैं वह। उनके यहाँ रहते मेरी चिंता करने की जरूरत ही नहीं है। मैं जैसी हूँ, वैसी ही रहूँगी। अपने भविष्य को देखिए आप।...मेरे जीवन की सारी सार्थकता अब आपकी सफलता में ही रह गयी है।‘‘

अमल ने रूकते-रूकते कहा- ‘‘वह बड़ी अजब महिला है। कह रही थी उसके पास बहुत पैसे हैं। सारा पैसा वह तुम्हें अमेरिका भेजने में खर्च करना चाहती है।‘‘

‘‘बेचारी रजिया बेग़म भी तो छोड़ गयीं थीं अपने कीमती गहनों को मेरे इलाज के लिए। बाबू जी ने कहाँ माना। वे उसे वापस करने कल ढाका जा रहे हैं। मैं इस तरह किसी की सहायता नहीं लेना चाहती। फिर तुम खुद ही एक दिन इस लायक हो जाओगे कि अपने साथ जहाँ चाहो वहाँ ले जाओ।‘‘

‘‘मैं कुछ सोच नहीं पा रहा हूँ बेला...‘‘ अमल ने बहुत ही पीड़ा के साथ कहा- ‘‘मैं तुम्हें छोड़ कर एक दिन भी नहीं रह पऊँगा।‘‘

तभी मोहिनी हाथ में बेसन लपेटे आ गई। शायद उसने अमल के न रह पाने वाली बात सुन ली थी। वह डपटती सी बोली-‘‘...देखिए अमल...अपने निर्णय को किसी तिनके की तरह कुतरिए मत। जो फैसला कर लिया वह कर लिया।‘‘

अमल ने देखा मोहिनी की आँखें सुर्ख थीं। शायद थोड़ी देर पहले बेला के उस सवाल से पूरी तरह बिंध गई थी। वह किचेन में जा कर खूब रोयी होगी, ऐसा लगा। वह क्षणों तक मोहिनी का चेहरा निहारते रहे ढेर सारे अर्थों के साथ। फिर वे जैसे उससे निरपेक्ष होते हुए बोले- ‘‘या तो अपने निर्णय को पत्थर बनाऊँ या फिर अपने मन को।‘‘

‘‘दोनों को....‘‘ मोहिनी ने एक झटके में कहा और फिर पूछा- ‘‘बेला जी, आप मिर्च कम खाती हैं या ज्यादा। यही पूछने आयी थी।‘‘ बेला ने हँस कर कहा-

‘‘जितना भी मिर्च डाल देंगी आपके हाथ की मिठास तो बनी ही रहेगी।...वैसे जैसा अमल को आप खिलाती रही हैं उसी टेस्ट का बनाईए। बहुत दिनों बाद इनका स्वाद वापस आ जाएगा।‘‘

मोहिनी स्वाद की वापसी वाली बात पर बेला का चेहरा देखती भर रह गई, फिर बिना कुछ पूछे वापस किचेन में चली गयी। मोहिनी के जाने के बाद बेला ने सहमते हुए अमल से पूछा- ‘‘कुछ बुरा तो नहीं मान गयी मेरी स्वाद वाली बात का।...कहीं आपके स्वाद की वापसी का अर्थ कुछ और न ले लिया हो। इसे वह कटाक्ष न समझ बैठी हों।‘‘

अमल ने बेला के चेहरे पर फैली सहम को महसूस करते हुए कहा- ‘‘नहीं...वह जल्दी किसी बात का बुरा नहीं मानती।....उसने विष और अमृत का भेद खत्म कर दिया है जैसे।...और शायद जीवन में यह भेद न रखना ही सबसे सुखद होता है।‘‘ बेला अमल की इस बात का अर्थ टटोलती रह गयी हैं चुपचाप उन्हें निहारती हुयी।

/////////

जब काफी शाम को अमल वापस लौटे तो कमरे में बेला अकेली ही थी। केशव नाथ जी ढाका से वापस लौटे नहीं थे। आशंकित से अमल जैसे ही बेड के पास आकर खड़े हुए उसने बहुत घबरायी सी आवाज में अमल से कहा-‘‘जल्दी बाथरूम में जाईए। मोहिनी अभी थोड़ी देर पहले बहुत जोरों से बाथरूम के अंदर चीखीं थी। उसके बाद उनकी आवाज सुनायी नहीं पड़ी। पता नहीं क्या हुआ उन्हें। जल्दी जा कर देखिए।‘‘

अमल एक घबराहट के साथ बाथरूम की तरफ चले गए। बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था। वह तेजी से बाथरूम के अंदर घुस गए। देखा मोहिनी शावर के नीचे बिल्कूल खुले बदन भींग रही है। ऐसा कुछ नहीं था जैसे बेला ने उन्हें बता के वहाँ भेजा था। उन्होंने हठात् पूछा- ‘‘क्या हुआ...तुम चीखी क्यों थीं...ठीक तो हो...?‘‘ मोहिनी ने अमल की आवाज सुन कर पीछे घूम कर देखा। अमल खड़े थे। वह न तो लपक कर तौलिया उठा पायी और न ही वह अमल से बाहर जाने को कह पायी। वह मुस्कुराती हुयी अमल को अपने अंदाज मे निहारती रह गयी। अमल एक क्षण को एक आग्रही पुरूष की तरह उसे देखते रह गए है। फिर मोहिनी ने पास आ कर उनके गालों में झाग लगाते हुआ पूछा- ‘‘ऐसे में यहाँ क्यों चले आए हैं?‘‘

अमल जैसे बदहवासी से मोहिनी को देखते रहे। जैसे वे कुछ निर्णय नहीं ले पा रहे थे। उनके होंठों से एक भी शब्द नहीं फूटा। मोहिनी ने फिर चेताया- ‘‘...ऐसे क्या देख रहे हैं। जाईए, बाहर जाईए। कहीं बेला को पता चल गया कि आप यहाँ बाथरूम में मेरे साथ हैं तो जाने क्या मतलब निकालने लगेंगीं।‘‘

‘‘बेला ने ही भेजा है कि तुम अंदर जोर से चीखी थीं...वही देखने के लिए।‘‘ अमल ने हैरत से कहा।

‘‘...ओह...लेकिन मैं तो यहाँ बिल्कुल नहीं चीखी थी।‘‘ वह भी आश्चर्य में पड़ गयी। दोनों एक पल के लिए जैसे बेला के यहाँ बाथरूम में भेजने का अर्थ टटोलते रहे। अमल तुरंत बाथरूम के बाहर चले आए और बेला के पास आकर उसके चेहरे पर कुछ अर्थ टटोलने लगे। बेला ने अमल के सकपकाए चेहरे की ओर देख कर जोरों से हँसते हुए कहा-‘‘...क्या देखा बाथरूम में... तुम्हें वहाँ अपने पास पाकर वह चीखीं नहीं।

बेला अभी भी हँसती जा रही थी। उसके हँसने की आवाज में, उसके अंदर के सारे अर्थ जैसे चिंदियों की तरह चारों तरफ उड़ रहे थे। वह जड़ सा खड़ा, बेला का हँसता हुआ चेहरा तकता भर रह गया चुपचाप। फिर अमल ने पास आकर कुर्सी पर बैठते हुए कहा- ‘‘ये कैसा मजाक किया तुमने मेरे साथ। मोहिनी को तो वहाँ कुछ भी नहीं हुआ था जिससे वह चीखी हो।...यह तुम्हारा मजाक मेरी समझ में नहीं आया।‘‘

बेला ने हँसी रोकते हुए कहा- ‘‘क्या मेरा हँसना तुम्हें अच्छा नहीं लगा रहा...कितने दिनों बाद तो हँसी हूँ।‘‘ अमल इस प्रश्न का जैसे तत्काल उत्तर नहीं दे सके। वे मूक होकर बेला के चेहरे पे चढ़ते-उतरते भावों के अर्थ खोजते रहे। फिर अमल की इस चुप्पी पर बेला ने पूछा- ‘‘...क्या मुझसे कुछ ज्यादह भूल हो गयी है।‘‘ फिर उसने अमल के हाथ को मुट्ठियों में भरते हुए कहा- ‘‘...क्या तुम्हें अच्छा नहीं लगा एक अर्से बाद एक स्त्री के अनावृत्त शरीर की मादकता को महसूस कर।...फिर मोहिनी जी से तुम्हारा दुराव छिपाव कैसा। बहुत दिनों बाद तुम्हें ऐसा कुछ देखने को मिला होगा।...क्या तुम्हें अच्छा नहीं लगा?‘‘ अमल अभी भी बेला की आँखों में एक स्त्री की कसौटी को निरख रहे थे जिससे स्त्री पुरूष को कभी-कभी निरख लिया करती है अपने ढंग से चुपचाप। या फिर सचमुच बेला महज एक मजाक के मूड में ही थी अभी थोड़ी देर पहले। वह समझ नहीं पा रहे थे।

तभी मोहिनी गीले बालों को झटकारती बेला के बेड के पास आकर खड़ी हो गयी और अपनी गीली चोटी से बेला के चेहरे पर पानी की बूंदों को टपकाती बोली- ‘‘कहाँ मैं बाथरूम में चीखी थी...जो तुमने अमल को वहाँ भेज दिया था...।‘‘

‘‘...अमल को वहाँ न भेजती तो क्या करती। मैंने आपको मना किया था इस वक्त नहाने के लिए। आपको सर्दी पहले से ही हो गयी है। ठंड थोड़ी पड़ भी रही है। आप शाम को नहाने क्यों गयीं?‘‘ बेला ने मुस्कुराते हुए कहा।

बेला जितना कुछ अभी कह गयी थी, वह न जाने क्यों बहुत ही विश्वसनीय नहीं लगा। स्त्री अपने चेहरे पर जो सहजता कभी-कभी लाती है वह ढेर सारे असहज अर्थों को समेटे रहती है। बेला की सहज दृष्टि से न जाने क्यों अंदर से सहम सी गयी थी इस क्षण मोहिनी। फिर वह जैसे इन बोझिल क्षणों को काटते हुए हँस कर कहा- ‘‘...क्या हुआ अगर मैं बीमार भी पड़ जाऊँगी तो तुम्हारे बगल ही लेटी रहूँगी। अमल किचेन संभालेंगे और हम दोनों की देख-भाल भी यहीं बैठ कर करेंगे।‘‘

‘‘नहीं...ऐसा अन्याय मत सोचिए..इनके लिए।‘‘ बेला बहुत ही आत्मीय भाव से बोली- ‘‘...मेरा, इनका और इस पूरे घर का जिम्मा आपके ऊपर है। आप पड़ जाएंगी तो फिर यह पूरा घर ही अपाहिज बन जाएगा।‘‘ तभी मोहिनी खांसने लगी। बेला ने कहा- ‘‘जाईए जल्दी कपड़े ठीक से पहन कर आईए। सर्दी बहुत है।...सचमुच आपको नहाना नहीं चाहिए था इस समय। फिर यहाँ आपके लिए मौसम का बदलाव भी तो हुआ है।‘‘ अभी बेला ने जिस अंदाज में मौसम के बदलने की बात कही थी, इन शब्दों में एक बहुत ही खनकता सा अर्थ छुपा हुआ था जैसे। मोहिनी ने बेला के गालों पर चिकोटी लेते हुए कहा-

‘‘बेला रानी...मैं अपने मौसम अपने साथ लेकर चलती हूँ...समझीं। मुझे कुछ भी नहीं होने वाला।‘‘

इतना कह कर बेला बाजू वाले कमरे में चली गयी । तब बेला ने पास बैठे अमल से कहा- ‘‘मोहिनी जी के लिए कुछ दवा ला दो। वह ऐसे ही कहती रहेंगी। उन्हें सर्दी जोरों की है। बुखार भी हो शायद...वह बताएंगी नहीं..‘‘

लेकिन उत्तर में अमल कुछ नहीं बोले।

बेला ने इस दफा अमल को गहरी निंगाहों से देखते हुए कहा- ‘‘चुप क्यों हो। किन अर्थों में डूब गए।...सच कहूँ...तुम्हारी उदास-उदास आँखों को मैं सह नहीं पा रही थी।...एक सरल स्वभाव के पुरूष हो कर भी तुम जिस शुष्कता से जी रहे हो, क्या मैं इसे झेल पाऊँगी? मैं तुम्हारी आँखों में वही पुरूष वाली मादकता देखना चाहती हूँ। तुम्हें वहाँ बहाने से मोहिनी जी के पास भेज कर।...जब कभी मैं आपकी आँखों में वो पुरूष वाली मादकता नहीं पाती तो मैं अपने को बहुत हीन महसूस करने लगती हूँ। आप क्या समझेंगे इस मर्म को।‘‘

अमल को लगा जैसे वह बातों से ही उन्हें कहीं घुमा फिरा रही थी। शायद ढेर सारे अर्थ ही उसके भीतर घुमड़ रहे थे जिसे वह पकड़ नहीं पा रही थी स्वयं ही। अमल बोले- ‘‘वाकई में मोहिनी को जुकाम हुआ है। मैं दवा ले आता हूँ।...तुम्हारे लिए भी नींद की गोलियां लानी है। शायद खत्म हो गयी होंगी। डॉक्टर ने कहा है कि तुम्हें अच्छी नींद आनी चाहिए। तनाव से तुम जल्दी ठीक नहीं हो पाओगी।‘‘

इतना कह कर अमल कमरे से बाहर चले गए।

रात को बगल वाले कमरे से मोहिनी के खांसने की आवाज बराबर आ रही थी। बेला नींद की गोलियां लेकर गहरी नींद सो गयी थी। अमल ने बेड पर देखा, बेला बहुत गहरी नींद में थी। वह धीरे से उठे और बाजू वाले कमरे में चले गए। मोहिनी शायद जाग रही थी। अमल भांप नहीं पाए। वह उसके बेड के पास जा कर चुपचाप खड़े हो गए। फिर उन्होंने जैसे अंदर से साहस बटोरते हुए मोहिनी के सिर पे हाथ रख दिया।

‘‘...क्या बात है?‘‘ मोहिनी ने उठ कर कांपते स्वर में पूछा।

‘‘...तुम खांसती जा रही थीं। बुखार तो नहीं है तुम्हे.. यही देखने चला आया।‘‘ अमल ने बहुत धीमी आवाज में कहा।

‘‘...मुझे डर लग रहा है।‘‘ मोहिनी ने सहमी आवाज में धीरे से कहा- ‘‘बेला जाग रही है क्या..?‘‘

...‘‘नहीं..‘‘

‘‘...फिर भी तुम्हें नहीं आना चाहिए था इतनी रात को मेरे पास।‘‘ मोहिनी ने अमल की आँखों में कुछ पढ़ते हुए कहा।

अमल ने इस बार कुछ ठोस आवाज में कहा- ‘‘...मेरे यहाँ आने का जो भी अर्थ निकलता हो मैं उसे मानने के लिए तैयार हूँ...और यह भी जानता हूँ पचमढ़ी में तुमने न कर दिया था फिर भी चला आया था तुम्हारे पास।‘‘

मोहिनी क्षणों तक अमल को देखती रही और फिर एक गहरे भाव के साथ बहुत धीमी हँसी के साथ कहा- ‘‘..बैठो मेरे पास...‘‘इतना कहते हुए मोहिनी ने अमल का हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लिया। वह मंत्रमुग्ध से चुपचाप बैठ गए। फिर मोहिनी ने अमल की उंगलियों को मुट्ठी में भरते हुए बहुत आत्मीयता से कहा- ‘‘...अब तुमसे ‘न‘ कहने के लिए मेरे पास शक्ति ही नहीं रह गयी है।...यहाँ आ कर मैंने तुम्हारे पुरूष मन को बड़ी निकटता से देखा है। मेरे पास जो भी है तुम्हारे लायक, उसे सौंपने में अब ‘न‘ कभी नहीं कह पाऊँगी। मैं तुम्हारी पीड़ा को महसूस करती हूँ। तुम शायद तन ओर मन से बंटते जा रहे हो।...बेला और मेरे बीच।‘‘ इतना कह कर मोहिनी ने अमल को बांहों में भर लिया था। लेकिन अमल एक झटके से उसकी बांहों से परे होते हुए उठ खड़े हुए-‘‘...नहीं मोहिनी...नहीं। तुम्हारा वो पचमढ़ी वाला ‘न‘ ही सही था। मैं तुम्हें शिखर से विश्वासघात करने को विवश नहीं करूंगा अपने खातिर।‘‘

मोहिनी दोबारा अमल की बांह पकड़ती बोली थी- ‘‘शिखर ने शायद मुझे यहाँ आने की इजाजत देकर मुझे सारी वर्जनाओं से मुक्त कर दिया है। उन्हें मालूम था कि मैं तुम्हारे ही पास जा रही हूँ। इतना करके उन्होंने भले ही मेरे तन को न बांधा लेकिन मेरे मन को बांध लिया है।...एक बात कहूँ...तुम इन पलों में अब न बेला को ले आओ और न शिखर को ही। इन पलों की सार्थकता, सारे मूल्यों से बिल्कुल अलग है...।‘‘ इतना कह कर मोहिनी कुछ देर तक चुप रही और फिर बोली- ‘‘..इत्ती सी आकांक्षा के लिए तुम इस एहसास में डूबे रहे कि तुम बेला को ढो रहे हो और मैं शिखर को।...यह ढोने का एहसास खत्म होना चाहिए। इन दोनों को तुम्हें जीना है पूरी आत्मीयता के साथ...‘‘