कहते हैं उसका जन्म सितारों के बीच कहीं हुआ था , नाम था सितारा । रंग शनि ग्रह की तरह नीला आँखें दहकते अंगारों सी , चेहरे पर सूर्य के समान तेज और इरादे ध्रुव तारे जैसे अटल । शरीर पृथ्वी जैसा चट्टानी और हिमालय जैसा दृढ़ ।
लोगों का मानना था कि उसके पास असीम शक्तियाँ थीं । वह मानव सभ्यता के आदिम युग का काल था । मानव नें अभी कन्दराओं से निकलकर मैदानों में बसना शुरू ही किया था , घास-फूस की छोटी-छोटी झोपड़ीनुमा संरचनायें कहीं-कहीं दिखाई पड़नी शुरू हुई थीं । गाँवों नें धीरे-धीरे आकार लेना शुरू किया था । बर्तनों में अभी जानवारों की खालें , सींग , शंख , प्राकृतिक और कृत्रिम रूप से गहरे किये गये पत्थरों के साथ-साथ कच्ची मिट्टी के बर्तन , मानव नें आग जलाना और भोजन पकाकर खाना तो सीख लिया था पर अभी मिट्टी पकाकर बर्तन बनाना नहीं सीखा था । कपड़ों में जानवरों की खालों के साथ-साथ प्राकृतिक रेशों के बनें कपड़ों के छोटे टुकड़े , भोजन में शिकार किये पशुओं के माँश के साथ-साथ कंद , मूल , फल और जंगली अनाज और दूध , मुख्य पेशा शिकार के साथ पशुपालन , कृषि प्रारम्भिक दौर में , औजारों में पत्थर के औजारों के साथ-साथ धातु के अनगढ़-आदिम औजार यथा भाले , कुल्हाड़ी आदि । इंसानों का सामाजिक संगठन कबीलों के रूप में विकसित होना शुरू हुआ था ।
दूसरे कबीले की औरतों का अपहरण कर वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करना और संख्या ही शक्ति के सिद्धांत पर अधिकाधिक बच्चे पैदा करना मुख्य सामाजिक चलन था ।
हम मानवों के लिए ही तो विधाता (या प्रकृति ) को इतना बडा संसार बनाना पड़ा । जरा सोचिये पृथ्वी पर मानव जीवन को रचनें गढ़नें के लिए कितनी विस्तृत और कितनी जटिल संरचना विकसित की गयी है । सर्वप्रथम ब्रहमाण्ड बनाना पड़ा । आधुनिक सिद्धांत कहता है कि व्रहमाण्ड की उत्पत्ति विग बैंग यानि कि महान विस्फोट से हुई । विग बैंग के पूर्व एक अति उच्च घनत्व का पिण्ड था जिससे ब्रहमाण्ड की उत्पत्ति हुई । सम्भवतः वह आदि पिण्ड ही आदि शिवलिंग हो । व्रहमाण्ड में असंख्य आकाशगंगायें बनानी पडी जिससे सभी आकाशगंगायें एकदूसरे के आकर्षण से आबद्ध रह सकें । फिर आकाशगंगा में असंख्य सितारे , जिन्हें बाँधे रखनें के लिए आकाशगंगा के केन्द्र में अति उच्च घनत्व का ब्लैक होल रखना पड़ा । हमारा सौरमण्डल मिल्की वे आकाशगंगा का सिस्सा है । सूरज मिल्की वे का एक सदस्य सितारा है , जो मिल्की वे के केन्द्र की परिक्रमा करता है । फिर सौरमण्डल में आठ ग्रह , तमाम छुद्रग्रह , धूमकेतु , ग्रहों के उपग्रह एवं अन्य असंख्य छोटे पिण्ड अवस्थित हैं । अब पृथ्वी की संरचना सूर्य से उस उचित दूरी पर कि गयी है जिसे रिहायशी क्षेत्र ( हैविटिबल जोन) कहा जाता है , जहाँ न अधिक ताप हो न अधिक सर्दी । पृथ्वी का द्रव्यमान इतना रखा गया है कि जीवन के लिए आवश्यक गैसों को बाँधकर रख सके । पृथ्वी का परिभ्रमण पथ और घूर्णन गति इतना रखा गया है कि दिन-रात और वर्ष आदर्श स्थिति में हों । दिन में तो सूरज का प्रकाश मिलता रहेगा परन्तु रातें घुप्प अंधेरी न हों तथा छोटे मोटे आकाशीय पिण्ड़ों से पृथ्वी की रक्षा हो सके इस हेतु चन्द्रमा को बनाया गया है । अन्य आकाशीय पिण्ड़ों से सुरक्षा प्रदान करनें हेतु पृथ्वी से एक ग्रह बाद बड़े ग्रह वृहस्पति को रखा गया है । सूर्य के परावैगनी ( अल्ट्रावायलेट ) विकिरण से बचानें के लिए वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर ओजोन की परत बनायी गयी है । फिर कास्मिक विकिरण से बचानें को पृथ्वी को चुम्बकीय क्षेत्र दिया गया है ।
ये तो मोटामोटी पृथ्वी से परे कुछ व्यवश्थाओं की चर्चा की गयी , अब देखते हैं ईश्वर ( या प्रकृति ) नें धरती पर क्या व्यवश्थायें दी । जितना जटिल ब्रहमाण्ड की संरचना है उतनी ही जटिल पृथ्वी की संरचना है । वैज्ञानिक अभी पृथ्वी के सम्पूर्ण रहस्य से परिचित नहीं हो पाये हैं । पृथ्वी की ऊपरी परत जिसे क्रस्ट कहा जाता है वह बस कुछ किलोमीटर ही मोटी है । इसके नीचे हैं टैक्टानिक प्लेटें जिसपर महाद्वीप और महासागर स्थित हैं । पृथ्वी तेरह टैक्टानिक प्लेटों में विभाजित है । इन प्लेटों के नीचे लाखों डिग्री सेल्सियस तापमान पर धातुओं का पिघलता लावा है । टैक्टानिक प्लेटें इसी लावे पर तैरती रहती हैं जिसके कारण भूकम्प भी आते रहते हैं । और पृथ्वी के केन्द्र में लोहे और निकिल की कोर है (द्रव अवश्था में) । इसी कोर के कारण पृथ्वी पर चुम्बकत्व है । अब पृथ्वी पर पानी नहीं था और बिना पानी जीवन की उत्पत्ति होना संभव नहीं था । तो किसी बर्फीले धूमकेतु से पृथ्वी की टक्कर कराकर पृथ्वी को जलमग्न किया गया और उल्कापिंड की टक्कर से पृथ्वी पर सोना आया ।
प्रकृति नें पृथ्वी पर पहले एककोशिकीय माइक्रोव्स उत्पन्न किया और फिर उससे आक्सीजन पैदा होने पर पादप और फिर सरल जीवों की रचना की गयी । उसके बाद धरती पर आये उभयचर और सरीसृप । डायनासोरों नें पृथ्वी पर बहुत समय तक अपना आधिपत्य रखा , और किसी उल्कापिंड की टक्कर से उनका विनाश हो गया । वैज्ञानिक मानते हैं कि अब तक पृथ्वी पर छः बार महाविनाश हुआ है जिसमें पृथ्वी पर राज करनेंवाली प्रजातियों का विनाश हुआ है । हर विनाश में नयी प्रजाति का अभ्युदय छिपा होता है । डायनासोरों के विनाश के बाद पक्षी आदि प्रजातियों से होकर क्रमिक विकास के क्रम में धरती पर मनुष्य आया ।
ब्रहमाण्ड की जितनी जटिल संरचना है पृथ्वी पर जीवन उतना ही क्षणभंगुर । किसी विषाणु से , किसी उल्कापिंड के टक्कर से , ज्वालामुखियों के विस्फोट या भयानक भूकम्प से पृथ्वी पर मानव सहित किसी भी प्रजाति का विनाश सम्भव है ।
सितारा अपनें समय से काफी आगे था । कोई नहीं जानता था कि इसके माता-पिता कौंन हैं ? किस कबीले में पैदा हुआ ? हाँ वह तुलुग कबीले में रहता था , कबीले के मुखिया को पाँच वर्ष की आयु में मिला था । सितारा के पास अद्भुद शक्तियाँ थीं । अल्प समय में ही वह किसी विरोधी कबीले के सभी लोगों के मस्तक काट सकता था । बड़े से बड़ा शिकार को क्षणमात्र में धराशायी कर सकता था । उस समय तक पशुबलि के साथ-साथ मानव बलि भी प्रचलन में थी , जो देवता को खुश करनें के लिए दी जाती थी ।
सितारा इस समय लगभग बदल सा गया है । घण्टों नदी के किनारे बैठ नदी और पहाड़ को निहारा करता है । शिकार पर भी नहीं जाता । बलि समारोहों में भी पहले जैसा उत्साह नहीं रखता । माँश की जगह फल और कन्द खानें को ज्यादा तरजीह देता है । लोग कहते हैं कि किसी लड़की के फेर में पड़ गया है । पिता ( कबीले का सरदार जिसे वह पिता समान मानता है ) के बार- बार पूछनें पर उसनें बताया , वह विरोधी मुरुम कबीले के लड़की के प्रेम में था । प्रेम जो उनदिनों अस्तित्व में ही नहीं था । मुरूम कबीला बहुत ही खूंख्वार था । मगर पिता नें मुरूमों पर हमले कर लड़की तथा अन्य महिलाओं के अपहरण की योजना बनायी लेकिन सितारा नें मना कर दिया । वह तो प्रेम में था । आग दोनों तरफ बराबर लगी थी । ऐसे में एक शाम घनें जंगल के बीच बहनें वाले नाले के किनारे अपनी प्रेमिका लौंगी से मिलनें जा पहुँचा । दोनों घनें झुरमुट के बीच बैठे बातें कर रहे थे
"लौंगी"
" हूँ "
" लगता है हमारा मिलना न हो सकेगा । दोनों कबीलों में भयंकर दुश्मनी है । "
" क्यों न हमदोनों कहीं और भाग जाँय । "
" नही लौंगी बिना कबीले के इस दुनिया में जीना नामुमकिन है । "
" तो चलो नदी में साथ डूबकर मर जाँय । "
" नहीं ये कायरता मेरे बस की बात नहीं ।"
मुरुम कबीले के लोगों को भनक लग गयी थी । दोनों को घेर लिया गया था । दोनों को पकडकर ले जाया गया और सरदार के समक्ष पेश किया गया ।
" सरदार दोनों को पकड़ लाया गया है । "
" ठीक है दोनों को बाँध दो हम कल सुबह निर्णय लेंगे । "
दोनों को मजबूत रस्से से पेंड़ से बाँध दिया गया और पहरेदार लगा दिये गये । सुबह हुई मुखिया ऊँचे आसन पर बैठा और एकटूक फैसला सुना दिया गया --
" सितारा एक बहुत ही बहादुर पुरूष है , हम देवता को इसकी बलि देंगे । "
चारो तरफ सन्नाटा । फिर सितारा को नहला-धुलाकर बलिवेदी पर ले जाया गया । लौंगी को भी बाँधकर बलि का दृश्य दिखानें साथ ले जाया गया था । लौंगी नें अपने पिता और कबीले के सरदार से सितारा को छोड देनें की बहुत मिन्नत की लेकिन सरदार का दिल न पसीजा । जब लौंगी नें बहुत परेशान कर दिया तो सरदार बोला-
" सितारा से पहले इसकी भी बलि चढ़ा दो । ये हमारे लिए पहले ही मर चुकी है । "
लौंगी को नहलाकर और चमडे के नये वस्त्र पहनाकर वलिवेदी पर ले जाया गया । मगर यह क्या रस्सी से बँधा सितारा एकायक उछला और अगले पल बलि का अस्त्र सितारा के हाथ में था उसनें हजारों व्यक्तियों के बीच ही बलि के लिए नियुक्त पुरुष की ही बलि देवता को दे दी और लौंगी को उठाकर तेज गति से भागा । पीछे पूरा मुरुम कबीला दौड़ा लेकिन देखते ही देखते सितारा जंगल में ओझल हो चुका था । कहते हैं यही आदिम प्रेमकहानी है ।
✍️अनुरोध कुमार श्रीवास्तव