JO JAHAN HAI in Hindi Women Focused by Ramnarayan Sungariya books and stories PDF | जो जहाँ है

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जो जहाँ है

कहानी

जो जहाँ है

आर. एन. सुनगरया,

‘’सेठ जी मेरे बच्‍चे दो दिन से भूखे हैं, कृपा करके उनकी (पति की) या मेरे तनखा में से कुछ पैसे दे दीजिये ताकि......’’

सेठजी की वासनापूर्ण टक्-टकी को देखकर उसने लजाते हुये अपने वक्षस्‍थल को फटी साड़ी से ढका, जो अब भी पूर्ण रूप से ना ढक सका।

बाईस वर्षीय पार्वती विशेष खूबसूरत तो नहीं थी और रही सही सुन्‍दरता उसके मटमेले और फटे कपड़ों ने दबा ली थी, लेकिन उसके बावजूद भी उसमें अधेड़ उम्र के सेठजी को आकर्षित करने का पर्याप्‍त लावण्‍य था।

‘’तुम्‍हें तो यूँ ही दुगनी तनखा दूँ, मगर.......’’

‘’मगर-वगर क्‍या सेठजी!’’ पार्वती भड़क गयी, ‘’आप हर मरतबा मुझसे उलटी-सुलटी बातें करते हैं।‘’

‘’ठीक है।‘’ सेठजी और आगे बढ़े, ‘’अब बातें नहीं करूँगा।‘’ वे उसके बिलकुल निकट पहुँच गये, ‘’जो करना है वहीं करूँगा। रात का समय है। घर भी सूना है।‘’

‘’सेठजी!’’ उनका हाथ पार्वती को स्‍पर्श भी नहीं कर पाया था कि वह क्रोधित होकर मंद आवाज में बोली, ‘’जरा सोचिये सेठजी मैं आपके यहॉं बर्तन मॉंजने वाली हूँ। किसी ने देख लिया तो आपकी बदनामी तो शायद दौलत के रेशमी पर्दे से ढक जायेगी, लेकिन मैं तो.......’’

‘’इस बात से बेखबर रहो, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा, क्‍योंकि आज घर के सब लोग बाहर गये हुये हैं।‘’ सेठजी ने उसे विश्‍वास दिलाने की चेष्‍टा की।

‘’क्षमा कीजिये सेठजी।‘’ पार्वती हाथ जोड़ने लगी। लेकिन निर्भयता पूर्वक।

‘’तुम्‍हारी ऐसी बातें सुनकर मुझे विश्‍वास होता है कि तुम्‍हारे मन में मेरी इच्‍छा के प्रति स्‍वीकृति है। और जुबान पर अस्‍वीकृति।‘’ कहते हुये सेठजी ने उसे बाहों में जकड़ ली।

पार्वती का बदन थर्रा गया। दिल की घबराहट और डर चेहरे पर तुरन्‍त उभर आया, लेकिन वह उसकी जकड़न से छूटने की पूरी कोशिश करने लगी, ‘’शायद मैं चीख पुकार नहीं कर रही हूँ इसलिये आपको यह भ्रम हुआ है।‘’ उसने सेठजी के हाथ बलपूर्वक झटक दिये, ‘’सेठजी! मैं उनमें से नहीं हूँ, जो अपनी आत्‍मा को मारकर अपनी इज्‍जत नीलाम करते हैं। मैं भूखी मरना सहन कर सकती हॅूं, लेकिन केवल पेट की भूख मिटाने के लिये आपका आनन्‍द, आपका लाभ सहन नहीं कर सकती।‘’

‘’हम तुम्‍हारी केवल पेट की भूख ही नहीं, बल्कि तुम्‍हारी गरीबी तक मिटा देंगे।‘’ सेठजी ने लालच दिया।

‘’बहुत खूब सेठजी।‘’ पार्वती ने एक मंद मुस्‍कान बिखेर दी, ‘’आपने गरीबी मिटाने का अच्‍छा तरीका बताया कि सारे गरीब आप जैसे अमीरों से अपनी इज्‍जत लुटवायें और गरीबी मिटायें।‘’ अब वह हंस पड़ी।

सेठजी जमीन ताकने लगे।

वह ललकारती आवाज में बोली, ‘’अरे आप जैसे हवसी अमीर, गरीबी के बदले गरीबों को मिटा देंगे, लाखों का राशन कोठों में सड़ाकर भूखों मार डालेंगे उन्‍हें........’’

‘’पार्वती!’’ ना जाने क्‍यों अंतिम वाक्‍य ने सेठजी के हृदय पर कठोर चोट की। सेठ की खूनी ऑंखें उसे घूरने लगीं, वह बल पूर्वक मुट्ठी बांधते हुये और दांत किटकिटाते, उस पर टूट पड़ा।

वह घबराहट में इधर-उधर नाचने लगी, वह टेबल के उस पार खड़ी थी। जब वह उस पर लपका तो उसने अपनी सुरक्षार्थ टेबल लुढ़का दिया, जिस पर रखी चीजें, फूलदान, कलमदान आदि-आदि गिर कर चूर-चूर हो गये। वह हल्‍के नीले रंग से पुती दीवार पर टंगी महापुरूषों और देवताओं की तस्‍वीरों की और भागी। सोफे को ढकेलती हुयी आगे बड़ गई और अलमारी में रखे कॉंच के बर्तनों को सेठजी पर फेंकने लगी। सेठजी फेंकती हुयी चीजों को हाथ से बचाता हुआ उसे पकड़ने ही वाला था कि वह तुरन्‍त रसोई घर में घुस गई और दरवाजा फोरन अन्‍दर से बन्‍द कर लिया, तभी सेठजी को काल बेल सुनाई दी, जो ना जाने कब से बज रही थी।

सेठजी का भूत कुछ उतर गया, उन्‍होंने दरवाजा खोलते ही कहा, ‘’भाई साहब आप?’’ आश्‍चर्य!

भाई साहब उत्तर में घबराते हुये कह रहे हैं, ‘’धर्मू! शायद पुलिस को अपने झील वाले अड्डे का पता चल गया है। तुम्‍हारे तहखाने में अपना माल भरने आया हूँ। तहखाना जल्‍दी खेलो।‘’

‘’धीरे बोलिए भाई सहब।‘’ सेठजी शायद अन्‍दर छुपी पार्वती से डर गये, ‘’दीवालों के भी कान होते हैं।

‘’है तो कोई नहीं।‘’ तुरन्‍त झूठ बोलते हुये सेठजी घबरा गये, ‘’मगर फिर भी धीरे बोलना चाहिए।‘’

‘’ठीक है, मैं माल लाता हूँ, तुम दरवाजा खोलो।‘’ ये कहते हुये भाई साहब बाहर चले गये।

सेठ लपके और झट रसोई घर का दरवाजा धकाकर अन्‍दर भड़भड़ाती दृष्टि दौड़ाई, शायद पार्वती रसोई घर से निकलकर कहीं जा चुकी थी।ख्‍ले 'ं '' विश्‍वास होता हीै उन्‍हें खोजने का ज्‍यादा समय भी नहीं मिला, ‘’हॉं!’’ उधर से आओ, जल्‍दी करो। भाई साहब की आवाज सुनकर सेठजी ने तुरन्‍त दरवाजा बाहर से बन्‍द करके चटकनी चढ़ा दी, जैसे उन्‍होंने पार्वती को उसमें बन्‍द कर दी हो, ताकि वह उनके कारनामें ना देख सके, लेकिन वह पहले ही रसोई घर से निकलकर ऐसी जगह छुप गई थी कि वहॉं किसी की निगाह नहीं जा सकती थी, केवल उसी की निगाह उनके ऊपर जा सकती थी, जो लापड़-तूपड़ दौड़-धूप कर रहे थे। उसने देखा.........बहुत से आदमी शायद गेहूँ या चावल की बोरियॉं ला-लाकर तहखाने में पटक रहे हैं.....

वह सोचने लगती है कि मेरे घर की तरह अनेक घरों में बच्‍चे भूखे बिलखते हुये दम तोड़ रहे होंगे और ये जमाखोर बेतादाद राशन तलघर में रख कर सड़ाना चाहते हैं। पुलिस को खबर करना चाहिए।

.....लेकिन उसे अन्‍तरात्‍मा की एक अज्ञात आवाज ने झड़प दी। पुलिस को खबर करके क्‍या अपनी मौत बुलाना चाहती है। वर्षों की नौकरी तो खेर छूट ही जायेगी और अभी तो तेरे बच्‍चे व तू भूख से प्रतिपल मर रही है। जानती है फिर सेठ के हिन्‍सात्‍मक षड़यंत्र से सपरिवार ऐसी मौत मरेगी, किसी को भी पता नहीं चलेगा कब क्‍या हुआ......इस आवाज से उसकी आत्‍मा थर्रा गई, नहीं-नहीं मैं किसी को कुछ नहीं कहूँगी। अपने को क्‍या कोई कुछ करे।

अपनी तो भूख-प्‍यास ही अच्‍छी। उसे तुरन्‍त सैंकड़ों बच्‍चे भूख से तड़पते मरते प्रतीत हुये। उसकी आत्‍मा से फिर ललकारती आवाज सुनाई दी, क्‍या तू स्‍वयं को बचाने के लिये अनेक परिवारों को भूखे मरना बरदाश्‍त करेगी? क्‍या उनकी आत्‍मा तुझे माफ करेगी? हरगिज नहीं! तू भी इन हवसियों-लालचियों की तरह कठोर दिल है। तेरे दिल में भी गरीब भूखों के लिए कोई हमदर्दी नहीं है, तू खुदगर्ज है, तू स्‍वार्थी है, यदि तू चाहे तो ये राशन सरकार द्वारा जब्‍त हो सकता है, अनेकों भूखों की आत्‍मा तृप्‍त हो सकती है, लेकिन वह अत्‍यन्‍त मन्‍द आवाज में बोल उठी, ‘’नहीं-नहीं मुझे मेरी कोई चिन्‍ता नहीं है, मैं गरीब भूखों के लिये कुछ भी कर सकती हूँ।‘’ आगे उसने विचार किया कि ऐसा काम करना चाहिए जिससे सेठ को मेरे ऊपर कोई शक नाहो......।
वह तुरन्‍त लुकते-छुपते पिछले दरवाजे से निकलकर अपने पड़ोसी के घर कुण्‍डी खटखटाकर पुकारने लगी, ‘’मुन्‍ना.....मुन्‍ना...... क्‍या पढ़ रहे हो। इधर तो आना।‘’

‘’कौन! कौन है? पार्वती बाई?’’ कहते हुये मुन्‍ना ने दरवाजा खोला। ‘’कहो क्‍या बात है?’’

वह उसके कान में कुछ खुसर-फुसर करने लगी। कुछ क्षणों बाद बोला, ‘’ये बात है। सच?’’

‘’बिलकुल सच, जरा जल्‍दी करो।‘’ कहकर पार्वती सेठ के घर की तरफ लौटती है और पीछे के दरवाजे से ही लुकती-छुपती हुई रसोई घर में जाकर कुछ सोचने लगती है। तभी उसे किसी के आने की पदाहट सुनाई दी। वह तुरन्‍त अपना सिर दिवाल से मार कर खून निकाल लेती है और बेहोशी का अभिनय करती हुयी वहीं लुढक जाती है।

सेठ ने रसोई घर कर दरवाजा धकाकर खून देखा तो बोल उठा, ‘’शायद सर टकरा गया। इसलिये बेहोश हो गई।‘’

तभी आवाज आई, ‘’पुलिस-पुलिस।‘’ सेठ के होश-हवास उड़ गये। ‘’पुलिस को खबर किसने दी होगी, पार्वती? नहीं वह तो यहॉं बेहोश पड़ी है।‘’ और अपने आपको बचाने की कुछ तरकीब सोचने लगा। इस घबराहट में वह यह भी नहीं सोच पाया कि उसने रसोई घर की चटकनी बाहर से बन्‍द की थी और पहले जब उसने झांक कर अन्‍दर देखा था, तब पार्वती वहॉं नहीं थी। यहॉं अब वह बेहोश पड़ी है।

पुलिस ने आकर अपना काम शुरू कर दिया और पार्वती मौका पाकर अपने घर भाग गई।

दूसरे दिन मुन्‍ना ने पार्वती को समाचार-पत्र पढ़कर सुनाया, ‘’धर्मू के घर से लाखों का राशन, बहुमूल्‍य जेवर, विदेशी कपड़ा और अन्‍य अवैध सामग्री जप्‍त की गई। यह समाचार बतलाते हुये पुलिस अधीक्षक महोदय ने कहा कि जमाखोरी, मुनाफाखोरी, रिश्‍वतखोरी, मक्‍कारी आदि-आदि के विषय में जो जहॉं है, वह वहीं से ईमानदारी पूर्वक हमें या सम्‍बन्धित अधिकारियों को सूचना दे, तो हमें इन्‍हें शीघ्र मिटाने में बहुत मदद मिलेगी.......’’

♥♥♥ इति ♥♥♥

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय-

समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं

स्‍वतंत्र लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍