एक दुनिया अजनबी
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छुट्टियाँ कैसे कटें? इस चक्कर में लाड़ली आर्वी के कहने पर पापा यानि शर्मा जी ने तभी वी.सी.आर का नया मॉडल भी खरीद दिया | दिन में तो कूलर में पड़े रहकर सब बच्चे फ़िल्म देखते, कोई देखते-देखते ज़मीन पर पसर कर ख़र्राटे भी लेने लगता , फिर जो उसकी आई बनती
"अरे ---कहाँ सोया ---" पेट में गुदगुदाते हुए हाथों को रोकने की व्यर्थ सी कोशिश में वह धरती पर लोटमलोट होता रहता पर गुदगुदाने वाले हाथ कहाँ रुकते ! रात में तो सामने के ख़ाली पड़े बड़े से प्लॉट की रेत में उछल-कूद करनी लाज़िमी थी ही |सोसाइटी नई बन रही थी सो, सारे में रेत-मिट्टी फैले पड़े रहते |
सोसाइटी के बाहर बीचोंबीच किसी भी जगह पर वह लंबा-चौड़ा चौकीदार चारपाई बिछाकर ऐसे ख़र्राटे भरता कि सब बच्चे उसे अच्छा सा सबक़ सिखाने के प्लॉन करते रहते | सोसाइटी का बोर खोलने का काम भी उसे ही सौंपा गया था | वह आराम से रात में नींद पूरी करके सुबह जल्दी उठ जाता | जबकि उसे रात में सोने के लिए पैसे थोड़े ही दिए जाते थे ?
सोसाइटी के और भी किशोर लड़के, लड़कियाँ --सब मिलकर जो उधम मचाते, तौबा! आसपास के बँगलों वाले दुखी होने लगते |
फिर तो घर से भी डाँट पड़ने लगी और ग्रुप के कुछ बच्चे जिनका घर सड़क से कुछ दूरी पर अंदर की तरफ़ था चुप्पी साधकर रात को ज़्यादा से ज़्यादा ग्यारह बजे तक वापिस घरों में लौटने लगे | सोसाइटी में चार गेट्स बनवाने की जगह रखी गई थी , नई बनती सोसाइटी में अभी लोहे के गेट नहीं बने थे, काम चल रहा था | प्रखर, पँक्ति व शुजा का घर गेट्स का पहला बँगला होने के कारण एक-दूसरे को फुसफुसाकर जगाना बड़ा आसान हो जाता और सामने वाली अधबनी बाउंड्री-वॉल पर सब उचककर बंदरों की तरह जा बैठते |
गुजरात के बड़ौदा शहर में वैसे भी उन दिनों कोई बहुत भीड़-भड़क्का नहीं था | वैसे अन्य शहरों की तरह ये भी कॉस्मोपॉलिटन सिटी था | आबादी बढ़ रही थी किन्तु बहुत अधिक रिहायश नहीं थी अभी तक | आसपास के गाँव वाले अहमदाबाद शहर में बसने की ख़्वाहिश ही अधिक रखते | उन दिनों बड़ौदा अहमदाबाद के मुकाबले में काफ़ी शांत शहर था |
वहीं किशोरावस्था गुज़ारने के कारण बालपन की महकी-महकी स्मृतियाँ सबके मन में बड़े होने तक भरी रहीं | सब धीरे-धीरे अपने-अपने कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं लेकिन बालपन और किशोरावस्था के मित्रों को भुला देना नामुमकिन ! इन सबको आज भी एक घटना दाँत फाड़ने को मज़बूर कर देती है | जब कभी इन किशोरावस्था के दोस्तों का मिलना हो और उस घटना का ज़िक्र न हो, मानो अनहोनी बात !
कितना प्रेम व सहयोग था सब बच्चों में, सच ! निखालिस होते हैं बच्चे, इसीलिए प्रेम उनमें बड़ी आसानी से वास कर लेता है और इस प्रेम से वे खुशियाँ बाँटते हैं जो महँगी नहीं होतीं |