पार्क किनारे एक इमली का पेड़ था. विशाल पेड़ के तने में कोटर बनाकर बिरजूगिलहरी का परिवार रहता था. और पेड़ की जड़ में मिट्टी का बिल बनाकर मूषक चूहें का परिवार रहता था.
दोनों परिवारों में हमेशा अनबन रहती थी. इन दोनों परिवारों को दूसरे जीव-जन्तु ऊंचे लोग-गिलहरी परिवार और नीचे लोग-चूहां परिवार के नाम से पुकारते थे.
दोनों परिवार ही इमली के पेड़ को अपनी संपत्ति मानते थे और एक दूसरे को नीचा दिखाने का मौका नहीं चूकते थे.
गिलहरी परिवार अक्सर ऊपर से अपना कूड़ा-कचरा और जूठन नीचे चूहें परिवार के बाहर फेंक देता था.
दूसरी तरफ चूहां परिवार जब-तब कुछ न कुछ जलाता रहता था जिसके धुएं से गिलहरी परिवार का सांस लेना मुश्किल हो जाता था.
पेड़ पर रहने वाले दूसरे पशु-पक्षियों ने दोनों को समझाने की बहुत कोशिशें की थी मगर कुछ फ़ायदा नहीं हुआ.
बूढ़े बंदर ने तो दोनों के लिए कुछ नियम भी बनाए थे, मगर उससे भी बात न बनी.
दुश्मनी को सुलझाया न जाए तो वह बढ़ती जाती है. यही बात अब यहां हो रही थी. गिलहरी के बच्चे और चूहें के बच्चे भी अब एक दूसरे के दुश्मन बनते जा रहे थे. वे एक दूसरे को देखते ही या तो मुंह चिढ़ाने लगते थे या गाली देते थे.
इनकी देखादेखी दूसरे पशु-पक्षियों के बच्चे भी नई-नई शैतानियां सीख रहे थे. इसलिए इन दोनों की शैतानी सबके लिए चिन्ता का विषय थी. मगर किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि इसका हल क्या हो.
इसी तरह पेड़ के तने की ऊंचाई पर रहने वाले-ऊंचे लोग और नीचे जड़ में रहने वाले-नीचे लोग की ज़िन्दगी गुजर रही थी.
बिरजू गिलहरी और उसकी पत्नी गिलहरी रोज सुबह-सुबह काम पर निकल जाते और ढेर सारे बादाम, गिरियां तथा फल लेकर दोपहर तक लौटते.
चूहां और पत्नी चुहियां दोपहर बाद मूषक काम पर निकलते और रात को देरी से घर लौटते. वे भी तरह-तरह की चीजें लेकर लौटते. कभी कंद-मूल, फल-सब्जी तो कभी होटल का बचा खाना.
***
एक दिन शाम के वक्त पार्क का पाइप फट गया और पेड़ के आसपास पानी ही पानी हो गया.
‘बचाओ-बचाओ’ की आवाजें सुनकर बिरजू गिलहरी ने नीचे देखा तो चूहें के बच्चों को चिल्लाते देखा. वे पानी में तैरते-डूबते छटपटा रहे थे. पानी बढ़ता जा रहा था.
ऐसे में बिरजू गिलहरी ने एक पल भी देर न की. गले में थैला लटकाया और नीचे उतरने लगा. नीचे पहुंच कर एक चूहें को थैले में डाला और ऊपर अपने कोटर तक ले आया.
फिर दूसरे चूहें को भी ऊपर अपने घर तक पहुंचा दिया.
लेकिन तीसरे चूहें को सुरक्षित ऊपर तक पहुंचाने के बाद बिरजू गिलहरी का पैर फिसल गया और वह सीधे पानी में जा गिरा.
पानी कर बहाव इतना तेज था कि वह दूर तक बहता चला गया.
***
सुबह हुई तो पानी उतर चुका था. अब आम पड़ोस के जीव-जन्तुओें ने मिलकर बिरजू गिलहरी को ढूंढने का इरादा बनाया तभी सबने देखा कि मूषक चूहां, उसकी पत्नी चूहियां गिलहरी को उठाए लौट रहे हैं.
पूछने पर चूहें और चुहियां ने बताया कि काम से लौटते हुए उन्हों नाले में गिलहरी को बहते देखा. चूहां-चुहियां तैरना जानते थे, इसलिए उन्होंने दुश्मनी भूलकर झट से पानी में कूदकर उसे बचाने की कोशिश की. हालांकि इस कोशिश में वे भी मरते-मरते बचे और उन्हें एक सांप से मुकाबला भी करना पड़ा. लेकिन अंत में कामयाब हुए.
बिरजू गिलहरी के पेट में बहुत सारा पानी चला गया था, इसलिए उसका पेट दबा-दबा कर पानी निकालने में सारी रात बीत गई. अब बिरजू गिलहरी ठीक थी. लेकिन बहुत थक गया था, इसलिए मूषक चूहां उसे उठाकर ला रहा था.
घर के पास पहुंचकर जब उन्होंने अपने घर का बुरा हाल देखा तो उनकी सांस अटक गई.
तभी मां गिलहरी ने उन्हें तसल्ली दी कि उनके तीनों बच्चे सही-सलामत हैं. उन्हें बचाते हुए ही बिरजू गिलहरी की ये हालत हुई थी. यह सुनते ही मूषक चूहें-चुहियां की आंखों में आंसू आ गए. आंसुओं के साथ ही सारी दुश्मनी बह गई. दोनों ने पड़ोसी होने का फर्ज निभाया था.
सच, भलाई करने में देर करने से कभी-कभी बड़ा पछतावा हो सकता है.