“तो तू आ रही है ना इस संडे?” संजना ने पूछा।
“ये में अभी से कैसे फाइनल कह सकती हूं?” कामिनी ने कहा।
संजना और कामिनी कॉलेज के समय से पुरानी सहेलियां थी, वर्तमान समय मे दोनों एक कुशल गृहिणी थी। जो अपने घर की जिम्मेदारियां बहुत अच्छी तरह से निभा रही थी। वैसे पुराने दोस्त बहुत जल्दी नहीं मिल पाते, पर कुछ दोस्ती को कोई बंधन नहीं होते। वो जब चाहे एक दूसरे से मिल सकते है। संजना और कामिनी भी ऐसी सहेलियां थी। उनके पति भी एक दूसरे के अच्छे दोस्त बन गए थे, और अब तो दोनों के बेटे भी एक दूसरे के साथ पढ़ने जाते थे और दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी।
दोनों का फ्रेंड ग्रुप वैसे काफी बड़ा था, पर संजना और कामिनी बेस्ट फ्रेंड्स थे। संजना महीने में एक बार अपने घर पर किट्टी पार्टी का आयोजन करती थी। जिसमे उनका पूरा ग्रुप गपसप, खाना-पीना और मस्ती करते थे। साथ ही समाज सेवा से जुड़ी होने के नाते संजना सबसे समाज सेवा की बाते भी करती थी और लोगो को समाज सेवा करने के लिए प्रोत्साहित भी करती थी। इस संडे को भी किट्टी पार्टी थी, जिसके लिए संजना कामिनी के घर पर आई थी। थोड़ा चाय-नास्ते के बाद दोनों इसी चर्चा में लग गई और इस हफ़्ते की थीम पर विचार-विमर्श करने लगी।
“क्यों? कुछ दूसरे प्लान है क्या?” संजना ने पूछा।
“हां, शायद। रोहन के स्कूल में क्रिकेट टीम का सिलेक्शन हो रहा है, अगर वो सिलेक्ट हो जाएगा तो उसका पहला मैच शायद इसी संडे होगा।” कामिनी ने कहा।
जैसे ही उसने अपनी बात खत्म की उसका 8 साल का बेटा रोहन घर मे दाखिल हुआ। उसका चेहरा गिरा हुआ था उदासी उसके चेहरे से ही छलक रही थी।
“क्या हुआ बेटा?” कामिनी ने पूछा।
“मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ, मम्मी।” इतना कहते ही वो फुट फुट कर रोने लगा।
कामिनी ने उसको शांत कराया और संजना ने भी उसे हिम्मत दी। कुछ देर बाद रोहन शांत हुआ और अपने कमरे में चला गया।
“पता नहीं यार, हंमेशा क्या कमी रह जाती है? इतना सब कुछ तो कर रही हूं, अब क्या करूँ?” कामिनी ने कहा।
संजना; जो कामिनी को बहुत अच्छे से जानती थी; ने कहा, “दिल छोटा ना कर। अगर बुरा ना माने तो एक बात बोलू?”
“हां, बोल।”
“इसमें थोड़ी गलती तो तेरी भी है।”
“मेरी गलती कैसे?”
“तू हरदम रोहन के पीछे पड़ी रहती है, उसे अपने तरीके से कुछ करने नहीं देती। वो अगर कुछ करना चाहता है तो वो तू उसे करने नहीं देती, ऐसे तो वो कभी खुल के सामने नहीं आ पाएगा।” संजना ने कहा।
“यार अब तू लेक्चर मत दे, इतना तो करती हूं। मैंने कई फिल्मों और वीडियो में पेरेंटिंग के बारे में लेक्चर देते हुए लोगो को सुना है, पर कहने और करने में फर्क होता है।” कामिनी ने चिढ़ते हुए कहा।
संजना ने कामिनी का मूड समझते हुए उससे कहा, “चल तुझे एक कहानी सुनाती हूं।”
“अरे यार, अब तू पका मत। कहानी सुनाएगी और फिर उसमें से उपदेश देगी।” कामिनी ने कहा।
“बड़ी समझदार है तू। अब कहानी सुन,”
दो पड़ोसी थे, एक अमन और एक नमन दोनों का घर बहुत बड़ा था। दोनों के घर के आंगन/बगीचे में बहुत सारे फल और फूलो के पेड़-पौधे लगे हुए थे। दोनों अपने बगीचे की खूब देखभाल करते थे। अमन हर रोज उसके बगीचे के पेड़-पौधों को दो बार पानी देता, उन्हें जरूरी सूरज की रोशनी देता, पौधे में बीज रोपण करता था। जब कि नमन दिन में यही सारी प्रक्रिया 4 से 5 बार करता और उसकी ही चिंता में डूबा रहता था।
जब भी अमन उसे ऐसा ना करने की सलाह देता तो नमन कहता कि, “मुझे पेड़-पौधों से लगाव है और मुझे गार्डनिंग भी बहुत पसंद है। ऐसा कर के मुझे सुकून मिलता है। मुझे पता है कब किन पौधों में बीज लगाने है, कब उन्हें पानी देना है, मैंने बहुत रिसर्च कर रखी है इस बारे में। उन्हें में जो चाहे वो आकार दे सकता हूँ।”
एक बार बहुत जोरो से तूफान के साथ बारिश हुई। शहर में हर जगह पानी ही पानी प्रतीत हो रहा था। अमन और नमन ने अपने बगीचे को नष्ट ना होने की मुमकिन कोशिश की, पर उतना काफी नहीं था। नमन के सारे पेड़-पौधे नष्ट हो गए, जब कि अमन के बगीचे के कुछ पौधों को छोड़कर सारे पौधे सुरक्षित थे।
ये देखकर नमन हैरान हो गया कि उसने अपने पेड़-पौधो, फल-फूल की इतनी हिफ़ाजत की फिर भी वो सारे तबाह हो गए, और ये अमन जो दिन में एक या दो बार उनकी खबर लेता था, उसके लगभग सारे पौधे सुरक्षित है।
इस पर अमन ने कहा, “दोस्त, मुझे भी अपने पौधों से प्यार है, और में भी उनकी हिफ़ाजत करना पसंद करता हूं, पर इसका मतलब ये नहीं है कि मैं उन्हें खुद से बढ़ने भी ना दु। मैंने अपने पेड़-पौधों को उतना ही पानी दिया जितनी जरूरत थी, उतना ही सूर्यप्रकाश दिया जितनी उनको जरूरत थी, उतने ही ऑर्गेनिक खाद इस्तेमाल किये जितनी जरूरत थी। इससे वो अपनी ताकत से बढ़ पाए और अपनी रक्षा खुद कर पाए। इससे उल्टा तुमने जरूरत से ज्यादा ध्यान दिया, ज्यादा पानी दिया, हद से ज्यादा खाद इस्तेमाल किया, सूर्य की किरणों से दूर रखा। इससे तुम्हारे पेड़-पौधे संपूर्ण रूप से तुम पर ही निर्भर हो गए और जब मुसीबत की घड़ी आई तब वो बेबस और लाचार खड़े तुम्हारी प्रतीक्षा में रह गए। क्योंकि तुमने उनसे प्यार तो किया पर उनको आत्मनिर्भर नहीं बनाया। अगर तुम ऐसा करते तो वो अपनी जड़ें खुद से मजबूत कर लेती और ये तूफान उनका कुछ बिगाड़ नहीं पाता।”
“तो आई मेरी बात समझ में?” संजना ने कहा।
“नहीं। अभी तेरा उपदेश बाकी है, सुना दे अब।” कामिनी ने कहा।
संजना ने हँसते हुए कहा, “प्यार करना अच्छी बात है पर जरूरत से ज़्यादा कोई भी चीज़ ज़हर ही बन जाती है, प्यार भी। हम ये सोचते है कि हम उनकी भलाई कर रहे है पर हकीकत में हम उनको कमजोर बना रहे है। अगर एक पंछी अपने बेटों को अपने से उड़ने नहीं देगी तो उनका बच्चा कैसे आसमानों की बुलंदियों को छू पायेगा? जितना जरूरी हो उतना ही जतन करो, हर कोई अपनी राह चुन ही लेता है और अपनी जड़ें मजबूत कर ही लेता है एक दिन। किसी के लिए ‘जितना जतन उतना पतन’ साबित हो सकता है।” संजना ने गहरी सांस लेते हुए कहा।
उसने देखा कामिनी उसकी बातों पर ज्यादा गौर नहीं फ़रमा रही थी, तो उसने कहा, “कोई नहीं, मेरा काम था उपदेश देना, मैंने दे दिया। रास्ता दिखाना मेरा काम था अब उस पर चलना या उस रास्ते को सही गलत चुनना तुम्हारे हाथ में है।”
“तेरी बात पर मैं सोचूंगी। फिलहाल मुझे रोहन के लिए नास्ता बनाना है और उसे मोटिवेट भी करना है ताकि वो मायुष ना हो।” कामिनी ने कहा।
“कोई बात नहीं चल तो मैं चलती हूं। अब तो कोई मैच नहीं संडे को, अब तो आएगी ना?” संजना ने अपनी दोस्त को चिढ़ाते हुए आंख मारकर पूछा।
सत्य घटना पर आधारित।
✍️ Anil Patel (Bunny)