Mission Sefer - 5 in Hindi Moral Stories by Ramakant Sharma books and stories PDF | मिशन सिफर - 5

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मिशन सिफर - 5

5.

राशिद एक नई शरूआत करने के लिए हॉस्टल के मेनगेट के पास खड़ा कादरी भाई का इंतजार कर रहा था। सामान के नाम पर उसके पास एक बैग ही था जिसमें उसके पहनने के कपड़े, कुछ कॉपियां-किताबें और रोजमर्रा की जरूरत की छोटी-मोटी चीजें ही थीं। ठीक दस बजे मेनगेट के सामने आकर एक जीप रुकी और उसमें से कादरी भाई बाहर निकले। राशिद सोच रहा था कि वे किसी टैक्सी से जाएंगे, इसलिए वह जीप देख कर थोड़ा अचंभित हुआ। जीप भी ऐसी लग रही थी जैसी पाकिस्तानी मिलिट्री में इस्तेमाल की जाती थी। अभी वह यह सब सोच ही रहा था कि कादरी भाई ने उससे कहा – “आओ राशिद भाई, आ जाओ। इस जीप को देख कर बहुत ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। आपको तो पता ही है, मैं मिलिट्री को राशन की सप्लाई करता हूं, हमीद भाई ये जीप चलाते हैं। इनसे मैंने रिक्वेस्ट की थी कि आपको उस इदारे तक पहुंचाने के लिए मेरी मदद करें, बस ये तुरंत तैयार हो गए।“

हमीद भाई नाम के उस शख्स ने ड्राइविंग सीट पर बैठे-बैठे ही राशिद की तरफ हाथ हिलाया था और कहा – “आ जाइये भाईजान। थोड़ा जल्दी करें। एक घंटे में जीप लेकर मुझे मेजर साहब के पास पहुंचना है।“

राशिद ने अपना बैग संभाला और वह जीप में पीछे बैठ गया। ड्राइवर के पास की सीट पर कादरी भाई के बैठते ही जीप फर्राटे भरने लगी थी। तकरीबन चालीस मिनट के बाद जीप एक पुरानी सी बिल्डिंग के सामने जाकर रुकी। कादरी भाई ने उसे उतरने का इशारा किया तो वह अपना बैग उठा कर उतर गया। उनके उतरते ही ड्राइवर ने जीप आगे बढ़ा दी, उसे टाइम पर मेजर साहब के पास जो पहुंचना था।

वे दोनों बिल्डिंग के अंदर जाने के लिए गेट के पास रुके। वहां खड़े वाचमैन से कादरी भाई ने कुछ बात की। उसके साथ ही दरवाजा खुल गया और वे मेनगेट से भीतर चले गए। बरामदे से पहले एक काउंटर बना हुआ था और काउंटर के सामने एक सोफा रखा था। कादरी भाई ने उसे सोफे पर बैठने को कहा और काउंटर वाले से बात करने के बाद एक रजिस्टर में कुछ एंट्री कीं और फिर उसे अपने साथ लेकर अंदर चले गए। यहां उन्होंने उसे मेहमूद नाम के शख्स से मिलवाया। मेहमूद एक लंबा-चौड़ा शख्स था जिसकी मूंछे कान के पास तक गई हुई थीं। उसने राशिद को देख कर उसका खैर-मकदम किया और कहा – “कादरी भाई ने आपके बारे में हमें सबकुछ बता दिया है। आप किसी तरह की कोई चिंता-फिक्र न करें। आपको रूम नंबर 302 अलोट किया गया है। ये रही उसकी चाबी, आप आराम से रहें। चाय-नाश्ते और दोनों वक्त के खाने के लिए आपको ग्राउंड फ्लोर के मैस में आना पड़ेगा। बस, यहां के नियम कायदों का ध्यान रखें जो आपको समझा दिए जाएंगे। इसकी शुरूआत फज्र की नमाज से होगी जो इसी बिल्डिंग के पीछ अहाते में बनी हुई है। इस समय हमारे हॉस्टल में तकरीबन तीस लोग रह रहे हैं। कल उनसे आपकी मुलाकात कराई जाएगी।“

मकबूल कादरी ने राशिद को उसके कमरे तक पहुंचाया और कहा – “राशिद मियां, आप यहां आराम से रहें। कोई भी बात हो तो मेहमूद भाई से मिल लेना, आपको कोई दिक्क्त नहीं आने दी जाएगी। फिर, मैं भी यहां आता-जाता रहूंगा और आपकी खैर-खबर लेता रहूंगा।“

“किन लफ्जों में आपका शुक्रिया अदा करूं.........।“

“शुक्रिया अदा करने की कोई जरूरत नहीं है। एक दोस्त को या यूं कहूं कि एक भाई को अगर कुछ मदद कर दी तो उसमें शुक्रिया की दरकार कैसी। सच कहूं राशिद भाई आपकी मदद करके मुझे दिली सुकून मिल रहा है। मेरी जेब से तो कुछ गया नहीं, है ना?” वे बहुत जोर से हंसे थे। “अच्छा अब चलूं, बहुत काम हैं मुझे। यहां के लोगों से मिलो-जुलो, दोस्त बनाओ और मज़हबी माहौल में वतन-परस्त लोगों के साथ वक्त बिताओ। अच्छा लगेगा आपको।“

“जी हां, बहुत अच्छा लगेगा। मैं तो खुद ऐसे माहौल और मौके की तलाश में रहा हूं। आपकी बदौलत आज यहां हूं, यह मेरी खुश-किस्मती नहीं तो क्या है।“

“सब अल्लाह का फज़ल है। मुझे देर हो रही है, चलता हूं। अल्लाह हाफिज“

“अल्लाह हाफिज....।“

राशिद उन्हें बाहर तक छोड़ने के बाद जब अंदर आया तो मेहमूद भाई ने उसे आवाज देकर अपने पास बुलाया और कहा – “राशिद भाई, आपका आइडेंटिटी कार्ड तैयार है, लेते जाइये। आइंदा इसे गले में डाल कर रहें, नहीं तो बाहरी आदमी समझे जाओगे और हमारे गार्ड आपको अंदर नहीं आने देंगे।“

राशिद ने आइकार्ड लिया और उसे अपने गले में डाल लिया। वह पूरे कंपाउंड का एक चक्कर लगाना चाहता था।

बहुत बड़ा कंपाउंड था। एक बड़ा सा मैदान था, जिसमें कुछ लड़के यहां-वहां बैठे बातें कर रहे थे। एक जिम भी था, जिसमें कुछ लोग कसरत करने में लगे थे। मैदान के दूसरी तरफ एक एक पुरानी लेकिन खूबसूरत सी मस्जिद बनी हुई थी। वह घूमता हुआ बिल्डिंग में वापस आ गया। उसका कमरा तीसरी मंजिल पर था। सीढ़ियां चढ़ते समय उसने देखा दांई तरफ एक हॉल था, जिसके बाहर उर्दू में “मैस” लिखा था और उसके पास ही एक बड़ा सा बोर्ड टंगा था। वह सीढ़ियां उतर कर उस बोर्ड के सामने जा खड़ा हुआ। उस पर सुबह के नाश्ते, दोपहर के और रात के खाने का समय लिखा हुआ था और कुछ नियम-कायदे दर्ज थे। अभी वह उन्हें पढ़ ही रहा था कि एक लड़का उसके पास आया और पूछा – “नए आए हो?”

राशिद ने उस पर एक भरपूर नजर डाली और कहा – “हां, आज ही आया हूं।“

उस लड़के ने हाथ मिलाने के लिए तुरंत अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया और कहा – “मैं शोएब हूं और आप?”

राशिद ने उससे हाथ मिलाते हुए कहा – “मैं राशिद हूं। अच्छा लगा शोएब आपसे मिल कर।“

“मुझे भी अच्छा लग रहा है। मेरा कमरा नं. 210 है और आपका?”

“मुझे 302 अलोट हुआ है। मेरा कहीं रहने का ठिकाना नहीं था, इसलिए अपने एक दोस्त की मार्फत यहां कुछ समय के लिए रहने की इजाजत ली है।“

“अच्छा?” – शोएब के चेहरे पर अचंभा उग आया था।

“क्यों क्या हुआ?” राशिद ने उसके चेहरे के भावों को देखते हुए पूछ लिया था।

“इसका मतलब आपको कुछ पता नहीं है। शुरू में किसी को पता नहीं होता, धीरे-धीरे सब समझ में आ जाएगा।“

“क्या पता नहीं है, क्या समझ आ जाएगा?”

“यही कि यहां उन्हीं नौजवानों को लाया जाता है जिन्हें पाकिस्तान के दुश्मनों से लड़ने के लिए खास तरह की ट्रेनिंग दी जाती है। अगर यहां लाए गए हैं तो आपको वैसी ट्रेनिंग के लिए ही लाया गया होगा।“

अब अचंभित होने की बारी राशिद की थी। उसके मन में कई सवाल उग रहे थे। उन पर जज्ब करते हुए उसने शोएब से पूछा था – “शोएब भाई, आप यहां कब से हैं? यहां के बारे में कुछ तफ्सील से बताएंगे मुझे?”

शोएब थोड़ा हिचका था – “कुछ ही दिनों में आपको खुद-बखुद सब मालूम हो जाएगा। मैं अब चलता हूं। अब तो मिलते ही रहेंगे।“

राशिद को कुछ अजीब सा लग रहा था। शोएब ने क्यों कहा था कि कुछ ही दिनों में उसे खुद ही सबकुछ मालूम हो जाएगा। ऐसा क्या है जो उसे कादरी भाई ने बताया नहीं है। तभी अजान की आवाज ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया था और वह मस्जिद की तरफ चल दिया था।

मस्जिद में करीब तीस-पैंतीस लोग आराम से खड़े हो सकते थे। उसने वुजू किया और नमाज पढ़ने के लिए सबसे पीछे की लाइन में खड़ा हो गया। उसके आसपास खड़े लोगों ने उसकी तरफ अजनबीपन से देखा था और फिर अल्लाह की बंदगी में मशगूल हो गए थे। राशिद ने नोट किया कि वहां जितने भी लोग मौजूद थे उनमें से किसी की भी उम्र पच्चीस साल से ज्यादा नहीं थी। ज्यादातर लोग तो अठारह से बीस-बाईस तक के ही नजर आ रहे थे। नमाज के बाद कई लड़कों ने उसकी तरफ दोस्ती के हाथ बढ़ाए थे और उसका खैर-मकदम किया था।

ये सभी लड़के पांचों वक्त की नमाज के पाबंद थे। उस इदारे के कायदे के अनुसार उन्हें नमाज के लिए आना जरूरी था। उसे यह जानकर अच्छा लगा कि वह ऐसे नौजवानों के बीच है जो मज़हबी हैं और अल्लाह की राह में खुद को कुर्बान करने के लिए तैयार हैं।

दूसरे दिन फज्र की नमाज के बाद मेहमूद भाई ने राशिद का सभी से रस्मी तआरुफ कराया और ताकीद की कि चाय-नाश्ते के बाद सभी मैदान में इकट्ठे हो जाएं। उन्होंने राशिद से भी वहां आने के लिए कहा।

मैदान में सभी लड़कों को वर्जिश कराई जा रही थी। मेहमूद भाई ने राशिद को कासिम नाम के एक लड़के के साथ वर्जिश करने के लिए कहा। कासिम उसे वो वर्जिश करा रहा था जो वहां रह रहे सभी लड़के पहले सीख चुके थे।

एक घंटे की वर्जिश खत्म होने पर सभी को मैदान में बैठने के लिए कहा गया। करीब पैंतीस-चालीस साल का खालिद नाम का एक आदमी वहां आया और तकरीर करने लगा। राशिद उसे ध्यान से सुनने लगा। वह कह रहा था –

“अल्लाह के अजीज़ बंदों,

आप सब लोगों को खुदा का शुक्रगुजार होना चाहिए कि आप पूरे वर्ल्ड में इस्लाम के मानने वालों पर हो रहे जुल्मो-सितम को खत्म करने के लिए और अपने वतन पर मर मिटने की ख्वाहिश पूरी करने के लिए यह स्पेशल ट्रेनिंग ले रहे हैं। आपको खासतौर से इस मुहिम के लिए चुना गया है, इसके लिए आपको खुद पर फख्र होना चाहिए। याद रखना हर बंदा जो इस जहान में आया है, उसे एक-न एक दिन वापस खुदा के पास जाना है। फिर मौत से क्या डरना, उसके लिए तो एक दिन मुयय्यन है ही। यूं ही कीड़े-मकौड़ों की तरह जीने और जान देने से बेहतर है जिहाद के रास्ते पर चलकर मज़हब और वतन की खिदमत करते हुए मौत को गले लगाया जाए। ऐसे बंदों के लिए खुदा बहिश्त में जगह अता फरमाता है और बहत्तर हूरें उनका इंतजार कर रही होती हैं। बोलो, इसके लिए तैयार हो?”

“हां हम तैयार हैं” – सभी ने चिल्ला कर कहा।

“तो ठीक है, आज से आपको चार ग्रुपों में तकसीम किया जाएगा। पहले ग्रुप को बम बनाने और उसका इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग दी जाएगी, दूसरे ग्रुप को एके-47 राइफल चलाने की, तीसरे ग्रुप को माइन्स बिछाने की और चौथे और आखिरी ग्रुप को दुश्मन से सीधी टक्कर में बिना हथियार के लड़ने का गुर सिखाया जाएगा। हर ग्रुप को ये सभी तरीके की ट्रेनिंग लेनी है। जैसे ही पहला ग्रुप बम बनाने और उसका इस्तेमाल करने में उस्ताद बन जाएगा, उसे एके-47 राइफल चलाने की ट्रेनिंग दी जाएगी। इसी तरह हर ग्रुप एक-एक करके ये सभी काम सीखेगा। कोई शक कोई शुबहा?”

“नहीं जनाब।“

“शाबास। अब मैं हर ग्रुप में शामिल जवानों के नाम पढ़ूंगा। सब अपने-अपने ग्रुप के साथ खड़े हो जाएंगे। ठीक है?”

राशिद को समझ में आ गया था कि वह किस इदारे में और किस मतलब से लाया गया है। उसे इससे कोई ऐतराज भी नहीं था। पर, अभी तो उसका रिजल्ट आना था, उसे इंजीनियर के तौर पर वतन की खिदमत करनी थी। तभी उसने सुना उसे चौथे ग्रुप में रखा गया था। उससे रहा नहीं गया और वह बोल उठा – “जनाब, मैंने इंजीनियरी का एक्जाम दिया है, मेरा रिजल्ट आने वाला है, उसके बाद मैं पाकिस्तान सरकार में मुलाजमत करके वतन की खिदमत करने का इरादा रखता हूं.........।“

“हां, हां आपके बारे में हमें बताया गया है। इसलिए आप फिक्र न करें। आपके इम्तहान का रिजल्ट आने में एक महीना तो लगेगा। तब तक आप यह ट्रेनिंग लेते रहेंगे। बहुत काम आएगी भाईजान आपके। मज़हब और वतन के लिए आप जो कुछ करना चाहते हैं, उसके लिए इस तरह की ट्रेनिंग बहुत जरूरी है। समझे?”

“जी जनाब”

“शाबास, आराम से रहिए इस हॉस्टल में और यह नायाब ट्रेनिंग लेते रहिए।“

राशिद चुपचाप अपने ग्रुप के साथ जाकर खड़ा हो गया।