Baat bus itni si thi - 31 in Hindi Moral Stories by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | बात बस इतनी सी थी - 31

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

Categories
Share

बात बस इतनी सी थी - 31

बात बस इतनी सी थी

31.

कई बार तो मंजरी मेरी किसी बात पर विचार किये बिना और कुछ सोचे-समझे बिना ही केवल मेरा विरोध करने के लिए मेरे विपक्ष में खड़ी हो जाती थी । दरअसल मंजरी इस गलतफहमी का शिकार हो गयी थी कि कंपनी को सिर्फ और सिर्फ वही अकेली चला रही है और मैं कंपनी की तरक्की के लिए उसके निर्णयों में बाधा बन रहा हूँ !

अपनी इसी गलतफहमी का शिकार होकर एक दिन मंजरी ने कंपनी की ऑनरशिप को अपने नाम पर ट्रांसफर करने की माँग कर डाली । उसकी इस माँग के पीछे की वजह थी कि अपने जाने-अनजाने वह मुझे मूर्ख समझने लगी थी । मेरे विचार से मुझे मूर्ख समझने के पीछे असली वजह उसका सैलरी-पैकेज था । वह जानती थी कि उसको उसकी पुरानी कंपनी के कम्पेयरिजन में ज्यादा पैकेज देने के लिए मेरी कंपनी के पास पर्याप्त पैसा नहीं था । फिर भी मैंने उसको दिया । मेरे इस निर्णय को वह मेरी मूर्खता समझ रही थी । वह नहीं जानती कि उसको उसकी योग्यता के अनुसार ज्यादा पैकेज देना मेरी कंपनी को तेज गति से आगे ले जाने की रणनीति का एक हिस्सा था । मेरा विचार था कि किसी भी कंपनी को शिखर तक ले जाने की यही रणनीति सबसे अच्छी होती है कि अपने यहाँ काम करने वाले हर कर्मचारी को उसके योगदान के अनुसार लाभ और सम्मान दिया जाए !

कंपनी की ऑनरशिप उसके नाम पर ट्रांसफर करने की उसकी माँग को सुनकर पहले तो मुझे इतना आश्चर्य हुआ कि एक क्षण को मुझे अपने कानों पर ही भरोसा नहीं हुआ । इसलिए मैंने उससे दोबारा पूछा कि आखिर वह क्या चाहती है ? स्पष्ट शब्दों में बताए ! तब उसने कहा -

"तुम कंपनी को नहीं चला सकते ! तुम्हें कंपनी चलाने की समझ नहीं है ! ऐसे ही चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं, जब जल्दी ही एक दिन यह कंपनी डूब जाएगी ! लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूँगी ! मैं इसको अपनी लगन और मेहनत से यहाँ तक लेकर आयी हूँ ! इसलिए मैं चाहती हूँ कि कंपनी के बारे में किसी भी डिसीजन के लिए मुझे तुम पर निर्भर न रहना पड़े ! कोई भी डिसीजन मैं खुद ले सकूँ, इसके लिए मुझे कंपनी से संबंधित हर डिसीजन लेने की पावर मिलनी चाहिए !"

"लेकिन बेबी ! ऐसा कैसे पॉसिबल है कि सारे फाइनल डिसीजन लेने की पावर तुम्हें मिल जाए ? यह मत भूलो कि तुम कंपनी में एक सैलेरिड पर्सन हो, ऑनर नहीं ! कंपनी की ऑनरशिप मेरे पास है, इसलिए फाइनल डिसीजन तो मेरे ही होंगे !"

"तुम भी यह मत भूलो कि इस कंपनी को स्टेब्लिश करने के लिए मैंने अपनी नौकरी छोड़कर दिन-रात पसीना बहाया है !"

"इसीलिए तो तुम्हें इतना मोटा पैकेज दिया जाता रहा है ! तुम कंपनी की तरक्की के लिए काम नहीं करती, तो तुम्हें इतना बड़ा पैकेज क्यों मिलता ? तुमने कंपनी को अपनी सेवाएँ देने के बदले एक बड़ा पैकेज वसूल किया है ! दूसरी ओर मैं हूँ, जिस दिन से मैंने इस कंपनी का रजिस्ट्रेशन कराया है, उस दिन से आज तक कंपनी की तरक्की के लिए मैं अपनी हर छोटी-बड़ी जरूरत को टालता रहा हूँ ! यही फर्क होता है, एक सैलेरिड पर्सन और ऑनर में !"

मेरा जवाब सुनकर मंजरी को बहुत गुस्सा आया था । वह मुझ पर चिल्लायी -

"मधुर ! मैं तुम्हें एक अच्छा इंसान समझती थी, बाकी सब से अलग ! इसीलिए मैंने तुम्हें अपने फ्लैट में रहने की इजाजत दे दी थी । लेकिन तुम तो गूलर का फल निकले ! बाहर से देखने में अच्छे सुंदर और अंदर भुनके-ही-भुनके भरे पड़े हैं !"

"नहीं, मंजरी ! यह बात मुझसे ज्यादा तो तुम पर फिट बैठती हैं ! तुमने मुझे अपने फ्लैट में रहने की अनुमति इसलिए दी थी कि मुझसे तुम्हारी एक कुक की जरूरत पूरी हो रही थी !"

मंजरी ठंडे दिमाग से मेरी बात सुनने और उस पर विचार करने के लिए तैयार नहीं थी । उसके तेवर तीखे होते जा रहे थे । त्योरियाँ चढ़ाकर उसने मुझसे कहा -

"तुम्हें क्या लगता है ? कि तुम्हारी इस टुच्ची सी कंपनी के पैकेज के लालच में मैंने मल्टीनेशनल कंपनी को छोड़ा था ? मधुर ! मैंने पैकेज के लालच में नहीं, इस कंपनी को अपना समझकर इसको ऊँचाई पर ले जाने के लिए उस मल्टीनेशनल कंपनी को छोड़ दिया था ?

"नहीं मंजरी ! तुम झूठ कह रही हो ! तुमने अपनी पुरानी कंपनी से रिजाइन भी मेरे लिए या मेरी कंपनी के लिए नहीं किया था ! तुमने अपनी पुरानी कंपनी से रिजाइन इसलिए किया था, क्योंकि उस समय पिछले कई महीनों से कंपनी के मैनेजर के साथ तुम्हारी खट-पट चल रही थी और उन्हीं दिनों उस मैनेजर से तुम्हारी कहा-सुनी भी हुई थी । तुम उस कंपनी को छोड़ना चाहती थी, इसलिए मैंने तुम्हारी सहायता करने के लिए अपनी सामर्थ्य से ज्यादा सैलरी-पैकेज देकर तुम्हें अपनी कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर बनाया ! पर तुमने क्या किया ? तुमने उंगली पकड़ते-पकड़ते आज पूरी बाँह पकड़कर मेरी कंपनी हड़पने का प्लान बना डाला !"

मेरे आरोप से मंजरी और ज्यादा भड़क गयी थी । उसने उसी समय मेरे कपड़ों सहित मेरा सारा सामान अपने फ्लैट से बाहर फेंक दिया । मैं उसके इस बेहूदा बर्ताव पर भी चुप बैठा रहा । कुछ देर बाद एक बार फिर उसके क्रोध का तूफान आया । इस बार उसने मुझे धक्के दे-देकर फ्लैट से बाहर निकाल दिया और फ्लैट का दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया ।

पूरे अपार्टमेंट में अभी तक किसी को यह नहीं पता था कि हम दोनों लिव-इन रिलेशन में एक साथ रह रहे थे । सभी को मंजरी ने यह बताया हुआ था कि हम दोनों पति-पत्नी हैं । इसलिए हमारे झगड़े को को पति-पत्नी का झगड़ा समझकर सोसायटी के लोगों में से किसी ने हमारे झगड़े में कोई दिलचस्पी नहीं ली ।

जब मैं मंजरी के फ्लैट में आया था, तब वहाँ रहना मेरी मजबूरी थी । हालांकि उस समय भी मैं वहाँ रहने के बदले उसको एक कुक के रूप में अपनी सेवाएँ देता था । आज तक भी मंजरी को मैं अपनी कुकिंग की सेवा उसी तरह देता रहा था ।

लेकिन अब मेरी कोई मजबूरी नहीं थी । अब मेरी जेब में दम था । इसलिए मैंने वहाँ से अपना सामान उठाकर चला गया और एक होटल में कमरा लेकर रहने लगा । जब तक मुझे अपनी पसंद का एक फ्लैट नहीं मिला, तब तक मैं उसी होटल में रहता रहा ।

उस दिन के बाद मंजरी कभी मेरी कंपनी के ऑफिस में नहीं आयी । मैंने फोन पर कई बार मंजरी से संपर्क करने की कोशिश की, मैं उसके फ्लैट पर मिलने के लिए भी गया कि वह अपने उसी पैकेज पर मेरी कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर का काम करते रहे, लेकिन वह मेरी कंपनी में काम करने या मुझसे मिलने और बात करने के लिए तैयार नहीं थी । इतना ही नहीं, उसने मेरा नंबर भी ब्लॉक कर दिया और सोसाइटी के गार्ड से कह दिया कि वह मुझे अंदर न जाने दे !

उसके बाद भी कुछ दिन तक मैं उससे मिलने की कोशिश करता रहा, लेकिन मंजरी की ओर से कोई ग्रीन सिगनल नहीं मिलने पर धीरे धीरे मेरी कोशिशों ने दम तोड़ दिया । पर आज भी मैं सोचता हूँ कि मंजरी में कुछ तो खास है, जो सब लड़कियों में नहीं होता ! मेरी जिंदगी में कितनी ही लड़कियाँ आयी और चली गयी, लेकिन मंजरी जैसी कोई नहीं थी । मंजरी उन सबसे अलग थी । मेरी जिंदगी में वही एकमात्र लड़की ऐसी आयी थी, जिसने मेरे दिल में अपनी जगह बनायी और आज तक उसकी वह जगह सुरक्षित है ! "

"तो अभी फिर से उससे मिलने की कोशिश क्यों नहीं करते ?"

"नहीं ! अब मैं वह सब नहीं करूँगा ! उसे मेरे पास लौटना होगा, तो वह खुद लौट सकती हैं ! मेरा मोबाइल नंबर अभी भी वही है, जो उस समय था ! वह चाहेगी, तो मुझसे खुद संपर्क करेगी ! लेकिन मैं जानता हूँ, वह ऐसा नहीं करेगी !"

"क्यों ?"

"क्योंकि अपने लालच के कारण वह अपनी ही नजरों में गिरने के बाद भी खुद को मुझसे बेहतर सिद्ध करने की कोशिश करेगी, जोकि मैं होने नहीं दूँगा !"

"इसका मतलब अब तुम्हारा और मंजरी का दोबारा एक साथ रहना पॉसिबल नहीं है ?"

"हाँ, तुम यह कह सकते हो !"

मधुर की सारी बातें सुनने-जानने के बाद मुझे मंजरी के साथ मेरी शादी होने और टूटने की बात मधुर से छुपाना उसके साथ धोखा करने जैसा लग रहा था । इसलिए मैंने उसे मंजरी के साथ मेरी पहली मुलाकात से लेकर शादी टूटने के कोर्ट के अंतिम फैसले तक की सारी कहानी सुना दी । लेकिन मैंने उसको यह नहीं बताया कि इस समय मंजरी मेरी ही कंपनी में और मेरे ही ऑफिस के मेरे सामने वाले केबिन में बैठकर काम करती है ।

मैंने मधुर से यह सच इसलिए छिपाया था, क्योंकि मधुर के साथ मंजरी के बनते बिगड़ते रिश्ते की कहानी को सुनकर न जाने क्यों मंजरी में मेरी फिर से दिलचस्पी बढ़ने लगी थी । और इसलिए मैं नहीं चाहता था कि आजकल मंजरी ऑफिस में मेरे साथ काम कर रही है और अभी भी मंजरी के साथ मेरी हर रोज मुलाकात और बातचीत होती रहती है, मधुर को यह पता चले । शायद मेरे मन के किसी कोने में दबी-छिपी हुई यह आशंका कि मंजरी के ऑफिस की लोकेशन का पता चलने पर कहीं मधुर इसको अपने लिए किसी अवसर के रूप में न देखने लगे, मुझे मधुर को सच बताने से रोक रही थी ।

अपनी-अपनी जिंदगी के अंतरंग पक्ष एक दूसरे के सामने खोलकर रख देने के बाद हम दोनों में पहले से भी ज्यादा घनिष्ठता हो गई थी । एक सप्ताह के बाद मुझे लखनऊ से पटना वापस लौटना था । ऐसा लगता था कि इस एक महीने में हम दोनों ने जो पल साथ-साथ बिताए हैं, उन्हें हम कभी नहीं भूल पाएँगे । कंपनी की ओर से वापिस लौटने का आदेश आते ही जब मैंने वापिस चलने की तैयारी शुरू की, तो मधुर को मेरा वापिस लौटने का निर्णय अच्छा नहीं लग रहा था । वह चाहता था कि मैं वहीं उसके साथ रहकर उसकी कंपनी में जॉइन कर लूँ !

मधुर ने मुझे मेरे वर्तमान पैकेज से बड़े पैकेज पर अपनी कंपनी में काम करने का ऑफर भी दिया था । मेरे मन में भी आ रहा था कि यदि हम दोनों दोस्त सदा साथ रहें और साथ-साथ काम करें, तो यह हम दोनों के लिए ही काफी अच्छा रहेगा ! लेकिन मैंने मधुर को पटना में माता जी के अकेले होने का बहाना करके टाल दिया । मधुर ने मुझे यह भी सुझाव दिया कि मैं माता जी को अपने साथ लखनऊ में रख सकता हूँ और इसके लिए उसकी कंपनी मुझे थ्री बीएचके फ्लैट रहने के लिए दे सकती हैं ।

लेकिन, मैंने उसका वह प्रस्ताव भी यह कहकर ठुकरा दिया कि माता जी पटना के बाहर कहीं भी रहना पसंद नहीं करती हैं । जबकि उसका प्रस्ताव नहीं मानने की वास्तविक वजह तो यह था कि मेरा मन पटना के ऑफिस में बैठी मंजरी की ओर दौड़ लगा रहा था और इसीलिए मैं जल्दी से जल्दी लखनऊ छोड़कर पटना पहुँचना चाहता था ।

उसके ऑफर को मानने के लिए मैं पहले ही मना कर चुका था, लेकिन शायद वह उसका प्रस्ताव नहीं मानने की मेरी वास्तविक वजह को नहीं समझता था । इसलिए उसने मायूस होकर कहा -

"पूरा महीना तो तुमने अपनी नौकरी के काम में ही बिता दिया । कम-से-कम एक-दो दिन तो दोस्ती की खातिर रुक ही जाओ ! चलो, कहीं घूमने-फिरने के लिए चलते हैं और वहाँ लाइफ को एंजॉय करेंगे !"

मधुर के इस ऑफर को ठुकराना मेरे स्वभाव के परे था, इसलिए मैंने तुरन्त उसकी बात मान ली और उस दिन के बजाय दो दिन बाद लौटने की योजना बना ली । उन दो दिनों में मधुर ने मुझे पूरे लखनऊ में घुमाया । लेकिन वास्तविक मजा घूमने का नहीं था, मधुर के साथ का था, जो मुझे यह सिखा रहा था कि विपरीत परिस्थिति में भी जिंदगी के हर पल को कैसे एंजॉय किया जाता है ?

क्रमश..