Lahrata Chand - 18 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | लहराता चाँद - 18

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लहराता चाँद - 18

लहराता चाँद

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

18

जब से अनन्या का किडनैप हुआ है तब से संजय ने अस्पताल जाना छोड़ दिया। रात दिन पागलों की तरह बेटी की खोज में शहरों की गलियों में ढूँढ रहा है। इसी आशा से कि कहीं अनन्या उसे मिल जाए। न खाने-पीने का ख्याल रहा ना अस्पताल का। अंजली भी अस्पताल का काम खत्म कर अवन्तिका और संजय के लिए खाना बना देती और कुछ समय उसके साथ रहती थी। संजय बीच- बीच मे फ़ोन पर अवन्तिका से बात करता रहता था, मन में एक छोटी सी आशा कि कहीं से अनन्या का फ़ोन आ जाए और उसकी कोई अच्छी खबर मिल जाए। वहीँ अवन्तिका रात रात भर रोती रहती। दुर्योधन की कहने पर संजय ने क्षमा से अवन्तिका के साथ कुछ दिन रहने के लिए अनुरोध किया और क्षमा भी मान गई। आते ही उसने अवन्तिका को सँभाल लिया।

"अंकल, अनन्या मेरी दोस्त है इस नाते अवन्तिका मेरी भी बहन हुई। आप मुझे आज्ञा कीजिए क्या करना है और आप अवन्तिका की चिंता छोड़कर अनन्या को ढूंढिए।" कहकर अवन्तिका को खाना खिलाकर सुलाने के लिए अंदर ले गई।

समय रात के 11 बजे थे, अचानक लैंडलाइन फ़ोन बज उठा। देर रात तक गलियों में ढूढ़ने के बाद अवन्तिका का ख्याल आया तो संजय घर वापस लौट आया था। तब फ़ोन की घंटी बजी, संजय ने आतुर होकर फ़ोन उठाया। उसे अनन्या के फ़ोन या अनन्या के बारे में कोई जानकारी मिलने की इंतजार था।

दुर्योधन का फ़ोन था, " संजू क्या हुआ, अनन्या का कुछ पता चला?"

"नहीं कुछ भी नहीं।" संजय चिंतित होकर कहा।

"अवन्तिका कैसी है?"

"ठीक है, क्षमा भी अवन्तिका के साथ है, इसलिए वह थोड़ी हिम्मत बनाए हुए है। क्षमा ने उसे सँभाल लिया है।"

"अच्छा ठीक है फिर पुलिस क्या कहती है? बात हुई इंस्पेक्टर से? "

"हाँ, हर संभव चेष्टा कर रही है। बस अब तो उस भगवान के ऊपर भरोसा है। मुझे यकीन है अनन्या जहाँ कहीं भी हो भगवान उसकी रक्षा करेंगे, क्योंकि मेरी बेटी ने अब तक किसी के साथ अन्याय नहीं होने दिया है, न किसी का दिल दुखाया है। जिसने आज तक किसी को नुकसान नहीं पहुँचाया भगवान क्यों उसका बुरा चाहेंगे।" संजय की गला रुद्ध हो जाने से आगे कुछ कह नहीं सका।

"हाँ संजय धैर्य रख, हमारी अनन्या बेटी का कुछ नहीं होगा। वह सकुशल हमारे पास पहुँच जाएगी।"

"लेकिन मेरी बेटी का किडनैप ..... " कहते हुए चुप हो गया फिर कुछ याद करते हुए कहा, "मुझे पूरा यकीं है ये उन्हीं लोगों का काम है, जिनकी करतूतों का मेरी बेटी ने पर्दाफाश किया है। पहले उन गुंडों को पकड़ लिया जाए तो मेरी बेटी का पता चल जाएगा, अनन्या का गायब हुए दो दिन बीत गए।"

" सबेरे हम पुलिस स्टेशन चल कर बात करते हैं।"

"मेरे लिए एक-एक पल दुर्भर हो रहा है दुर्योधन। न जाने किस हालात में है मेरी बेटी। उसने कुछ खाया कि नहीं। भगवान मेरी बेटी को सकुशल पहुँचा दे बस।"

- धैर्य रखो संजय, अनन्या को कुछ नहीं होगा। वह जहाँ भी होगी ठीक ही होगी।"

- ठीक है दुर्योधन आप से बात कर के कुछ हिम्मत मिली। सुबह चलते हैं।"

फ़ोन कट गया। संजय रम्या के फ़ोटो के पास खड़ा हुआ। "रम्या, काश कि आज तुम यहाँ होती, मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि कैसे सँभालूँ मेरी बेटियों को? क्या कोई कमी रह गई मेरी परवरिश में? क्या करूँ, कहाँ से ढूँढ़ लाऊँ तुम्हारी बेटी को? कुछ तो कहो रम्या। तुम्हारी कमी बहुत महसूस हो रही है। हमारे बच्चों को माँ की जरुरत है रम्या। वे तुम बिन बिखर न जाए, सँभाल लो तुम्हारे बच्चियों को तुम सँभाल लो। मैं हार गया ..रम्या मैं हार गया।"

"तुम तो चली गई ऐसे ही एक अँधेरे रात में। आज सब कुछ मेरे हाथ से छूट रहा है वक्त मेरी पहुँच से बाहर है, काश कि तुम सँभाल लेती ... चली आओ रम्या ...चली आओ और मेरी बच्ची को ... मेरी बच्ची को बचालो, न जाने किस मुश्किल से गुजर रही होगी, कैसी होगी? मुझे माफ़ कर दो रम्या मुझे माफ़ कर दो। मैं हमारी बच्ची की रक्षा नहीं कर पाया, मुझे माफ़ करदो।"

अवन्तिका कब से पीछे आ कर खड़ी थी, "पापा ऐसे मत कहो, दीदी को कुछ नहीं होगा। दीदी आ जाएगी सही सलामत आ जाएगी।" कहते हुए रोने लगी। संजय की हालत देख अवन्तिका सहम गई। संजय ने उसे गले लगा लिया और मन ही मन कहा, "मुझे माफ़ कर दो बेटी मैं तुम्हारी बहन को सुरक्षा नहीं दे पाया।" 👍👍👍👍👍