11 - Dhan. in Hindi Motivational Stories by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | अर्थ पथ - 11 - धन ....

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अर्थ पथ - 11 - धन ....

धन ...........

जब हमारा समय अच्छा चल रहा हो। हमारे पास धन की प्रचुरता हो तो हमें आवश्यकता से अधिक धन को ऐसी शासकीय योजनाओं अथवा बैंकों में लगा देना चाहिए जिनमें हमारा धन भी सुरक्षित रहे और समय आने पर हम उसका सरलता से उपयोग कर सकें। उद्योग के घाटे में आने की स्थिति में यह धन हमारे घाटे को भी पूरा कर सके और हमारी आर्थिक स्थिति पर भी आंच न आये।

जीवन में किसी भी क्षेत्र में हम कोई कार्य करते हैं तो केवल सफलता के विषय में ही चिन्तन करते हैं। हमें उसमें संभावित असफलताओं पर भी विचार करना चाहिए और उनके कारणों पर भी चिंतन करना चाहिए तभी हम उनके दोषो से भी बचने का उपाय कर सकेंगे और तब सफलता का रास्ता अधिक सरल हो जाता है। सफलता पाने के लिये किया जाने वाला कार्य एक सकारात्मक प्रयास होता है साथ ही मार्ग के कण्टकों को दूर करना भी नकारात्मकता को समाप्त करना होता है। जब हमारी किस्मत के सितारे गर्दिश में होते हैं तो अपने भी बेगाने हो जाते हैं। जीवन में विपरीत एवं कठिन समय में हम जिनकी मदद करते हैं वे भी अनजाने हो जाते हैं और कठिन समय में हमारे काम नहीं आते हैं। हमने जिन्हें अच्छे समय में धन देकर उपकृत किया था वे धन मांगने पर आंखें दिखाते हैं। केवल वे पुण्य कार्य ही हमारा साथ निभाते हैं जो हमने किये होते हैं। बुरे वक्त में वे ही तलवार और ढाल बनकर हमारे काम आते हैं।

चिन्ताओं की चिता पर लेटा हुआ मनुष्य मानो अपनी ही चिता को तैयार कर रहा है। जीवन में कठिनाइयो के आने पर चिन्ता नहीं करना चाहिए। इसका निदान कैसे हो इस पर विचार करके उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए। दुनिया में ऐसी कोई कठिनाई या समस्या नहीं है जिसका निदान संभव न हो।

हम माँ का दूध पीकर पौरूष एवं पिता के स्नेह व शिक्षा से ज्ञान प्राप्त करते हैं। हमें साहस से चिन्ता के कारणों का समाधान करना चाहिए एवं वक्त गंवाये बिना साहस एवं धैर्य के साथ जीवन पथ में आगे बढ़ना चाहिए। जीवन में कितनी भी विपरीत परिस्थितियाँ हो उन्हें हँसते हुए धैर्य पूर्वक स्वीकार करना चाहिए। हमें ईश्वर पर विश्वास रखना चाहिए कि विलंब हो सकता है परंतु समस्या का हल अवश्य निकलकर आता है।

एक उद्योगपति को काले धन से सदैव दूर रहना ही चाहिए। तभी वह सुख और शान्ति के साथ अपना काम कर सकता है। वैसे भी इस काम को प्रमुख रुप से हमारे नेता और अफसर पूरे मनोयोग से कर रहे हैं। हमें यह कार्य उन्हीं पर छोड़ देना चाहिए। काला धन एक उद्योगपति के जीवन मे उसकी प्रगति के मार्ग में सबसे बड़ी रूकावट है। आज सरकार ने आयकर कम करके लगभग तीस प्रतिशत कर दिया है। अब काले धन का उद्योगपति या व्यापारी के लिये कोई औचित्य नहीं रह गया है। यदि आप ईमानदारी पूर्वक कर देते हैं तो तीस प्रतिशत कर जाने के बाद भी सत्तर प्रतिषत आपको बचता है। जिससे आप बैंक में या अन्य वित्तीय संस्थानों में अपनी साख स्थापित करके कही अधिक रकम का प्रबंध करने में सक्षम हो जाते हैं। इस रकम से आप उद्योग को विकसित करके अपनी आय को और अधिक बढ़ा सकते हैं। सरकार को निजी आयकर को कुछ कम कर देना चाहिए। इससे सरकार का राजस्व भी कम नहीं होगा बल्कि वह और बढ़ जाएगा।

विभिन्न शासकीय संस्थानों से संपर्क के कारण यदि किसी संस्थान से किसी भी प्रकार के विवाद हों तो हमें समझौतावादी दृष्टिकोण अपनाते हुए अपना काम निकाल लेना चाहिए। इससे समय की भी बचत होती है और हम व्यर्थ के विवादों से बचकर न्यायालयीन चक्करों से बच जाते हैं। जीवन में अच्छी और बुरी घटनाएं होती रहती हैं। हमें प्रत्येक घटना का विश्लेषण करना चाहिए। इस विश्लेषण के द्वारा हमें जीवन के प्रत्येक पहलू को ध्यान में रखते हुए इनका सकारात्मक सृजन में उपयोग करना चाहिए। हमें जीवन में अच्छे लोगों के बीच अच्छे वातावरण में रहना चाहिए तभी हमारे मन में सकारात्मकता आती है।

हरीशचंद नगर के एक सफल व्यवसायी माने जाते थे, जिनका व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति कर रहा था। उनकी धर्मपत्नी एक बहुत ही विदुषी एवं जागरूक महिला थी। वे अक्सर अपने पति को कहती थी कि ईश्वर कृपा से अभी अपना समय बहुत अच्छा चल रहा है तुम्हारी आमदनी को देखते हुए मैं तुम्हें सुझाव देना चाहती हूँ कि तुम अपनी आय का एक बडा हिस्सा सुरक्षित रखो। जीवन में वक्त हमेशा एक सा नही रहता और ना जाने कब व्यापार में उतार-चढ़ाव आ जाये तब वह संचित धन तुम्हारे बहुत काम आयेगा। हरीशचंद यह सुनकर हंसकर कह देता था कि अभी क्या जल्दी है। हम कुछ दिनों के बाद तुम्हारे सुझाव को मानकर रूपये इकट्ठा करना शुरू कर देंगें। तुम चिंता मत करो तुम तो अभी केवल खाओ, पियो और मौज करो। अपने आप को खुश रखो और मुझे भी शांति से रहने दो। इस तरह समय बीतता गया और हरीशचंद ने अपनी पत्नी की बातों को नजर अंदाज कर दिया।

कुछ वर्षों के बाद आर्थिक मंदी के कारण बाजार में व्यापार ठप्प पडने लगा। इसका असर हरीशचंद के व्यापार पर भी हुआ और उसकी बिक्री कम होने के साथ-साथ उसके द्वारा बाजार में अन्य व्यापारियों को दिया हुआ उधार भी समय पर वापिस ना आ पाया, उसके द्वारा अपने मित्रों को दिया गया धन भी उसके वापिस माँगने पर उसे नही मिला। इस प्रकार इन सब परिस्थितियों के कारण हरीशचंद को व्यापार में घाटा होने लगा क्योंकि वह अपने व्यापार में आवष्यक पूंजी का विनिवेश नही कर पा रहा था। वह बहुत चिंतित और परेशान था और उसे अब अपनी पत्नी के द्वारा दिये गये सुझाव को ना मानने के कारण पछतावा हो रहा था। इन्ही चिंताओं के कारण उसका स्वास्थ्य भी गिरता जा रहा था और एक दिन उसकी पत्नी के पूछने पर उसने अपनी व्यथा से उसे अवगत करा दिया। उसने बडे प्रेम से अपने पति से पूछा कि तुम्हें अपने व्यापार को संभालने एवं सुचारू रूप से चलाने के लिए कितने धन की आवश्यकता है। हरीशचंद मायूस होकर बोला कि मुझे 20 लाख रू की तुरंत आवश्यकता है। यदि कही से इसका इंतजाम हेा जाये तो मैं विपरीत परिस्थितियों में भी अपने व्यापार को घाटे से उबार लूँगा। उसकी पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा कि बस इतनी सी बात के लिए तुम इतने चिंतित हो मैंने तुम्हारे द्वारा दिये गये घरखर्च में से रकम बचाकर इकट्ठी की हुई है वह मैं तुम्हें दे रही हूँ। यह देखकर हरीशचंद को पुनः अपनी गलती का अहसास हुआ कि उसे सही समय पर धन संचित करके रखना चाहिए था आज उसकी पत्नी की बुद्धिमानी एवं दूरदर्शिता ने ना केवल उसकी साख बचा ली बल्कि उसके व्यापार को भी सहारा दे दिया।