Katil - 3 in Hindi Love Stories by Monty Khandelwal books and stories PDF | कातिल - 3

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कातिल - 3

एक दिन की बात थी जब में बाजार में सामान खरीदने गया था | तब वोभि वहां सामान खरीदने ही आई थी तो वही पर उस से मेरी पहली मुलाक़ात हुई

मुलाकात भी थोड़ी है अलग से थी

लेकिन वोतो दुकान वाले को जबरदस्त डांट रही थी वह भी कुछ पैसो के लिए

मैं-( मन में सोचते हुए ) अरे यह तो अपने जैसी है एकदम सेम टू सेम इसके साथ तो खूब जमने वाली है तेरी

सपना देखते हुए - वह हाथ में चाकू नहीं कर शर्ट के अंदर गांठ लगाकर एक रुमाल गर्दन में डाल कर दुकानदार से वसूली कर रही है और वह उसके पीछे पीछे चल रहा है और कोई उसको देख कर सलाम ठोक रहा है दुकानदार को धमकी देते हुए अगर तुमने पैसा नहीं दिया तो काट डालूंगी हां
और मैं उसके पीछे पीछे चल रहा हूं

काफी देर तक उस दुकानदार से झगड़ा करने के बाद में जब उसे ₹2 लौट आए तो मैंने देखा कि वह तो किसी और को पैसे दे रही थी और बोल रही थी अरे आंटी जी आप ऐसे ही अपने पैसे छोड़ कर चली जाओगी तो यह लोग तो सिर पर चढ़ जाएंगे और लोगों को छुट्टा ना होने का बहाना बताकर पैसे लूटते रहेंगे

arjun- वाह वाह वाह क्या बात है आपने तो उस दुकानदार की वाट लगा दी

देखो ना ये दुकान दार कैसे लोग को लूटते हैं

arjun - लेकिन आज के बाद वह कभी किसी को नहीं लूटेगा देखो तो उनकी सकल

ओके ओके ओके रुको तुम कौन

वैसे
तुम तो वही होना जो हर रोज कॉलेज रास्ते में उस पेड़ के नीचे बैठा करते हो इसका मतलब तुम मेरा पीछा करो

अर्जुन - (मन में) इसका मतलब है यह भी रोज मुझे देखा करती है ...

नही नही वो तो मैने आपको उससे झगड़ा करते देखा तो आपका साथ देने आ गया बस ..

वैसे ... आपने उसे अच्छा सबक सिखाया

हाँ...

अर्जुन- लेकिन वह आंटी कौन थी जिसके लिए आप लड़ रही थी
अरे वो ....
वो तो आश्रम मैं खाना पकाने वाली laxmi आंटी थी
हर रोज गरीब अनाथ बच्चों बूढ़े और विधवा लोगों के खाना पकाती है

अर्जुन- तुमको कैसे पता

मैं हर रोज वहा जाति हु ना इसलिए

वैसे आप क्या करते हैं

अर्जुन( मन में)- अरे यार क्या पूछ लिया इसने कैसे बताऊ कि में क्या काम करता हूँ
लोगो कि धुलाई करता हूँ इसके अलावा और कोई काम नहीं हैं मेरे पास

(पापा को याद करते हुए)
पापा ठीक ही कहते थे पढ़ ले बेटा बड़े होकर कहीं कोई अच्छी नौकरी मिल जायेगी लेकिन में ही निकम्मा था जो पढ़ने के बजाये
स्कूल में किसी ना किसी बात पे सब को धोया करता...

पापा आप ही सही थे

रितु - क्या हुआ किस सोच में पड गये बताओ
किसी कंपनी में जॉब करते हो क्या


अर्जुन -नहीं नहीं वो में वो बस तुम्हारी तरहा ...ही लोगो की सेवा_ करने का_काम _करता _हूँ...

रितु -क्या तुम भी मेरी तरह Social worker हो

हाँ हाँ वोही वोही

तबतो हमारी खूब जमेगी
तुम्हारा मोबाइल देना ...
मेने मेरा नम्बर सेव कर लिया है जब भी तुम कोई ऐसा काम करो तो तुम मुझे भी बुलाना हाँ

हाँ हाँ क्यों नही

तो कुछ इस तरह से हमारी मुलाकात हुई थी

थोड़ी बातें की और कुछ देर उसके साथ चला तो ऐसा लगा जैसे में कोई सपना देख रहा हूँ
में उसके बात करने केे तरीके उसकी हसि पर पूरी तरहा फिदा होगया था .... उसका नंबर पा कर तो में मानो पागल होगया था