भाग -12
आराधना अपने आप को सँभाल न सकी और उसके मन का गुब्बार फुट गया, अमित के सीने से लगकर वह फूट - फूट कर रोने लगी। अमित भी हैरान था एक के बाद एक झटके जो आराधना और उसकी जिन्दगी मे तूफान से ला रहे थे।
अग्रवाल अंकल की शख्सियत का तो वो भी दीवाना था, कितने भले आदमी थे वे। वैसे उनकी मुलाकातें तो बहुत कम हुई थी लेकिन कुछ लोगों का व्यक्तित्व ही इतना शानदार होता है की पहली दफा ही वे मन मे समा जाएं।
शाम तक आराधना उलझनों मे ही खोयी रही और वजह तलाशती रही आखिर ऐसा क्या हुआ कि अग्रवाल अंकल और मनीष दोनों ही भगवान को प्यारे हो गये।
क्या कोई दुर्घटना हुई या फिर कोई अनहोनी...
बस इन्ही कश्मकश मे वो खाना बनाने किचन गयी,
पतीले से उबलता हुआ दूध उफनता ही जा रहा था और उसकी आँखे भी आंसुओं से छलकते जा रहे थे।
" आराधना... आराधना
कहाँ खोयी हो ?
सारा दूध तो बहा जा रहा है "
अमित दौड़ता हुआ किचन मे आया।
" सॉरी जी, पता नही अचानक से वो...
वंश कहाँ है सो गया क्या? "
" नही, बस अपनी मम्मा के इंतजार मे है
लेकिन तुम तो कहीं और.."
थोड़ी देर बाद वंश के सो जाने के बाद आराधना और अमित छत पर ही टहलने लगे। आराधना ने कहा की अब वह कमला आंटी से बात करना चाहती है और जानना चाहती है अंकल और मनीष के इस दुनिया से जाने की वजह, आखिर हालात इतने कैसे बदल गये ?
आराधना बेचैन थी पर अमित इस पक्ष मे बिल्कुल भी नही था और वो आराधना को समझाने लगा।
" मै समझ सकता हूँ आराधना..
पर तुम उनसे बिल्कुल नही मिलोगी, भूल गयी कितने गहरे घाव दिये है उन्होंने "
" लेकिन अंकल और मनीष के खातिर एक बार
प्लीज "
" किस मनीष की बात कर रही हो तुम?
वही जो लास्ट टाइम तुमसे मिलने तक नही आया,
कमला आंटी ने जो भी किया, पर मनीष को तो एक बार मुड़ के देख लेना था "
" लेकिन अमित अभी के हालत..."
" याद करो उस पल को आराधना जब तुमसे सबसे बड़ी खुशी छीन ली गयी , तुम्हे बीच राह पर ही छोड़ दिया गया।
और उस मुश्किल घड़ी मे न ही मनीष आया न ही अंकल
क्या ऐसा था मनीष का प्यार ?
क्या कमला आंटी को तुम पर तरस आया था ?
क्या अग्रवाल अंकल कभी जान नही पाये उनकी धर्म पत्नी और बेटी ने तुम्हे किस चक्रव्यूह मे फँसाया था ? "
अमित की ये सारी बातें सुनकर आराधना खामोश सी हो गयी और उसका हाथ पकड़कर जोर - जोर से रोने लगी शायद अमित ठीक ही कह रहा है।
अतीत के घाव अब हरे -भरे से हो गये। ये खुले आसमान, स्वच्छ बिछी हुई चांदनी बस यही तो कह रहे थे आराधना का आज सिर्फ अमित है। वो अमित जिसने उसे नया जीवन दान दिया, वो अमित जो उसकी ताकत है, वो अमित जो वंश का पिता है तो फिर वह क्यों न वह उसकी बात माने।
एक दूसरे का हाथ थामे हुए वे दोनों नीचे आये और सोने की कोशिश मे करवटें बदलते रहे। आज तो अमित की आँखों से भी नींद गायब थी आखिर वो भी तो इस कहानी का अहम हिस्सा था धीरे- धीरे वो भी अतीत के साये मे खोता चला गया। कैसे वह आराधना और मनीष से पहली बार मिला और जिंदगी ने उसे कैसे दोराहे पर खड़ा कर दिया था ?
लफ्जों ने खामोशियों की चादर ओढ़ ली और आराधना बीते दिनों को याद करने लगी।
छोटी - छोटी खुशियों को सँभाले हुए उसकी और मनीष की जिन्दगी धीरे- धीरे आगे बढ़ रही थी। देखते ही देखते उनकी शादी को 6 महीने हो गये पर अभी तक कमला आंटी ने पलटकर कोई जवाब नही दिया। शायद वो अभी तक नाराज हो अंकल तो रोज हाल - चाल पूछ ही लेते थे पर न जाने क्यों बेटे की ममता भी उन्हें खींच न सकी। जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ता ही जा रहा था क्योंकि उनका आँगन अब किलकारियों से गूँजने वाला था। खुशी का ठिकाना ही न रहा जब आराधना ने मनीष को इसके बारे मे बताया।
आज भी याद है गरियाबंद का वो गुजराती होटल जहाँ मनीष, अमित और आराधना डिनर पर गये थे। धीरे-धीरे
अमित भी उनकी फैमिली का एक हिस्सा बनता जा रहा था और हो भी क्यों न ? अपनी जिम्मेदारी से ही उसने मनीष को आई टी एस कॉलेज मे क्लर्क का जॉब भी तो दिलाया था।
कभी सुबह की चाय अमित के हाथों की या फिर शाम का नाश्ता आराधना के हाथों का। सुबह आराधना मनीष और अमित को अलविदा कहती और शाम को उनका इंतजार करती।
कई बार मनीष ने आराधना की खुशामदी के लिये किचन मे अपना धावा बोला पर बेचारे ने किसी दिन चावल जला डाले तो किसी दिन सब्जी मे नमक डालना ही भूल गया।
वक्त के पहिये चलते ही जा रहे थे और एक दिन अचानक मनीष कॉलेज के किसी जरूरी काम से रायपुर गया। वो तो आराधना को साथ ही ले जाना चाहता था पर इस हालत मे उसने घर पर रहना ही ठीक समझा। अमित पर वे आँख मूँदकर भरोसा करने लगे थे और शायद इलसिये ही मनीष आराधना को अकेला छोड़ पाया।
दोपहर के 2 बज रहे थे मनीष तो सुबह से ही रायपुर के लिए निकल गया। पहली बार आराधना घर पर अकेली ही रह गयी रह - रह कर मनीष की याद सताये जा रही थी पता नही वे पहुँचे या नही, लंच किया या नही, अभी कॉल करना ठीक होगा या नही ,
बस इन्ही ख्यालों मे वो डूबी जा रही थी तभी अचानक ट्रिंग - ट्रिंग की आवाज उसके कानों में पहुँची, मोबाइल के रिंगटोन से उसका ध्यान टूटा। अरे! पापा जी का कॉल..
"हेलो पापा जी
प्रणाम "
" खुश रहो बेटी, और वैलकम करने की तैयारी करो तुम्हारी सासु माँ और शीतल कल तुमसे मिलने आ रही है "
" पापा जी...
आप मजाक तो नही कर रहें ? "
" नहीं मेरी बच्ची,
मेरा यकीन करो, मनीष से भी बात हो गयी है पर उसने कहा कि वह परसो तक लौट पायेगा "
" लेकिन पापा जी मैं अकेले कैसे?..."
" चिंता मत करो आराधना।
समझो इस बार तुम्हारी माँ और बहन को भेज रहा हूँ "
मिस्टर अग्रवाल की ये बातें सुनकर आराधना फूली न समायी और सोंच कर ही पागल सी हो गयी। शायद ये किसी सपने से कम न हो, पर सपने भी तो सच हो सकते हैं न। पर अचानक से ये सब कैसे ?
ये उसकी प्रार्थनाओं का ही असर है लगता है इस बार भगवान ने उसकी विनती स्वीकार कर ली। इतनी बड़ी खुशखबरी वह बिना मनीष से साझा किये कैसे रह सकती ?
क्रमशः...