Baat bus itni si thi - 30 in Hindi Moral Stories by Dr kavita Tyagi books and stories PDF | बात बस इतनी सी थी - 30

Featured Books
Categories
Share

बात बस इतनी सी थी - 30

बात बस इतनी सी थी

30.

तेरह दिन तक मैं उसकी जिंदगी के राजमहल की एक-एक खिड़की पर झाँकता हुआ भटकता फिरता रहा, लेकिन मुझे ऐसा कहीं कोई सुराग या ऐसा कोई रास्ता नहीं मिला, जहाँ से मैं उसकी जिंदगी के अंधेरे कोने का दर्शन कर सकूँ या जहाँ खड़ा होकर मैं उस नाम को सुन सकूँ, जो उसके दिल में बजने वाले तरानों में गूँजता है ।

चौदहवें दिन शाम को ऑफिस से लौटने के बाद मधुर ने मेरी जिज्ञासा को समझकर या मुझे अपना दोस्त मानकर खुद ही मेरे लिए अपनी उस जिंदगी के अंधेरे कोने की तरफ जाने वाली खिड़की को खोल दिया, जिसमें जाने की अनुमति वह किसी को नहीं देता था ।

उस समय टेलीविजन पर एक फिल्म चल रही थी । हम दोनों के हाथ में शराब का अपना-अपना गिलास था । मुझे अभी तक नशा चढ़ना शुरू नहीं हुआ था, लेकिन मधुर को हल्का-सा नशा चढ़ चुका था । मधुर ने नशे में झूमते हुए कहा -

"यार चंदन ! मेरा दिमाग कहता है, लड़कियों से हमेशा दूर ही रहना चाहिए ! पर यह साला दिल है कि दिमाग की एक नहीं सुनता ! इसे जितना रोको, यह उतना ही लड़कियों की तरफ भागता है !"

मैंने महसूस किया कि इस समय मेरे लिए मधुर की जिंदगी की हर खिड़की खुली हुई है, जहाँ से मैं उसकी जिंदगी के हर काले-उजले कोने में झांँक सकता हूँ ! मैंने अपनै प्रश्नों के उत्तर ढूँढने की दिशा में अपना कदम बढ़ाते हुए उससे पूछा -

"कौन है वह खुशनसीब ? जिसके हाथों यार का दिल परवश हो गया है !"

"यार चंदन ! मेरी जिंदगी में बहुत-सी लड़कियाँ आयी और चली गयी । मैंने उनमें से किसी को भी, कभी भी अपने दिल की चौखट तक नहीं पहुँचने दिया था । लेकिन एक लड़की मेरी जिंदगी में ऐसी आयी कि उससे अलग हुए बरसों बीत गए हैं, पर आज भी वह मेरे दिल में इस तरह जमकर बैठी है कि मेरी हजारों कोशिशों के बाद भी वह मेरे दिल से निकलने को तैयार नहीं है ! आज भी वह मेरे दिल पर राज करती है ! "

"आखिर कौन है वह ? और ऐसी क्या खास बात है उसमें कि बरसों बीत जाने के बाद भी तुम चाहकर भी उसे भुला नहीं पा रहे हो ?"

मेरे प्रश्न के उत्तर में मधुर ने अपने मोबाइल की स्क्रीन ऑन करके मंजरी का फोटो मेरी तरफ घुमाकर कहा -

"यही है वह लड़की ! अब इसको देखकर तू बता सकता है कि इसमें क्या खास बात है ? नहीं बता सकता न ? तू क्या, इसकी खासियत कोई भी नहीं बता सकता, क्योंकि उसकी खासियत उसकी शक्ल में नहीं है ! इसकी खासियत सिर्फ मैं जानता हूँ ! सिर्फ और सिर्फ मैं ! या फिर वह खुद जानती हैं उसकी खासियत !"

मधुर के मोबाइल की स्क्रीन पर मंजरी की फोटो लगी थी । उसकी फोटो को तो मैं पहले ही देख चुका था । मेरे लिए नयी और संतोषजनक बात यह थी कि बरसों पहले मंजरी के साथ मधुर का जो भी रिश्ता रहा था, अब वर्तमान में वे दोनों एक-दूसरे से अलग हो चुके थे । हालांकि यह बात मुझे कष्ट दे रही थी कि उसको और मंजरी को एक-दूसरे से अलग हुए बरसों बीत चुके हैं, फिर भी अभी भी मधुर के दिल में मंजरी के लिए उतनी ही जगह बनी हुई है, जितनी जगह उनके मिलन के दिनों में थी ।

मंजरी को लेकर मधुर के दिल का हाल जानने के बाद मेरे दिल दिमाग में यह जानने की इच्छा तेज होती जा रही थी कि मंजरी के साथ मधुर का रिश्ता किस हद तक पहुँचा था ? और आखिर किस वजह से इन दोनों के रिश्ते में खटास आयी थी । अपनी जिज्ञासा को शान्त करने के लिए मैंने मधुर से पूछा -

"आज भी जो लड़की तुम्हारे दिल के इतने करीब है, उससे इतनी दूरी क्यों ? इतनी कि तुम दोनों ने आपस में एक-दूसरे से मिलना जुलना भी बंद कर दिया ! पिछले चौबीस दिनों से तो मैं खुद इस बात का गवाह हूँ कि तुम दोनों के बीच में अब दिल की प्यास बुझाने वाली नजदीकियाँ नहीं रह गयी हैं !"

"अरे, तू पिछले चौबीस दिनों की बात कर रहा है, मेरी और मंजरी की आपस में पिछले छ-सात सालों से बातचीत नहीं हुई है !"

"क्यों ?"

"उस साली ने मेरा नंबर ब्लॉक कर दिया है ! तुझे मालूम नहीं है, उससे बात करने के लिए मैंनें पूरे एक साल तक रोज नए नए नंबर से ट्राई किये । सोचा था, नाराज हैं, मान जाएगी ! पर वह मेरी आवाज पहचानते ही कॉल काट देती थी । एक साल बाद मैंने भी यह सोचकर उससे बात करना बंद कर दिया कि वह नहीं चाहती, तो मैं ही अपना अहम् क्यों दाँव पर लगाता रहूँ ?"

"आखिर ऐसा क्या हुआ था ? किस बात की नाराजगी थी कि आप दोनों के बीच में इतनी दूरी बन गयी ?"

"कुछ नहीं हुआ था ! बात बस इतनी सी थी कि ... !"

मधुर ने मंजरी के साथ संबंधों में आयी खटास का कारण बताना शुरू किया, लेकिन एक पल के बाद ही वह रुक गया । शायद वह इस बात का निश्चय नहीं कर पाया था कि मंजरी के साथ गुजरे अपने व्यक्तिगत पलों की दास्तान मुझे बताए ? या न बताए ? या शायद वह उन पलों को दोबारा नहीं दोहराना चाहता था, जो कभी उसकी पीड़ा का कारण रहे होंगे ! कुछ पल मौन रहने के बाद मधुर ने एक लंबी साँस ली और फिर बताना शुरू किया -

"जब मैं मंजरी से पहली बार मिला था, वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में एचआर डिपार्टमेंट की हेड थी, जबकि मैं बिल्कुल खाली था । उसकी अच्छी पोजीशन थी, जबकि मेरे पास कोई नौकरी नहीं थी । न मेरे पास उन दिनों रहने की कोई जगह थी । न खाने-पीने का कोई इन्तज़ाम था और न जेब में दाम थे ।

मंजरी अपने फ्लैट में अकेली रहती थी । वह फ्लैट उसने अपने पापा की सहायता से खुद खरीदा था । मेरी प्रतिभा और योग्यता के साथ मेरी तंग हालत और जरूरत को देखकर उसने मुझे दो-चार दिन अपने फ्लैट में रहने की अनुमति दे दी थी । दरअसल वह मेरी प्रतिभा से बहुत प्रभावित थी । उसको पूरा विश्वास था कि दो-चार दिन में मुझे नौकरी जरूर मिल जाएगी । पर सच तो यह था कि मैं नौकरी करना ही नहीं चाहता था ।

मेरे पापा आज भी एक बड़े बिजनेसमैन हैं । मैंने अपने घर में रुपयों-पैसों की कभी कोई कमी नहीं देखी थी । काम करने के लिए घर में नौकर चाकर थे, इसलिए काम करना मैंने कभी सीखा ही नहीं था । जवानी आने तक खूब ऐश किए थे और दोस्तों के साथ जिंदगी के खूब मजे लिए थे । लेकिन जवानी आते-आते काम संभालने को पापा का प्रेशर बढ़ने लगा ।

मेरे पापा के साथ मेरी कभी नहीं पटती थी । उनसे मेरी आज भी नहीं पटती है । वे मुझे हमेशा से निकम्मा कहते रहे हैं । वे आज भी मुझे निकम्मा ही मानते हैं, परंतु मैं और मेरी माँ ऐसा नहीं मानते !"

मधुर ने हँसते हुए मासूमियत से कहा, जैसेकि कोई बच्चा माँ की गोद का आनंद लेते हुए बेफिक्री से अपने पिता की शिकायत कर रहा हो । जल्दी ही उसे याद आ गया कि वह माँ की गोद में नहीं है, तो उसने फिर बोलना शुरू किया -

"जब तक मैं मंजरी के फ्लैट में नहीं आया था, वह अपने लिए खाना ऑर्डर करके बाहर से मँगाती थी । मैं एक अच्छा कुक हूँ, दो दिन मेरे हाथ का बना हुआ खाना खाकर मंजरी यह अच्छी तरह से जान चुकी थी । घर पर बना हुआ, अपनी पसंद का खाना खाने के लालच में उसने मुझे अपने फ्लैट में जब तक मैं चाहूँ, रहने की इजाजत दे दी ।

मेरे पाक-कला कौशल के सहारे मुझे मंजरी के फ्लैट में रहने खाने की पूरी सुविधा मिलने से मैं निश्चिंत होकर अपने भविष्य के बारे में सोच सकता था । दो महीने का समय मैंने अपने भविष्य के बारे में सोचने और मजे करने में बिता दिया । इन दो महीनों में मैं और मंजरी एक-दूसरे के इतने करीब आ गए थे कि हमारे बीच में अब कोई दूरी बाकी नहीं रह गई थी ।

इन दो महीनों में मंजरी को यह भी पता चल चुका था कि मैं एक धन-संपन्न बाप की औलाद हूँ, इसलिए मेरी दिलचस्पी नौकरी करने से ज्यादा अपना बिजनेस खड़ा करने में है । यह सब-कुछ जान समझकर अब मंजरी मुझमें पहले से कुछ ज्यादा दिलचस्पी लेने लगी थी । पाँच महीने तक उसके फ्लैट में उसके साथ रहते हुए एक नया बिजनेस खड़ा करने की योजना बनाने में बीत गये । इसके बाद मैंने अपनी कंपनी रजिस्टर्ड कराकर ऑनलाइन बिजनेस शुरू कर दिया ।

मेरे बिजनेस को शुरू करने का आईडिया पूरी तरह मेरा था । परन्तु मुझे उसमें उसके लिए जहाँ, जैसे भी और जब भी मंजरी के सहयोग की जरूरत पड़ी, वह मेरा सहयोग करने के लिए हर कदम पर मेरे साथ खड़ी रही । वह सहयोग करने से कभी पीछे नहीं हटी ।

धीरे-धीरे मेरी कंपनी का काम बढ़ने लगा और उसमें अच्छी कमाई होने लगी, तो मुझे अपनी कंपनी के लिए एक योग्य असिस्टेंट मैनेजर की जरूरत महसूस हुई । इसके लिए मैंने मंजरी से सलाह मशवरा किए बिना ही न्यूज़पेपर में एडवर्टाइजमेंट भी निकलवा दिया था । जब मंजरी को इसके बारे में पता चला, तो वह काफी नाराज हुई और उसने मुझे खूब भला भला बुरा कहा । वह बोली -

"मेरे रहते हुए मुझसे एडवाइज के बिना तुम्हें किसी दूसरे असिसटेन्ट को अपॉइन्ट करने की जरूरत क्यों सूझी ?"

"तुम्हारी अपनी भी तो नौकरी है ! उसके साथ-साथ मेरी कंपनी का काम तुम कैसे संभाल पाओगी ? ज्यादा काम करके तुम थक जाओगी !"

"मैं उस कंपनी को छोड़ दूँगी ! जब अपनी कंपनी है, तो दूसरों की कंपनी में नौकरी क्यों करनी है !"

मंजरी का प्रस्ताव मैंने उसी समय स्वीकार कर लिया, क्योंकि मुझे पता था कि पिछले कुछ दिनो से कंपनी के ब्रांच मैनेजर के साथ मंजरी की खटपट चल रही है । यहाँ तक कि एक बार तो उससे मंजरी की काफी कहा-सुनी भी हो गयी थी और तब मंजरी कई दिन तक तनाव में न ठीक से खा सकी थी, न सो पायी थी । तभी से वह उस कंपनी को छोडने के बारे में सोच रही थी । जब मेरी कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर की जरूरत थी, तो उसके लिए अपनी पुरानी नौकरी से इस्तीफा देने का यह एक अच्छा मौका था ।

अगले दिन मंजरी ने पुरानी कंपनी से रिजाइन करके मेरी कंपनी ज्वाइन कर ली । मैंने अपनी कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर के लिए जितनी सैलेरी देना निश्चित किया था , मंजरी को उतनी कम सैलेरी देना मुझे ठीक नहीं लगा था । इसलिए मैंने मंजरी को उसकी योग्यता और एक्सपीरियंस के अनुसार जितना पैकेज उसको उसकी पुरानी कंपनी में मिल रहा था, उससे दो लाख रुपये बढ़ाकर दिया । अच्छा पैकेज मिलने पर मंजरी ने भी कंपनी को नई ऊँचाई तक लेकर जाने के लिए अपनी पूरी निष्ठा और परिश्रम से काम किया ।

कंपनी की तरक्की के लिए मैंने और मंजरी ने जितनी लगन और मेहनत से काम किया था, उसका रिजल्ट भी हमें उतना ही अच्छा मिला । पहली एक साल के लिए हमने हमारी कंपनी के टर्नओवर का जितना टारगेट सोचा था, साल के अंत तक हमारी कंपनी का टर्नओवर उससे तीन गुना ज्यादा हुआ था ।

इस एक साल में मंजरी को उसकी सैलरी सभी कर्मचारियों की तरह टाइम-टू-टाइम दी जाती रही थी । शुरू के कुछ महीनों में मंजरी की सैलरी देने के लिए कंपनी के पास रुपए कम पड़ते थे, उस कमी को बाद के कुछ महीनों में पूरा कर दिया गया ।

मंजरी की सैलेरी देने के बाद जब कुल मिलाकर खर्च से थोड़ी-कुछ बचत होने लगी थी, तब वह बचत कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए उसी में इन्वेस्ट कर दी जाती थी । कंपनी का काम आगे और आगे बढ़ता रहे, इसके लिए मैंने मेरे नाम पर कंपनी से पूरे साल में एक रुपया भी नहीं लिया ।

मेरा लक्ष्य मेरी कंपनी में काम करने वाले हर कर्मचारी को संतुष्ट रखना और कंपनी को नई ऊँचाई देना था । मेरा विचार था कि किसी भी कंपनी को फर्श से अर्श तक ले जाने में उस कंपनी में काम करने वाले हर एक कर्मचारी की बड़ी भूमिका रहती है । यदि कर्मचारी कंपनी की नीतियों से संतुष्ट और खुश रहेंगे, तभी वह कंपनी को आगे बढ़ाने में पूरी मेहनत और ईमानदारी से अपना योगदान दे पाएँगे । इसलिए मैं हमेशा सभी कर्मचारियों के आर्थिक हितों को अपने आर्थिक हितों से आगे रखता था, जिनमें मंजरी भी एक थी ।

मंजरी को मेरा यह विचार बेकार और मूर्खतापूर्ण लगता था । वह अपने आर्थिक हितों को आगे रखकर बाकी सभी के हितों को पीछे छोड़ देना चाहती थी । इस विषय पर मेरे और उसके बीच हमेशा मतभेद ही बना रहता था । कई बार तो हम दोनों में इस विषय को लेकर झगड़ा भी हो चुका था । झगड़े की वजह हर बार यही रहती थी कि मंजरी चाहती थी, हमारी बचत में से किसी भी कर्मचारी को उसकी सैलरी के अलावा कोई बोनस न दिया जाए ! उसके विपरीत मैं चाहता था कि साल के अंत में हमारी बचत का एक छोटा-सा अंश सभी कर्मचारियों में बाँटकर उनका उत्साह बनाए रखना चाहिए !

मेरा विचार था कि साल के अंत में कर्मचारियों को बोनस के रूप में कुछ लाभांश देने से हर एक कर्मचारी कंपनी के साथ अपने दिल में अपनापन और जुड़ाव महसूस करेगा । लेकिन इस विषय में मंजरी का कहना था -

"कंपनी में काम करने वाले हर कर्मचारी को उसके काम के बदले में हर महीना एक निश्चित सैलेरी दी जाती है । इसलिए उसके दिल में अपनेपन की अतिरिक्त भावना जगाने की कोई जरूरत नहीं है !"

क्रमश..